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रईस के साथ शाहरुख ने अमिताभ वाली राह पकड़ ली है

शाहरुख ने सत्तर के दशक के एंग्री यंग मैन के किरदार को नए रूप-रंग में पेश किया है.

Gautam Chintamani

कहते हैं कि 'किसी की नकल करना उसकी सबसे ईमानदार ढंग से की गई चापलूसी होती है.' ब्रिटिश विचारक-लेखक जॉर्ज बर्नार्ड शॉ के मुताबिक ये कोई चीज सीखने का सबसे ईमानदार तरीका भी है.

फिल्म रईस के रिलीज होने के साथ ही शाहरुख खान ने अपना करियर बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन की तर्ज पर आगे बढ़ाने का एक चक्र पूरा कर लिया है. फिल्म 'रईस' सत्तर और अस्सी के दशक की फिल्मों की तरह ही है जिसमें हीरो बनाम विलेन की कहानियां होती थीं.


रईस फिल्म की कहानी और इसके किरदार, सलीम-जावेद, कादर खान, प्रयाग राज और सतीश भटनागर की उस दौर में लिखी गई स्क्रिप्ट की याद दिलाते हैं. उन कहानियों ने बॉलीवुड को एक नई पहचान दी थी. रईस फिल्म में जिस तरह का किरदार शाहरुख खान ने निभाया है...जो बिना हिचक अपने काम को बताता है, अपनी बात को रखता है, वो सत्तर और अस्सी के दशक के एंग्री यंग मैन अमिताभ बच्चन की याद दिलाता है.

'रईस' फिल्म में अपने रोल से शाहरुख ने जता दिया है कि उन्होंने अमिताभ बच्चन की एंग्री यंग मैन की छवि को अपना लिया है.

रईस फिल्म की शुरुआत में मोटरसाइकिल से शाहरुख खान के किरदार की एंट्री कुछ उसी तरह ही है, जैसे सत्तर के दशक के हीरो की एंट्री पर्दे पर हुआ करती थी. रईस के किरदार का हर पहलू, हिंदी फिल्मों के आम हीरो जैसा है. करीब से देखें तो रईस नाम भी 'मुकद्दर का सिकंदर', 'दीवार' और 'त्रिशूल' फिल्मों के विजय और कालिया-अग्निपथ फिल्मों के हीरो की याद दिलाता है.

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अगर फिर भी किसी को इस नकल पर कोई शक रह जाता है तो उसे उस सीन को देखना चाहिए जिसमें रईस आलम खान एक कारोबारी की पिटाई करता है. फिर वो एक फैक्ट्री मालिक को इसलिए मारता है क्योंकि वो कामगारों को मजदूरी नहीं दे रहा था. ये सीन, ये तस्वीरें 'काला पत्थर' फिल्म की याद दिलाती हैं जिसमें विजय के रोल में अमिताभ बच्चन, बेदिल कोयला खान मालिक धनराज पुरी यानी प्रेम चोपड़ा को बुरी तरह पीटते हैं. दोनों ही फिल्मों के सीन का मूड एक जैसा है. इसी से ये भी मालूम होता है कि रईस आलम खान का किरदार, अमिताभ बच्चन के सत्तर के दशक के रोल से कितना प्रभावित है.

पिछले कुछ सालों से कोशिश हो रही है कि हिंदी फिल्मों में पच्चीस साल पहले के हीरो जैसे किरदार फिर से गढ़े जाएं. 'दबंग' फिल्म हिट होने के बाद से कमोबेश हर कलाकार इसी कोशिश में है. आमिर खान ने 'गजनी' फिल्म में यही किया. अक्षय कुमार ने 'रॉउडी राठौर' में ऐसा ही रोल प्ले किया. अजय देवगन ने 'सिंघम' और 'एक्शन जैक्सन' में ये किरदार अदा किया. ऋतिक रोशन ने 'अग्निपथ' के रीमेक में यही किया. रणबीर कपूर ने 'बेशरम' में और रणवीर सिंह ने 'गुंडे' फिल्म में ऐसे ही किरदार जिए. ये पच्चीस साल पहले के फिल्मी हीरो जैसे रोल थे.

अगर ऐसा करना हो, तो इस तरह के रोल के लिए शाहरुख पहली पसंद होने चाहिए. क्योंकि उन्होंने जाने-अनजाने में अमिताभ बच्चन के तमाम तरीके अपना लिए हैं. अपने करियर के शुरुआती दिनों से ही शाहरुख ने एंटी हीरो जैसे रोल किए थे. जैसे 'बाजीगर' और 'डर' फिल्म में. ऐसे ही रोल अमिताभ बच्चन ने 'परवाना' और 'डॉन फिल्मों में किए थे. जिस तरह अमिताभ बच्चन ने कभी-कभी फिल्म में अपने अभिनय को रूमानी मोड़ दिया था, उसी तरह शाहरुख ने भी 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' फिल्म में किया. उससे पहले वो 'करण-अर्जुन' और 'राम जाने' जैसी एक्शन फिल्में कर रहे थे. इसके बाद उन्होंने 'दिल तो पागल है' और 'कुछ कुछ होता है' जैसी सुपरहिट फिल्में कीं.

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ऐसा नहीं था कि इस दौरान शाहरुख ने एक्शन फिल्मों से पूरी तरह से मुंह मोड़ लिया था. उन्होंने रोल चुनने में काफी एहतियात बरती. उस दौर में सनी देओल की 'घायल और घातक' (1996), अक्षय कुमार की 'मोहरा' (1994), 'अशांत' (1993), अजय देवगन की 'फूल और कांटे' (1991), 'विजय पथ', जैसी फिल्मों के मुकाबले शाहरुख खान, 'त्रिमूर्ति' (1995), 'चाहत' (1996) और 'कोयला' (1997) फिल्मों की कहानी सलीम-जावेद की लिखी कहानियों से प्रेरित ही लगती थी. एंटी हीरो के तौर पर शाहरुख की सबसे डरावनी फिल्म, 'अंजाम' (1994) में भी उन्होंने ऐसा किरदार निभाया था, जो लोकप्रिय हिंदी फिल्मों में उससे पहले नहीं देखने को मिला था.

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में करीब एक चौथाई सदी बिताने और अपनी खुद की फिल्मी विरासत तैयार करने के बावजूद आज शाहरुख खान, अमिताभ बच्चन के तमाम रोल में से वो किरदार निभा रहे हैं, जिसे कमोबेश हिदी फिल्मों के हर हीरो ने कॉपी करने की कोशिश की है. 1975 की दीवार फिल्म से अमिताभ बच्चन की एंग्री यंग मैन की छवि स्थापित हो गई थी. उसके बाद हर हीरो ने नंबर वन बनने के और लोकप्रियता हासिल करने के लिए एंग्री यंग मैन बनने की कोशिश की. 'मेरी जंग' (1985), 'अर्जुन' (1985) और 'नाम' (1986) फिल्मों में ऐसे रोल करने के बाद ही अनिल कपूर, सनी देओल और संजय दत्त स्टार बन सके. शाहरुख से पहले के दो खान यानी सलमान और आमिर ने इस चलन को बदला. फिर खुद शाहरुख खान ने 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' फिल्म से हीरो के किरदार को नई पहचान दी.

इसमें कोई शक नहीं कि शाहरुख ने अपना खुद का बहुत बड़ा ब्रांड तैयार कर लिया है. कई मामलों में तो ये ब्रांड अमिताभ बच्चन से भी बड़ा है. मगर दिक्कत ये है कि शायद शाहरुख अब उस मोड़ पर खड़े हैं जहां वो राहुल और राज जैसे रोल से अलग कोई नया किरदार नहीं गढ़ पा रहे हैं.

अक्षय कुमार, आमिर खान और सलमान खान से अलग, शाहरुख की पहचान राज और राहुल जैसे रोल वाले हीरो की ही रही है. उन्होंने अपनी एक्टिंग के किसी और पहलू को परखने की कोशिश भी नहीं की. और अगर शाहरुख ने ऐसा किया भी तो उसे उतनी कामयाबी नहीं मिली. शाहरुख के सिवा उनके दौर के बाकी कलाकारों ने कॉमेडी से लेकर एक्शन फिल्मों तक, तमाम नुस्खे आजमाए हैं. कई बार उन्होंने हिंदी फिल्मों के औसत हीरो के रोल भी किए हैं. मगर शाहरुख खान अपने रोमांस के बादशाह की छवि को तोड़ नहीं सके.

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शायद यही वजह है कि शाहरुख खान वापस अपने करियर के शुरुआती दौर को याद करते हुए कुछ नया गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं. अब वो अपने लिए ऐसा किरदार लेकर आए हैं, जो सदाबहार है और जो उनके अपने राज-राहुल ब्रांड के साथ अच्छे से घुल-मिल जाता है. इसीलिए शाहरुख ने 'रईस' फिल्म के जरिए सत्तर के दशक के एंग्री यंग मैन के किरदार को नए रूप-रंग में पेश किया है. इसमें अमिताभ बच्चन की झलक के साथ ही शाहरुख की अपनी पहचान रही एक्टिंग की झलक भी मिलती है. आखिर इस रोल के दीवानों की आज भी कोई कमी नहीं. अब शाहरुख को लगता है कि सिर्फ उनके टाइप के किरदारों से काम नहीं चलने वाला.

शायद यही वजह रही कि खुद को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने वाली 'फैन' जैसी फिल्म बुरी तरह फ्लॉप हुई थी.