तो किसी ने 2जी घोटाले से पैसा नहीं बनाया, किसी ने भी नियमों को नहीं तोड़ा मरोड़ा, पुराने दामों को लेकर बनी मनमर्जी वाली ‘पहले आओ, पहले पाओ’ की नीति बना कर कायदों को ही बदल देने में कोई शामिल नहीं था. और आखिरी में सीबीआई की विशेष अदालत ने इस मामले में अपने फैसले में वही कहा जो उसने जेसिका लाल मर्डर केस, आरुषि और हेमराज मर्डर केस में कहा, 'किसी ने जेसिका को नहीं मारा, किसी ने आरुषि और हेमराज को नहीं मारा और अब किसी ने भी 2जी घोटाला नहीं किया. जबकि ये ऐसा मामला है जिसने देश को सालों तक बुरी तरह झकझोर कर रख दिया था और इसने ही यूपीए सरकार के पतन की बुनियाद रखी.
निचली अदालत के इस फैसले पर चौंकना लाजिमी इसलिए भी है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के दो जजों वाली बेंच ने साढ़े पांच साल पहले 2जी घोटाले मामले पर अपने फैसले में कहा कि ए राजा ने 'राष्ट्रीय महत्व वाली संपत्ति को मामूली दामों पर देकर तकरीबन तोहफा ही दे दिया है.'
स्पेशल सीबीआई कोर्ट के 2जी घोटाले के सभी आरोपियों को बरी करने के इस फैसले से उत्साहित कांग्रेस ने अपनी ‘जीरो लॉस’ वाली बात का दोबारा समर्थन करते हुए मांग रखी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी ने इसे लेकर यूपीए के खिलाफ जो मुद्दा बनाया और जो बयानबाजी की, उसे अब खत्म किया जाना चाहिए. कांग्रेस पार्टी को लगता है कि इस फैसले से उन्हें खुद को प्रताड़ित के रूप में पेश करने का मौका मिल गया है. कांग्रेस सोचती है कि वह अब यह आरोप लगा सकती है कि उसके शासन पर आकंठ भ्रष्टाचार या सबसे अधिक भ्रष्टाचार में शामिल होने की साजिश बीजेपी ने रची.
कांग्रेस जो अपनी पीठ थपथपा रही है उसकी वजह दूसरी है. कांग्रेस चाहती है कि उसके सहयोगी तमिलनाडु की डीएमके पार्टी को ये बात समझ में आए कि उनकी मुश्किलों के लिए वो नहीं बल्कि बीजेपी जिम्मेदार है. बीजेपी की वजह से उसके टॉप लीडरशिप में शामिल ए राजा और कनिमोड़ी को तिहाड़ जेल में सींखचों के भीतर लंबे वक्त तक रहना पड़ा. राजा 15 महीने तो कनिमोड़ी साढ़े महीने जेल मे रहीं. कांग्रेस जो उत्साह दिखा रही है उसकी वजह है हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चेन्नई यात्रा के समय डीएमके नेताओं से उनकी मुलाकात.
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मोदी इस यात्रा में डीएमके के मुखिया करुणानिधि से भेंट करने उनके घर पहुंच गए. उनके इस कदम से पिछले एक दशक से बीजेपी और डीएमके के रिश्तों में चल रही दरार को पाटने में मदद मिली. मोदी का उनके परिवार के सभी सदस्यों एमके स्टालिन, कनीमोड़ी और करुणानिधि की दोनों पत्नियों ने गर्मजोशी से स्वागत किया. यह मुलाकात 2019 में होने वाले संसदीय चुनाव में नया समीकरण बना देने के क्षमता रखती थी. अपने आपको पीड़ित दिखाने के चक्कर में कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व लगता है कि मतिभ्रम का शिकार हो गया है.
इसके लिए 2 जी घोटाले के तथ्यों को समझना होगा. ये कांड यूपीए सरकार के समय 2010 में तब सामने आया जब सीएजी की एक रिपोर्ट में सरकार की टेलीकॉम कंपनियों को स्पेक्ट्रम आवंटन में मनमानी करने की बात सामने आई जिससे केंद्र सरकार के खजाने को 1.76 लाख करोड़ रुपए की चपत लगी. तत्कालीन सीएजी प्रमुख और आईएएस अफसर विनोद राय जैसे सुयोग्य अधिकारी को कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने नियुक्त किया था और इससे पहले वे वित्त मंत्रालय में सेक्रेटरी के पद पर काम कर चुके थे.
ये ध्यान देना होगा कि बीजेपी ने नहीं बल्कि कांग्रेस ने इस मामले की जांच का काम सीबीआई को सौंपा था. इस कांड को लेकर लोगों में नाराजगी थी और सुप्रीम कोर्ट इस लेकर सख्त था. ये यूपीए थी न कि बीजेपी जिसने टेलीकॉम मंत्री ए. राजा को बर्खास्त किया था. यूपीए सरकार के कार्यकाल में ए. राजा और कनीमोझी व दूसरे कई लोग जेल भेजे गए और लंबे समय तक उन्हें जमानत नहीं मिली. यूपीए सरकार के समय ही चार्जशीट तैयार हुई और सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एक के बाद अपनी तीखी प्रतिक्रिया दी.
ये ध्यान रखा जाना चाहिए कि 2जी घोटाले की चर्चा मीडिया और दूसरे सार्वजनिक मंचों पर खूब हुई जिससे राजनीतिक पारा चढ़ा और इसने लोगों का ध्यान खींचा. उस समय तक मोदी राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य में कहीं नहीं थे. उस समय बीजेपी को लेकर कहा गया कि वह खुद से कुछ नहीं कर रही है बल्कि जो कुछ सीएजी रिपोर्ट में कहा गया है और इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में जो कहा गया है उसे ही लेकर ही चल रही है.
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बीजेपी अपनी डयूटी में फेल हो जाती अगर वह इस मसले को नहीं उठाती. बड़ा सवाल ये है कि आज का फैसला और कांग्रेस का सबकुछ सही होने का दावा है- तो अगर कोई घोटाला नहीं हुआ और किसी की गलती नहीं है तो फिर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में वो 122 लाइसेंस रद्द क्यों किए जिन्हें सरकार ने जारी किया था?
याद करें जब सुप्रीम कोर्ट ने 2 फरवरी 2012 को कहा था कि स्पेक्ट्रम का आवंटन अवैध है और इसलिए 122 लाइसेंस रद्द किए जाते हैं. अदालत ने कहा कि ए राजा के टेलीकॉम मंत्रालय ने जो उनके कहने पर जो प्रकिया अपनाई वो, 'पूरी तरह मनमानी, सनकभरी और सार्वजनिक हित के विरुद्ध है और ये समानता के सिद्धांत का उल्लंघन करते हुए लोगों के पैसे की कीमत पर कुछ कंपनियों के हित में है.' सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मामले में ट्राई को भी आड़े हाथ लेते हुए कहा कि उसकी अनुशंसाओं के चलते ए राजा ने 'राष्ट्रीय महत्व वाली संपत्ति को मामूली दामों पर देकर तकरीबन तोहफा ही दे दिया है.'
जस्टिस जीएस सिंघवी और एके गांगुली की पीठ ने ये भी कहा कि स्पेक्ट्रम प्राकृतिक संसाधन है और ये संसाधन 'भारत के लोगों की तरफ से सरकार में निहित हैं' और ये सरकार का कर्तव्य है कि वह राष्ट्रीय हित की सुरक्षा करे. 'प्राकृतिक संसाधनों को हमेशा देश के हित में ही प्रयोग किया जाना चाहिए न कि निजी हित में.'
ये ध्यान दिया जाना चाहिए कि पहले आओ-पहले पाओ के सिद्धांत में बुनियादी कमी ये है कि इसमें 'पूरी तरह से चांस या संयोग का तत्व शामिल है. ऐसे मामलों में जहां ठेके दिए जाते हैं या लाइसेंसों का आवंटन होता है या फिर सार्वजनिक संपत्ति के प्रयोग की अनुमति होती है तो ऐसे में पहले आओ-पहले पाओ की बात को लागू करना खतरनाक निहितार्थों से भरा होता है.'
जैसा की अरुण जेटली ने संकेत दिया है कि मोदी सरकार इस मामले में हाईकोर्ट में अपील करेगी. उन्होंने कहा, 'मैं निश्चिंत हूं कि जांच एजेसियां और अभियोजन पक्ष इस मामले को देखता और इस बात पर फैसला करेगा कि इसमें आगे क्या करना है.' कांग्रेस को इसे क्लीन चिट सर्टिफिेकेट के जैसा नहीं देखना चाहिए.
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वापस राजनीतिक उलझनों को देखते हैं कि ये किस तरह से केंद्र की राजनीति और राजनीतिक गठबंधनों पर असर डालेगा. हालांकि डीएमके आन रिकार्ड ये कह चुकी है कि वह कांग्रेस के साथ गठबंधन बनाए रखेगी लेकिन तथ्य ये है कि राजा और कनीमोझी के खिलाफ जो आरोप तय किए गए वो यूपीए के सत्तानशीं होने के समय तय हुए थे और वे इससे तब छूटे जब बीजेपी सत्ता में थी. इस समीकरण से अगर जरूरत हुई तो तमिलनाडु की ये पार्टी 2019 में मोदी और बीजेपी के प्रति नरम रवैया, अख्तियार कर सकती है.
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