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यूपी चुनाव: बीजेपी की जीत का फार्मूला है मुस्लिम वोटों का बंटवारा

सिर्फ ये सोचना कि मुसलमान वोटर को लुभा कर किसी भी पाले में खींचा जा सकता है ये आज के दौर में जल्दबाजी होगा

Kinshuk Praval

हर दिन बदलते सियासी हालात में आज भी सवाल वही पुराना है कि यूपी चुनाव में मुस्लिम वोट किसके खाते में जाएगा. मुस्लिम वोटर किसे एक लहर में  देंगे वोट?

समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन में टिकट बंटवारे को लेकर गांठ पड़ गई है. बीएसपी के हिसाब से ये राहत की बात हो सकती है क्योंकि अब बीएसपी को मुस्लिम वोटों के इस गठबंधन में एकमुश्त जाने का खतरा नहीं है.


बीजेपी दोनों ही सूरत में तैयार है. बीजेपी ये जानती है कि मुस्लिम वोटर उसका खेल बिगाड़ सकते हैं इसलिये वह चाहेगी कि सपा-कांग्रेस और बीएसपी की लड़ाई में मुस्लिम वोट बंटें.

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दुनिया की कुल मुस्लिम आबादी का 11 प्रतिशत हिस्सा भारत में है. यूपी की आबादी में 19.3 प्रतिशत हिस्सा मुसलमानों का है. यूपी की सत्ता हासिल करने के लिए मुसलमानों का समर्थन बहुत जरुरी है. सेक्युलर पार्टियों की सियासी रणनीति अपने नफे-नुकसान को देखते हुए मुस्लिम वोटरों के इर्दगिर्द हमेशा रहती है.

मुसलमानों को लुभाने की कोशिश

इस बार बीएसपी ने पहली बार 97 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं. केवल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही बीएसपी ने कुल 149 सीटों में से 50 सीटों पर मुसलमानों को टिकट दिया है.

मुस्लिम वोटरों को लेकर बीएसपी की रणनीति का इस बात से भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि बीएसपी ने पहली बार अयोध्या से मुस्लिम उम्मीदवार उतारा है. बीएसपी ये जानती है कि अगर हिंदुत्व के मुद्दे पर वोटों का ध्रुवीकरण हुआ तो मुस्लिम वोट उसके ही खाते में आएंगे.

समाजवादी पार्टी ने अपनी अबतक की जारी लिस्ट में 51 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है लेकिन सपा-बीएसपी के बीच मुस्लिमों की रहनुमाई की होड़ मची हुई है. यूपी में मुस्लिम वोटरों को लेकर असली लड़ाई बीएसपी और समाजवादी पार्टी के बीच है.

बीएसपी की तरफ से नसीमुद्दीन सिद्दीकी रहनुमाई का झंडा थामे हुए हैं. नसीमुद्दीन सिद्दिकी यूपी के मौलवियों से बीएसपी के लिये वोटों की मिन्नत कर रहे हैं. तो समाजवादी पार्टी की तरफ से आजम खान सबसे बड़ा चेहरा है. यही वजह है कि सपा ने आजम खान के बेटे अबदुल्ला को टिकट देने में तनिक भी देर नहीं की.

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यूपी की 403 विधानसभा सीटों में 73 सीटों पर 30 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है. यूपी के 38 जिलों और 27 संसदीय सीटों पर मुस्लिम वोटर की निर्णायक भूमिका है. लेकिन यूपी विधानसभा में दो सौ से ज्यादा सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर 10 प्रतिशत से ज्यादा है. जबकि 125 विधानसभा सीटों पर 20 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम आबादी है.

इस बार औवेसी भी एक फैक्टर

साल 2012 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम बहुल वाली 73 सीटों में से समाजवादी पार्टी ने 35 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि बीएसपी को 13 और कांग्रेस को 6 सीटें मिली थीं. उसके बावजूद बीजेपी इन सीटों पर 17 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी.

साल 2012 के विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के 43 मुस्लिम उम्मीदवार जीते थे जबकि बीएसपी के 16 और कांग्रेस के 4 जीते थे. साल 2012 में पहली बार 63 मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. कुल विधानसभा सीटों का करीब 17 प्रतिशत प्रतिनिधित्व मुस्लिम विधायकों के पास था.

लेकिन दिलचस्प बात ये रही कि दूसरी छोटी मुस्लिम पार्टियों ने भी बड़ी सेंध लगाते हुए दो सीटें जीत ली थीं. इस बार भी मुस्लिम वोट की धुरी पर दौड़ती राजनीति में छोटे दल भी बड़ा घाव करने की फिराक में हैं.

अससुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन पहली दफे यूपी से चुनाव में लड़ रही है. हालांकि एआईएमआईएम कई साल से यूपी में ‘ओवैसी फैक्टर’ पैदा करने की कोशिश में जुटी हुई है. लेकिन एआईएमआईएम भी यूपी की सियासत की तर्ज पर ही दलित-मुस्लिम के गठजोड़ की राजनीति कर रही है जिसका नुकसान बीएसपी, सपा और कांग्रेस को हो सकता है.

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इसी तरह कई और भी ऐसी पार्टियां हैं जो सिर्फ वोट काटने का ही काम करती हैं या फिर किसी उम्मीदवार को हराने का. बीजेपी को ये उम्मीद है कि समाजवादी पार्टी की अंदरूनी कलह के बाद मुस्लिम वोटर बीएसपी में अपना भरोसा ढूंढेगा तो रेस में कांग्रेस के रहने से पारंपरिक मुस्लिम वोटर ठिकाना बदलने के बारे में नहीं सोचेगा.

अन्य पिछड़ी जातियां भी महत्वपूर्ण

इसलिये बीजेपी का पूरा फोकस अपने पारंपरिक सवर्ण वोट बैंक के अलावा ओबीसी समुदाय पर है. यूपी में 25 प्रतिशत सवर्ण, 10 प्रतिशत यादव, 26 प्रतिशत ओबीसी और 21 प्रतिशत दलित हैं. बीजेपी ओबीसी और अति पिछड़ों को अपने पाले में लाने में जुटी हुई है.

लोकसभा चुनावों में बीजेपी को जाटों के वोट मिले थे. इस बार भी बीजेपी को उम्मीद है कि जाटों का बीजेपी को पूरा समर्थन मिलेगा. हालांकि अजित सिह की राष्ट्रीय लोकदल पार्टी के चलते जाटों के वोटों पर असर पड़ सकता है. लेकिन बीजेपी को सवर्ण वोटों के साथ साथ गैर-यादव और पिछड़े वोटों की भी उम्मीद है.

माना जा रहा है कि 403 सीटों की विधानसभा के लिये बीजेपी अपनी टिकट लिस्ट में करीब 200 उम्मीदवारं को पिछड़े वर्ग से टिकट दे सकती है. कुर्मी, कुशावाह, मौर्या, प्रजापति,केवट, लोध, बघेल और पाल जैसी पिछड़ी जातियों पर बीजेपी की नजर है.

मुस्लिम वोटर के अलावा ये तबका चुनाव में बड़ी भूमिका रखता है. बीजेपी इन्ही जातियों पर पकड़ बनाने की गोलबंदी में जुटी हुई है.साल 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी से एक भी मुसलमान सांसद नहीं जीता. मजेदार बात ये है कि बीजेपी विरोधी वोटर कहलाने के बावजूद बीजेपी को 2014 के चुनाव में यूपी में 8 प्रतिशत मुस्लिम वोट मिले थे.

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ऐसे में सिर्फ ये सोचना कि मुसलमान वोटर को लुभा कर किसी भी पाले में खींचा जा सकता है ये आज के दौर में जल्दबाजी होगा. अब खुद मुस्लिम वोटर भी इतना जागरुक हो चुका है कि वो ये जानने लगा है कि उसके चुने गए मुस्लिम उम्मीदवार ने अपने इलाके में कितना विकास कराया है.

बात जब सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा की हो तो मुस्लिम वोटर भी अब अपने हक में फैसले को फतवे के चश्मे से देखने में गुरेज करने लगा है. क्योंकि उसने मुजफ्फरनगर का दंगा भी देखा है तो दूसरे राज्यों में दौड़ता विकास भी.