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दिल्ली को लेकर कांग्रेस के दिल में क्या है ? माकन मजबूरी हैं या बलि का बकरा ?

पार्टी छोड़कर जाने वालों की शिकायत है कि माकन ने पार्टी में वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी कर कब्जा जमा लिया है

Kinshuk Praval

एक वक्त था कि दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री दिल्ली में कांग्रेस का विकास का चेहरा हुआ करती थीं. शीला दीक्षित का ही जादू था कि तकरीबन डेढ़ दशक तक उन्होंने दिल्ली की कमान संभाली.

यहां तक कि यूपी चुनाव के लिए भी उन्हें ही शुरुआत में चेहरा बनाया गया. लेकिन वक्त ऐसा बदला कि अपनी ही दिल्ली में बहादुर शाह ज़फर की तरह शीला दीक्षित खुद को बेगाना महसूस कर रही हैं. नए अध्यक्ष अजय माकन के शीला विरोध का ही नतीजा रहा कि दिल्ली के स्टार प्रचारकों में भी इस स्टार को जगह नहीं मिली. शीला समर्थकों के टिकट भी जमकर काटे गए.


अरविंदर सिंह लवली का कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल होना कांग्रेस आलाकमान के लिए बड़ा संदेश था. अरविंद सिंह लवली पार्टी के फैसलों में अपनी अनदेखी के चलते नाराज थे.

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जाहिर तौर पर उन्होंने अपनी व्यथा ऊपर तक पहुंचाने की कोशिश की होगी. लेकिन जब उन्हें भी आलाकमान से कोई जवाब नहीं मिला तब पार्टी छोड़ कर बीजेपी ज्वाइन करने के अलावा दूसरा चारा भी नहीं था.

अमित मलिक, अमरीश गौतम ने भी टिकट बंटवारे पर बगावत करते हुए बीजेपी का दामन थाम लिया. तो संदीप दीक्षित, एके वालिया, परवेज हाशमी और हारुन यूसुफ जैसे कांग्रेस के बड़े नेताओं की नाराजगी भी जगजाहिर है.

यूपी चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद से कांग्रेस के नेताओं का पार्टी छोड़ कर बीजेपी में जाने का सिलसिला सा चल निकला है. पार्टी छोड़कर जाने वालों की शिकायत है कि माकन ने पार्टी में वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी कर कब्जा जमा लिया है. लेकिन तमाम आरोपों के बावजूद माकन बार बार दोहरा रहे हैं कि वो पार्टी में सबको साथ लेकर चल रहे हैं.

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विडंबना ये है कि कांग्रेस अपनी पुरानी खोई जमीन हासिल करने के लिए उन इमारतों को खंडहर समझ रही है जो कभी उसकी पहचान हुआ करती थीं.

देशभर में हाल में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की अपने फैसलों की वजह से दुर्गति हुई है. ऐसे में दिल्ली के दंगल में उसका दांव भी उल्टा पड़ सकता है.

कांग्रेस आलाकमान की चुप्पी शायद अंजाम तक खामोशी अख्तियार करने की रणनीति अपनाए हुए है. ताकि अगर एमसीडी चुनाव भी हाथ से निकल जाएं तो सारा ठीकरा अजय माकन पर फोड़ा जा सके. अगर किसी तरह ‘अच्छे दिन’ आ गए तो पंजाब का हवाला देते हुए ये कहा जा सके कि कांग्रेस वापसी की शुरुआत कर चुकी है.

दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय माकन कांग्रेस आलाकमान की मजबूरी बेहद संजीदगी से समझते हैं. वो ये जानते हैं कि एमसीडी चुनाव में पिछले दस साल के इतिहास को देखते हुए कांग्रेस एक बार फिर राहुल को दांव पर नहीं लगाएगी.

बची खुची जमीन बचाने की कवायद में कांग्रेस

वो ये भी जानते हैं कि हाल के विधानसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस दिल्ली में कुछ नया वादा या दावा करने की हालत में नहीं है. साथ ही माकन ये भी जानते हैं कि उनके पास खोने को अब कुछ नहीं है और अगर जीत उनके हिस्से में आ गई तो वो दिल्ली में कांग्रेस के लिए तुरुप का इक्का बन जाएंगे.

आलाकमान ने भी चुप्पी अपना कर एक तरह से उन्हें दिल्ली का स्वतंत्र प्रभार दे रखा है और पार्टी छोड़कर जाने वाले पुराने वफादारों को लेकर उनसे कोई सवाल नहीं हो रहा है.

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एक तरफ माकन को लेकर कांग्रेस की मजबूरी साफ दिखाई दे रही है तो वहीं माकन का अतिउत्साह उनके भविष्य पर मंडराते सवालिया निशान की तरह नजर आ रहा है. लेकिन फिलहाल कांग्रेस अपनी खोई जमीन वापस हासिल करने की नहीं बल्कि बची खुची जमीन बचाने की कवायद में ज्यादा नजर आ रही है.