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मध्य प्रदेश उपचुनाव: किसानों के गुस्से और सिंधिया की हुंकार से रक्षात्मक हुई बीजेपी

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले कोलारस और मुंगावली उपचुनाव राज्य की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी और विपक्ष कांग्रेस के लिए लिटमस टेस्ट जैसा होगा

Debobrat Ghose

मध्य प्रदेश के कोलारस और मुंगावली उपचुनाव के लिए प्रचार अभियान गुरुवार को खत्म हो गया. इससे पहले चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस और बीजेपी के बीच बयानों, रैलियों, रोड शो के रूप में कांटे का मुकाबला देखने को मिला. दोनों पार्टियों ने एक-दूसरे पर जमकर हमले किए.

अब सिर्फ घर-घर जाकर प्रचार अभियान चलाने का काम होगा. चुनाव 24 फरवरी को है और नतीजों का ऐलान 28 फरवरी को होगा. सुबह से ही दोनों पार्टियों के दिग्गज वोटरों को अपने पक्ष में लुभाने की हरमुमकिन कोशिश में जुटे रहे. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और मंत्रियों की उनकी फौज ने जहां कोलारस में रैली को संबोधित किया, वहीं कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, कांतिलाल भूरिया, अजय सिंह 'राहुल', अरुण यादव आदि ने कांग्रेस के पक्ष में जोरदार ढंग से अपनी बात रखी.


कोलारस और मुंगावली- दोनों विधानसभी सीटें गुना लोकसभा क्षेत्र के तहत आती हैं. कांग्रेस के राम सिंह यादव (कोलारस) और महेंद्र सिंह कालूखेड़ा (मुंगावली) की मौत के कारण ये दोनों सीटें खाली हुई थीं. बीजेपी ने रणनीति के तहत कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे स्वर्गीय माधव राव सिंधिया के बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ उनकी बुआ और चौहान की कैबिनेट में वरिष्ठ मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया को प्रचार की कमान सौंपी है. इस उपचुनाव में कांग्रेस के प्रचार की अगुवाई ज्योतिरादित्य सिंधिया कर रहे हैं.

शिवराज सिंह चौहान के लिए बड़ी चुनौती

कोलारस और मुंगावली उपचुनाव ने मुख्यमंत्री के लिए अहम चुनौती पेश की है. बीजेपी सरकार के लिए किसानों की दिक्कत परेशानी की वजह बन सकती है. शोर-शराबे के साथ पेश की गई 'भावांतर योजना' किसानों के लिए कारगर होने में नाकाम रही है. किसानों की क्षतिपूर्ति के मकसद से यह सरकारी योजना पेश की गई थी.

कोलारस के किसान भूपेश सिंह का कहना था, 'यह महज लोगों का ध्यान खींचने की कवायद है. भावांतर योजना के तहत हमें जो पेशकश की जा रही है, वह वास्तविक न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम है. मंदसौर और अन्य जगहों पर किसान आंदोलन के बावजूद हमें अब तक उचित कीमत नहीं मिली है. किसानों को अपना उत्पाद बेचने के लिए मंडियों में माल से लदे ट्रैक्टर के साथ कई दिनों तक इंतजार करना पड़ता है. किसानों में काफी नाराजगी है. बिजली की आपूर्ति भी अनियमित है, जिससे हालात बद से बदतर हो रहे हैं.'

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बीजेपी का 2003 का चुनावी मुद्दा-बिजली, सड़क और पानी भी मतदाताओं को प्रभावित करने में नाकाम रहा है. इसी चुनावी मुद्दे के जरिये बीजेपी ने राज्य में कांग्रेस का सफाया कर दिया था.

नवंबर 2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद चौहान ने इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में अच्छा काम किया. ग्रामीण सड़कों समेत हाइवे और तमाम अन्य सड़कों का कायाकल्प हो गया. हालांकि, पिछले कुछ साल में हालात खराब हुए हैं. साल 2010 में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से गुना तक सड़क मार्ग के जरिये यात्रा में साढ़े चार घंटे लगते थे, जबकि अब सड़कों की खराब हालत के कारण इतनी दूरी तय करने में छह घंटे से भी ज्यादा लगते हैं. बीजेपी के अंदर भी तनाव को महसूस किया जा सकता है. नतीजतन, चौहान ने हर दूसरे दिन चुनाव प्रचार किया, जबकि पार्टी का पूरा सांगठनिक कुनबा इस चुनावी लड़ाई में कोलारस और मुंगावली पहुंच गया.

मध्य प्रदेश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े एक पदाधिकारी ने नाम जाहिर नहीं किए जाने की शर्त पर फ़र्स्टपोस्ट को बताया, 'बीजेपी ने राज्य के लिए काफी कुछ किया है, लेकिन फिलहाल किसानों में काफी असंतोष है. शीर्ष नेतृत्व और जनता के बीच जुड़ाव खत्म हो गया है. इस खालीपन के कारण नौकरशाही हावी हो गई है. ये अफसर मुख्यमंत्री द्वारा किए गए कई वादों को पूरा करने में नाकाम रहे हैं. बीजेपी के जमीनी कार्यकर्ता भी नाराज हैं और वे दूरी बनाए हुए हैं. सिस्टम में अहंकार की घुसपैठ हो गई है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है. इसका उपचुनावों पर बुरा असर होगा.'

कांग्रेस के लिए उम्मीद

2003 से लगातार चुनावी हार का सामना करने के बाद, कांग्रेस ने 2017 में दो उपचुनाव जीता- अटेर और चित्रकूट विधानसभा सीट. अब वह आत्मविश्वास से लबरेज है. सार्वजनिक सभाओं में पार्टी के नेता बयानों को लेकर काफी आक्रामक दिख रहे हैं.

मध्य प्रदेश के सभी बड़े कांग्रेसी नेताओं ने एकजुटता का नमूना पेश करते हुए खुद को आक्रामक प्रचार अभियान में झोंक दिया. गुजरात में पार्टी के प्रदर्शन और राजस्थान उपचुनाव में उसकी हालिया जीत से कांग्रेस का भरोसा बढ़ा है.

कांग्रेस महासचिव और मध्य प्रदेश के पार्टी प्रभारी दीपक बरबरिया ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया, 'कांग्रेस उपचुनाव की दोनों सीटों पर शानदार बहुमत के साथ जीत हासिल करेगी. लोग शिवराज सिंह सरकार से दुखी हैं. किसान भी नाराज हैं, क्योंकि उनकी उपेक्षा हुई है.'

गुना से लोकसभा सांसद और कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए दोनों उपचुनाव प्रतिष्ठा का विषय बन गए हैं, क्योंकि कोलारस और मुंगावली विधानसभा सीटें उनके लोकसभा क्षेत्र में पड़ती हैं. जमीन पर उनकी मौजूदगी सक्रियता से महसूस की गई. मुंगावली और कोलारस में कांग्रेस के अन्य दिग्गज नेताओं के अलावा उन्होंने भी कई रोडशो और सभाएं कीं. बरबरिया की तरह सिंधिया को भी इस बार कांग्रेस की जीत का भरोसा है. और उनके पास इस भरोसे की वजहें भी हैं.

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सिंधिया ने रोडशो के दौरान कहा, 'पिछले 14 साल में शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने कोलारस और मुंगावली में विकास का एक भी काम नहीं किया है. सड़कें, बिजली, स्कूली शिक्षा और स्वास्थ्य की बुरी हालत है. मुख्यमंत्री ने किसानों से लंबे-चौड़े वादे किए, लेकिन जमीन पर कुछ भी ठोस नहीं हुआ.'

इस टिप्पणी से कांग्रेस को हुआ फायदा

इसके अलावा, यशोधरा राजे सिंधिया की एक विवादित टिप्पणी बीजेपी के लिए नुकसानदेह, लेकिन कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित हुई है. शिवपुरी जिले के कोलारस में बीते 18 फरवरी को अपनी मां और बीजेपी की दिग्गज नेता रहीं स्वर्गीय राजमाता विजयाराजे सिंधिया की विरासत का हवाला देते हुए यशोधरा राजे सिंधिया ने कहा, 'चूल्हे की योजना क्यों नहीं आई आपके पास? ये कमल की योजना है. आप पंजे को वोट दोगे, तो आपके पास आएगी नहीं. सीधी बात (एलपीजी कनेक्शन आपको क्यों नहीं मिला? क्योंकि यह बीजेपी की स्कीम है. अगर आप पंजे के लिए वोट करते हैं (कांग्रेस का चुनाव चिन्ह), तो आपको फायदा नहीं मिलेगा. सीधा और सरल बात है).'

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प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत केंद्र सरकार का इरादा देशभर में गरीबी रेखना से नीचे रहने वाले लोगों को एलपीजी कनेक्शन मुहैया कराना है. यह विवादास्पद बयान जहां सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, वहीं इसने कांग्रेस पार्टी को भी एक हथियार दे दिया. नेताओं ने इस बारे में चुनाव आयोग से शिकायत की और मतदाताओं के सामने इसका आक्रामक तरीके से विरोध करते हुए उन्हें यह समझाने की कोशिश की कि यह गरीबों के प्रति बीजेपी का 'प्रतिशोधी रवैया' है.

कौन जीतेगा?

इस साल के आखिर में होने वाले मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले कोलारस और मुंगावली उपचुनाव राज्य की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी और विपक्ष कांग्रेस के लिए लिटमस टेस्ट जैसा होगा. चौहान को मुख्यमंत्री के तौर पर अपनी काबिलियत साबित करनी है.फिलहाल, 28 फरवरी तक इंतजार कीजिए.