किसी आपराधिक घटना की पड़ताल शुरू होकर किन-किन मुकाम-पड़ावों से होकर गुजरेगी, ये अक्सर पड़ताली को भी नहीं पता होता है. कुछ ऐसे ही ताने-बाने में उलझी हुई रही थी सीबीआई द्वारा 18 साल पहले की गई एक पेचीदा पड़ताल. जो शुरू हुई थी मादक पदार्थ और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चलने वाले संगठित गिरोह से. कड़ी से कड़ी कुछ इस कदर मजबूती से जुड़ती चली गई जिसने, अंडरवर्ल्ड डॉन आफताब अंसारी का नेटवर्क तो नेस्तनाबूद किया ही. साथ ही पूरी ‘पड़ताल’ एक अमेरिकी पत्रकार के कत्ल से होती हुई पहुंची थी, 1999 में हुए इंडियन एअरलाइंस के विमान-814 (कंधार विमान कांड) अपहरण कांड तक. ‘पड़ताल’ की इस खास किश्त में मैं, उसी एतिहासिक तफ्तीश का जिक्र कर रहा हूं जिसमें, सीबीआई ने बर्मन अपहरण कांड के तार भी मय सबूत जोड़कर, पड़ताल की दुनिया में मिसाल कायम कर दी थी.
मरते-मरते भी दे गया अहम सुराग
किस्सा है 2000 के अक्टूबर-नवंबर महीने के आसपास का. दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के सहायक पुलिस आयुक्त रवि शंकर कौशिक की टीम ने आसिफ रजा खान को गिरफ्तार कर लिया था. आसिफ भारत में, अंडरवर्ल्ड डॉन आफताब अंसारी का काला-कारोबार देखता था. दुबई में दुबके बैठे आफताब को भारत में किसी भी बड़ी आपराधिक घटना को अंजाम देना होता था तो वो सीधे आसिफ को ‘टारगेट’ दे देता था.
दिल्ली पुलिस की कस्टडी से कुछ दिन के लिए गुजरात पुलिस (राजकोट) ने आसिफ को अपने पास ले लिया. राजकोट पुलिस को आसिफ से भास्कर पारेख अपहरण कांड में पूछताछ करनी थी. राजकोट पुलिस से पूछताछ में आसिफ ने कबूला कि उसने आफताब अंसारी और अपने छोटे भाई अमीर रजा खान के लिए भारत में कई बड़ी आपराधिक वारदातों को अंजाम दिया था.
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इनमें से अधिकांश वारदातों में दिल्ली का हरप्रीत सिंह उर्फ हैप्पी भी शामिल रहा. यह अलग बात है कि इन तमाम सनसनीखेज जानकारियों को देने वाला आसिफ बाद में संदिग्ध हालातों में मारा गया. हालांकि राजकोट पुलिस का दावा था कि वो पुलिस हिरासत से भागने की कोशिश में मारा गया.
कुबूलनामा सच था, उस पर विश्वास मुश्किल
राजकोट पुलिस द्वारा की गई उसी पूछताछ में आसिफ ने पाकिस्तान स्थित कई आतंकवादी कैम्प्स में ट्रेनिंग लेने की बात भी कबूली. भारत में बैठकर आपराधिक वारदातों को अंजाम देने वाला कोई अपराधी पाकिस्तानी आतंकवादी शिविरों में ट्रेनिंग भी ले चुका होगा. यह बात राजकोट पुलिस के गले आसानी से नहीं उतर रही थी. लिहाजा उसने क्रॉस-चैक के वास्ते देश की तमाम खुफिया एजेंसियों को भी पूछताछ में शामिल कर लिया.
खुफिया एजेंसियों ने इस बात की पुष्टि कर दी कि आसिफ जो कुछ बता रहा है वो सही है. सन 2000 के दशक में बहैसियत सीबीआई के ज्वाइंट-डायरेक्टर आसिफ से खुद भी पूछताछ कर चुके पूर्व आईपीएस नीरज कुमार (दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिश्नर) के मुताबिक, ‘आसिफ बातें तो सच बता रहा था. वो मगर जो कुछ बता रहा था, वह इतना डरावना था कि विश्वास ही नहीं हो रहा था कि एक अदना सा इंसान दुबई में बैठे अपने आका के इशारे पर हिंदुस्तान को इस कदर तबाह करने का षड्यंत्र भी रच सकता है.'
संसद पर हमले की पूर्व जानकारी थी!
‘ताज्जुब तो तब हुआ जब, आसिफ ने बताया कि पाकिस्तानी शिविरों में ट्रेनिंग के दौरान ही उसे भारतीय संसद पर हमले की जानकारी मिल चुकी थी. आसिफ ने सुना था कि हिंदुस्तानी संसद पर हमले के लिए पाकिस्तानी आतंकवादी शिविर में एक दस्ता तैयार हो चुका है. बस हमले के लिए उचित मौके की तलाश भर बाकी है. यह सनसनीखेज जानकारी दे तो देश की तमाम संबंधित एजेंसियों को दी गई थी. इसके बाद भी पता नहीं कहां यह महत्वपूर्ण सूचना फाइलों में फंसी रह गई. और आतंकवादी संसद पर हमला करने में कामयाब हो गई.’ बताते हैं आसिफ से किसी जमाने में बंद कमरे में घंटों आमना-सामना कर चुके नीरज कुमार.
कड़ियां जुड़ीं तो ‘पड़ताल’ आसान हो गई
आसिफ से ही भारतीय एजेंसियों के पता चला कि देश का सनसनीखेज बर्मन अपहरण कांड उसी के गैंग का काम था. अपहरण कांड का तानाबाना दुबई में आफताब अंसारी ने बुना था. जिसे अमल में लाया आसिफ गैंग. बर्मन अपहरण कांड में गैंग के हाथ करोड़ों रुपए की फिरौती लगी थी. फिरौती की उस रकम में से करीब एक लाख डॉलर (उस जमाने में करीब 48-50 लाख भारतीय रुपए) खूंखार आतंकवादी ओमार शेख को भी पहुंचाया गया था. शेख उन्हीं तीन आतंकवादियों में से एक था जिन्हें, 31 दिसंबर 1999 को हुए इंडियन एअरलाइंस विमान संख्या 814 अपहरण कांड के बाद भारतीय जेल से रिहा किया गया था.
लश्कर हेडक्वार्टर में जाता था आफताब!
दिल्ली पुलिस और सीबीआई के कुछ उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक, ‘भारतीय जेल से रिहा होने के बाद शेख ने, ‘वाल स्ट्रीट जर्नल’ के युवा और होनहार पत्रकार डेनियल पर्ल हत्याकांड में भी शामिल हुआ. इतना ही नहीं उन एक लाख अमेरिकी डॉलर में से कुछ लाख की रकम बजरिए ओमार शेख, मोहम्मद अट्टा तक भी पहुंचाए गए थे.
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भारतीय खुफिया एजेंसियों के सूत्रों के मुताबिक, मोहम्मद अट्टा 9/11 जैसे सनसनीखेज हमले का मुखिया/ मास्टरमाइंड रहा. दिल्ली पुलिस द्वारा शिकार किये गये आसिफ रजा ने ही खुलासा किया था कि वो दुबई मैं बैठे अपने गॉड-फादर आफताब अंसारी के साथ दो-तीन मर्तबा पाकिस्तान (बहावलपुर) स्थित लश्कर-ए-तैय्यबा के हेडक्वार्टर भी गया था.’
आसिफ की मौत का बदला था संसद हमला!
इस पड़ताल में गहराई से पहुंचने पर यह तथ्य भी प्रमुखता से उभर कर सामने आता है कि संसद पर हमला पूर्व सुनियोजित था. जिसकी प्लानिंग पाकिस्तान में बनाई गई थी. भारतीय संसद पर हमले की प्लानिंग पाकिस्तान से लीक होकर बजरिये आसिफ रजा खान भारत के महत्वपूर्ण हाथों तक में पहुंच गई. इसके बाद भी आतंकवादी कामयाब और भारतीय एजेंसियां फेल हो गईं! यहां इस तथ्य को भी नजरंदाज करना आसान नहीं है कि राजकोट पुलिस कस्टडी से भागते वक्त 7 दिसंबर 2001 को आसिफ रजा खान ढेर हुआ.
उसके एक सप्ताह के भीतर ही यानी 13 दिसंबर 2001 (5-6 दिन बाद ही) को आतंकवादियों ने भारतीय संसद पर हमला कर दिया. यहां उल्लेखनीय है कि भले ही भारतीय संसद पर हुए हमले में आफताब अंसारी और आसिफ रजा खान का सीधे-सीधे कभी कोई संबंध साबित न हो सका हो. लेकिन यह सवाल तो आज भी मुंह बाएं खड़ा ही है कि क्या भारतीय संसद पर हमला एक सप्ताह पहले राजकोट में गुजरात पुलिस के हाथों ढेर हुए आसिफ रजा खान की मौत का बदला था?
(दिल्ली के रिटायर्ड पुलिस कमिश्नर निदेशक नीरज कुमार से हुई बातचीत पर आधारित)
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