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जनाब...आपका उदारवाद इतना भी उदार नहीं

सच्चा उदारवाद अलग-अलग संस्कृति और विश्वास के प्रति सहनशील होता है, इनका सम्मान करता है.

Sreemoy Talukdar

अमेजन पर तिरंगे की डिजाइन वाले डोरमैट की बिक्री के विज्ञापन पर उपजे विवाद के कई पहलू हैं. मसला कानून का है तो संस्कृति का भी. विचाराधारा के सवाल हैं तो सियासत के सफेद-स्याह खानों में ना बांटी जा सकने वाली सच्चाई के भी. अभी तक इस विवाद पर हुई चर्चा में बारीक बातों की अनदेखी हुई है.

जुदा-जुदा रंग की बातों को कहीं सफेद तो कहीं स्याह बनाकर पेश किया गया है. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ई-कॉमर्स के बड़े खिलाड़ी में शुमार अमेजन को चेताया कि विज्ञापन को फौरन हटा लो या वीजा सबंधी प्रतिबंधों का सामना करने के लिए तैयार रहो. अमेजन ने विज्ञापन को हटा लिया.


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सुषमा स्वराज की इस चेतावनी की सोशल मीडिया पर खूब वाहवाही हुई लेकिन आलोचकों ने इसे ‘दादागिरी’ करार दिया. आरोप लगा कि प्रशासन का काम सोशल मीडिया के मार्फत हो रहा है. आलोचकों की राय यह रही कि तिरंगे को लेकर हिन्दुस्तानियों का भावुक होना बेमानी है.

ये सारी बातें, जैसा कि लेख में ऊपर इशारा किया गया है, अपने आप में जायज हैं लेकिन उनपर अलग-अलग विचार करने की जरुरत है.

क्या कहता है कानून

जहां तक कानून की बात है, ई-कॉमर्स के बड़े खिलाड़ी अमेजन को ‘मार्केटप्लेस’ मॉडल पर चलने के कारण कुछ वैधानिक छूट हासिल हो सकती है. तिरंगे की डिजाइन वाला डोरमेट उसके माल-गोदाम का सामान नहीं है. तो भी यह सवाल बचा रहता है कि तिरंगे की डिजाइन वाले डोरमेट की विदेश की धरती पर चल रहे वेबसाइट के सहारे बिक्री में मददगार बनने से किसी भारतीय कानून का उल्लंघन हुआ है या नहीं.

याद रहे कि अमेजन भले अपना यह प्रॉडक्ट भारत में नहीं बेच रहा था तो भी इसका ग्राहक कोई भारतीय हो सकता है. चाहे वह कनाडा में रह रहा हो या फिर वहां घूमने-फिरने गया हो.

भारतीय दंड संहिता की धारा 3 में एक शीर्षक उन अपराधों के बारे में हैं जो देश से बाहर किए गए हैं. लेकिन जिन पर मुकदमा देश के भीतर चलाया जा सकता है. इस धारा में कहा गया है कि कोई व्यक्ति भारत देश के बाहर किए गए अपने आपराधिक कृत्य के लिए कानून के प्रति जवाबदेह पाया जाता है तो इस धारा के तहत उस पर उसी रीति से मुकदमा चला जायेगा जैसा कि देश के भीतर रहते हुए वह आपराधिक कृत्य करने पर चलाया जाता.

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सवाल उठता है कि तिरंगे को लेकर कौन सा बरताव आपराधिक कृत्य माना जायेगा ?

राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम 1971(द प्रीवेंशन ऑफ इंसल्ट टू नेशनल ऑनर एक्ट) का एक हिस्सा राष्ट्रीय झंडे और संविधान के अपमान के बारे में है. इस हिस्से में कहा गया है कि 'जो कोई किसी सार्वजनिक जगह या किसी अन्य स्थान पर सार्जनिक रुप से भारतीय राष्ट्रीय झंडे या संविधान या उसके किसी भाग को जलाता है. विकृत करता है. विरुपित करता है. दूषित करता है. कुरुप करता है. नष्ट करता है. कुचलता है (या मौखिक, लिखित अथवा कृत्यों द्वारा) अपमान करता है तो उसे तीन साल तक के कारावास, जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा.'

उदारवाद का सही अर्थ

कानून तो बहुत स्पष्ट है. लेकिन हम कानून का कोना छोड़कर विवाद को किसी और कोने से सोचें. दूसरे देशों के राष्ट्रीय झंडे की नजीर देकर कहा जाता है कि अगर कोई ब्रिटिश या अमेरिकी नागरिक अपने राष्ट्रीय ध्वज को टी-शर्ट, तकिया का खोल, चड्डी-बनियान या फिर डोरमैट बना सकता है.

फिर रोजमर्रा के इस्तेमाल की चीजों पर तिरंगे की छाप देखकर सिर्फ भारतीय ही इतनी हाय-तौबा क्यों मचाते हैं ?

इस तर्क में ही छुपा है यह राज कि उदारवाद की परंपरा में क्या कुछ गलत है. पूरी दुनिया में उदारवाद क्यों संकट से घिर चला है. जब कोई ब्रिटेन या अमेरिका के राष्ट्रीय झंडे के साथ वहां के नागरिकों के बरताव की तुलना तिरंगे के साथ किसी भारतीय के बरताव से करता है तो दरअसल यह तुलना एक झूठ पर टिकी होती है.

असल दिक्कत उदारवाद के स्वभाव की समझ में हैं. उदारवाद का मतलब यह नहीं होता कि सबकी देह पर एक ही नाप का कपड़ा फिट बैठेगा. उदारवाद सच्चे अर्थों में मेल-मिलाप की परंपरा है. सच्चा उदारवाद अलग-अलग संस्कृति और विश्वास के प्रति सहनशील होता है, इनका सम्मान करता है. विभिन्नताओं के बीच एक साझी जमीन तलाशने की कोशिश करता है.

अलग-अलग संस्कृतियों और विश्वासों पर वह किसी एक मान्यता या विश्वास को बलात नहीं थोपता. युरोपीय तर्ज का एकहरा और रुढ़ उदारवाद हम भारतीयों के उदार स्वभाव के अनुकूल नहीं. यह उदारवाद हमारी मेल-मिलाप की गंगा-जमुनी तहजीब और उससे झांकते बहुलतावाद के मेल में नहीं.

हमारे लिए तिरंगे का अलग महत्व

बात को साफ-साफ शब्दों में कहें तो ब्रिटेन या अमेरिका के राष्ट्रीय झंडे के साथ वहां के नागरिकों के बरताव की तुलना भारतीय नागरिकों से करने पर एक बात की अनदेखी होती है. भुला दिया जाता है कि अपने राष्ट्रीय झंडे को लेकर भारतीयों के भाव ब्रिटेन या अमेरिकावासियों से अलग भी हो सकते हैं.

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विविधताओं को पालने-पोसने वाली एक लंबी परंपरा रही है. भारत में और प्रतीकों को लेकर भारतीयों के मन में आदर-सम्मान का भाव उदारवाद की इसी लंबी परंपरा की देन है. विभिन्न आस्था, पहचान, संस्कृति और परंपरा के संगम के गवाह रहे हिन्दुस्तान में प्रतीकों को अलग-अलग विश्वासों का बीज-मंत्र माना जाता है. आपसी आदर-सम्मान का यह भाव ना होता तो संगम की जमीन के रुप में भारत इतने सालों से कायम नहीं रहता.

विदेश से आयातित एकहरे किस्म के उदारवाद में एक अहंकार होता है. सिर्फ हम हीं सही हैं और यही अहंकार इस उदारवाद को समावेशी होने से रोकता है. इकहरा उदारवाद इतना ‘उदार’ नहीं हो पाता कि तिरंगे के प्रति भारतीयों के आदर-भाव को अपने में समा सके.

संस्कृति को लेकर संवेदनशील होने की इस बात को यहीं छोड़ अब हम तनिक विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के उठाये कदमों पर विचार करें. उन्होंने मामले पर सख्त रुख अपनाया. अमेजन को वीजा-संबंधी प्रतिबंधों का डर दिखाया और इससे भी आगे बढ़कर कनाडा स्थित भारतीय दूतावास को आदेश दिया कि मामले को 'ऊपर तक' ले जाये.

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तर्क दिया जा सकता है कि मंत्री ने जरुरत से ज्यादा सख्ती दिखायी. लेकिन यह ध्यान रखना होगा कि मामले के तूल पकड़ने पर सुषमा स्वारज के आगे सियासी दुविधा आन खड़ी हुई थी. उन्होंने सार्वजनिक तौर पर अमेजन को चेतावनी दी. जिससे जाहिर होता है कि वे विपक्ष के लिए ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ना चाहती थीं कि वह चढ़ते चुनावी बुखार के इस मौसम में मामले को भुना ले.

ई-कॉमर्स के दबंग अमेजन को मिली चेतावनी को दो तरह से पढ़ा जाना चाहिए. वह एक संवेदनशील मसले पर एक राजनेता की प्रतिक्रिया तो है ही. साथ ही अमेजन के प्रति सुषमा स्वराज की निजी नाराजगी का भी इजहार है.