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2018 में नहीं हुआ कहीं तख्तापलट, क्या अगले साल भी जारी रहेगी ऐसी स्थिरता?

साल 2018 में तख्ता पलट या सैन्य विद्रोह की संभावना 88 फीसदी रही. जो कि तख्ता पलट के खतरे का अब तक का सबसे निम्नतम स्तर पर है

FP Staff

साल 2018 विदा होने को है. जाने वाला साल अपने साथ कुछ खट्टी-मीठी यादें छोड़े जा रहा है. अगर वैश्विक राजनीति की बात की जाए, तो यह साल कमोबेश शांतिपूर्ण रहा. दुनिया में कहीं भी कोई बड़ी सियासी उठा-पटक देखने को नहीं मिली. सबसे अहम बात यह कि, साल 2018 में किसी भी देश में तख्ता पलट जैसी घटना सामने नहीं आई.

हालांकि, सऊदी अरब के इशारे पर तुर्की में पत्रकार जमाल खशोगी की जघन्य हत्या, पूर्वी यूरोप में सत्तावाद के पुनरुत्थान और विदेश नीति पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अपरंपरागत दृष्टिकोण के चलते इस साल थोड़ी बहुत अशांति और राजनीतिक उथल-पुथल देखने को जरूर मिली.


लेकिन काफी हद तक साल 2018 असाधारण तरीके से स्थिर रहा. बीती एक शताब्दी में ऐसा महज दूसरी बार होने जा रहा है, जब किसी साल दुनिया के किसी भी देश में कोई बड़ा राजनीतिक विप्लव, सत्ता संकट या तख्ता पलट नहीं हुआ है. बीती शताब्दी में 2018 के अलावा सिर्फ 2007 का साल ही ऐसा गुजरा है, जिसमें दुनिया के सभी देश तख्ता पलट जैसी घटनाओं से महफूज रहे.

दुनिया में आखिरी तख्ता पलट नवंबर 2017 में जिम्बाब्वे में हुआ था. जिम्बाब्वे में सेना ने राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे को बेदखल करके सत्ता अपने हाथ में ले ली थी. रॉबर्ट मुगाबे 1980 से जिम्बाब्वे की सत्ता पर काबिज थे.

साल 1950 से लेकर अब तक दुनिया भर में तख्ता पलट के 463 प्रयास हो चुके हैं, जिनमें से 233 कोशिशें कामयाब भी रहीं. लेकिन जबरन सत्ता परिवर्तन या तख्ता पलट की घटनाएं अपने साथ बड़े सियासी और आर्थिक संकट भी लाती हैं.

ऐसा अक्सर देखा गया है कि, किसी देश में अलोकतांत्रिक तरीके से सत्ता हस्तांतरण होने के बाद वहां न सिर्फ गृह युद्ध की चिंगारी भड़क उठती है बल्कि संवैधानिक संस्थाएं भी खतरे में पड़ जाती हैं. इसके साथ-साथ उस देश के आर्थिक विकास की रफ्तार पर भी ब्रेक लग जाता है.

रॉबर्ट मुगाबे

दुनिया भर में कम हुए तख्ता पलट के खतरे

तख्ता पलट या उसकी कोशिशों का इतिहास उतना ही पुराना है जितना पुराना सत्ता और सरकारों का अस्तित्व है. किसी शासक या राष्ट्राध्यक्ष को गद्दी से हटाने और जबरन सत्ता हथियाने के प्रयास प्राचीन काल से होते आ रहे हैं.

जूलियस सीज़र ने रोमन सीनेट के खिलाफ विद्रोह करते हुए 49 ईसा पूर्व (बीसी) में रुबिकॉन नदी को पार किया था. जिसके परिणामस्वरूप रोम गणराज्य में 5 साल तक गृह युद्ध छिड़ा रहा था. उस वक्त सीजर ने भले ही रोम की सत्ता हथिया ली थी, लेकिन उसके माथे पर हमेशा के लिए तानाशाह का कलंक भी लग गया था. इसी विद्रोह के चलते सीज़र को असमय अपनी जान भी गंवाना पड़ी थी. दरअसल सीजर के विद्रोह के जवाब में रोम के कई सीनेटरों ने भी विद्रोह किया था और 15 मार्च 44 ईसा पूर्व में भरे दरबार में चाकू घोंपकर सीजर की हत्या कर दी गई थी. इस हत्याकांड को 'इडस ऑफ मार्च' के नाम से भी जाना जाता है.

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फ्रांस में नेपोलियन बोनापार्ट ने भी सैन्य विद्रोह के जरिए सत्ता हासिल की थी. वहीं वेनेजुएला में ह्यूगो शावेज ने भी तख्ता पलट की नाकाम कोशिश की थी. हालांकि तख्ता पलट के असफल प्रयास के कई साल बाद शावेज चुनाव जीतकर वेनेजुएला के राष्ट्रपति भी बने.

20वीं शताब्दी के आखिर में हर साल कम से कम एक तख्ता पलट की 99 फीसदी आशंका बनी रहती थी. कूपकास्ट नाम की एक संस्था दुनिया भर में तख्ता पलट की भविष्यवाणी करती है. चुनाव के आंकड़े, अर्थशास्त्र, टकराव, नेतृत्व और राजनीति के विश्लेषण के आधार पर कूपकास्ट यह पता लगाती है कि, किस देश को कब तख्ता पलट का सामना करना पड़ सकता है. वैसे साल 2000 के बाद से तख्ता पलट के खतरे कम होना शुरू हो गए थे. साल 2018 में तख्ता पलट या सैन्य विद्रोह की संभावना 88 फीसदी रही. जो कि तख्ता पलट के खतरे का अब तक का सबसे निम्नतम स्तर है.

कूपकास्ट के आंकड़ों के विश्लेषण के बाद पता चला है कि, राजनीतिक स्थिरता की यह स्वागत योग्य प्रगति दुनिया भर में समान रूप से नहीं हो पाई है. हालांकि दुनिया के कुछ इलाकों में तख्ता पलट के जोखिम में उल्लेखनीय ढंग से काफी गिरावट आई है.

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20वीं शताब्दी में लैटिन अमेरिका सैन्य विद्रोह और तख्ता पलट की गतिविधियों का केंद्र हुआ करता था. अर्जेंटीना, वेनेजुएला, होंडुरास और बोलीविया जैसे देशों में तख्ता पलट की घटनाएं इतिहास में दर्ज हैं. इन देशों में सेना ने विद्रोह करके लोकतांत्रिक ढंग से चुने गए नेताओं को सत्ता से बेदखल कर दिया था.

कभी-कभार ऐसा भी हुआ है कि, विद्रोह करके सत्ता में आए लैटिन अमेरिकी नेताओं को न सिर्फ खुद भी तख्ता पलट का सामना करना बल्कि गद्दी भी छोड़ना पड़ी. साल 1955 में अर्जेंटीना के राष्ट्रपति जनरल जुआन पेरोन के साथ ऐसा ही हुआ था. यही नहीं, बाद में पेरोन की दूसरी पत्नी इसाबेल को भी सैन्य विद्रोह के चलते सत्ता गंवानी पड़ी थी.

लैटिन अमेरिका में साल 1950 से लेकर अब तक तख्ता पलट के रिकॉर्ड 142 प्रयास हो चुके हैं. लेकिन साल 2000 से लेकर 2018 तक सैन्य विद्रोह की सिर्फ 5 घटनाएं ही हुईं. इनमें होंडुरास के राष्ट्रपति मैनुअल जे़लाया के खिलाफ सैन्य विद्रोह की घटना सबसे ताजा है. साल 2009 में होंडुरास की सेना ने तख्ता पलट करके राष्ट्रपति जे़लाया को सत्ता से बेदखल कर दिया था.

एशिया में भी तख्ता पलट की घटनाएं आम रही हैं. सैन्य विद्रोह के मामले में विशेष तौर पर थाईलैंड और पाकिस्तान का नाम सबसे पहले आता है. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जबरन नेतृत्व परिवर्तनों के चलते एशिया के कुछ देशों की पहचान अशांत लोकतंत्र के प्रतीक के तौर पर बन गई थी.

लेकिन अब एशिया में यह परिपाटी बदल रही है. एशिया के इतिहास में तख्ता पलट के अब तक कुल 62 प्रयास दर्ज हैं. हालांकि, बीते दो दशक से सैन्य विद्रोह के प्रयासों में काफी गिरावट आई है. एशिया में पिछले 18 सालों में तख्ता पलट की सिर्फ 6 कोशिशें ही हुई हैं.

लैटिन अमेरिका और एशिया में स्थिरता कैसे आई

अर्जेंटीना, बोलीविया और अन्य लैटिन अमेरिकी देशों में तख्ता पलट के इतिहास पर शोध (रिसर्च) करने पर पता चला है कि, अत्याधिक सत्तावादी देशों में इन घटनाओं का प्रभाव अंततः लोकतांत्रिक भी हो सकता है.

यह बात यकीनी तौर पर असंगत या व्यावहारिक ज्ञान के प्रतिकूल लग सकती है. लेकिन अक्सर ऐसा देखा गया है कि, सैन्य विद्रोह करके सत्ता हासिल करने वाले ज्यादातर नेता अंतत: लोकतांत्रिक रास्ता चुनते हैं. वे ऐसा अपनी सत्ता को वैश्विक वैधता दिलाने और देश के आर्थिक विकास को बढ़ाने के मकसद से करते हैं. अध्ययनों से यह भी पता चला है कि, तख्ता पलट की नाकाम कोशिशों से भी सत्तावादी नेताओं के रवैए में बदलाव आता है और वे सुधार की ओर ध्यान देना शुरू कर देते हैं.

उदाहरण के तौर पर, 1961 के विद्रोह के बाद दक्षिण कोरिया में तेजी से आर्थिक विकास हुआ. और फिर दशकों बाद देश में लोकतंत्र भी बहाल हो गया.

दरअसल शीत युद्ध के बाद एशियाई देशों और वैश्विक महाशक्तियों के बीच अत्याधिक परस्पर निर्भरता ने व्यापक क्षेत्रीय स्थिरता में खासा योगदान दिया है. अलग-अलग देशों के बीच परस्परिक निर्भरता से आर्थिक विकास तो होता ही है, साथ ही लोकतांत्रिक व्यवस्था भी मजबूत होती है. जिसके नतीजे में उस क्षेत्र के देशों में स्थिरता आती है.

कुछ अफ्रीकी देशों में अस्थिरता का कुचक्र

साल 2000 के बाद से अफ्रीका में राजनीतिक स्थिरता में सुधार हुआ है. लेकिन राजनीतिक स्थिरता में सुधार की गति लैटिन अमेरिका और एशिया जैसी नहीं है. अफ्रीका में पिछले 18 सालों में तख्ता पलट के 35 प्रयास हुए हैं. यानी इस क्षेत्र को प्रति वर्ष औसतन सैन्य विद्रोह की 2 कोशिशों का सामना करना पड़ा.

कूपकास्ट के डेटा के मुताबिक, दुनिया के अन्य हिस्सों में रहने वाले लोगों की तुलना में अफ्रीकी लोगों को तख्ता पलट की 10 फीसदी ज्यादा संभावना के साथ रहना पड़ता है. एक विश्लेषण के मुताबिक, अफ्रीका में तख्ता पलट के लगातार खतरों के दो प्रमुख कारक हैं: अर्थव्यवस्था और विद्रोहों का क्षेत्रीय इतिहास.

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हालांकि, हाल के दशकों में कई अफ्रीकी देशों में काफी आर्थिक प्रगति हुई है. खास तौर पर नाइजीरिया, घाना और इथियोपिया में खासा आर्थिक विकास हुआ है. लेकिन ज्यादातर अफ्रीकी देशों में विकास दर असमान है. साल 2000 के बाद से इस क्षेत्र में समग्र गरीबी में केवल मामूली तौर पर ही गिरावट आई है.

खराब आर्थिक हालात के चलते ही उपद्रव और अशांति पैदा होती है. हाल ही में युगांडा और मलावी में गरीबी और भुखमरी के चलते जबरदस्त विरोध-प्रदर्शन देखने को मिले. ऐसे ही विरोध-प्रदर्शन अक्सर तख्ता पलट की वजह बन जाते हैं.

तख्ता पलट और सैन्य विद्रोह किसी देश में राजनीतिक अस्थिरता का दुष्चक्र भी बना सकते हैं. साल 2007 के बाद जिन 12 अफ्रीकी देशों में तख्ता पलट के प्रयास हुए हैं, उनमें से लगभग आधी जगहों पर बाद में कई बार और सैन्य विद्रोहों का सामना करना पड़ा. इनमें गिनी बिसाऊ और बुरकिना फासो जैसे देश भी शामिल हैं.

सैन्य विद्रोहों और सत्ता के अलोकतांत्रिक हस्तांतरण का लंबा इतिहास हमें भले ही सामान्य लगता हो, लेकिन ऐसी घटनाएं से तख्ता पलट के खतरे और ज्यादा बढ़ जाते हैं. यकीनन तख्ता पलट से कभी-कभी आर्थिक विकास में मदद मिलती है. लेकिन तख्ता पलट की घटनाओं के चलते अफ्रीका को जबरदस्त राजनीतिक अस्थिरता झेलना पड़ी है. जिससे उसकी अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचा है.

प्रतीकात्मक फोटो रॉयटर से

2019 में तख्ता पलट का जोखिम

सख्त आर्थिक हालात और खराब राजनीतिक पस्थितियों के बावजूद लैटिन अमेरिकी देश आखिरकार 30 साल बाद विद्रोह और तख्ता पलट के कुचक्र से बच निकले हैं. वहीं एशिया भी तख्ता पलट के दुष्चक्र से वक्त रहते उबर गया है. शायद अफ्रीका भी जल्द ही इससे निजात पा ले.

अफ्रीका फिलहाल सही रास्ते पर चलता नजर आ रहा है. कूपकास्ट ने साल 2019 में अफ्रीका में तख्ता पलट के कम से कम एक प्रयास की 55.5 फीसदी संभावना जताई है. जो कि साल 2018 के 69 फीसदी पूर्वानुमान के मुकाबले काफी कम है.

ज़ाहिर है, तख्ता पलट की भविष्यवाणियां राजनीतिक विश्लेषकों के सबसे बेहतर अनुमान के आधार पर की जाती हैं. साल 2018 के लिए तो यह भविष्यवाणियां सही और सच साबित हुईं. क्योंकि अफ्रीका में या दुनिया में कहीं और तख्ता पलट या सैन्य विद्रोह की कोई घटना घटित नहीं हुई. अगले साल यानी 2019 में, कूपकास्ट ने दुनिया में कहीं कम से कम एक तख्ता पलट के प्रयास की 81 फीसदी संभावना जताई है.

(यह लेख conversation.com से लिया गया है)