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Tipu Sultan Jayanti (Part 3): जेडीएस नेताओं ने समारोहों से किया परहेज, बीजेपी ने अपने विरोध-प्रदर्शनों को दिया श्रेय

बीजेपी ने टीपू जयंती के विरोध में जबरदस्त प्रदर्शन किया. इस दौरान मदिकेरी से विधायक अप्पाचु रंजन, विराजपेट से विधायक केजी बोपैया और 21 अन्य बीजेपी नेताओं को टीपू जयंती समारोहों में खलल डालने के आरोप में हिरासत में लिया गया

M Raghuram

एडिटर्स नोट: बीजेपी और अन्य दक्षिणपंथी संगठनों के तगड़े विरोध के बावजूद कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार ने 10 नवंबर को टीपू सुल्तान जयंती मनाई. हालांकि इस साल टीपू जयंती समारोहों की चमक फीकी नजर आई. सरकार ने सार्वजनिक जगहों पर समारोहों के आयोजन से परहेज किया. तकरीबन सभी कार्यक्रम बंद दरवाजों के साथ चारदीवारी के भीतर ही सीमित रहे. इस दौरान सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए गए थे. किसी भी तरह की हिंसा की रोकथाम के लिए पुलिस और प्रशासन को हाई अलर्ट पर रखा गया. 18वीं सदी में मैसूर के शासक रहे टीपू सुल्तान के शासनकाल के विश्लेषण पर आधारित तीन लेखों की श्रृंखला का यह अंतिम भाग है. इतिहास में झांककर हमने यह जानने की कोशिश की कि, औपनिवेशिक युग में विभिन्न भारतीय समुदायों के बीच नायक का दर्जा पाने वाला टीपू सुल्तान आखिर अलग-अलग कहानियों, किवदंतियों और इतिहासबोध के चलते बाद में कैसे कटु आलोचना का पात्र बन गया.

कर्नाटक में टीपू सुल्तान के नाम पर पिछले कई सालों से चला आ रहा विवाद इस साल भी नहीं थमा. कांग्रेस ने जहां टीपू सुल्तान के सम्मान में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया. वहीं बीजेपी ने टीपू जयंती को मनाए जाने का पुरजोर विरोध किया.


कर्नाटक में कांग्रेस-जनता दल (सेक्युलर) गठबंधन सरकार ने शनिवार को कड़ी सुरक्षा के बीच टीपू सुल्तान की जयंती मनाई, लेकिन उसे भारतीय जनता पार्टी और श्रीराम सेना समेत कई अन्य संगठनों के जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा. विरोध के चलते इस बार टीपू जयंती समारोहों में वैसी रौनक नहीं दिखी जैसी कि पिछले कुछ सालों में नजर आई थी. लिहाजा बीजेपी ने कांग्रेस के खिलाफ टीपू सुल्तान जयंती के प्रदर्शन में कामयाबी का दावा किया है. बीजेपी का कहना है कि, उसके विरोध के चलते ही अत्‍याचारी शासक टीपू सुल्तान के जयंती समारोह फीके रहे. बीजेपी का यह भी कहना है कि, टीपू जयंती के एक दिन पहले यानी शुक्रवार को तगड़े विरोध-प्रदर्शनों से पार्टी ने अपना रुख साफ कर दिया था.

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कर्नाटक की मैसूर-कोडागू लोकसभा सीट से बीजेपी सांसद एमपी प्रताप के मुताबिक, ‘हमारे पास पुख्ता जानकारी थी कि सरकार ने 10 नवंबर के लिए विभिन्न इलाकों में विरोध-प्रदर्शन रोकने के लिए विशेष आदेश दिए थे. खासतौर पर कर्नाटक के तटीय इलाकों, कोडागू और पुराने मैसूर क्षेत्र पर पुलिस की कड़ी नजर थी. लिहाजा टीपू जयंती के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत हमने 9 नवंबर को ही कर दी. हमने राज्य के सभी जिलों में अपना अभियान चलाया और विरोध दर्ज कराया. हम लोगों को बताना चाहते थे कि टीपू सुल्तान एक अत्याचारी और हिंदू विरोधी शासक था. लिहाजा उसकी जयंती मनाना गलत है.’

2015 में टीपू जयंती समारोह के दौरान हिंसक संघर्ष हुआ

टीपू जयंती के दिन यानी शनिवार सुबह, राज्य भर में बीजेपी के तमाम नेता और कार्यकर्ता उन जगहों के आसपास इकट्ठा हुए जहां समारोहों का आयोजन किया गया था. इसके बाद उन्होंने टीपू जयंती के विरोध में जबरदस्त प्रदर्शन किया. इस दौरान मदिकेरी से विधायक अप्पाचु रंजन, विराजपेट से विधायक केजी बोपैया और 21 अन्य बीजेपी नेताओं को टीपू जयंती समारोहों में खलल डालने के आरोप में हिरासत में लिया गया. इन जगहों पर टीपू जयंती समारोहों का आयोजन स्थानीय प्रशासन ने किया था.

कोडागु के जिला मुख्यालय मदिकेरी में साल 2015 में टीपू जयंती समारोह के दौरान हिंसक संघर्ष हुआ था. जिसमें दो लोगों की मौत हो गई थी जबकि कई लोग घायल हुए थे. लेकिन इस साल विरोध-प्रदर्शनों के बावजूद मदिकेरी में कोई हिंसक घटना नहीं हुई. टीपू जयंती के मौके पर शनिवार को मदिकेरी में हिंदू संगठन सड़कों पर उतरे और अपना विरोध दर्ज कराया. साथ ही सैकड़ों लोगों ने जिले के कई मंदिरों में प्रार्थना की और 'कुट्टप्पा अमर रहें' जैसे नारे भी लगाए. यह नारे विश्व हिंदू परिषद यानी वीएचपी के सचिव रहे डी. कुट्टप्पा की याद में लगाए गए, जिनकी 2015 के हिंसक संघर्ष में मौत हो गई थी.

बीदर में प्रशासन ने टीपू जयंती के खिलाफ किसी भी तरह के प्रदर्शन या कार्यक्रम के आयोजन पर रोक लगा रखी थी, लेकिन इसके बावजूद बीजेपी कार्यकर्ताओं ने सरकारी आदेशों का उल्लंघन करते हुए अंबेडकर सर्कल से डिस्ट्रिक्ट कमिश्नर ऑफिस तक मार्च निकाला. दावणगेरे शहर में बीजेपी कार्यकर्ताओं ने गवर्नमेंट हाईस्कूल में आयोजित टीपू जयंती समारोह में हंगामा किया. इस दौरान उन्होंने कार्यक्रम के मंच पर भी चढ़ने की कोशिश की. जिसके बाद दावणगेरे के बीजेपी जिला अध्यक्ष यशवंत राव जाधव समेत कई बीजेपी कार्यकर्ताओं को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.

कर्नाटक में टीपू सुल्तान जयंती की शुरुआत साल 2015 में तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने की थी. उस वक्त बीजेपी ने राज्य सरकार के इस फैसले का दृढ़तापूर्वक विरोध किया था. तब से टीपू जयंती के खिलाफ बीजेपी लगातार मोर्चा खोले हुए है. अगले साल लोकसभा चुनाव होने वाले हैं. लिहाजा इस साल टीपू जयंती के विरोध के लिए बीजेपी ने खास तैयारी की थी. ताकि आगामी चुनाव में इस मुद्दे का भरपूर फायदा उठाया जा सके. इसलिए बीजेपी ने अन्य हिंदू संगठनों से भी टीपू जयंती के खिलाफ आवाज बुलंद करने का आह्वान किया था. बीजेपी के इस आह्वान का असर भी नजर आया. विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और श्रीराम सेन जैसे कई हिंदूवादी संगठनों ने सड़कों पर उतरकर टीपू जयंती को लेकर सरकार के खिलाफ राज्यभर में जबरदस्त विरोध-प्रदर्शन किए.

भगवा पार्टी के नेता लगातार टीपू सुल्तान को ‘हिंदू विरोधी और असहिष्णु’ शासक करार देते आ रहे हैं. बीजेपी का आरोप है कि, मुस्लिम वोट बैंक को खुश और पक्का बनाए रखने के लिए कांग्रेस एक अत्याचारी शसक का महिमामंडन कर रही है. बीजेपी का यह भी कहना है कि, टीपू सुल्तान स्वतंत्रता सेनानी नहीं थे, क्योंकि उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई अपने निजी मकसद के लिए लड़ी थी.

टीपू सुल्तान के खिलाफ बीजेपी के निरंतर हमलों का असर अब कर्नाटक के अन्य समुदायों पर भी नजर आने लगा है. कोडवा समुदाय और दक्षिणी कन्नड़ के ईसाई भी अब टीपू सुल्तान के विरोध में सामने आ गए हैं. इनका कहना है कि, टीपू ने 18वीं सदी में नरसंहार करके उनके समुदायों को लगभग नष्ट कर दिया था.

टीपू जयंती समारोहों के दौरान लोगों की खासी भीड़ जुटी

टीपू जयंती क्यों नहीं मनाई जानी चाहिए, इसके लिए बीजेपी नेताओं ने टीपू सुल्तान के शासन की ऐतिहासिक व्याख्याओं के साथ-साथ कई अन्य कारण भी गिनाए हैं. शनिवार को बेंगलुरू शहर में प्रदर्शनकारियों के एक समूह का नेतृत्व करने वाले पूर्व उपमुख्यमंत्री आर अशोक ने आरोप लगाया कि, राज्य सरकार टीपू जयंती का आयोजन करके ‘केरल के जिहादियों’ के लिए कर्नाटक में प्रवेश का रास्ता खोल रही है.

टीपू जयंती कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस के बीच टकराव की वजह भी बन सकती है. क्योंकि एक तरफ कांग्रेस ने जहां टीपू जयंती समारोहों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया, वहीं राज्य के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने इन समारोहों में जाने से परहेज किया. टीपू जयंती से पहले ही कुमारस्वामी खराब सेहत का हवाला देकर 11 नवंबर तक के लिए तीन दिन की छुट्टी पर चले गए. वैसे भी कुमारस्वामी को टीपू जयंती का समर्थक नहीं माना जाता है.

मुख्यमंत्री कार्यालय ने एक बयान में कहा है कि, ‘डॉक्टरों की सलाह पर, मुख्यमंत्री 11 नवंबर तक तीन दिन आराम करेंगे. इस दौरान वह सिर्फ परिवार के साथ समय बिताएंगे. इन दिनों वह किसी भी आधिकारिक कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे.’

सूत्रों ने 101 रिपोर्टर्स को बताया कि, इस साल टीपू जयंती समारोहों में सिर्फ कांग्रेस ने ही सक्रियता दिखाई. खासकर मैसूर, रामनगर, कोडागू, दक्षिणी कन्नड़, उडुपी और उत्तर कन्नड़ जैसे जिलों में टीपू जयंती का जोर रहा. इन इलाकों में टीपू जयंती समारोहों के दौरान लोगों की खासी भीड़ जुटी.

सूत्रों के मुताबिक, इस साल कमोबेश सभी जेडीएस कार्यकर्ता और नेताओं ने टीपू जयंती से दूरी बनाए रखी. उन्होंने कोई न कोई बहाना बनाकर इन समारोहों से नदारद रहने में ही अपना फायदा देखा.

कर्नाटक के सीएम एच.डी कुमारस्वामी और पूर्व मुखयमंत्री सिद्धारमैया

टीपू जयंती को अलग ही नजरिए से देखते हैं

जेडीएस नेता ननजुंदे गौड़ा ने बताया कि, ‘पुराने मैसूर क्षेत्र में कांग्रेस की तुलना में जेडीएस राजनीतिक रूप से ज्यादा मजबूत है. लिहाजा जेडीएस ने इस इलाके में टीपू जयंती समारोहों से परहेज किया. अगर जेडीएस इस क्षेत्र में टीपू जयंती समारोहों में शिरकत करती तो आगे चलकर उसे सियासी नुकसान उठाना पड़ता. क्योंकि पार्टी के हर कदम पर मतदाताओं की नजर रहती है. लिहाजा पार्टी ने टीपू जयंती समारोहों से दूरी बनाए रखने में ही भलाई समझी.’

ननजुंदे गौड़ा ने आगे कहा कि, ‘उनकी पार्टी कांग्रेस के साथ सुरक्षित तरीके से आगे बढ़ रही है, क्योंकि इसी महीने (नवंबर में) मैसूर नगर निगम के मेयर का चुनाव होने वाला है. जिसे जेडीएस हर हाल में जीतना चाहती है. ऐसे में जेडीएस सीधे तौर पर कांग्रेस के एजेंडे से खुद को अलग नहीं कर सकती है. इनमें टीपू जयंती भी शामिल है.’

कांग्रेस के साथ सियासी समीकरणों को देखते हुए जेडीएस के कुछ नेता टीपू जयंती समारोहों में शामिल हुए, लेकिन इसका ज्यादा प्रचार-प्रसार नहीं किया गया.

एचडी देवगौड़ा परिवार के करीबी सूत्रों ने बताया कि, राज्य लोक निर्माण विभाग मंत्री और मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के भाई एचडी रेवन्ना ने भी बेंगलुरू के बाहर टीपू जयंती के कुछ समारोहों में शिरकत की. उन्होंने पुत्तुर और दक्षिणी कन्नड़ जिले के सुब्रमण्या में कुछ कार्यक्रमों में हिस्सा लिया.

कर्नाटक में टीपू जयंती को लेकर लोगों की अलग-अलग धारणाएं हैं. कुछ लोग जहां इसके विरोधी हैं वहीं कुछ लोग इसके समर्थक. लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं जो टीपू जयंती को अलग ही नजरिए से देखते हैं.

सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया के वरिष्ठ नेता अथवुल्ला जोकाट्टे का मानना है कि, ‘सत्ताधारी पार्टियों ने जहां टीपू जयंती का आयोजन अपने वोट बैंक को खुश करने के लिए किया, वहीं विपक्षी दलों ने अपने वोट बैंक को साधने के लिए इसका विरोध किया. दोनों की मंशा और मकसद एक ही है. हम विश्वविद्यालय जैसे स्थाई और जीवित स्मारकों के समर्थक हैं. हम कर्नाटक और राष्ट्रीय इतिहास में टीपू सुल्तान के योगदान का अध्ययन करने के लिए विश्वविद्यालय में अलग व्यवस्था चाहते हैं.’

(लेखक मंगलौर के फ्रीलांस लेखक हैं और पत्रकारों के ग्रासरूट नेटवर्क 101 रिपोर्टर्स का हिस्सा हैं)

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