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बुराड़ी गैंगवार: दिनदहाड़े हुए गैंगवार ने खोली दिल्ली पुलिस की पोल

जिस गोगी को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल और क्राइम ब्रांच पिछले कई सालों से तलाश रही थी, वही गोगी गैंग बुराड़ी में खून-खराबा कर फरार हो गई और दिल्ली पुलिस तमाशा देखती रह गई

Ravishankar Singh

पिछले कुछ दिनों से दिल्ली में गैंगवार और एनकाउंटर की घटना को लेकर खूब चर्चा हो रही है. चर्चा हो भी क्यों न, मामला देश की राजधानी से जो जुड़ा हुआ है. हाल के कुछ दिनों में दिल्ली में एनकाउंटर और गैंगवार की घटनाओं में काफी बढ़ोतरी हुई है.

पिछले दिनों बुराड़ी गैंगवार की घटना के सामने आने के बाद दिल्ली पुलिस की काफी फजीहत हो रही है. जिस गोगी को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल और क्राइम ब्रांच पिछले कई सालों से तलाश रही थी, वही गोगी गैंग बुराड़ी में खून-खराबा कर फरार हो गया और दिल्ली पुलिस तमाशा देखती रही.


पिछले दिनों ही बुराड़ी में कुख्यात गैंगस्टर जितेंद्र उर्फ गोगी और सुनील उर्फ टिल्लू गिरोह के बीच गैंगवार में चार लोग मारे गए. इस गैंगवार में दोनों गिरोहों के एक-एक बदमाश और दो निर्दोष लोगों की मौत हो गई, जिसमें एक महिला भी शामिल है. दिल्ली में पिछले 20-25 दिनों में टिल्लू और गोगी गिरोह के बीच यह दूसरी गैंगवार की घटना है. बुराड़ी गैंगवार में टिल्लू गिरोह के तीन बदमाश और एक आदमी भी घायल हुए हैं.

इन घटनाओं से खुली दिल्ली पुलिस की पोल

देश की राजधानी दिल्ली में सरेआम और दिन-दहाड़े गैंगवार की इस घटना ने दिल्ली पुलिस की रातों की नींद छीन ली है. दिल्ली पुलिस के पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक भले ही मामले की गंभीरता को समझते हुए स्पेशल सेल और क्राइम ब्रांच को दिल्ली में पनप रहे नए-नए गैगों पर नकेल कसने के निर्देश दिए हों, लेकिन पिछले एक महीने के अंदर दिल्ली में गैंगवार की इन दो घटनाओं ने दिल्ली पुलिस की पोल खोल कर रख दी है.

प्रतिकात्मक तस्वीर

दिल्ली पुलिस को सालों से कवर कर रहे कुछ पत्रकारों का भी मानना है कि दिल्ली पुलिस में इस समय एनकाउंटर स्पेशलिस्ट ऑफिसर्स की भारी कमी है. इसी का नतीजा है कि बदमाश दिन-दहाड़े घटना को अंजाम देकर फरार हो जाते हैं और दिल्ली पुलिस कुछ नहीं कर पाती है.

दिल्ली पुलिस में इस समय डीसीपी स्तर के दो ही ऐसे अधिकारी हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि ये एनकाउंटर स्पेशलिस्ट हैं. एक हैं डीसीपी संजीव यादव और दूसरे स्पेशल सेल के डीसीपी प्रमोद कुशवाहा. इन्हीं दो अधिकारियों ने हाल के कुछ एनकाउंटर्स में दिल्ली पुलिस की तरफ से  प्रमुख भूमिका निभाई हैं. इन दो-तीन अधिकारियों को छोड़ दें तो इस समय दिल्ली पुलिस में दूर-दूर तक कोई भी एनकाउंटर स्पेशलिस्ट नजर नहीं आ रहा है.

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दिल्ली पुलिस को करीब से जानने वाले क्राइम रिपोर्टर संजीव चौहान ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया, ‘देखिए पिछले दिनों बुराड़ी की घटना की बात करें तो दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल भी इन गैंगों का एनकाउंटर करने के लिए घात लगा कर बैठी थी. लेकिन, दिल्ली पुलिस एनकाउंटर करती उससे पहले ही बदमाश दिल्ली पुलिस को अगूंठा दिखा कर फरार हो गए. दिल्ली पुलिस बदमाश को तलाशती रह गई और एक बदमाश दूसरे बदमाश को ठोक कर दिल्ली पुलिस को अंगूठा दिखा कर फरार हो गए.’

दिल्ली पुलिस को करीब से जानने वालों का मानना है कि दिल्ली में हाल के कुछ महीनों में गैंगवार की जो घटनाएं हुई हैं, उसको अपराध की दुनिया में गैंगवार नहीं कहा जाता. गैंगवार होती थी 1990, 1995 और सन् 2000 में. सन् 2000 आते-आते दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों से ही नहीं भारत के कई और शहरों से भी गैंगवार खत्म हो गई. बेशक कह सकते हैं कि 1990 से लेकर 2000 तक यूपी, दिल्ली और महाराष्ट्र गैंगवार के प्रमुख केंद्र हुआ करते था. बड़े-बड़े गैंगवार जब भी हुए हैं वह या तो दिल्ली में या फिर मुंबई जैसे शहरों में ही हुए हैं.

दिल्ली में कैसे शुरू हुआ था गैंगवार

ऐसी धारणा है कि दिल्ली में क्रिमिनल पैदा नहीं होते हैं. दिल्ली में दूसरे राज्यों के बदमाश आ कर गैंगवार करते हैं. दिल्ली में जब भी गैंगवार हुए हैं वह आपस में चौधराहट को लेकर हुई है. इसका जीता-जागता उदाहरण था सन् 1994 में वृजमोहन त्यागी, सतवीर गुर्जर, महेंद्र फौजी गैंग का, जिसको आप वाकई में कह सकते हैं कि इनमें गैंगवार होते थे. ये गिरोह दूसरे गिरोह के खून के प्यासे रहते थे.

प्रतिकात्मक तस्वीर

दिल्ली में गैंगवार की शुरुआत पूर्व विधायक भरत सिंह के भाई कृष्ण पहलवान ने शुरू की थी. दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया, दिल्ली के नजफगढ़ इलाके में साल 1989-90 में पहली बार गैंगवार की शुरुआत हुई थी. यह गैंगवार कृष्ण पहलवान और उसके गैंग ने शुरू की थी. जमीनी विवाद में कृष्ण पहलवान ने अपने ही एक रिश्तेदार की हत्या कर दी थी. इस हत्या के बाद कृष्ण पहलवान पांच साल तक जेल में रहा था. जेल से छूटने के बाद कृष्ण पहलवान ने एक बार फिर से अपराध की दुनिया में कदम रख कर कई विरोधियों को ठिकाने लगा दिया था.

इसके बाद से ही हरियाणा से सटे दिल्ली इलाके में कृष्ण पहलवान, अनूप बलराज और विक्की डागर गिरोह में कई बार गैंगवार हो चुकी है. पिछले दिनों ही कृष्ण पहलवान के भाई पूर्व विधायक भरत सिंह की भी हत्या हो गई थी. इस हत्या के बाद एक बार फिर से इस इलाके में गैंगवार शुरू हो गई है.

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ऐसा माना जाता है कि 90 के दशक में दिल्ली पुलिस इन गैंगलीडर्स को मारने के लिए नहीं ढूंढ़ती थी, बल्कि दिल्ली पुलिस के अधिकारी चौकन्ना रहते थे कि उनके इलाके में कहीं गैंगवार न हो जाए. दिल्ली पुलिस उन दिनों मर्डर का केस रजिस्टर करने से डरती थी. उस समय कोई भी पुलिस अधिकारी नहीं चाहता था कि बेवजह फजीहत में पड़ कर कोर्ट-कचहरी का चक्कर काटे.

लेकिन, आज दिल्ली पुलिस क्रिमिनल्स को मारने के लिए ढूंढ़ती फिर रही है. दिल्ली ही नहीं मुंबई और उत्तर प्रदेश में भी पिछले 25-30 सालों में गैंगवार के तरीके में काफी बदलाव आए हैं. पहले के गैंग आपस में उलझ कर एक दूसरे को मारते थे. लेकिन, अब जो गैंग पैदा हो रहे हैं पुलिस वैसे गैंग और गैंगस्टर को खुद ही मारने के लिए ढूंढ़ती रहती है.

90 के दशक में क्राइम कम थे और गैंग ज्यादा थे. लेकिन, अब क्राइम बढ़ चुका है और गैंग लगभग मर चुके हैं. खासकर मुंबई अब सिंडिकेट क्राइम का बहुत बड़ा अड्डा बन चुका है.

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मुंबई और दिल्ली में होने वालो अपराधों में क्या है अंतर

मुंबई में गैंगवार और एनकाउंटर पर अंडरवर्ल्ड का डायरेक्ट और इनडायरेक्ट इंवॉल्वमेंट रहता है. मुंबई में मैनेज्ड क्राइम होते हैं लेकिन दिल्ली में मुंबई जैसे मैनेज्ड क्राइम नहीं होते. 90 के दशक में दिल्ली में ओमप्रकाश श्रीवास्तव उर्फ बबलू श्रीवास्तव नाम का एक गैंगेस्टर हुआ करता था, जिसने दिल्ली आकर अपराध की दुनिया में पैर जमाने की कोशिश की थी.

बबलू श्रीवास्तव के शार्प शूटर मंजीत सिंह मग्गा और केके सैनी हुआ करते थे. मंजीत सिंह मग्गा और केके सैनी दो ऐसे शार्पशूटर थे, जो दिल्ली से लेकर पूरे उत्तर प्रदेश में मर्डर और किडनेपिंग जैसी घटनाओं को अंजाम दिया करते थे. बबलू श्रीवास्तव के बारे में कहा जाता है कि वह दाऊद के कंधे पर बैठकर दिल्ली में अपराध की दुनिया में पकड़ बनाना चाहता था. फिलहाल बबलू श्रीवास्तव यूपी के जेल में बंद है.

पहले दिल्ली में किडनेपिंग और कॉन्ट्रेक्ट किलिंग की घटनाएं बहुत होती थीं, लेकिन हाल के कुछ सालों में दिल्ली में किडनेपिंग या कॉन्ट्रेक्ट किलिंग की घटनाएं न के बराबर हुई हैं. इसके बारे में जानकार बताते हैं कि जब गैंग बचे ही नहीं है तो अपराध कहां से होंगे?

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मीडिया में अक्सर खबर आती है कि दिल्ली में इस जगह पर गैंगवार की घटना हुई, असल में वह गैंगवार नहीं होती. इस तथाकथित गैंगवार में कहीं न कहीं दिल्ली पुलिस के क्राइम ब्रांच और स्पेशल की भूमिका अहम रहती है.

बुराड़ी गैंगवार से दिल्ली पुलिस को मिलेगा फायदा

बुराड़ी की हाल की गैंगवार की घटना को समझने के लिए थोड़ा गैंगवार के पुराने इतिहास को भी खंगालना जरूरी हो जाता है. इसके लिए 90 के दशक में भी जाना होगा और साल 2018 में भी लौटना पड़ेगा.

ऐसा कहा जाता है कि बुराड़ी में अगर गैंगवार की घटना नहीं हुई होती तो दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल और क्राइम ब्रांच की टीम इन लोगों को दो-तीन घंटों के अंदर ही मार देती. यह इसलिए क्योंकि दिल्ली पुलिस इन गिरोहों और उसके मुखिया को हमेशा सर्विलांस पर रखती है. दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल और क्राइम ब्रांच को जरूर खबर होती है कि कौन सा गैंगस्टर कब और कहां मूवमेंट करने वाला है.

बुराड़ी की इस घटना के बाद दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल के अधिकारियों ने दिन-रात एक कर दी है. बुराड़ी की घटना के बाद जितने भी सबूत मिले हैं, उसकी निशानदेही पर छापे मारे जा रहे हैं. घायल बदमाशों से पूछताछ कर एक कड़ी को दूसरे से जोड़ा जा रहा है. बताया जा रहा है कि इस गैंगवार से दिल्ली पुलिस के हाथ कई और बदमाशों के मोबाइल नंबर और उनके लोकेशन का पता चल गया है. ऐसे में इस घटना के बाद दिल्ली पुलिस को बैठे-बैठाए ही फायदा मिलने वाला है.

वहीं दूसरी तरफ गैंगवार की इस घटना ने दिल्ली पुलिस की चिंता और बढ़ा भी दी है. दिल्ली पुलिस के एक ज्वाइंट कमिश्नर लेवल के एक अधिकारी ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि,  'इस गैंगवार से दिल्ली पुलिस फायदा नहीं उठा पाई तो दिल्ली पुलिस की एक तरह से हार होगी. हम लोगों को लग रहा है कि कहीं ऐसा न हो कि एक गिरोह दूसरे गिरोह के सरगरना को मार दे.’

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90 के दशक का गैंगवार

जैसा की ने ऊपर बताया कि एनकाउंटर्स और गैंगवार की घटना को अगर समझना है तो 90 के दशक में होने वाले गैंगवार और एनकाउंटर्स पर नजर डालनी पड़ेगी. साल 1994 में उस समय के बड़े गैंगस्टर बृजमोहन त्यागी को दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर लक्ष्मी नारायण राव (एलएन राव) की टीम ने दिनदहाड़े मार गिराया था. बृजमोहन त्यागी पश्चिमी उत्तर प्रदेश का रहने वाला था और दिल्ली में उस समय उसका खौफ हुआ करता था. 1994 में बृजमोहन त्यागी के मारे जाने के बाद एक दूसरे गिरोह महेंद्र फौजी का उदय हुआ था.

महेंद्र फौजी गैंग माया त्यागी गैंगरेप के बाद खड़ा हुआ था. पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली में माया त्यागी ने ही गैंगवार शुरू कराई. माया त्यागी गैंगरेप के बाद दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली में दो गैंग खड़े हुए. एक त्यागी गैंग और एक महेंद्र फौजी गैंग. इन दोनों के खड़े होते ही एक और त्यागी गैंग 'बृजमोहन त्यागी' के नाम से खड़ा हो गया. इन सबके बीच एक और गैंग सतवीर गुर्जर गैंग का भी उदय हो गया.

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कहा जाता है कि इन तीनों-चारों गैंग में सतवीर गुर्जर गैंग सबसे ज्यादा खतरनाक था. धीरे-धीरे इन चारों गिरोहों का खात्मा तो गया. दिल्ली पुलिस के एनकाउंटर्स में ये सारे लोग एक-एक के मारे गए या फिर आपस में लड़कर खत्म हो गए. उन दिनों हालत यह होती थी कि जिस गैंग के एक दो लोग मारे जाते थे, अगले दो-चार दिनों में मारने वाले गैंग के भी दो-चार लोग को भी मार दिया जाता था.

साल 2000 गैंगवार में आया नया ट्रेंड

अब बात करते हैं साल 2000 के बाद हुईं गैंगवार की घटनाओं की. हाल ही में पश्चिमी उत्तर प्रदेश का गैंगस्टर बलराज भाटी मारा गया. यह एक साइलेंट गैंगवार थी. ऐसा कहा जाता है कि बलराज भाटी की मुखबिरी दूसरे गैंग ने की थी. साइलेंट गैंगवार में एक गैंग दूसरे गैंग की गुर्गे की हत्या करवाती है या फिर पुलिस द्वारा एनकाउंटर में निपटा देती है.

साल 2000 के बाद गैंगवार में यह नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है. मुबंई से लेकर दिल्ली तक जितने भी एनकाउंटर्स हुए हैं, उसमें पुलिस एक गिरोह से सुराग लेकर दूसरे गिरोह के आदमी को मार देती है.

मुंबई पुलिस का तेज तर्रार इंसपेक्टर दया नायक और दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर सतवीर राठी इसका नमूना है. माना जाता है कि दाउद का जितना भी नेटवर्क मुंबई में खत्म हुआ है वह मुखबिरी के कारण ही हुआ है. मुंबई पुलिस और दिल्ली पुलिस के कई तेज तर्रार अधिकारी इसी मुखबिरी और उगाही की वजह से जेल की हवा भी काट रहे हैं.

पुलिस के एनकाउंटर में गैंग और गैंग का सरगना तो मर जाता है, लेकिन जब पुलिसवाला फंसता है तो बहुत मुश्किल से निकल पाता है. दिल्ली पुलिस के एसीपी सतवीर राठी इसका जीता-जागता उदाहरण हैं. साल 1997 में कनॉट प्लेस में एसीपी सतवीर राठी की टीम ने जो एनकाउंटर किया था, उस एनकाउंटर में सतवीर राठी की पूरी टीम आज भी तिहाड़ जेल की हवा खा रही है. कनॉट प्लेस एनकाउंटर के कारण ही उस समय के पुलिस कमिश्नर निखिल कुमार की कुर्सी चली गई थी.

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दिल्ली में क्यों है एनकाउंटर स्पेशलिस्ट्स की कमी?

अब अगर बात करें दिल्ली में एनकाउंटर स्पेशलिस्टों की तो 1994 में गैंगस्टर बृजमोहन त्यागी के मारे जाने के बाद दिल्ली पुलिस को कई अच्छे एनकाउंटर स्पेशलिस्ट मिले. लेकिन, बीते 15-16 सालों में  दिल्ली के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट या तो मारे गए या फिर वे रिटायर हो गए. एनकाउंटर स्पेशलिस्ट की बात आती है तो राजवीर सिंह का नाम भी आता है. राजवीर सिंह दिल्ली पुलिस में इंस्पेक्टर के तौर पर भर्ती हुए थे, लेकिन अपनी तेज-तर्रार छवि के कारण दिल्ली पुलिस में एसीपी बन गए.

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दिल्ली पुलिस में कुछ नामी एनकाउंटर स्पेशलिस्ट्स की बात करें तो उसमें राजवीर सिंह मारे जा चुके हैं. मोहनचंद्र शर्मा बटला हाउस कांड में शहीद हो चुके हैं. रविशंकर डीसीपी पद से रिटायर हो चुके हैं. बृजमोहन त्यागी को एनकाउंटर में मार गिराने वाले एल एन राव भी रिटायर हो चुके हैं. सिर्फ दो-तीन अधिकारियों में राजेंद्र सिंह ही ऐसे एनकाउंटर स्पेशलिस्ट हैं जो इस समय सर्विस में हैं. राजेंद्र सिंह द्वारका जोन में एसीपी हैं.

कुल मिलाकर गैंगवार पर नकेल कसने के लिए इस समय दिल्ली पुलिस में एनकाउंटर स्पेशलिस्टों की भारी कमी है. दूसरी तरफ दिल्ली में हर रोज नए-नए गैंगस्टर और गैंग पैदा हो रहे हैं. ऐसे में दिल्ली पुलिस को अपने नेटवर्क को मजबूत करने के साथ एनकाउंटर स्पेशलिस्टों को तैयार करने पर भी विशेष तौर पर ध्यान देना होगा.