view all

पद्मावत: जब देश को जरूरत होती है, तब इनका खून क्यों नहीं खौलता?

हंगामा मचा रहे कौन हैं ये लोग? इनके पास इतना वक्त क्यों और कैसे होता है? कहीं भी हिंसा या विरोध भड़कता है तो ऐसे लोग कहां से निकल आते हैं?

Tulika Kushwaha

पद्मावत रिलीज हो चुकी है और हल्ला मचाने वाले हल्ला मचा रहे हैं. हरियाणा, राजस्थान, यूपी, गुजरात, जम्मू हर जगह जितनी अराजकता फैल गई है, उस पर गुस्सा आता है. जो धमकी महीनों से दी जा रही थी, सरकार उससे निबटने के लिए तैयार नहीं हो पाई. इसके बाद इन गुंडों ने गाड़ियां जलाने, मॉल्स पर पथराव करने के साथ-साथ बच्चों की स्कूल बस पर हमला कर दिया. बच्चों पर हमले से घटिया बात और क्या हो सकती है?

क्या सच में इन्हें कोई फर्क पड़ता है?


महज एक फिल्म को लेकर देश में जिस तरह का माहौल बना हुआ है, उसे देखकर खून खौल उठता है. विरोध कर रहे इन बेवकूफ आंख पर पट्टी बांधे लोगों से बस यही सवाल है- क्या उन्होंने फिल्म देखी है और क्या उन्होंने सड़कों पर हंगामा मचाने से पहले इतिहास पढ़ने की जहमत उठाई है?

नहीं, इनमें से 99% को इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि फिल्म में क्या दिखाया गया है क्या नहीं. न ही इनका इतिहास से कोई लेना-देना है. इन्हें बस दंगा फैलाने, तोड़-फोड़ करने और लोगों में डर पैदा करने में मजा आता है क्योंकि ये कई आंदोलनकारी नहीं हैं, ये गुंडे हैं, मौकापरस्त बेगैरत लोग हैं. इनसे किसी तरह की समझदारी की उम्मीद करना बेमानी है.

महीनों से करणी सेना 'देश जलेगा, देश जलेगा' के रट लगा रही थी और अब जल रहा है देश. लेकिन एक चीज जो बेहद हैरान करती है और निराशा से भर देती है, वो है मौका देखते ही अराजकता फैलाने में जुट जाने वाले लोग. यूपी-बिहार में विवाद के शुरू होने के काफी बाद तक बहुत सुगबुगाहट नहीं थी लेकिन अब देख लीजिए. सड़कों पर ये गुंडे तलवार-भाले लहरा रहे हैं और खुद को करणी सेना का सदस्य बताकर राजपूती सम्मान का हवाला दे रहे हैं.

कहीं-कहीं तो तलवार के साथ तिरंगा भी लहराया गया है. शर्म करो! जिस आन-बान-शान की बात तुम कर रहे हो, उसे तो तुमने पहले ही नीलाम कर दिया. जिस हाथ में अराजकता की तलवार हो, उसे तिरंगा पकड़ने का कोई हक नहीं है.

ये भी पढ़ें: ऐसा क्यों लग रहा है जैसे सारी पार्टियां करणी सेना समर्थक हैं

कौन हैं ये लोग?

जो सवाल इन्हें देखकर दिमाग में आते हैं, वो हैं- आखिर कौन हैं ये लोग? इनके पास इतना वक्त क्यों और कैसे होता है? कहीं भी हिंसा या विरोध भड़कता है तो ऐसे लोग, जिन्हें न मुद्दे से मतलब है न नतीजे से, कहां से निकल आते हैं? क्या ये बाकी जरूरी मुद्दों पर ही इतनी सक्रियता और देशभक्ति दिखाते हैं? बाकी किसी अन्याय या अपराध पर इनका खून क्यों नहीं खौलता? और सबसे बड़ी बात- आखिर इन्हें आगजनी करके, तोड़फोड़ करके मिलता क्या है? आखिर इनका दिमाग कैसे काम करता है, जो ये हिंसा फैलाकर खुश होते और गर्व महसूस करते हैं? आप किसी भी विरोध प्रदर्शन, आगजनी और दंगों की तस्वीर देख लीजिए, 2-4 लोग मुस्कुराते या हंसते हुए नजर आएंगे, कैसे कर लेते हैं ये लोग ऐसी नीचता? शायद इन्हें पता ही नहीं है कि ये क्या कर रहे हैं.

न जाने इन लोगों का माइंडसेट कैसा है, जो फालतू के मुद्दों पर काटने-मारने को तैयार हो जाता है और जहां उठने की जरूरत होती है, वहां हमसे क्या कहकर पल्ला झाड़ लेता है?

जौहर करने की जगह खुद को मजबूत क्यों नहीं बनातीं ये 'क्षत्राणियां'?

इसके अलावा एक और चीज है, जो इस पूरे विरोध प्रदर्शन में हाईलाइट हुई है, वो है- राजस्थान की 'क्षत्राणियों' की जौहर कर लेने की धमकी. ये क्षत्राणियां जब लड़कियों के रेप हो रहे होते हैं, खुलेआम मर्डर हो रहे होते हैं, या हक की आवाज उठा रही लड़कियों का मुंह बंद किया जा रहा होता है, तब कहां होती हैं? तब इन्हें जौहर क्यों नहीं सूझता? हरियाणा में पिछले 10 दिनों में 9 रेप हुए, क्या किसी संगठन या व्यक्ति ने उठकर इसके खिलाफ आंदोलन खड़ा करने की बात की? धमकी दे रही ये औरतें, ये राजपूती सम्मान के झंडाबरदार लोग अगर इंसान होते, तो इन्हें पता होता कि ये गुस्सा कहां दिखाना चाहिए.

ये भी पढ़ें: पद्मिनी तो कई हैं, करणी सेना को पहले कभी गुस्सा क्यों नहीं आया?

क्या ऐसे जौहर की जरूरत है हमें?

आज औरतों के लिए पिछड़े राज्यों में जितनी जिल्लत का सामना करना पड़ रहा है, अगर इनमें से कुछ भी अपने हक के लिए खड़ी हुई होतीं, तो आज जौहर जैसी चीज पर नहीं अटकतीं क्योंकि उन्हें पता होता कि उनकी शक्ति और उनकी क्षमता कितनी ऊंची है. उनकी जीभ पकड़कर चंद लोग उनसे ये नहीं बुलवा पाते कि वो जौहर कर लेंगी. अगर उन्हें इसके लिए मजबूर किया जाता तो वो पलटकर जवाब दे पातीं कि इस बारे में उनकी अपनी राय क्या है और वो इस विरोध का हिस्सा बनना चाहती हैं या नहीं.

हरियाणा में 9 रेप के अलावा यूपी से भी दो ऐसी घटनाएं आईं, जिन्होंने सिहरा दिया. दो रेप पीड़िताओं को न्याय मांगने के लिए किस हद तक जाना पड़ा, उसे देखकर लगा कि देश की यही नियति हो गई है. रायबरेली में एक रेप पीड़िता ने अपने न्याय मांगने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ को अपने खून से खत लिखकर कार्रवाई की मांग और कहा कि उसके पास आखिरी विकल्प आत्महत्या है. सीएम योगी के संसदीय क्षेत्र में भी एक रेप विक्टिम आत्मदाह करने पुलिस थाने पहुंची. मथुरा और हरियाणा के रोहतक में भी ऐसा ही मामला आया.

ये भी पढ़ें: पद्मावत: SC के फैसले के बावजूद ये हिंसक विरोध लोकतंत्र पर हमला है

जौहर की धमकी दे रहीं औरतें अगर अपनी आवाज सही मुद्दों पर उठाने की कूवत रखतीं तो शायद किसी की हवस का शिकार बनीं लड़कियों को खुद को जलाने की नौबत नहीं आती. और ये बस इनकी जिम्मेदारी नहीं है, ये हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम सोचें कि हम अपनी ऊर्जा कहां लगाए और हक की आवाज कहां उठाएं.