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क्या मोदी बनाम सिद्धारमैया बनता जा रहा है कर्नाटक चुनाव?

दिल्ली और बिहार के बाद ये पहली बार है कि बीजेपी को इतना कड़ा मुकाबला मिल रहा है. वैसे भी कांग्रेस का चेहरा सिद्धरमैया सिर्फ स्थानीय नेता नहीं है. राष्ट्रीय स्तर पर भी उनकी पहचान है

Aparna Dwivedi

कर्नाटक चुनाव में राहुल गांधी ने अच्छी सरकार का मंत्र देते हुए घूम रहे हैं. जो कहते हैं वो करते हैं और सबके लिए करते हैं. राहुल गांधी इस मंत्र के पीछे कर्नाटक मॉडल की बात करते हैं, अच्छी सरकार चलाने के लिए एक ही मॉडल है वो है कर्नाटक मॉडल, जिसमें हर वर्ग के लिए काम किया जाता है. ये गुजरात मॉडल के मुकाबले में खड़ा किया गया है. और इस मॉडल के जनक हैं कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया.

और राहुल गांधी का यही मंत्र बीजेपी के लिए भारी होता जा रहा है. यही वजह है कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी और कमल के नाम पर बीजेपी कार्यकर्ताओं से वोट मांगने का निर्देश दिया है. यानी सिद्धरमैया का मुकाबला प्रधानमंत्री मोदी के नाम से है, हालांकि बीजेपी के सीएम उम्मीदवार येदियुरप्पा से है लेकिन वोट मोदी के नाम पर मांगे जा रहे हैं.


कांग्रेस के लिए क्यों जरूरी है कर्नाटक चुनाव

कर्नाटक का चुनाव कांग्रेस और बीजेपी दोनो के लिए महत्वपूर्ण है. कांग्रेस के लिए ये चुनाव जीवन और मौत की लड़ाई जैसा है. एक ये पहला बड़ा चुनाव है जो राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद लड़ा जाएगा. दूसरा यहां पर कांग्रेस की सरकार है.

अगर ये राज्य कांग्रेस हारती है तो पंजाब अकेला बड़ा राज्य होगा जहां पर कांग्रेस की सरकार है. तीसरा अगर कांग्रेस कर्नाटक को बचाने में कामयाब होती है, तो कांग्रेस के इसका सीधा फायदा साल के अंत में होने वाले चार राज्यों के चुनाव में मिलेगा जहां पर बीजेपी की सरकार है.

साल 2018 के अंत में तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. ये राज्य हैं मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान. चौथा कर्नाटक की जीत के बाद राहुल गांधी को साल 2019 में लोकसभा चुनाव में विपक्षी नेता के तौर पर देखा जाएगा जो कि प्रधानमंत्री मोदी को टक्कर दे सकते हैं. साथ ही कर्नाटक में लोकसभा 28 सीटें हैं जहां पर कांग्रेस को फायदा मिल सकता है.

बीजेपी के लिए भी मायने रखता है कर्नाटक चुनाव

वहीं दूसरी तरफ बीजेपी के लिए कर्नाटक चुनाव में जीतने का मतलब कांग्रेस मुक्त दक्षिण भारत की पहली सीढ़ी पर कदम रखने जैसा है. कांग्रेस से पहले यहां पर बीजेपी की सरकार थी. बीजेपी का जमीनी स्तर पर खासा नेटवर्क है. लेकिन बीजेपी के लिए भी ये आसान लड़ाई नहीं है.

इसकी एक वजह यहां के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया हैं. कभी लगातार सोने वाले मुख्यमंत्री के रूप में जाने वाले सिद्धारमैया का जागना कांग्रेस के लिए उम्मीद की किरण बन गया है वहीं बीजेपी के लिए समस्या बन रहे हैं. सिद्धारमैया का काम करने का तरीका वैसे तो काफी कुछ प्रधानमंत्री मोदी जैसा ही है.

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सिद्धारमैया अपने साफ सुथरे छवि के लिए भी जाने जाते हैं. सीधे सीधे बोलना और अपनी बात को रखने की कला में माहिर हैं. साथ ही बीजेपी के स्थानीय नेताओं से लेकर राष्ट्रीय नेताओं को गरियाने में पीछे नहीं हटते.

सिद्धरमैया ने राषट्रीय नीतियों से लेकर हिन्दुत्व पर प्रधानमंत्री मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी पर हमला जारी रखा. कर्नाटक की आन बान शान को बनाए रखने के लिए उन्होंने राज्य के झंडे की मांग को बाकयदा आगे बढ़ाया. हिन्दी का विरोध और कावेरी जल विवाद में खुल कर कर्नाटक के पक्ष में कानूनी और सरकारी लड़ाई जारी रखी. 'कन्नड़ स्वाभिमान' का नारा देने वाले सिद्धरमैया अपने राज्य में काफी लोकप्रिय भी हैं.

बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार येदुरप्पा पर 2011 में खनन घोटाले में भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. सिद्धरमैया 2013 में इसे बाकयदा मुद्दा बना कर बीजेपी को हराया था.

कर्नाटक मॉडल

2013 के चुनाव जीतने के बाद भी सिद्धरमैया चैन से नहीं बैठे. उन्होंने काफी लोकलुभावन नीतियां लागू की. इनमें गरीबों को मुफ्त चावल और दूध की आपूर्ति, अल्पसंख्यक समुदायों की महिलाओं को नकदी का भुगतान और अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए लैपटॉप की व्यवस्था जैसी योजनाएं शामिल हैं.

साथ ही उन्होंने बेंगलुरु में सब्सिडी वाले भोजन की आपूर्ति के लिए इंदिरा कैंटीन भी स्थापित किया है और इस योजना को राज्य के अन्य इलाकों में भी लागू किया जा रहा है. गरीबों को मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करने के लिए एक योजना भी तैयार की जा रही है. सिद्धरमैया के कामकाज से उनके पड़ोसी राज्य भी काफी प्रभावित हुए थे और उन्होंने कर्नाटक की काफी नीतियों को अपने राज्य में भी लागू किया है.

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हाल में बजट के ज़रिए उन्होंने केंद्र सरकार के लोक-लुभावन नीतियों का मुकाबला किया और भविष्य में राज्य और केंद्रीय स्तर पर कांग्रेस की नीतियों की तरफ भी इशारा किया. स्वास्थ्य के क्षेत्र में बीमा कवरेज और निःशुल्क एलपीजी गैस कनेक्शन के साथ-साथ बिना सिंचाई सुविधा वाले क्षेत्रों में खेती करने वाले किसानों की परेशानियों को दूर करने के लिए कई घोषणाएं की गई हैं.

कर्नाटक राज्य सरकार ने किसानों के लिए बजट में खास प्रावधान रखे. इससे राज्य में करीब 70 लाख किसानों को फायदा होगा. लेकिन कांग्रेस की नजरें सिर्फ़ कर्नाटक में बसे किसानों पर ही नहीं है बल्कि इसके ज़रिए तीन बड़े राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान और छतीसगढ़ में आने वाले चुनाव पर भी हैं, जहां किसानों की नाराज़गी खुल कर सामने आई है.

लिंगायत का मुद्दा

लिंगायत समुदाय को अलग धर्म की मान्यता देने की मांग पर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खुलकर समर्थन किया था. कर्नाटक की आबादी में 18 फीसदी लिंगायत समुदाय के लोग हैं. माना जाता है कि ये सिद्धरमैया का मास्टर स्ट्रोक है.

पड़ोसी राज्यों महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी लिंगायतों की अच्छी खासी आबादी है. अच्छी खासी आबादी और आर्थिक रूप से ठीकठाक होने की वजह से कर्नाटक की राजनीति पर इनका प्रभावी असर है. बीजेपी फिर से लिंगायत समाज में गहरी पैठ रखने वाले येदियुरप्पा को सीएम उम्मीदवार के रूप में आगे रख रही है.

फोटो रॉयटर से

सोशल मीडिया पर भी गहरी पकड़

मोदी की तरह सिद्धरमैया की पकड़ सोशल मीडिया पर भी जबरदस्त है.प्रधानमंत्री मोदी की कर्नाटक में चार फरवरी में यात्रा पर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने उनके स्वागत में ट्वीट किया.

दिल्ली और बिहार के बाद ये पहली बार है कि बीजेपी को इतना कड़ा मुकाबला मिल रहा है. वैसे भी कांग्रेस का चेहरा सिद्धरमैया सिर्फ स्थानीय नेता नहीं है. राष्ट्रीय स्तर पर भी उनकी पहचान है. कांग्रेस से पहले वो पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा के साथ काम करते थे. उनके साथ मतभेद होने के बाद उन्होंने अपनी पार्टी बनाई और बाद में वो कांग्रेस में शामिल हुए.

अपनी शर्तों पर काम करने वाले मुख्यमंत्री को कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने प्रचार की डोर पकड़ा दी है. जबकि गुजरात में चुनाव प्रचार के सारे फैसले राहुल गांधी लेते थे. लेकिन कर्नाटक में सिद्धरमैया स्थानीय और राष्ट्रीय मुद्दों पर बीजेपी को घेरने में लगे हैं. कांग्रेस का मानना है कि सिद्धारमैया के जरिए वो बीजेपी के विजय रथ पर रोक लगा पाएंगे.

एंटी इंकम्बेंसी बड़ा फैक्टर

हालांकि कांग्रेस इस बार काफी उत्साहित तो है, लेकिन डरी भी है. उसका एक कारण कर्नाटक में सत्ता बदलने की परंपरा है. गौरतलब बात है कि 1994 के बाद से कर्नाटक में कोई भी सरकार दूसरी बार सत्ता में नहीं आई है. साथ ही जमीनी स्तर पर कांग्रेस बहुत मजबूत नहीं है.

साथ ही बीजेपी कर्नाटक के इतिहास को भी अपने लिए फायदे के रूप में देख रही है. बीजेपी के पास राष्ट्रीय सेवक संघ का मजबूत और अनुशासित नेटवर्क है जिसे बीजेपी बाकयदा भुनाने में लगी है. बीजेपी का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी वोट खींचने वाले नेता है और उनके नाम पर लोग बीजेपी को वोट देंगे.

बीजेपी प्रधानमत्री मोदी की रैलियों का इंतजार कर रही है. इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी कर्नाटक में राष्ट्रीय स्तर पर कई योजनाओं का ऐलान कर रहे हैं. बीजेपी इसे कर्नाटक मॉडल की काट के रूप में देख रही है. कर्नाटक चुनाव में तीसरा पहलू भी है और वो है पूर्व प्रधानमंत्री एड डी देवेगौड़ा की पार्टी जनता दल (सेक्यूलर) जिसने मायावती और शरद पवार से गठजोड़ की है. ये गठजोड़ बीजेपी और कांग्रेस दोनो के वोट बैंक पर सेंध मारने की तैयारी में है.

चुनावी इतिहास

वैसे कर्नाटक की जनता ने कांग्रेस, बीजेपी और जेडी(एस) तीनो का मौका दियाहै. खनन घोटाले में फंसे येदुरप्पा ने 2013 में बीजेपी छोड़ कर अपनी पार्टी बनाई. 2013 में कांग्रेस को 224 विधानसभा सीटों में से 122 पर विजय मिली थी और वोट प्रतिशत 36.59% था. वहीं बीजेपी को 40 सीटें मिली और उसका वोट प्रतिशत 19.89% था.

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वहीं देवेगौड़ा की पार्टी जनता दल सेक्यूलर को 40 सीटें मिली और उनका वोट प्रतिशत 20.19% था. येदुरप्पा की पार्टी को छह सीटे मिली और उनका वोट प्रतिशत 09.79% था. बाकी 16सीटे छोटी पार्टियों और निर्दलियों ने जीती थी. 2014 में मोदी लहर के बाद येदुरप्पा वापस बीजेपी में शामिल हो गए और शिमोगा संसदीय सीट से जीत कर सांसद भी बने.

साल 2014 में कर्नाटक में जब तीन विधानसभा सीटों पर उप चुनाव हुए तो उसमें से कांग्रेस ने दो और बीजेपी ने एक सीट पर जीत हासिल की. बीजेपी ने दो सीटों पर हार पर मंथन किया. 2016 में जब तीन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए तो कांग्रेस को एक और बीजेपी को दो सीटें मिली. कांग्रेस की हार का एक कारण अंदरूनी लड़ाई भी कहा गया.

कांग्रेस के बड़े चेहरे एस एम कृष्णा और कुमार बंगरप्पा बीजेपी में चले गए. साथ ही जनता दल सेक्यूलर ने कांग्रेस के वोट पर सेंध मारी. 2017 में दो सीटों पर उपचुनाव में कांग्रेस ने जेडीएस ने अनौपचारिक गठबंधन किया- नतीजा जेडीएस ने इन दोनो सीटों पर अपने उम्मीदवार नहीं उतारे और दोनो सीटें कांग्रेस के पक्ष में गई.

यही वजह है कि बीजेपी की कोशिश है कि कांग्रेस और जेडीएस में कोई गठजोड़ नहीं हो पाए. हालांकि नतीजा क्या होगा ये तो समय बताएगा लेकिन राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार कर्नाटक का चुनाव किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा. ऐसे में देवेगौड़ा के गठजोड़ महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.