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भोपाल त्रासदी: पीड़ितों ने खुद बना लिया म्यूजियम, पानी से अभी भी रिसता है जहर

त्रासदी के 34 साल बाद भी उस त्रासदी के घाव हरे हैं. लोग जहर पीने को मजबूर हैं

FP Staff

भोपाल गैस त्रासदी को 34 साल हो गए हैं. भोपाल गैस त्रासदी को दुनिया के औद्योगिक इतिहास की सबसे बड़ी दुर्घटना के नाम से जाना जाता है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश की राजधानी में स्थित यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री में हुए गैस रिसाव के कुछ ही घंटों के भीतर पांच हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे. वहीं अगर गैर सरकारी आंकड़ों की मानें तो मरने वालों की संख्या सरकारी आंकड़ों से तीन गुना ज्यादा थी.

उस त्रासदी का असर आज भी लोगों के जनजीवन पर देखा जा सकता है. उस भयानक त्रासदी की गवाह हाजरा बी का कहना है कि- हम अभी तक लड़ाई लड़ रहे हैं. हमने अपना खुद का म्यूजियम बना लिया है. उसमें कई पीड़ितों के फोटो हैं. फोटो के साथ साथ हमने कई यादगार चीजें भी रखी हैं. साथ ही वो गाने भी हैं जो हम अपने संघर्ष के दिनों में गाते थे.


हाजरा बी ने कहा- सरकार ने पानी की सप्लाई के साथ केमिकल के रिसाव को रोकने की पूरी कोशिश की. लेकिन फिर भी अभी तक केमिकल रिसाव होता है और पीने के पानी में मिल जाता है. सरकार इस बात को नहीं मान रही. हमने 5 महीने तक जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन भी किया था. उसके बाद जांच हुई और पानी में केमिकल की बात साबित हुई.

कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से करीब 40 टन गैस का रिसाव हुआ था. 2 और 3 दिसंबर 1984 की आधी रात को यूनियन कार्बाइड के भोपाल स्थित कारखाने से रिसी जहरीली गैस (मिथाइल आइसोसाइनाइट) से 3 हजार से अधिक लोगों की मौत हो गई थी. इससे लगभग 1 लाख से ज्यादा लोग भी प्रभावित हुए थे. कार्बाइड के जिस कारखाने से जहरीली गैस का रिसाव हुआ था, उसे स्मारक के रूप में बदलने की घोषणा सरकार ने की थी.

अभी तक वहां कोई स्मारक नहीं बन सका है. बड़ी मात्रा में केमिकल वेस्ट अभी कारखाना परिसर में पड़ा हुआ है. इस वेस्ट के कारण कारखाने के आसपास की मिट्टी भी जहरीली हो चुकी है. हैंडपंप से निकलने वाला पानी भी पीने योग्य नहीं होता. मध्यप्रदेश प्रदूषण निवारण मंडल ने भी यह मान लिया है कि यहां की मिट्टी का उपचार नहीं किया जा सकता है.

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