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कर्जमाफी के बाद आदिवासियों की जमीन वापस करना छत्तीसगढ़ सरकार का अगला एजेंडा

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने अधिकारियों को निर्देश जारी किया है कि वे बस्तर में आदिवासियों को जमीन वापस करने की औपचारिकता पूरी करें

Debobrat Ghose

आदिवासी क्षेत्र बस्तर में अपने चुनावी अभियान के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा किए चुनावी वादे को ध्यान में रखते हुए, छत्तीसगढ़ में नवगठित कांग्रेस सरकार ने सोमवार को घोषणा की है कि वह आदिवासियों और किसानों को 1700 हेक्टेयर से ज्यादा भूमि लौटा देगी, जिसे पिछली रमन सिंह सरकार ने बस्तर में एक एकीकृत इस्पात संयंत्र के लिए अधिग्रहित किया था.

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने अधिकारियों को निर्देश जारी किया है कि वे बस्तर में आदिवासियों को जमीन वापस करने की औपचारिकता पूरी करें और उनके मंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह के बाद होने वाली पहली कैबिनेट बैठक के सामने अनुमोदन के लिए प्रस्ताव रखें.


टल गई थी टाटा स्टील की परियोजना

पिछली बीजेपी सरकार ने बस्तर जिले के लोहंडीगुड़ा में टाटा स्टील की 5.5 मिलियन टन प्रति वर्ष (MTPA) क्षमता वाले ग्रीन फील्ड इंटीग्रेटेड स्टील प्लांट के लिए निजी, सरकारी और वन भूमि मिलाकर कुल 2042 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया था, जिसके बाद स्थानीय लोगों के जबरदस्त विरोध प्रदर्शन के कारण वहां सिंगूर जैसे हालात बन गए थे और परियोजना को टाल दिया गया था.

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छत्तीसगढ़ सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त के साथ फ़र्स्टपोस्ट को बताया, 'यह एक ऐतिहासिक निर्णय है. मुख्यमंत्री ने आदिवासी किसानों को जमीन लौटाने की औपचारिकता पूरी करने का निर्देश जारी किया है. इसे अंतिम मंजूरी के लिए राज्य सरकार की पहली कैबिनेट बैठक में पेश किया जाएगा. जमीन का अधिग्रहण पिछली सरकार द्वारा टाटा स्टील प्लांट के लिए किया गया था, लेकिन स्थानीय लोगों के भारी विरोध के कारण लेकिन मामला आगे नहीं बढ़ सका.'

घोषणा पत्र में कांग्रेस ने किया था वादा

छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणापत्र- वचन पत्र में वादा किया था कि अगर वह सत्ता में आई तो टाटा स्टील परियोजना के लिए अधिग्रहित भूमि को आदिवासी किसानों को लौटा देगी.

राहुल गांधी ने अपने चुनाव अभियान के दौरान नवंबर में बस्तर के जिला मुख्यालय जगदलपुर में घोषणा की थी, 'छत्तीसगढ़ में हमारी सरकार के गठन के बाद, हम टाटा स्टील परियोजना के लिए राज्य सरकार द्वारा आदिवासियों से अधिग्रहित जमीन वापस कर देंगे.'

टाटा स्टील ने बीजेपी नेतृत्व वाली पिछली राज्य सरकार के साथ 2005 में 19,500 करोड़ रुपए के प्रस्तावित निवेश के साथ स्टील प्लांट लगाने के लिए एमओयू (समझौता पत्र) पर हस्ताक्षर किए थे. रमन सिंह सरकार ने इसे रोजगार पैदा करने और माओवाद प्रभावित क्षेत्र में आर्थिक विकास लाने के एक अवसर के रूप में पेश किया, लेकिन बड़े पैमाने पर विरोध और अन्य दूसरे कारणों से, परियोजना आगे नहीं बढ़ सकी.

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कंपनी को प्रस्तावित स्टील प्लांट के वास्ते कच्चे माल की आपूर्ति के लिए 2008 में बैलाडीला में 2500 हेक्टेयर लौह अयस्क की खान का आवंटन किया गया था. कंपनी को एक प्रॉस्पेक्टिंग लाइसेंस जारी किया गया था. टाटा स्टील ने स्टील प्लांट के निर्माण की योजना को छोड़ दिया, कंपनी के अनुसार जिसका कारण, ‘स्थानीय कानून और व्यवस्था की प्रतिकूल स्थिति थी.’ आखिरकार 2016 में एमओयू खत्म हो गया.

1764.61 हेक्टेयर जमीन आदिवासी किसानों की थी जमीन

फ़र्स्टपोस्ट द्वारा हासिल किए ब्योरे के मुताबिक, इस्पात परियोजना के लिए कुल 2042 हेक्टेयर भूमि में से 173.03 हेक्टेयर राजस्व विभाग से और 105.81 हेक्टेयर वन भूमि लेने के अलावा 1764.61 हेक्टेयर आदिवासी किसानों से अधिग्रहित की गई थी.

चूंकि बस्तर क्षेत्र जनजातीय क्षेत्र के रूप में अधिसूचित है, इसलिए कंपनी ग्रामीणों से सीधे जमीन नहीं खरीद सकती थी. ऐसे में राज्य सरकार ने लोहंडीगुड़ा में जमीन का अधिग्रहण किया और ग्रामीणों को मुआवजा दे दिया. लेकिन भूमि अधिग्रहण को लेकर जबरदस्त विरोध हुआ.

बस्तर में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के नेता और पूर्व विधायक मनीष कुंजम बताते हैं, 'हमें अदालत में और अदालत के बाहर दोनों जगह इस जबरदस्ती किए गए भूमि अधिग्रहण के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी. मेरे साथ कई अन्य लोग जेल गए और पुलिस दमन का सामना किया. रमन सिंह सरकार ने लोहंडीगुड़ा में टाटा स्टील परियोजना के लिए आदिवासियों की भूमि का अधिग्रहण किया और फिर इसे अपने भूमि बैंक के लिए स्थानांतरित कर दिया, जो कि अवैध था. हमने भूमि अधिग्रहण के खिलाफ एक दशक तक विरोध किया था, क्योंकि आदिवासी किसानों से उनकी आमदनी का इकलौता जरिया भी छीन लिया गया तो वो क्या करेंगे?

हुआ था जबरदस्त प्रदर्शन

वामपंथी दलों ने आदिवासी किसानों और स्थानीय ग्रामीणों के साथ भूमि अधिग्रहण को लेकर कई बार उग्र विरोध प्रदर्शन किए. कुंजम, जिन्होंने पिछली सरकार के फैसले को अदालत में चुनौती दी, को कई प्रदर्शनकारियों के साथ गिरफ्तार किया गया और जेल में डाल दिया गया.

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लोहंडीगुड़ा में भूमि अधिग्रहण ने छत्तीसगढ़ में सिंगूर जैसे हालात पैदा कर दिए थे. पश्चिम बंगाल के सिंगूर में टाटा मोटर्स के प्रस्तावित नैनो कारखाने के लिए वाम मोर्चा सरकार द्वारा साल 2006 में भूमि अधिग्रहण के मुद्दे ने बड़े पैमाने पर किसान विरोध और विवाद उत्पन्न किया था.

सीपीएम के राज्य सचिव संजय पराते ने कहा, 'ग्राम सभाओं की सही तरीके से अनुमति लिए बिना 10 गांवों के एक बड़े हिस्से को जबरदस्ती अधिग्रहित कर लिया गया था. किसानों को मुआवजे के भुगतान को लेकर भी शिकायतें थीं. भूमि अधिग्रहण कानून के अनुसार, अगर भूमि का पांच साल से अधिक समय तक उपयोग नहीं किया गया है, तो उसे मूल भू-स्वामी को वापस करना होगा. लेकिन, पिछली राज्य सरकार ने टाटा स्टील के लिए अधिग्रहित जमीन को अपने लैंड बैंक में परिवर्तित कर दिया. इसके बजाय, सरकार को भूमिधारकों की पहचान करनी चाहिए थी, और इसे उन्हें वापस करना चाहिए था.'

पराते का कहना है कि यह नई सरकार का एक अच्छा फैसला है.