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2018-2019: क्या राहुल गांधी ला पाएंगे कांग्रेस के अच्छे दिन?

आने वाले डेढ़ साल में राहुल गांधी को अपनी रणनीति में ऐसी धार लानी होगी ताकि 2019 में वो बीजेपी की काट बन सकें

Aparna Dwivedi

राहुल गांधी मेघालय में पेग्गी मार्टिन से मिलेंगे. आप पूछेंगे कौन पेग्गी मार्टिन? पेग्गी 90 वर्षीय महिला हैं जो नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी से मिल चुकी है. अब उनका मन राहुल गांधी से मिलने का था. वो त्रिपुरा के शाही परिवार से जुड़े प्रद्युत को बचपन में देखती थी. पेग्गी की इच्छा को प्रद्युत ने ट्वीट किया था. राहुल गांधी अपनी शिलांग यात्रा पर पेग्गी मार्टिन से मिलने जाएंगे.

लोगों से जुड़ने का ये राहुल गांधी का नया तरीका है और प्रधानमंत्री मोदी से प्रेरित है. सोशल मीडिया से दूर-दूर रहने वाले कांग्रेस और राहुल गांधी देर से ही सही लेकिन इस मैदान में कूदे. चुनावी प्रचार के दौरान लोगों के बीच में जाना, उनसे मिलना, सेल्फी खिंचवाना, राहुल गांधी का ये अंदाज पिछले छह महीने में बदल गया है. इससे पहले वो झिझके-झिझके, हिचके-हिचके से मिलते थे और बोलते थे तो कुछ भी बोल जाते थे. लेकिन अब वो संतुलित बोलते हैं, प्रधानमंत्री मोदी के कार्यप्रणाली पर तंज कसते हैं, उनके एक लाइन के व्यंग्य बाकयदा पसंद किए जा रहे हैं. अब वो पप्पू नहीं विपक्ष के मजबूत योद्धा के रूप में दिखने लगे हैं.


कांग्रेस के नए अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने अंदाज से सिर्फ कांग्रेसियों को ही नहीं बल्कि सहयोगी पार्टियों को भी उम्मीद दी है. लेकिन इस अंदाज पर अभी जिम्मेदारियां और चुनौतियां बहुत हैं.

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गुजरात में कांग्रेस प्रदर्शन पर राहुल गांधी काफी खुश हैं लेकिन वो ये जानते हैं कि गुजरात चुनाव में कांग्रेस को जीत के करीब लाने वाले नेता कांग्रेस के नहीं थे बल्कि बीजेपी विरोधी वो नेता थे जिन्होंने अपनी लड़ाई के लिए गुजरात सरकार के खिलाफ आंदोलन खड़ा किया. राहुल गांधी को ऐसे नेताओं का साथ हर राज्य में चाहिए जहां पर उनकी सरकार नहीं है. लेकिन उनका मुकाबला बीजेपी के रणनीतिकार अमित शाह से है जो इस तरह की खेल में माहिर हैं.

कांग्रेस के सामने नई चुनौतियां

साल 2018 चुनाव का मौसम लेकर आया है. पूर्वोत्तर राज्यों के साथ-साथ कर्नाटक और साल के अंत तक मध्यप्रदेश, राजस्थान और छतीसगढ़ में चुनाव हैं. चुनाव वाले राज्यों में से तीन में कांग्रेस की सरकार है- मेघालय, मिजोरम और कर्नाटक. कांग्रेस को इन राज्यों में अपनी सरकार बचानी है. साथ ही बीजेपी शासित राज्यों में सेंधमारी करनी है. पर जिस लाव-लश्कर के साथ बीजेपी चुनाव में उतरती है क्या वो कांग्रेस के पास है?

इस साल देशभर में 8 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. पूर्वोत्तर में त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में मार्च तक चुनाव होंगे, जबकि मिजोरम में नवंबर में चुनाव की खबर है. वहीं, दक्षिण में कर्नाटक में अप्रैल या मई में चुनाव होंगे जबकि हिंदी बेल्ट राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में साल के अंत में चुनाव होंगे. कांग्रेस को अपना गढ़ तो बचाना ही है साथ ही राजस्थान और मध्यप्रदेश में किसानों के गुस्से की वजह से बढ़े अंसतोष का फायदा उठाना है. मेघालय में अभी मुकुल संगमा की अगुवाई में कांग्रेस की सरकार है. 60 सीटों के इस चुनाव में बीजेपी ने अपना पूरा जोर लगाया है. वहीं त्रिपुरा में वामपंथियों का गढ़ है. बीजेपी पश्चिम बंगाल के बाद यहां पर कब्जा करना चाहती है. क्या राहुल गांधी को त्रिपुरा में वामपंथ का साथ मिलेगा. नागालैंड में एनडीए की सरकार जिस पर कांग्रेस को कब्जा करना है.

सबसे बड़ी चुनौती कर्नाटक

एक तरफ जहां कांग्रेस कर्नाटक में अपने आखिरी सियासी किले को बचाने की पूरी कोशिश करेगी तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी वहां कांग्रेस के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठा राज्य सरकार उखाड़ने की पूरी कोशिश करेगी. कर्नाटक में इस साल के आखिर में 224 विधानसभा सीटों पर चुनाव होना है. फिलहाल, वहां कांटे की टक्कर है.

राजस्थान, मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ में घुस पाएंगी कांग्रेस?

इन तीनों राज्यों में बीजपी की सरकार है. लेकिन यहां की सरकारों को लेकर अंसतोष काफी है. मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार पर घोटाले के आरोपों की फेरहिस्त लंबी होती जा रही है. वहीं छत्तीसगढ़ में रमन सिंह के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर है. राजस्थान में वसुंधरा सरकार के खिलाफ काफी असंतोष देखा जा रहा है. इन तीनों राज्यों में कांग्रेस तभी फायदा उठा पाएगी जब वो इन राज्य इकाइयों में गुटबाजी खत्म कर दे.

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साल 2018 के चुनाव अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के सेमीफाइनल के रूप में देखा जा रहा है. कांग्रेस को अगर वहां पर अपनी मजबूत पकड़ दिखानी है तो पहले पार्टी को मजबूत करना होगा.

कांग्रेस कार्यकारिणी में बदलाव

इसी के तहत राहुल गांधी कांग्रेस कार्यकारिणी समिति में अपनी टीम के सदस्यों को लाना चाहते हैं. 25 सदस्यीय इस समिति में कई युवा नेताओं की नियुक्ति की खबर है. बताया जा रहा है कि उनकी टीम में अनुभवी नेताओं और युवा चेहरे शामिल होंगे, इसमें कोई संदेह नहीं है कि पुराने गार्ड के बीच कुछ युवा नेताओं के लिए रास्ता बनाना होगा. जो नाम बताए जा रहे हैं उनमें एके एंटनी, अहमद पटेल, गुलाम नबी आजाद और मल्लिकार्जुन खड़गे तो बने रहेंगे, बाकी नए युवा नेता सुष्मिता देब, ज्योतिरादित्य सिंधिया, शशि थरूर, जितेंद्र सिंह, मिलिंद देवड़ा और दीपेंद्र हुड्डा समिति में लाए जाएंगे. इसके अलावा पार्टी के अलग-अलग विभागों के मुखिया भी बदलेंगे. कुछ को संगठन की और कुछ को राज्य चुनाव में रणनीति बनाने की जिम्मेदारी सौपेंगे. पर यहां पर उन्हें सबसे ज्यादा जिस बात का ध्यान रखना होगा कि वहां पर पहुंचने वाले नेता जमीन से जुड़े हों और पार्टी के संगठन को मजबूत करने की कूवत रखते हों.

पार्टी संगठन को मजबूती

बीजेपी की तुलना में कांग्रेस पार्टी संगठन के तौर पर बहुत कमजोर नजर आती है. यह गुजरात चुनाव प्रचार के दौरान भी प्रत्यक्ष रूप से दिखा. जहां कांग्रेस और राहुल अच्छे से चुनाव लड़े. लेकिन आखिरी मील की रेस में कांग्रेस पार्टी बहुत तेज भाग नहीं पाई. राहुल के लिए पार्टी को नया स्वरूप देना, नई शक्ति देना और जमीन पर ऐसे कार्यकर्ता बनाना जो भाजपा के कार्यकर्ताओं को मुकाबला दे सकें सबसे बड़ी चुनौती है. अपने 132 सालों के कांग्रेस के इतिहास में और खासकर आजादी के बाद कांग्रेस इतनी कमजोर कभी नहीं थी.

राज्य स्तर के नेता नहीं

कांग्रेस की दूसरी समस्या कि उनके पास राज्य स्तर पर नेता नहीं हैं. यही वजह है कि कांग्रेस स्थानीय स्तर पर बड़े मुद्दे नहीं उठा पाती. कांग्रेस को दूसरी पंक्ति का नेता तैयार करना होगा. राहुल गांधी को राज्य स्तर पर पार्टी को मजबूत करना होगा. उसके बाद राज्य स्तर के नेता को दायित्व दें. यहां पर राहुल गांधी की भूमिका बड़ी हो जाती है. उन्हें खुद लोगों से और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं से मिलना होगा.

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लोकतंत्र में जीत का मतलब बहुमत होता है. बहुमत की सरकार बनती है. कांग्रेस को इसी बहुमत के लिए हर तरह काम करना होगा. गुजरात में जिग्नेश, अल्पेश और हार्दिक से कांग्रेस को फायदा हुआ. ऐसा ही गठजोड़ बाकी राज्यों में करना होगा.

उत्तर प्रदेश-बिहार-झारखंड

इन तीनों राज्यों में लोकसभा की कुल सीटें 134 सीटें हैं. ये वो राज्य हैं जहां पर 2014 में बीजेपी को बहुमत मिला था और यहीं कांग्रेस की कमजोर कड़ी है. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ कांग्रेस गठबंधन फेल हो गया. लेकिन लोकसभा के लिए कांग्रेस को सभी पार्टियों को जोड़ना होगा. एनडीए के कई दल बीजेपी से नाराज चल रहे हैं- कांग्रेस को उनकी नाराजगी को अपने समर्थन में खींचना होगा.

महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ की सियासत

महाराष्ट्र जो अभी दलित आंदोलन का केंद्र बना हुआ है, वहां कांग्रेस के पास पैर जमाने का अच्छा मौका है. किसानों की नाराजगी भी कांग्रेस के पक्ष में है लेकिन इसके लिए बाकी दलों से गठबंधन जरूरी है. महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से 41 सीट एनडीए के पास हैं. छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी का साथ कांग्रेस के लिए जरूरी होता जा रहा है. उनके बेटे अमित जोगी को कांग्रेस निकाल चुकी है. लेकिन राजनीति में कुछ स्थायी नहीं होता. ये पाठ राहुल को पढ़ाया जा चुका है. पर कांग्रेस इसमें क्या रणनीति अपनाती है ये देखने वाली बात होगी.

दक्षिण भारत में कांग्रेस

वैसे भी दक्षिण भारत ने हमेशा ही कांग्रेस को जीवनदान दिया है. बहुत संभावना इस बात की बढ़ती जा रही है अगले लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी दक्षिण भारत की कोई एक सीट से खड़े हों और अपनी ताकत को और मजबूत करें. अभी तक कर्नाटक और केरल को छोड़कर दक्षिण भारत में कांग्रेस हाशिए पर है. खासकर तमिलनाडु, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में कांग्रेस लोकसभा में काफी कमजोर है.

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कांग्रेस, दक्षिण भारत में नए राजनीतिक समीकरण बनाने के लिए जीतोड़ प्रयास कर रही है. कांग्रेस की सबसे ज्यादा नजर कर्नाटक पर टिकी है. वहां उसे संभावना भी दिख रही है. माना जा रहा है कि कांग्रेस वहां पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की पार्टी जेडीएस के साथ तालमेल करे. इसी तरह आंध्र प्रदेश में कांग्रेस की कोशिश जगन मोहन रेड्डी को वापस लाने की है. जगन मोहन को अगर कांग्रेस का साथ मिल गया तो वह टीडीपी को टक्कर देने की हालत में आ सकते हैं. केरल और तमिलनाडु में कांग्रेस का पहले से एलांयस है. उधर तेलंगना को लेकर भी कांग्रेस की राजनीति आगे बढ़ती दिख रही है.

पूर्वोत्तर राज्य में कांग्रेस

असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में बीजेपी की सरकार है. मेघालय और त्रिपुरा और मिजोरम में इस साल चुनाव होने वाले हैं. कांग्रेस को राज्य स्तर पर अपनी पहचान और प्रदर्शन दोनों मजबूत करना होगा, साथ ही नए गठबंधन तलाशने होंगे तभी लोकसभा में यहां से कांग्रेस कुछ कर पाएगी.

बंगाल-ओडिशा

बंगाल और ओडिशा में कांग्रेस के सामने खुद को खड़ा करने की चुनौती है. ममता बनर्जी और वामपंथ के बीच कांग्रेस को ये तय करना होगा कि उसे किसके साथ जाना है.

जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, उत्तराखंड

जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस का साथ दे सकते हैं- उमर अब्दुल्ला. उत्तराखंड में पार्टी को अंदरूनी गुटबंदी से हटाकर नए लोगों को मौका देना पड़ेगा. हरियाणा में कुलदीप विश्नोई और दुष्यंत चौटाला के साथ किसी तरह से तालमेल कर सकती है.

सोनिया की अहम भूमिका

सोनिया गांधी भले ही बीमार हों लेकिन यूपीए में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है. यूपीए के साथी ममता बनर्जी, लालू प्रसाद यादव, सीताराम येचुरी,  शरद पवार सभी वरिष्ठ नेता हैं. सोनिया गांधी की बात मानते हैं.

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यूपीए गठबंधन में सोनिया गांधी ने ये साबित कर दिया कि वो गठजोड़ की राजनीति में माहिर हैं. कांग्रेस को और भी सहयोगियों की जरूरत है. आज की तारीख में कांग्रेस कहां-कहां गठबंधन बना सकती है, ये देखने की जरूरत है. मजबूत गठबंधन के बिना 2019 में कांग्रेस का केंद्र की सत्ता में आना असंभव है. कांग्रेस मजबूत होगी तभी उससे पार्टियां जुड़ेंगी. और यहां पर सोनिया गांधी की भूमिका अहम हो जाती है.

राहुल को 2019 से पहले राज्यों में जीतने का फॉर्मूला खोजना होगा. कांग्रेस को मोदी विरोधी, भाजपा विरोधी, एनडीए विरोधी गठबंधन को साथ रखने का तरीका ढूंढना होगा. राहुल को कांग्रेस ने अपना अध्यक्ष बना दिया है. अब उन्हें जनता की अदालत में जाकर अपना केस जीतना है. यह किसी भी नेता के लिए सबसे बड़ी परीक्षा होती है. उनकी अध्यक्षता पर जनता की वही मुहर मानी जाएगी. राहुल गांधी को अपनी पार्टी को चुनाव में जीतने का हुनर अब सिखाना पड़ेगा और पार्टी में वो शक्ति लानी पड़ेगी कि वो चुनाव जीत सके. तभी कांग्रेस के अच्छे दिन आएंगे.