संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावती’…जो राजपूती शान बचाने के चक्कर में ‘पद्मावत’ हो गई है. इस फिल्म की शूटिंग, रिलीज से पहले और रिलीज के बाद करणी सेना ने इस तरह विरोध किया मानों हम पाकिस्तान के साथ युद्ध कर रहे हैं. पाकिस्तान का जिक्र करना यहां जरूरी है, क्योंकि आज पद्मावत के बाद शायद यही एक मुद्दा है जिसपर हिंदुस्तानियों का खून इस तरह उबलता है.
इस फिल्म का सफर शुरू से ही बहुत मुश्किल रहा. राजपूतों के लगातार विरोध के कारण सेंसर बोर्ड ने इसमें कई बदलाव के बाद जैसे-तैसे रिलीज की अनुमति दी है. इन बदलावों के तहत यह डिस्क्लेमर देना है कि इस कहानी का इतिहास से कोई लेनादेना नहीं है. पद्मावती का नाम बदलकर पद्मावत कर दिया गया. कुछ जगहों के नाम बदल दिए. इस फिल्म के एक गाने ‘घूमर’ में भी बदलाव किया गया. बदलाव यह है कि पद्मावती बनी दीपिका पादुकोण जब घूमर करती हैं तो उनके पेट का कुछ हिस्सा नजर आता है. इस पर करणी सेना के ऐतराज को देखते हुए दीपिका के पेट के उस हिस्से को जीएफएक्स से ढंक दिया. ये बदलाव हुए, इसके अलावा फिल्म में कई कट भी लगे हैं.
इतने पर भी करणी सेना के जांबाजों का गुस्सा शांत नहीं हुआ. उन्हें लग रहा है कि संजय लीला भंसाली की इस फिल्म ने राजपूती शान को धूमिल किया है. यह पहली बार नहीं है जब रानी पद्मिनी पर कोई फिल्म बनी है. इससे पहले कई बार रानी पद्मिनी के बारे में लिखा-पढ़ा गया. फिल्में बनी लेकिन तब विरोध नहीं हुआ था. वजह ये थी कि तब राजपूती शान के झंडाबरदार करणी सेना का नामोंनिशां नहीं था.
कौन है ये करणी सेना?
करणी सेना पहली बार 2006 में अस्तित्व में आई. राजपूत लीडर लोकेंद्र सिंह कल्वी ने 2005 में राजपूत समुदायों को एकजुट करना शुरू किया था. इसके बाद 23 सितंबर 2006 को जोठवाड़ा में करणी सेना का गठन हुआ. इसमें ज्यादातर बेरोजगार राजपूत युवा वर्ग था.
विकीपीडिया में दी गई जानकारी के मुताबिक इस संगठन की शुरुआत सरकारी नौकरियों और शिक्षा में राजपूतों के लिए जाति आधारित आरक्षण मांगने के लिए हुई थी, लेकिन फिर इसकी जिम्मेदारी टेक्स्ट बुक में साइडलाइन हो चुके राजपूत नायकों को सही जगह दिलाने की हो गई.
धीरे-धीरे इस संगठन की दिलचस्पी राजनीतिक मामलों में भी हो गई. करणी सेना के पहले अध्यक्ष अजीत सिंह मामडोली ने 2008 में राजस्थान विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को इस शर्त पर समर्थन दिया था कि पार्टी राजपूत उम्मीदवारों को टिकट दें.
राजनीतिक चाहत से बिगड़ी बात
उस वक्त कल्वी कांग्रेस से जुड़े थे और चाहते थे कि उन्हें टिकट मिले. खुद ममडोली का कहना है कि कल्वी अपना राजनीतिक करियर संवारना चाहते थे. ममडोली के साथ मतभेद बढ़ने क बाद कल्वी 2010 में समूह से अलग हो गए और अपना एक नया समूह बनाया. इस समूह का नाम श्री राजपूत करणी सेना रखा गया. हालांकि ममडोली ने कल्वी पर केस कर दिया. उनका दावा था कि इस नाम का रजिस्ट्रेशन कल्वी ने नहीं उन्होंने करवाया था. यह मामला अभी भी कोर्ट में चल रहा है.
ममडोली के जाने के बाद कल्वी ने सुखदेव सिंह गोगामेड़ी को प्रेसिडेंट बनाया. लेकिन बाद में कल्वी और गोगामेड़ी में आरक्षण को लेकर मतभेद पैदा हो गया. 2015 में आपराधिक आरोपों की वजह से गोगामेड़ी को भी निकाल दिया गया. गोगामेड़ी ने एक नए संगठन का गठन किया ‘श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना’ का गठन किया. इसके बाद कल्वी ने महिपाल सिंह मकराना को अपने संगठन का राज्य अध्यक्ष नियुक्त किया. राजपूती शान बढ़ाने के लिए संगठन बनाने वालों के बीच मतभेद के कारण आज करणी सेना के नाम पर तीन संगठन हैं.
लोकेंद्र सिंह कल्वी की अगुवाई में श्री राजपूत करणी सेना, अजीत सिंह ममडोली की अध्यक्षता में श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना समिति और सुखदे सिंह गोगामेड़ी के संगठन का नाम श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना है.
साहित्य में पद्मिनी
1906 से ही रानी पद्मिनी पर कहानियां लिखी गईं और फिल्में भी बनीं, लेकिन तब इस तरह का विरोध नहीं देखा गया था. क्योंकि 2005 से पहले देश में राजपूत थे लेकिन करणी सेना जैसी कोई संगठन नहीं थी. साहित्य में रानी पद्मिनी की बात करें तो बंगाली कवि और प्लेराइटर क्षीरोद प्रसाद विद्याविनोद के पद्मिनी को लेकर 1906 में एक प्ले लिखा था. इसके तीन साल बाद 1909 में अवींद्रनाथ टैगोर की ‘राज कहानी’ पब्लिश हुई थी.
सिनेमा में पद्मिनी
पहली बार 1963 में पद्मिनी पर तमिल फिल्म बनी थी. इस फिल्म का नाम ‘चित्तौड़ रानी पद्मिनी’ था, जिसमें वैजयंतीमाला ने रानी पद्मिनी का किरदार निभाया था. राणा रतन सिंह की भूमिका में तमिल सुपरस्टार शिवाजी गणेशन थे. उस वक्त इस फिल्म को लेकर ना विरोध हुआ और ना ही बॉक्स ऑफिस पर इसकी कोई सुगबुगाहट रही. एक साल बाद यह फिल्म हिंदी में बनी. इसमें अनीता गुहा को रानी पद्मिनी और जयराज राणा रतन सिंह के किरदार में थे. इस फिल्म का भी ना विरोध हुआ ना यह बॉक्स ऑफिस पर चली.
टीवी पर पद्मावती
टीवी पर कई बार रानी पद्मिनी पर सीरियल बने लेकिन तब किसी ने विरोध नहीं जताया है. श्याम बेनेगल की ‘भारत एक खोज’ का एक एपिसोड रानी पद्मिनी पर था. इसमें ओमपुरी ने खिलजी का किरदार निभाया था. सीमा केल्कर पद्मिनी और राजेंद्र गुप्ता रतन सिंह के किरदार में थे.
2009 में एक सीरियल ‘चितौड़ की रानी पद्मिनी का जौहर’ भी दिखाया था, लेकिन उसका भी कोई विरोध नहीं हुआ था. दिलचस्प है कि अब तक करणी सेना का गठन हो चुका था. मुमकिन है कि तब करणी सेना को इतना फुटेज नहीं मिलता जितना संजय लीला भंसाली के ‘पद्मावत’ के विरोध में मिल रहा है.
करणी सेना को तब भी गुस्सा नहीं आया जब पद्मावत एक्सप्रेस शुरू हुआ. अभी कल्वी की करणी सेना के डर से सेंसर बोर्ड ने पद्मावती का नाम बदल कर पद्मावत कर दिया. लेकिन कभी पद्मिनी के नाम पर फिएट लॉन्च हुई थी, जिसका भी कभी विरोध नहीं हुआ था. ऐसा लग रहा है कि भंसाली की पद्मावत के साथ भंसाली की निजी दुश्मनी...अब ऐसा है या नहीं. यह तो करणी सेना ही बता पाएगी.
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