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Ease Of Doing Business: रैंकिंग सुधरने से नहीं बनेगी बात, निवेश बढ़ाना बहुत जरूरी

प्रदर्शन वाकई में बेहतर है और ऐसे में अगला सवाल यह है कि इसका मतलब क्या है? क्या निवेश में बढ़ोतरी होगी?

Madan Sabnavis

विभिन्न सरकारों और अर्थशास्त्रियों ने बार-बार विश्व बैंक के ईज ऑफ डूइंग बिजनेस इंडेक्स को खारिज किया है. दरअसल ईज ऑफ डूइंग बिजनेस इंडेक्स यानी कारोबार करने में सहूलियत को आंकने वाले सूचकांक में भारत का स्थान काफी नीचे और 130-140वें पायदान पर रहता था.

हालांकि, मौजूदा सरकार ने इस स्थिति को सुधारने के लिए वाकई में कड़ी मेहनत की और यहां इसके नतीजे देखने को मिल रहे हैं. इस मामले में भारत की रैंकिंग 2017 में 100वें पायदान पर थी, जो 2018 में बेहतर होते हुए 77वें पायदान पर पहुंच गई. इसे काफी उल्लेखनीय माना जा सकता है.


रैंकिंग को किस तरह से देखा जाए?

इस रैंक को किस तरह से देखा जा सकता है? यह रैंकिंग दो शहरों- मुंबई और दिल्ली में मौजूद उद्योगों से संबंधित सर्वेक्षण पर आधारित होती है. सर्वे में भाग लेने वाले प्रतिनिधि अपनी राय देते हैं. इसके साथ-साथ रैंकिंग से जुड़ी अन्य प्रक्रिया के तहत काम किया जाता है और इसके बाद रैंकिंग का ठीक-ठीक आकलन किया जाता है. ऐसे में दो चीजें पूरी तरह से साफ हैंः

पहला यह कि हमें पता है कि विश्व बैंक कौन-कौन से पहलू देख रहा है. दूसरा, हमें अपनी स्थिति के बारे में पता होने पर इससे जुड़ी दिक्कतों से निपटना संभव है. विशेष तौर पर यह वैसी स्थिति में और ज्यादा संभव है, जब इस तरह की चीजें नीति संबंधी दायरे में हों.

लिहाजा, इस बात को जरूर ध्यान में रखा जाना चाहिए कि इन दो शहरों में जो स्थिति रहती है, वह अन्य जगहों पर नहीं होती. जाहिर तौर पर इसका मतलब यह है कि बाकी जगहों पर चीजें बेहतर या खराब हो सकती हैं. क्या इन कमियों को दुरुस्त करते हुए जानबूझकर रैंक पर ध्यान केंद्रित करना किसी लिहाज से अनुचित माना जा सकता है? ऐसा नहीं है, क्योंकि ये सूचकांक सभी देशों के लिए एक जैसे हैं और ऐसा करते हुए हम बिजनेस के लिए साफ-सुथरा माहौल तैयार करते हैं.

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अगर हम पिछली दो रैंकिंग की सूचियों को देखें तो हम देख सकते हैं कि भारत लगातार दो साल से अपनी रैंक सुधारने में सबसे आगे है. विश्व बैंक की तरफ से ईज ऑफ डूंइंग बिजनेस के सिलसिले में जो 10 संकेतक शामिल किए हैं, उनमें बिजनेस शुरू करने, कंस्ट्रक्शन परमिट हासिल करने और सीमाओं के पार व्यापार जैसे मामलों में काफी सुधार देखने को मिला है.

गैर-जरूरी प्रक्रियाओं को हटाने पर और काम करने की जरूरत

नीचे दिया गया टेबल वास्तविक अर्थों में इस सुधार की एक तरह की तुलनात्मक तस्वीर पेश करता है. इसके तहत पिछले दो साल में दिनों या घंटों का जिक्र किया गया है, जिसमें काफी अंतर आया.

जैसा कि टेबल में देखा जा सकता है, सिर्फ मंजूरी प्रदान करने में लगने वाली समयसीमा में कटौती कर बिजनेस करना आसान बनाया जा सकता है. साथ ही, सरकार की तरफ से इस समयसीमा को महज एक साल में कम करना इस बात की तरफ भी इशारा करता है कि लंबे समय से चली आ रही इन प्रक्रियाओं की कभी इस तरह से समीक्षा नहीं की गई. नौकरशाही के स्तर पर चीजों को आगे बढ़ाने से जुड़े कागजी काम काफी उबाऊ होते हैं और इससे बिजनेस की लागत भी बढ़ जाती है.

ऐसे ही मामलों के मद्देनजर एक अलग स्तर पर हम मुंबई में ड्राइविंग लाइसेंस रिन्यू कराने की प्रक्रिया का उदाहरण दे सकते हैं. यह काम राष्ट्रीय ऑनलाइन चैनल के जरिए होता है. इसके लिए आवेदन ऑनलाइन दिया जाता है और लाइसेंस नंबर डालने के साथ ही किसी शख्स से संबंधित जानकारी दिखने लगती है. लाइसेंस रिन्यू कराने वाले लोगों को सिर्फ आधार की कॉपी और डॉक्टर का सर्टिफिकेट लेकर इसे अपलोड करना पड़ता है. हालांकि, इस प्रक्रिया को पूरी करने के बाद आज भी रीजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिस जाकर (आरटीओ) ये दस्तावेज वहां जमा करना जरूरी है. हालांकि, आरटीओ में इन दस्तावजों की जांच-पड़ताल नहीं होती, बल्कि अधिकारी वहां इसे सिर्फ अभिप्रमाणित करते हैं. यह पूरी प्रक्रिया इस बात को दर्शाती है कि आरटीओ जाकर वहां दस्तावेजों की हार्ड कॉपी देने की प्रक्रिया कितनी अप्रासंगिक है. जाहिर तौर पर इसी तरह की कई प्रक्रिया और नियम होंगे, जिनका पालन करना भारत में बिजनेस करने के लिए जरूरी तौर पर करना पड़ता होगा.

कई मानकों में हुए सुधार ने जगाई उम्मीद की किरण

बहरहाल, हमारा परफॉर्मेंस कैसा रहा है? बिजनेस शुरू करने के मामले में भारत की रैंकिंग 156 से 137वें पायदान पर पहुंच गई है, जो काफी अच्छा है. जहां तक कंस्ट्रक्शन परमिट के मामलों से निपटने की बात है, तो इससे जुड़ी रैंकिंग 181 से 52 पर पहुंच गई, जबकि लागत वेयरहाउस वैल्यू का 23 फीसदी से घटकर 5.4 फीसदी हो गई है. इसे इंडस्ट्री के लिए बड़ा फायदा माना जा सकता है. इलेक्ट्रॉनिक कनेक्शन हासिल करने की लागत 97 फीसदी से घटकर 30 फीसदी हो गई है, जो एक और बड़ा फायदा है. और आखिर में प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन के लिए रैंक और स्कोर में गिरावट रही है. दिनों की संख्या 53 से बढ़कर 69 हो गई है. निश्चित तौर पर सरकार इस मामले में अगले दौर में काम करेगी.

बाजार के अगले दो मानकों के मामले में भी भारत का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है. क्रेडिट (लोन) हासिल करने के मामले में भारत ऊपर उठते हुए 29वें से 22वें पायदान पर पहुंच गया है और वह भी 100 फीसदी क्रेडिट ब्यूरो कवरेज के साथ. इससे पहले क्रेडिट ब्यूरो कवरेज का आंकड़ा महज 43.5 फीसदी था. छोटे शेयरधारकों के हितों की सुरक्षा का मामला इस बार भी पहले के स्तर के आसपास ही बना रहा. हालांकि, इस मानक से जुड़ा स्कोर पहले ही काफी ऊंचा यानी 80 है और इस मोर्चे पर आगे और सुधार के लिए गुंजाइश मुश्किल हो सकती है.

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GST से संबंधित नियमों की समीक्षा की सख्त जरूरत

हालांकि, टैक्स के भुगतान के मामले में नतीजे थोड़े हैरान करने वाले हैं. दरअसल, सिस्टम को जटिलता से मुक्त करने के मकसद से लाई गई गु्ड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) प्रणाली के कारण ऐसा हुआ. इस मोर्चे पर रैंकिंग में दो पायदान की गिरावट है और भुगतान के मोर्चे पर भी मामूली कमी देखने को मिली है. साथ ही, कंप्लायंस में लगने वाला वक्त भी 214 से बढ़कर 275 घंटे हो गया है. जाहिर तौर अगर आने वाले वक्त में इन चीजों को सुधारना है, तो जीएसटी से संबंधित प्रक्रियाओं की समीक्षा करने की सख्त जरूरत है.

विदेशी व्यापार मोर्चे पर अर्थव्यवस्था ने अहम बढ़ोतरी हासिल की और इससे संबंधित रैंक 146 से 80वें पायदान पर पहुंच गई है. यह विशेष तौर पर एक्सपोर्टर्स के लिहाज से काफी अच्छा है. सरकार का काम यह सुनिश्चित करना है कि कुछ बदलाव सभी प्रमुख शहरों और राज्यों में किए जाएं, ताकि ये फायदे सभी व्यापारियों को उपलब्ध कराए जा सकें.

कॉन्ट्रैक्ट लागू करने और दिवालियापन से जुड़ी कानूनी प्रक्रियाओं में एक तरह से बिल्कुल भी बदलाव नहीं हुआ है और कुछ मामलों में तो इससे जुड़ी स्थितियों में थोड़ी गिरावट ही आई है. यह उम्मीद की जा सकती है कि दिवालियापन (इंसॉल्वेंसी) से संबंधित मानकों के मामले में हालात में अगले साल सुधार होगा. दरअसल, इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) ने सकारात्मक संकेत देने शुरू कर दिए हैं (इस अध्ययन में डेटा मई 2018 तक का है).

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि प्रदर्शन वाकई में बेहतर है और ऐसे में अगला सवाल यह है कि इसका मतलब क्या है? क्या निवेश में बढ़ोतरी होगी? हालांकि, यहां यह बताना जरूरी है कि हमें निवेश में बढ़ोतरी और बिजनेस करने से संबंधित लागत में कमी के बीच अंतर करने की जरूरत है.

बहरहाल, रैंकिंग में इस सुधार का मतलब यह है कि बिजनेस करने की लागत अब कम है. उदारहण के तौर पर 500 करोड़ का प्रोजेक्ट स्थापित करने की इच्छा रखने वाले शख्स को अब परमिट हासिल करने में कम वक्त लगता है और वह अब पहले के मुकाबले 100 दिन पहले बिजनेस शुरू करने में सक्षम है. जाहिर है कि इस सिलसिले में लिए गए कर्ज पर ब्याज की बचत भी काफी अहम होगी. नीतियां सक्षमता प्रदान करती हैं, लेकिन वे खुद से निवेश को नहीं बढ़ा सकती हैं.

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अब निश्चित तौर पर लक्ष्य रजिस्ट्रेशन और इनसॉल्वेंसी से जुड़ी दिक्कतों को दूर करने पर होगा, जिससे अगले साल रैंक 50 के आसपास पहुंच जाने की उम्मीद की जानी चाहिए. इन सुधारों को अंजाम देने के लिए निश्चित तौर पर सरकार की प्रशंसा की जानी चाहिए. साथ ही, इस सिलसिले में राज्यों के बीच प्रतिस्पर्धा को देखते हुए अन्य शहरों और महानगरों में भी इस मोर्चे पर तेजी की उम्मीद की जा सकती है.

(लेखक केयर रेटिंग्स में चीफ इकनॉमिस्ट और 'इकनॉमिक्स ऑफ इंडियाः हाउ टू फूल ऑल पीपल फॉर ऑल टाइम्स' के लेखक हैं)