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योगी से सीधी टक्कर ले रहे हैं ओमप्रकाश राजभर, गठबंधन के लिए खड़ी करेंगे मुश्किल?

ओमप्रकाश राजभर ने इन दिनों अपने बगावती सुर तेज कर दिए हैं. राजभर ने शराबबंदी को लेकर मुख्यमंत्री योगी से सीधी लड़ाई की घोषणा करके सबको हैरत में डाल दिया है

Utpal Pathak

एक तरफ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कर्नाटक विधानसभा चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं दूसरी तरफ उनकी ही सरकार के सहयोगी दल के मंत्री ओमप्रकाश राजभर उनके खिलाफ लगातार बयान देकर पूरे प्रदेश की चर्चा के केंद्र में हैं.

लंबे समय से बीजेपी से नाराज चल रहे सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने इन दिनों अपने बगावती सुर तेज कर दिए हैं. पिछले कुछ दिनों से लगातार राजभर ने लगभग हर रोज अपने बयानों से प्रदेश सरकार को घेरने का काम किया है. राजभर ने बुधवार को अपने गृह जनपद बलिया में बुधवार को राजभर ने शराबबंदी को लेकर मुख्यमंत्री योगी से सीधी लड़ाई की घोषणा करके सबको हैरत में डाल दिया.


योगी से सीधी लड़ाई लड़ रहे हैं राजभर

बकौल राजभर, 'मेरी लड़ाई मुख्यमंत्री योगी से है. 20 तारीख से होने वाले आंदोलन में किसी भी दल ने अगर हमारा साथ नहीं दिया तो हम 2019 के लोकसभा चुनाव में महिलाओं से वोट के बहिष्कार की अपील करेंगे.'

राजभर ने रामायण के एक कांड का हवाला देते हुए अपनी तुलना लव-कुश से करते हुए कहा कि 'लव-कुश की लड़ाई राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न से सिद्धांत को लेकर हुई थी और गुरु वाल्मीकि ने हस्तक्षेप करके उनके बीच युद्ध को रोका था. हमारी लड़ाई मुख्यमंत्री से है और बीच में आकर फैसला अमित शाह कराएंगे.'

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राजभर यहीं नहीं रुके और उन्होंने अपना वक्तव्य जारी रखते हुए कहा कि 'सदन में मैंने 16 बार शराबबंदी को लेकर आवाज उठाई, मगर योगी सरकार ने नहीं सुनी. मैं शराबबंदी को लेकर मुख्यमंत्री से लड़ाई का ऐलान करता हूं. मैं सभी क्षेत्रों में महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षण की मांग करता हूं. 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण का विभाजन ही 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत का ब्रह्मास्त्र साबित होगा.'

जिन्ना मसले पर भी चुप नहीं बैठे राजभर

अभी यह मामला थमा नहीं था कि राजभर ने जिन्ना को लेकर टिप्पणी करने वाले कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य को ‘जिन्ना का रिश्तेदार’ कह दिया. ओम प्रकाश अपने इस बयान पर गुरुवार को भी कायम रहे और वाराणसी में पत्रकार वार्ता के दौरान भी उन्होंने इस बात को दोहराया. वाराणसी से जौनपुर जाने के क्रम में उन्होंने फ़र्स्टपोस्ट से फोन पर एक संक्षिप्त बातचीत में कहा,

'देखिए गठबंधन को कोई खतरा नहीं है लेकिन मैं आज भी इस बात पर कायम हूं कि महात्मा गांधी की फोटो पाकिस्तान के किसी विश्वविद्यालय में नहीं लगा है तो जिन्ना की भी फोटो यहां नहीं लगनी चाहिए. यदि कहीं तस्वीर लगी है तो वह तत्काल हटनी चाहिए. और यह हर बार चुनाव से पहले जिन्ना और ऐसे ही अन्य नामों के जिन्न बाहर ले आए जाते हैं ताकि मूल मामलों से ध्यान भटकाया जा सके. आज तक किसी ने मेरा 27 प्रतिशत आरक्षण के मुद्दे पर सहयोग क्यों नहीं किया? क्या यह राजभर समेत उन अन्य पिछड़ी जातियों का अपमान नहीं है?'

मंत्रियों के गांव में प्रवास किए जाने को लेकर उन्होंने कहा कि 'स्वामी जी (मुख्यमंत्री) भले ही दलितों के घर रुक रहे हैं और उनके साथ भोजन कर रहे हैं लेकिन प्रदेश के बाकी मंत्री इस प्रवास के नाम पर पंचायत भवन और अन्य इमारतों को होटलों की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं, ऐसे में गरीब आदमी से कैसे जुड़ पाएंगे? मेरा मानना है कि प्रदेश के मंत्रियों को गरीब के घर रुककर उसका जीवन समझना चाहिए. जब तक पिछड़ी जातियों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण पर चर्चा नहीं होगी तब तक मैं अपनी आवाज़ बुलंद करता रहूंगा.'

हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि उनके बयानों से प्रदेश सरकार की किरकिरी हुई, हो बल्कि कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर पहले भी कई बार अपने बयानों से उत्तर प्रदेश सरकार को असहज कर चुके हैं. पिछले कुछ महीनों से वे लगातार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में वे खुद को उपेक्षित महसूस करते हैं. उनका यह दर्द बीते राज्यसभा चुनावों के दौरान भी देखने को मिला था और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने अपने तत्कालीन लखनऊ प्रवास के दौरान राजभर के साथ अकेले में बैठक करके उन्हें आश्वासन दिए थे.

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प्रदेश के पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर पिछले कुछ महीनों से कुछ बिंदुओं पर लगातार बयान दे रहे हैं जिनमें कुछ खास बयान यूं हैं-

- 'बीजेपी नेतृत्व ने तत्कालीन सांसद योगी को मुख्यमंत्री बनाकर 325 विधायकों की उपेक्षा की है.'

- 'प्रदेश के अधिकारी सुभासपा नेताओं की बातों को नहीं सुनते.'

- 'कैबिनेट में सबकी बात सुनी जाती है, फैसले कुछ चार-पांच लोग ही लेते हैं.'

- 'लगता है कि मुझे उपेक्षित किया जा रहा है.'

- 'प्रदेश में हो रही बलात्कार की घटनाओं के लिए प्रशासन जिम्मेदार है.'

- 'विधानमंडल दल की बैठक में मेरे लिए कुर्सी नहीं लगायी जाती है.'

ओम प्रकाश का राजनैतिक जीवन

पूर्वांचल के बलिया जनपद के रसड़ा क्षेत्र के मूलनिवासी ओमप्रकाश ने सक्रिय राजनीति में कदम 1981 में रखा और वे लंबे समय तक कांशीराम को अपना आदर्श मानते रहे. बीएसपी के वरिष्ठ पदाधिकारी के रूप में लंबे समय तक सेवा करने ओम प्रकाश का 2001 में भदोही का नाम बदलकर संत कबीर नगर रखने को लेकर मायावती से विवाद हुआ और उन्होंने बीएसपी से इस्तीफा दे दिया.

उन्होंने राजभर समुदाय के प्रतिनिधित्व करने के लिए सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का गठन किया. लेकिन वे 2007 विधानसभा चुनावों में कुछ खास असर नहीं डाल पाए. बाद में उन्होंने अंसारी बंधुओं की पार्टी कौमी एकता दल से भी हाथ मिलाया लेकिन यह गठबंधन भी उन्हें खास फायदा नहीं पहुंचा पाया. पिछले विधानसभा चुनावों में बीजेपी से गठबंधन करके चुनाव में जोर आजमाया और 13 साल बाद उनकी पार्टी ने पहली बार चार सीटों पर जीत हासिल की. ओम प्रकाश फिलहाल गाजीपुर की जहूराबाद सीट से विधायक हैं और उन्होंने बीएसपी के कालीचरण को हराकर यह सीट हासिल की है. गठबंधन का हिस्सा होने के कारण ओम प्रकाश राजभर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार में कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दिया गया है.

उत्तर प्रदेश में राजभर समुदाय

ओमप्रकाश की राजनैतिक महत्वाकांक्षा के पीछे प्रदेश में राजभर जाति की संख्या और उसके पीछे के जातिगत आंकड़ों का गणित भी है. प्रदेश में राजभर समुदाय का प्रतिशत 2.60 है लेकिन पूर्वांचल की 125 विधानसभा सीटों में इनकी अच्छी खासी आबादी है. प्रदेश के अन्य इलाकों में भले ही राजभर समुदाय की मात्रा कम हो लेकिन पूर्वांचल की जातिगत गणना में राजभरों की संख्या करीब 18 प्रतिशत है. ऐसे में इतने ठोस वोट बैंक को प्रदेश में कोई भी दल नजरअंदाज करके नहीं देखता. इस बात का फायदा उठाने के क्रम में ओमप्रकाश ने कई बार अलग-अलग दलों से गठबंधन भी किया लेकिन उन्हें खास लाभ नहीं मिला.

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हालांकि, उनकी पार्टी के उम्मीदवारों ने 2017 के पहले के चुनावों में अच्छी मात्रा में वोटों का ध्रुवीकरण किया लेकिन नतीजा अपने पक्ष में करने में नाकायाब ही रहे. लेकिन हर बार इन्हीं उम्मीदवारों ने उन सीटों का समीकरण भी बदल दिया, जिससे कई बड़े दिग्गजों को हार का सामना करना पड़ा. अक्टूबर 2002 में सुभासपा का गठन करने के बाद ओमप्रकाश ने 2012 के विधानसभा चुनावों में कुल 52 प्रत्याशी उतारे थे, जिन्हें 4.70 लाख वोट मिले थे. तीन प्रत्याशियों ने 30,000 से ऊपर मत पाकर राजनैतिक पंडितों को हैरत में डाल दिया था. ओमप्रकाश राजभर को 2012 में जहूराबाद सीट से 48000 वोट मिले थे.

2014 के लोकसभा चुनावों में ओमप्रकाश बीजेपी के साथ गठबंधन करने की बात करते रहे लेकिन उन्हें मौका नहीं मिला. लेकिन 2017 में उन्होंने बीजेपी की लहर को सोच समझकर दांव खेला और गठबंधन के फलस्वरूप उनकी पार्टी को आठ सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिला जिसमें से चार सीटें उनकी झोली में आ गिरीं. गौरतलब है कि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जिन 17 ओबीसी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का प्रस्ताव दिया था उस सूची में राजभर जाति का भी जिक्र है.

राजभर जाति की संख्या का महत्व समझते हुए यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने अपने कार्यकाल में लखनऊ के लालबाग चौराहे पर राजा सुहेलदेव की प्रतिमा की स्थापना की थी. बीएसपी सरकार ने भी अपने आखिरी कार्यकाल के दौरान राजा सुहेलदेव की एक प्रतिमा वाराणसी के सारनाथ इलाके में लगवाई थी. बीजेपी ने पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में राम अचल राजभर और पूर्व स्पीकर सुखदेव राजभर को समुदाय में प्रचार के लिए लगाया था.

मौके के हिसाब से बयान देने और बदलने में माहिर हैं ओमप्रकाश राजभर

ओमप्रकाश राजभर अपने बयानों और अपनी राजनीति की शैली के लिए चर्चित रहते हैं. पार्टी की स्थापना के क्रम में उन्होंने भदोही जनपद के ऐतिहासिक परिदृश्य को राजभरों के इतिहास से जोड़कर समुदाय को काफी काम समय में एकत्रित और लामबंद कर लिया. 2012 से लेकर 2014 तक वे एसपी और बीजेपी के साथ रस्साकशी करते रहे. 2012 में उन्होंने बाहुबली मुख़्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल से गठबंधन किया और इस गठबंधन के फलस्वरूप अंसारी परिवार को फायदा हुआ और 2012 के चुनाव में मोहम्मदाबाद व मऊ सदर सीट पर अंसारी बंधुओं की जीत हुई.

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2017 में बीजेपी से गठबंधन के बाद ओमप्रकाश ने पहले मुख़्तार अंसारी के खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान किया, लेकिन बाद में वे पीछे हट गए और उन्होंने मुख्तार के खिलाफ महेंद्र राजभर को मऊ सदर सीट से उतारा, जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान कटप्पा की उपाधि दी थी. माना जा रहा था कि गठबंधन का लाभ राजभर को मिलेगा लेकिन अंत में अंसारी परिवार के चुनाव प्रबंधन और पिछड़ी जातियों के वोटों के बंटवारे के कारण महेंद्र को हार का सामना करना पड़ा.

कभी आलोचना तो कभी शान में कसीदे पढ़ते हैं राजभर

इस बात की पुष्टि इस बात से भी होती है कि राजभर बीजेपी से नाराज तो हैं मगर गठबंधन का धर्म अब भी निभा रहे हैं. बलिया में एक तरफ योगी का विरोध करने के बाद राजभर बीजेपी नेतृत्व की शान में कसीदे पढ़ते हुए कहा -

'राज्य में एसपी और बीएसपी गठबंधन से निपटने के लिए बीजेपी ने तैयारी कर ली है. बीजेपी ने एक ब्रह्मास्त्र बना लिया है और इसे लोकसभा चुनाव के छह माह पहले छोड़ा जाएगा. एसपी, बीएसपी और कांग्रेस पिछड़े वर्ग की 17 जातियों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने का झुनझुना देकर सरकार बनाती आई है. बीजेपी सरकार जल्द ही ओबीसी को तीन श्रेणी में विभाजित करेगी और इससे समाज की मुख्यधारा से अलग-थलग पड़े ओबीसी वर्ग के बड़े तबके को न्याय मिलेगा. और इसी वर्ग के वोटों सहारे बीजेपी आसानी से एसपी-बीएसपी गठबंधन को हरा देगी.'

एसपी-बीएसपी के लिए उन्होंने कहा कि 'यह दो ताकतें हैं जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. लेकिन राहुल गांधी की चिंता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नहीं हैं, बल्कि राहुल सत्ता के लिए तड़प रहे हैं. कांग्रेस से दूर हो चुके दलित, ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदाय को सत्ता के लिए पार्टी में फिर से जोड़ने के लिए राहुल गांधी परेशान हैं.'

ओमप्रकाश राजभर ने अपने बयानों से बीजेपी की प्रदेश इकाई को लगातार सकते में डालने का काम किया है. जानकार बताते हैं कि उनका यह दबाव आगामी लोकसभा चुनाव के करीब आते-आते और बढ़ेगा और ऐसे में बीजेपी को अपने इस महत्वपूर्ण सहयोगी दल को बांधकर रखने के लिए कड़ी मशक्कत करनी होगी.