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गुजरात चुनाव 2017: कांग्रेस को कितना फायदा पहुंचाएगा अल्पेश का साथ

अल्पेश ठाकोर के जुड़ने से कांग्रेस को उम्मीद की किरण दिख रही है

Vivek Anand

हर गुजरते दिन के साथ गुजरात की चुनावी जंग दिलचस्प मोड़ ले रही है. गुजरात की धरती पर आकर राजनीति जैसा रूखा सब्जेक्ट भी फिल्मी कहानी जैसा मसालेदार बन गया है. इस कहानी में प्रधानमंत्री मोदी और कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी जैसे लीड कैरेटेक्टर तो हैं ही साथ ही मजबूत किरदार वाले कलाकारों की भरमार है. और तो और कुछ के गेस्ट अपीयरेंस इतने दमदार हैं कि लगता है कि कहानी के अंत में आकर कहीं यही बाजी न मार ले जाएं. चुनावी तारीख के सस्पेंस ने दर्शक रूपी देश के अच्छे खासे प्रबुद्धजनों के दिमाग की बत्ती गुल कर रखी है.

इस कहानी के लीड कैरेक्टर्स के बारे में बोलना सूरज को दीया दिखाने जैसा होगा. हालत तो ये हैं कि हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर जैसे गेस्ट अपीयरेंस वाले किरदारों के बारे में कुछ कयास लगाना मुश्किल लग रहा है. सबका दावा तो यही है कि इस कहानी के नवाजुद्दीन सिद्दीकी बनकर छोटे रोल में बड़ा कमाल तो वही करने वाले हैं. बस चुनावी नतीजों के ऐलान के साथ इस कहानी के क्लाइमेक्स खत्म होने का इंतजार है.


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गेस्ट अपीयरंस वाले एक ऐसे ही किरदार हैं गुजरात के ओबीसी और दलितों की आवाज बुलंद करने वाले अल्पेश ठाकोर. अल्पेश ठाकोर भारी तामझाम के साथ कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं. और आते ही ऐलान भी कर चुके हैं कि कोई उन्हें हल्के में न ले. वो अपना पूरा दम लगाकर कांग्रेस को 182 में से 125 सीटें तो दिलवा ही देंगे.

जनसभा को संबोधित करते अल्पेश ठाकोर

गुजरात की राजनीति में एक अहम चेहरा बना दिए गए अल्पेश ठाकोर को 2015 से पहले कोई जानता भी नहीं था. 2015 में गुजरात के पाटीदार समुदाय के लोगों ने आरक्षण की मांग को लेकर उग्र आंदोलन चलाया. राज्य की बीजेपी सरकार के खिलाफ चलाए इस आंदोलन के दौरान हार्दिक पटेल चर्चा में आए और इसी बीच अल्पेश ठाकोर का नाम भी उभरा.

अल्पेश ठाकोर ने पाटीदार समुदाय के आरक्षण की मांग के खिलाफ आवाज उठाई. उन्होंने पहले से आरक्षण का फायदा ले रहे ओबीसी और दलित समुदायों को एकजुट किया. आरक्षण की गाड़ी में पहले से ठसाठस भरे ओबीसी और दलितों को वो ये समझाने में लगे थे कि अगर पाटीदारों ने इस गाड़ी में पैर रखा तो उनके लिए सांस लेना मुश्किल हो जाएगा.

पाटीदारों के आरक्षण की मांग को मान लिए जाने की स्थिति में इसका सीधा असर पहले से आरक्षण का फायदा उठा रहे ओबीसी और दलित जातियों पर पड़ता. इसलिए उनके आरक्षण की मांग का विरोध करने के लिए अल्पेश ठाकोर ने जनवरी 2016 में ओबीसी, शेड्यूल्ड कास्ट और शेड्यूल्ड ट्राइब्स को मिलाकर ओएसएस एकता मंच बनाया.

अल्पेश ठाकोर का ये अपने तरह का नया प्रयोग था. गुजरात में ओबीसी समुदाय की कुल आबादी में 40 फीसदी की हिस्सेदारी है. इसमें ठाकोर समुदाय 20 से 22 फीसदी के करीब है. राज्य की कुल आबादी में 13 फीसदी दलित समुदाय से आते हैं. इस लिहाज से देखें तो ओबीसी और दलितों का गठजोड़ मजबूत वोटबैंक बन जाता है. इसी दम पर अल्पेश ठाकोर बड़े दावे कर रहे हैं. लेकिन ऐसे गठजोड़ पर उनके असर को लेकर संदेह जाहिर किया जा सकता है.

2015 से चर्चा में आए अल्पेश ठाकोर के बारे में कहा जाता है कि वो गुजरात में एक दशक पहले से सोशल एक्टिविस्ट के तौर पर काम कर रहे थे. अल्पेश ने गुजरात के ठाकोर समुदाय को शराब के दुष्प्रभावों को लेकर जागरुक करने का काम किया. गुजरात के ओबीसी जातियों में आने वाला ठाकोर समुदाय राज्य की आबादी में 20-22 फीसदी का अच्छा खासा प्रतिनिधित्व रखता है.

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अल्पेश के पिता खोदाभाई ठाकोर कांग्रेस के नेता रह चुके हैं. अल्पेश ने ठाकोर समुदाय में जागरुकता फैलाने के लिए गुजरात क्षत्रिय ठाकोर सेना ( जीकेटीएस ) बनाई थी. दावा किया जाता है कि गुजरात के करीब 9 हजार गांवों में जीकेटीएस की पहुंच है. इस सामाजिक आधार के बूते अल्पेश ने कम वक्त की राजनीति में ऊंची छलांग लगाई है.

पाटीदार आंदोलन की तस्वीर

अल्पेश ठाकोर दावा करते हैं कि जीकेटीएस और पाटीदार आंदोलन के विरोध में बनाई गई ओएसएस मंच को मिलाकर गुजरात के 182 विधानसभा सीटों में 138 पर उनकी मजबूत पकड़ है. पिछले दिनों उन्होंने कहा था कि उनके दोनों ऑर्गेनाइजेशन के करीब 35 से 40 लाख सदस्य हैं. उनका दावा कि इस सदस्य संख्या के बूते वो राज्य के 78 फीसटी वोट बैंक को प्रभावित करने की ताकत रखते हैं.

हालांकि कुछ राजनीतिक विश्लेषकों की राय में ठाकोर के ऑर्गेनाइजेशन का सिर्फ सेंट्रल और नॉर्थ गुजरात के कुछ जिलों में असर है. पिछले दिनों अल्पेश ठाकोर ने गुजरात के सौराष्ट्र में 500 किलोमीटर की संकल्प यात्रा की थी. इस यात्रा के बाद उनका दावा था कि इन इलाकों में भी वो लोगों को अपनी ओर खींचने करने में कामयाब रहे. इसी बढ़ते जनाधार ने उन्हें राजनीति में आने को प्रेरित किया.

अल्पेश ठाकोर ने शायद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से प्रेरणा लेकर सोशल एक्टिविस्ट से राजनेता बनने के रास्ते पर निकले. इसके लिए उन्होंने केजरीवाल के तौर तरीकों का ही इस्तेमाल किया. ठाकोर का कहना है कि उनके एक्सपर्ट की राय थी कि राजनीति में आकर ही बदलाव लाए जा सकते हैं.

उनके पास दो ही विकल्प थे कांग्रेस या बीजेपी. उन्होंने सर्वे के जरिए अपने लोगों से राय ली. घर-घर जाकर किए कैंपेन और सोशल मीडिया पर मिले सुझावों के आधार पर अल्पेश दावा करते हैं कि करीब 25 लाख लोगों ने उन्हें कांग्रेस में शामिल होने का सुझाव दिया. जबकि बीजेपी में जाने की सलाह देने वाले लोगों की संख्या सिर्फ 1 लाख 6 हजार की थी.

चुनावों के ऐलान के पहले तक अल्पेश ठाकोर का रुख बीजेपी या संघ के प्रति हमलावर नहीं था. उन्होंने कांग्रेस और बीजेपी दोनों से समान दूरी बना रखी थी. अब कांग्रेस से जुड़ने के बाद उन्हें अपनी विश्वसनीयता साबित करनी है.

कांग्रेस का मानना है कि अल्पेश ठाकोर के जुड़ने से कम से कम 40 से 50 विधानसभा सीटों पर असर पड़ेगा. इनमें साबरकांठा, बनासकांठा, आनंद, खेड़ा, मेहसाना, पाटन गांधीनगर और अरावली की विधानसभा सीटें शामिल हैं.

पिछले चुनावों में कांग्रेस ने नॉर्थ गुजरात में अच्छा प्रदर्शन किया था. इस इलाके में कांग्रेस ने 46 फीसदी वोट शेयर के साथ 17 सीटें हासिल की थी. जबकि बीजेपी ने इस इलाके में 44 फीसदी वोट शेयर के साथ 15 सीटें पाई थी.

हालांकि इस इलाके के एक फैक्टर शंकर सिंह वाघेला इस बार कांग्रेस के साथ नहीं हैं. शंकर सिंह वाघेला का इस इलाके में अच्छा खासा प्रभाव है. अगस्त में वाघेला की बगावत की वजह से कांग्रेस के विधायकों की संख्या 57 से घटकर 43 रह गई. वाघेला ने जन विकल्प के नाम से अलग पार्टी बनाई है. चुनावों में ये पार्टी भी शामिल होगी. 1998 में वाघेला राष्ट्रीय जनता पार्टी नाम से अलग पार्टी बनाकर चुनाव लड़े थे. पार्टी ने 11.68 फीसदी वोट हासिल किए थे.

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गुजरात में कांग्रेस दो दशक से सत्ता से बाहर है. जब वो सत्ता में थी तो ओबीसी का साथ मिला था. बाद में हिंदुत्व की लहर में ओबीसी बीजेपी के साथ बह गए. अब अल्पेश ठाकोर के जुड़ने से कांग्रेस को उम्मीद की किरण दिख रही है.

हालांकि कुछ राजनीतिक विश्लेषकों की नजर में ओबीसी सिर्फ 70 सीटों पर असर डाल सकते हैं. 26 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ आदिवासी और 13 फीसदी हिस्सेदारी के साथ दलित भी प्रभावी भूमिका में हैं. इतने अल्प समय में अल्पेश को आंकना थोड़ी जल्दबाजी होगी.

(जातिगत गणना 1931 की जनगणना पर आधारित)