view all

पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव: जनेऊधारी राजनीति क्यों कर रही हैं ममता?

ममता बनर्जी खुद पर अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण के आरोपों का मुकाबला करती रही हैं. लेकिन अब उन्हीं ममता बनर्जी ने पलटी मारते हुए जनेऊधारी राजनीति की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं

Sreemoy Talukdar

पश्चिम बंगाल में कुछ अनोखा हो रहा है आजकल. एक लंबे वक्त से ममता बनर्जी पर अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण के आरोप लगते रहे हैं और वे इन आरोपों का मुकाबला करती रही हैं. लेकिन अब उन्हीं ममता बनर्जी ने पलटी मारते हुए जनेऊ-धारी राजनीति की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं.

सूबे में इस साल कुछ समय बाद पंचायत चुनाव होने वाले हैं और इन चुनावों से पहले सिलसिलेवार प्रशासनिक और राजनीतिक पहलकदमियों के जरिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री यह साबित करने पर तुली हैं कि तृणमूल कांग्रेस कोई हिंदू-विरोधी पार्टी नहीं बल्कि बीजेपी से कहीं ज्यादा हिंदू हिमायती पार्टी है.


नजरिए में आए इस बदलाव और लोगों के सोच में परिवर्तन लाने की यह तरकीब सीधे ‘नरम हिंदुत्व’ की कांग्रेसी किताब से निकली है लेकिन तरकीब को आजमाने का अंदाज कुछ ऐसा है मानो कोई शीशे की दुकान को घुड़दौड़ का मैदान मान ले, ममता बनर्जी हिंदू धर्म के प्रतीकों के आगे जोर-शोर से ढोल-मजीरे बजाने में लगी हैं.

तृणमूल का 'ब्राह्मण एवं पुरोहित सम्मेलन'

मिसाल के लिए गौर करें कि जमीनी स्तर पर संगठन का ढांचा ना होने के बावजूद बीजेपी बीरभूम जिले में उभार पर है जबकि यहां तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अणुव्रत मंडल ने सोमवार के दिन बोलपुर में ‘ब्राह्मण एवं पुरोहित सम्मेलन’ का आयोजन किया.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक अपनी कारगुजारियों से दबंग की छवि अर्जित कर चुके अणुव्रत मंडल आयोजन के अवसर पर भगवा कुर्ता पहनकर मंच पर नमूदार हुए और वहां जुटे हिंदू पुरोहितों को हाथ जोड़कर प्रणाम करते हुए कहा कि 'जो मैंने अभी तक कुछ गलत कहा हो तो मुझे माफ कर दीजिए.. हमें जन्म, ब्याह और मौत के मौके पर पुरोहितों की जरुरत होती है. इसलिए, आप सब समाज के लिए बहुत जरुरी हैं, आप सबों के बगैर कुछ भी नहीं किया जा सकता.'

आयोजन वाली जगह मुख्यमंत्री के बड़े-बड़े कटआउट्स लगे थे. इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक आयोजन में मंडल ने कहा कि 'बीजेपी धर्म की व्याख्या सही तरीके से नहीं कर रही है. वह हिंदुत्व की राजनीति के नाम पर लोगों को गुमराह कर रही है. अगर हमें हिंदू धर्म के बारे में कुछ जानना ही है तो हम उसे हिंदू धर्म के पुरोहितों से सीखेंगे, बीजेपी से नहीं.'

सभा में आए तकरीबन 1500 हिंदू पुरोहितों में प्रत्येक को शॉल, मां शारदा और रामकृष्ण परमहंस की तस्वीर और भगवद् गीता की एक प्रति भेंट की गई. टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक पुरोहितों से वादा किया गया कि सभा में आने के एवज में उन्हें वित्तीय मदद और गाएं दी जायेंगी.

ये भी पढ़ें: तुष्टीकरण की दो नावों पर ममता सवार, कभी बांटी गीता कभी बैन की दुर्गा पूजा

सभा में आए पुरोहितों में से एक सुनील सरकार ने एनडीटीवी से कहा कि हम सब इस उम्मीद से आए हैं कि हमें भी मौलानाओं की तरह जीविका-भत्ता (स्टाइपेन्ड) मिलेगा. पहले यह हमें नहीं मिलता था. लेकिन अब सरकार इसके बारे में सोच रही है, शायद इसलिए कि पंचायत के चुनाव होने वाले हैं.

तृणमूल की छवि को धो देना चाहती हैं ममता

लेकिन बोलपुर का आयोजन कोई अलग-थलग घटना नहीं. हाल की कई बातों से एक पूरी तस्वीर उभरकर सामने आती है और इस तस्वीर के संकेत हैं कि ममता बनर्जी बड़ी बेचैनी में हैं. वो हर हाल में तृणमूल कांग्रेस पर लगे बीजेपी के इस आरोप को नकारना चाहती हैं कि तृणमूल हिंदुओं और उनके हितों को प्रति असंवेदनशील है.

बीते नवंबर महीने में रिपोर्ट आई कि सूबे की सरकार बीरभूम जिले के हर ग्रामीण अंचल में तकरीबन 2000 गाय बाटेंगी ताकि दूध का उत्पादन बढ़ाया जा सके. सीपीएम ने इसे सियासी पैंतरा करार दिया और आरोप लगाया कि ममता बीजेपी की नकल कर रही हैं.

बीते दिसंबर माह में गंगा सागर मेला (यह हिंदुओं का सालाना तीर्थ है जहां लाखों लोग जुटते और पवित्र गंगा में डुबकी लगाते तथा मेला में शिरकत करते हैं) के आयोजन की तैयारियों का जायजा लेने ममता बनर्जी सागर द्वीप पहुंची तो वहां कहा कि इसे कुंभ मेला का दर्जा दिया जाना चाहिए.

रिपोर्टों के मुताबिक ममता बनर्जी ने यहां कपिल मुनि आश्रम के मुख्य पुरोहित ज्ञानदास जी के सत्संग में लगभग एक घंटे का वक्त गुजारा और वचन दिया कि 'दोबारा भी आएंगे.'

अब तक तुष्टिकरण को लेकर अडिग रही हैं ममता

ममता बनर्जी की मंदिरों की यात्रा और कालीघाट, तारापीठ और तारकेश्वर जैसे मुख्य मंदिरों को नया कलेवर देने के लिए बोर्ड के गठन से साफ जाहिर होता है कि उनकी सियासत अल्पसंख्यकवाद से बहुसंख्यकवाद की तरफ झुक रही है.

तृणमूल के मामले में यह बात ज्यादा उभरकर सामने आ रही है क्योंकि अभी तक ममता बनर्जी का जोर बंगाल में सीपीएम से मुस्लिम वोटों (सूबे के मतदाताओं में तादाद अच्छी खासी यानी 30 फीसद है) को झटकने और अपनी तरफ करने गोलबंद किए रखने पर था. उनपर राजनीतिक विरोधियों और यहां तक कि अदालत ने भी अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के आरोप बार-बार लगाए लेकिन वे अपने संकल्प पर अडिग रहीं.

ये भी पढ़ें: ममता बनर्जी अपने किस शौक को अपनी विरासत मानती हैं

मिसाल के लिए 2016 में कलकत्ता हाईकोर्ट ने अपने फैसले में मुहर्रम के अवसर पर दुर्गा की मूर्ति के विसर्जन पर लगाई गई तृणमूल सरकार की रोक को 'मनमान' करार देता हुए कहा कि यह जनता के 'अल्पसंख्यक तबके के तुष्टीकरण की जाहिर सी कोशिश' है.

जब सरकार ने पिछले साल मुहर्रम के मौके पर दुर्गा की मूर्ति विसर्जन पर फिर से रोक लगाने की कोशिश की तो कलकत्ता हाईकोर्ट ने दोबारा यह रोक हटा दी और अपनी कड़ी फटकार से तृणमूल कांग्रेस को चेतावनी दी कि वह नागरिकों के अधिकार पर पाबंदी लगाने से बाज आए.

साल 2013 में हाईकोर्ट ने इमामों को दिए जा रहे ममता सरकार के स्टाइपेंड (जीविका भत्ता) को खत्म कर दिया था. ममता सरकार उस वक्त तकरीबन 30 हजार इमाम को प्रतिमाह 2500 रुपये और 15 हजार मुअज्जिन को हर महीने 1500 रुपये का भत्ता दे रही थी. कोर्ट की खंडपीठ ने इसे सरकारी पैसे की फिजूलखर्ची करार दिया था.

हिंदू वोटों की लामबंदी से परेशान हैं ममता

एक ऐसी पार्टी जो अल्पसंख्यकवाद का इस्तेमाल अपनी सियासत की बुनियाद के रुप में करती है और मुस्लिम वोटों पर बहुत ज्यादा निर्भर है अचानक ही पलटीमार शैली में हिंदुत्व की राजनीति के रास्ते पर मुड़ गई है. इससे पता चलता है कि पार्टी हिंदु वोटों की विशाल लामबंदी को लेकर बेचैन और असुरक्षित महसूस कर रही है और चाहती है कि बीजेपी को इस लामबंदी का फायदा ना पहुंचे.

ममता को चिंता सता रही है, उन्होंने मन ही मन समझ लिया है कि ग्रामीण इलाकों में बीजेपी का चुप्पा उभार हो रहा है, भले ही यह उभार अभी तक बीजेपी के लिए चुनावी कामयाबी की शक्ल ना ले पाया हो. मिसाल के लिए, हाल में सबांग विधानसभा के लिए हुए उपचुनाव में बीजेपी का वोट-शेयर 2016 के 5610 वोटों से बढ़कर 2017 में 37,476 वोटों पर पहुंच गया है.

ये भी पढ़ें: 'मोदी सरकार रच रही है बंगालियों को असम से बाहर करने की साजिश'

राज्यसभा के सांसद स्वप्न दासगुप्ता ने हिंदुस्तान टाइम्स में लिखा है कि देश भर में बीजेपी की बढ़त के कारण आम माहौल पर हिंदुआनी रंगत साफ झलक रही है. मुखालिफ खड़ी पार्टियां इसकी काट के लिए पहले के वक्त में ‘कट्टर धर्मनिरपेक्षता’ का राग अलापा करती थीं लेकिन अब यह मुहावरा बदल गया है. हिंदू राष्ट्रवाद आपसी सहमति का विषय बनकर उभरा है.

राहुल के बाद ममता

ममता बनर्जी की पहलकदमियों में देश के रुझान की झलक देखी जा सकती है. गुजरात विधानसभा के चुनावों के दौरान कांग्रेस के जनेऊधारी नए अध्यक्ष राहुल गांधी ने जी-तोड़ कोशिश की थी कि अल्पसंख्यकों का हिमायती होने की पार्टी की छवि किसी तरह खत्म हो. उन्होंने मंदिरों में मत्था टेकने का एक पूरा सिलसिला ही कायम कर दिया और कुछ ऐसा दक्षिणपंथी रुख लिया कि पूरे चुनाव-अभियान के दौरान मुस्लिम तबके की आवाजें चुनावी परिदृश्य का हिस्सा ना बन सकीं.

हिन्दुओं की लामबंदी के फायदे से बीजेपी को वंचित करने के चक्कर में कांग्रेस मुस्लिम वोट बैंक को पूरी तरह कमजोर कर रही है. शायद उसे यकीन है कि मुस्लिमों को लुभाए रखने की कोई जरुरत नहीं क्योंकि मुस्लिम अवाम के पास कोई विकल्प नहीं है, वह बीजेपी के खिलाफ वोट डालेगी ही.

जबतक बीजेपी की चुनावी जययात्रा जारी रहेगी तबतक तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टियां हिंदू-हिमायती होने का दम भरते हुए अपनी छद्म-धर्मनिरपेक्षता के मुखौटे उतारते रहेंगी.

इससे भारतीय राजनीति की दो सच्चाइयों का पता चलता है. विपक्षी दलों को यह पता चल चुका है कि दशकों तक चुनावी समीकरण को परिभाषित करते चले आ रहने वाली छद्म-निरपेक्षता से बीजेपी को फायदा हुआ है. पहले तो पार्टियां इनकार के मिजाज में दिखीं लेकिन फिर कांग्रेस और तृणमूल जैसी पार्टियां हिंदू वोटों पर बीजेपी के एकाधिकार को तोड़ने के लिए सुधार के तौर पर दक्षिणपंथी राह पर चल पड़ी हैं.

इस सिलसिले की दूसरी बात यह कि विपक्ष अब जातिगत अलगाव पर जोर देते हुए हिंदू वोटों में लगातार बिखराव लाने की कोशिश करेगा. विपक्षी दलों को यकीन है कि इन दो रणनीतियों के जरिए मोदी का महारथ 2019 में रोका जा सकेगा.