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गुजरात में रूपाणी की 'विजय' लेकिन हिमाचल में धूमल नहीं तो कौन...तलाश जारी

गुजरात में सीएम पद को लेकर उहापोह खत्म हो गई है तो हिमाचल प्रदेश में अफवाहों और कयासों का दौर अभी जारी है

Amitesh

क्रिकेट में कहा जाता है कि ‘विनिंग -कॉम्बिनेशन’ को ज्यादा छेड़ने की जरूरत नहीं होती. अमूमन कोई भी टीम जीताऊ कॉम्बिनेशन में फेरबदल करने से कतरा रही है. चाहे इसे जीत के लिए टोटका कहें या फिर बेहतर तालमेल, विनिंग-कॉम्बिनेशन बरकरार रखा जाता है.

गुजरात में भी बीजेपी ने भी फिर से उसी विनिंग कॉम्बिनेशन पर ही दांव लगाया है जो इस बार कड़ी टक्कर के बावजूद चुनाव जीतने में सफल रहा. बीजेपी विधायक दल की बैठक के बाद साफ हो गया कि फिर से विजय रूपाणी ही गुजरात के मुख्यमंत्री और नितिन पटेल उपमुख्यमंत्री होंगे. हालांकि लगातार चल रही मैराथन बैठक के बाद भी यह साफ नहीं हो पाया कि हिमाचल का ताज किसके सर सजेगा?


रूपाणी को सीएम बनाना सोची-समझी रणनीति

बात पहले गुजरात की करें तो यहां विजय रूपाणी पर ही फिर से भरोसा दिखाने के पीछे बीजेपी की सोची-समझी रणनीति है. विजय रूपाणी जैन बनिया समुदाय से आते हैं जिसकी संख्या पूरे गुजरात में दो से तीन फीसदी के ही आस-पास है. यानी रूपाणी, पटेल या किसी गैर पटेल समुदाय की मजबूत जाति से नहीं आते हैं.

बीजेपी को लगता है कि इस बार पटेलों के विरोध के बाद बीजेपी के साथ रहने वाले पटेलों में से करीब 31 फीसदी पटेल वोटरों ने बीजेपी का साथ छोड़ कांग्रेस का हाथ पकड़ लिया. फिर भी बीजेपी को 57 फीसदी पटेल वोटर का साथ मिला. हार्दिक पटेल के आंदोलन का असर चुनाव में दिखा भी. लेकिन, बीजेपी ने पटेलों की नाराजगी को गैर-पटेल वोटरों से साध कर काफी हद तक दूर कर लिया.

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बीजेपी ने इस बार कुल 52 पटेल उम्मीदवार को मैदान में उतारा था, जिसमें 32 चुनाव जीतने में सफल रहे. गुजरात की 182 सीटों में से 49 पटेल चुनाव जीतने में सफल रहे हैं जिनमें बीजेपी के 32 और कांग्रेस के महज 17 पटेल उम्मीदवार जीत पाए हैं.

अहमदाबाद में शुक्रवार को सीएम और डिप्टी सीएम पदों की घोषणा के बाद नितिन पटेल को मिठाई खिलाते विजय रूपाणी. साथ में केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली.

कांग्रेस की तुलना में बीजेपी के ज्यादातर पटेल उम्मीदवार के चुनाव जीतने की वजह उन इलाकों में गैर पटेल समुदाय का बीजेपी के पक्ष में लामबंद होना माना जा रहा है जहां कांग्रेस और बीजेपी के पटेल समुदाय के उम्मीदवार आमने-सामने थे. पटेल-पटेल की कांग्रेस की रट ने बीजेपी को पटेल बेल्ट में अंदरखाने खूब फायदा पहुंचा दिया. जिसका नतीजा सामने है.

बीजेपी ने इसी रणनीति के तहत विजय रूपाणी को फिर से सामने किया है. बीजेपी को लगता है कि फिर से विजय रूपाणी को ही आगे किया जाता है तो उन गैर पटेल समुदाय के लोगों को अपने पाले में मजबूती के साथ जोड़ा जा सकता है.

गुजरात में पटेल समुदाय का वोटों का प्रतिशत 15 है, जबकि ओबीसी की तादाद 51 फीसदी के आस-पास है. बीजेपी के रणनीतिकारों को लगता है कि गैर पटेल मुख्यमंत्री को बनाए रखने से ओबीसी जातियों को साधने की कोशिश की जा सकती है, जबकि आदिवासी और बाकी इलाकों में भी बीजेपी को मजबूत करने की कोशिश हो सकती है.

व्यापारी समुदाय को साधने की कोशिश

बनिया समुदाय के विजय रूपाणी को फिर से कमान सौंपकर बीजेपी ने व्यापारी समुदाय को भी एक संदेश दिया है, क्योंकि इस बार जीएसटी और नोटबंदी की मार के बावजूद नाराज बनिया समुदाय ने बीजेपी के पक्ष में ही मतदान किया. चाहे विजय रूपाणी का क्षेत्र राजकोट हो या फिर साउथ गुजरात का सूरत का इलाका बीजेपी ने कारोबारियों के इस इलाके में बेहतर प्रदर्शन किया है.

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दूसरी तरफ, बीजेपी ने नितिन पटेल को फिर से उपमुख्यमंत्री बनाकर नाराज पटेल समुदाय को भी अपने पास लाने की कोशिश की है. नितिन पटेल नॉर्थ गुजरात के मेहसाणा से फिर से चुनाव जीतने में कामयाब रहे हैं. मेहसाणा में पटेलों के आंदोलन के दौरान इन्हें काफी विरोध का सामना करना पड़ा था, लेकिन, आखिरकार नितिन पटेल ने अपनी सीट बचा ली है.

बीजेपी को लगता है कि नितिन पटेल के उपमुख्यमंत्री बनाए रखने से पटेल समुदाय में बेहतर संदेश जाएगा.

गुजरात के सौराष्ट्र इलाके से विजय रूपाणी आते हैं. इस बार बीजेपी को सौराष्ट्र इलाके में सबसे ज्यादा नुकसान उठना पड़ा है. सौराष्ट्र की 54 में से बीजेपी को 23 सीटें ही मिली हैं जो कि पिछली बार की 35 की तुलना में 12 कम है. बीजेपी को यह झटका गैर पटेल बेल्ट में मिला है. खासतौर से गिर –सोमनाथ, जूनागढ़ और देवभूमि द्वारका में मछुआरे समुदाय और कोली समुदाय ने इस बार बीजेपी का साथ छोड़ दिया है.

प्रतीकात्मक तस्वीर

बीजेपी लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर से अपने इन पुराने मतदाताओं की नाराजगी दूर करने की कोशिश करेगी, लिहाजा सौराष्ट्र से आने वाले विजय रूपाणी को ही मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी फिर से दे दी गई है.

हालांकि विजय रूपाणी के मुख्यमंत्री रहते जिस तरीके से बीजेपी का प्रदर्शन खराब रहा उसको लेकर उन्हें बदलने की भी अटकलें लगाई जा रही थीं. पटेलों को मनाने की कोशिश में पार्टी की एक लॉबी पटेल समुदाय के किसी व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाए जाने के पक्ष में थी.

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इनमें सौराष्ट्र से आने वाले पटेल नेता और केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला से लेकर मनसुख भाई मंडाविया तक का नाम सुर्खियों में था. यहां तक कि पटेल समुदाय के बीजेपी गुजरात अध्यक्ष जीतू बघानी के नाम की भी चर्चा हो रही थी. लेकिन, पार्टी ने नफा-नुकसान का आकलन कर फिर से रुपाणी पर ही दांव लगा दिया.

सहजता की वजह से 'विजयी' हुए रूपाणी

विजय रुपाणी का सुलभता से कार्यकर्ताओं से मिलना और पार्टी आलाकमान के निर्देशों के तहत काम करना भी उनकी ताजपोशी की राह में सबसे बड़ा कारण रहा है. रूपाणी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह दोनों के करीबी और भरोसेमंद हैं. लिहाजा तमाम किंतु-परंतु के बावजूद रूपाणी फिर से सब पर भारी पड़ गए.

बीजेपी ने गुजरात का मामला सुलझा लिया है लेकिन, अभी भी हिमाचल प्रदेश को लेकर पार्टी के भीतर अंदरूनी खींचतान जारी है. हिमाचल प्रदेश में बतौर मुख्यमंत्री घोषित उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल के चुनाव हार जाने के बाद बीजेपी के भीतर की कलह खुलकर सामने आ गई है.

हार के बाद हिमाचल में धूमल की धूम

प्रेम कुमार धूमल के चुनाव हारने के बाद भी उनके समर्थक उन्हें मुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग कर रहे हैं. बीजेपी के तीन विधायक उनके लिए अपनी सीट छोड़ने की बात भी कर चुके हैं. दूसरी तरफ, धूमल के धुर-विरोधी और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा के करीबी माने जाने वाले पांच बार से मंडी के सिराज से विधायक जयराम ठाकुर भी दौड़ में सबसे आगे बताए जा रहे हैं.

दरअसल, धूमल बनाम नड्डा की लड़ाई में बीजेपी आलाकमान ने दोनों को ही मुख्यमंत्री पद की रेस से बाहर कर दिया है. लेकिन, जयराम ठाकुर जे पी नड्डा के गुट के माने जाते हैं जिनके नाम पर प्रेम कुमार धूमल का गुट अबतक राजी नहीं हो पा रहा है.

बीजेपी के हिमाचल के प्रभारी मंगल पांडे और बीजेपी के दो पर्यवेक्षक निर्मला सीतारमण और नरेंद्र सिंह तोमर ने लगातार अलग-अलग बैठक भी की है, लेकिन, अबतक किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रहे हैं. लेकिन, बीजेपी सूत्रों के मुताबिक जयराम ठाकुर ही इस वक्त मुख्यमंत्री पद की रेस मे सबसे आगे चल रहे हैं. अगर ऐसा हुआ तो प्रेम कुमार धूमल के बेटे और सांसद अनुराग ठाकुर को केंद्र में कोई अहम जिम्मेदारी देकर धूमल गुट को भी साधने की कोशिश हो सकती है.

लेकिन, गृह-राज्य गुजरात में फैसला कर लेने के बावजूद पहाड़ी राज्य में फैसला लेना बीजेपी आलाकमान के लिए आसान नहीं दिख रहा है. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन के मौके पर 25 दिंसबर को विजय रूपाणी का शपथ-ग्रहण होगा लेकिन, हिमाचल में बड़ी जीत के बावजूद अबतक नायक का इंतजार ही हो रहा है.