बचपन में दूरदर्शन पर अमिताभ बच्चन या धर्मेंद्र की फिल्में देखा करते थे. फिल्म में एक सीन ऐसा जरूर होता था जब विलेन हीरो की मां/बहन/प्रेमिका को अपने कब्जे में कर लेता. फिर आता वह शानदार डॉयलॉग- 'अगर अपनी मां/बहन/प्रेमिका को जिंदा देखना चाहते हो तो फलां-फलां जगह पर आ जाना. और हां अकेले आना.'
लगता कि अब बाजी हीरो के हाथ से निकल गई लेकिन फिर पासा पलटता. हीरो कोई गजब का दांव चलता और विलेन हार जाता. हैप्पी एंडिंग होती. हमारा भरोसा पक्का हो जाता कि अंत में सच्चाई की (माने हीरो की) जीत होती है.
बचपन में दूरदर्शन की फिल्में देखकर बना वह भरोसा अब न्यूज चैनल देखकर टूट रहा है.
रविवार को शाहरूख़ खान महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे से उनके घर पर मिले. बताया जा रहा है कि रविवार शाम हुई इस मुलाकात के पीछे शाहरुख की आने वाली फिल्म ‘रईस’ की रिलीज का रास्ता बनाना था. फिल्म अगले महीने रिलीज होनी है. समस्या यह है कि फिल्म में पाकिस्तानी अभिनेत्री माहिरा खान काम कर रहीं हैं. एमएनएस का कहना है कि वह ऐसी फिल्में नहीं चलने देंगे जिनमें पाकिस्तानी कलाकार काम कर रहे हों.
शाहरूख़ के दोस्त करन जौहर अपनी फिल्म 'ऐ दिल है मुश्किल' को लेकर एमएनएस का विरोध झेल चुके हैं. समझौता कराए जाने के बाद ही फिल्म रिलीज हो सकी थी. करन को करोड़ों का दान भी करना पड़ा था. 'ऐ दिल है मुश्किल में' फवाद खान थे. शाहरूख़ की फिल्म में माहिरा हैं.
शाहरूख़ के को-प्रोड्यूसर रितेश सिधवानी ने कुछ दिन पहले कहा था कि सरकार ने पाकिस्तानी कलाकारों पर कोई रोक नहीं लगाई है. ऐसे में वह माहिरा खान को भी फिल्म के प्रमोशन के लिए भारत ला सकते हैं. शाहरूख़ ने रईस की ट्रेलर रिलीज के समय रितेश की इस बात से सहमति जताई थी.
बस फिर क्या था. मामला गर्मा गया.
शाहरुख की मां-बहन-प्रेमिका तो विलन के चंगुल में नहीं फंसी लेकिन लगा कि फिल्म की रिलीज जरूर अटक गई. डायलॉग वाली सिचुएशन आ गई.
अब दांव हीरो को चलना था. लेकिन अब हीरो ने कोई गजब कमाल नहीं किया.
शाहरूख़ ने राज ठाकरे से मुलाकात की और सफाई दी. बताया जा रहा है कि शाहरूख़ ने वादा किया कि वह माहिरा को यहां नहीं बुलाएंगे. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, शाहरूख़ ने ठाकरे से ये भी कहा कि आगे से वह अपनी फिल्मों में पाकिस्तानी कलाकारों को नहीं लेंगे. यह भी बताया जा रहा है कि शाहरुख और राज की इस मुलाकात के कराने के पीछे सलमान खान की अहम भूमिका रही. दूरदर्शन वाली फिल्मों में भी दोस्तों की मदद बिना हीरो मां/बहन/प्रेमिका को छुड़ा नहीं पाता था. यहां भी शाहरुख को दोस्त की मदद मिल गई.
शाहरूख़ की राज से हुई मुलाकात से यह तो साबित हो गया है कि फिल्म इंडस्ट्री में अब एक सेंसर बोर्ड पैदा हो गया है. अब तक सेंसर से झगड़ने वाले फिल्मवाले अब राज ठाकरे और उनके जैसे नेताओं के सर्टिफिकेट का भी इंतजार करेंगे. फिल्मों पर यह सेंसर लगाने वाले कम नहीं हैं. मुंबई में पहले शिवसेना थी, आज राज ठाकरे हैं, कल कोई और होगा.
हालांकि पहले फिल्में भारी विरोध के बाद भी रिलीज हो जाती थीं. वे थोड़ा बिजनेस का नुकसान उठा लेती थीं लेकिन उन्हें मुफ्त की पब्लिसिटी भी मिल जाती थी. अब फिल्म अटकने के नुकसान बड़े हैं. फिल्मों पर कई करोड़ों के दांव लगे हैं. शाहरुख का करियर दांव पर लगा है. हीरो के पास हारने के लिए बहुत कुछ है.
सो हीरो अब विलन के पास जाता है. उसकी बात भी मानता है. तब जाकर मां/बहन/प्रेमिका यानी फिल्म की सलामती पक्की हो पाती है. फिल्मों में सैकड़ों को निपटानेवाला हीरो असल जिंदगी में मुठ्ठी भर कार्यकर्ताओं से डर जाता है. इसलिए नहीं कि हीरो में दम नहीं है. इसलिए कि हीरो 'अब हार कर जीतने वाला' बाजीगर नहीं है, वह '100 करोड़ कमाकर खाने वाला' सौदागर है.
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