योजना आयोग को खत्म कर के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को ट्रांसफॉर्म करने के लिए एक संस्था का गठन करने का ऐलान किया था. इसे नाम दिया गया नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया यानी नीति आयोग. इसके सीईओ बने केरल कैडर के आईएएस अधिकारी अमिताभ कांत. अमिताभ कांत केरल में टूरिज्म सेक्रेटरी थे. अब 2015 में बने नीति आयोग के सीईओ हैं. आज उनकी चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि नीति आयोग के सीईओ पद पर तीन साल से अधिक समय व्यतीत करने के बाद अमिताभ कांत ने आखिरकार उस कारण का पता लगा लिया है, जिसकी वजह से भारत ट्रांसफॉर्म नहीं हो पा रहा है.
अमिताभ कांत ने जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में अब्दुल गफ्फार खान मेमोरियल के पहले लेक्चर में कहा था कि बिहार, यूपी, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों के कारण भारत पिछड़ा बना हुआ है. उन्होंने कहा था कि सामाजिक संकेतों की बात करें तो ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में हमने तेजी से सुधार किए हैं, लेकिन ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स (मानव विकास सूचकांक) में हम पिछड़े हैं.
सबसे पहले अमिताभ कांत के बयान पर बात कर लेते हैं फिर इन राज्यों के पिछड़े होने के कारणों पर चर्चा करेंगे. पीएम मोदी ने 15 अगस्त 2014 को लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए कहा था कि प्लानिंग कमिशन को खत्म कर एक नई संस्था बनाई जाएगी जो भारत को तेजी से ट्रांसफॉर्म करेगी. उनके इस बयान के बाद आजादी के बाद से चले आ रहे प्लानिंग कमिशन का अंत हो गया और जनवरी 2015 में एक नए संस्था का जन्म हुआ जिसे नीति आयोग के नाम से जाना जाता है.
अमिताभ कांत ने जो कहा, वह नरसिम्हा राव काफी पहले कह चुके हैं
नीति आयोग के सीईओ से हम कुछ शोध परख बयानों की उम्मीद रखते हैं क्योंकि एक आईएएस अधिकारी और इतने बड़े संस्था की जिम्मेदारी संभाल रहे अमिताभ कांत से नेताओं की तरह चुनावी जुमले जैसे बयान सुनना शोभा नहीं देता. जो बात नीति आयोग के सीईओ ने अब बोली है उसमें नया कुछ भी नहीं है.
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यह बात तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव लगभग 25-26 साल पहले बोल चुके हैं. उन्होंने कहा था कि बीमारू राज्यों (बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान, तब छत्तीसगढ़ और झारखंड नहीं थे) की वजह से देश पिछड़ा हुआ है. कहा जाता है कि पीवी नरसिम्हा राव के बयान के बाद ही बीमारू राज्य शब्द भारतीय राजनीति में आया.
खैर, अमिताभ कांत के बयान को सम्मान देना बनता है क्योंकि आंकड़ों के खेल में उनकी बातें एकदम सटीक बैठती हैं. लेकिन जो कारण आंकड़ों पर उनकी बातों को फिट करते हैं उनके पीछे की नीतियों को जानना बेहद जरूरी मालूम पड़ता है. सिर्फ आधी बात कह देने से और आंकड़ों का हवाला देकर अपनी बात को सही साबित घोषित कर देना भारत जैसे देश के लिए सही नहीं होगा.
फ्रेट इक्वलाइजेशन पॉलिसी ले डूबी बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों को
अमिताभ कांत ने अपनी बात तो बड़ी आसानी से रख दी कि भारत को ट्रांसफॉर्म होने से ये चार-पांच राज्य रोक रहे हैं. ठीक उसी समय अगर अमिताभ कांत यह भी बताते कि सरकार की नीतियां भी इन राज्यों के पिछड़ेपन में बराबर की भागीदार हैं, लेकिन उन्होंने इसे बताना गंवारा नहीं समझा.
आजादी के पांच साल बाद, वर्ष 1952 में फ्रेट इक्वलाइजेशन पॉलिसी को लागू किया गया. इस पॉलिसी के तहत तय हुआ कि कोई भी उद्योगपति देश के किसी भी कोने में उद्योग लगा सकता है. इसमें सुविधा दी गई कि उद्योगपतियों को कच्चेमाल की ढुलाई के लिए सरकार की तरफ से सब्सिडी दी जाएगी. इसका मतलब हुआ कि कोई कच्चा माल जितनी कीमत में झारखंड इलाके में मिलेगा, तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र और केरल या देश के किसी अन्य हिस्से में भी उद्योगपतियों को उतनी ही कीमत का भुगतान करना पड़ेगा.
फ्रेट इक्वलाइजेशन का खनिज संपन्न राज्यों पर पड़ा बुरा असर
बिहार के पत्रकार पुष्यमित्र बताते हैं कि इस पॉलिसी का असर यह हुआ कि बिहार और मध्य प्रदेश जैसे खनिज संपदा से संपन्न राज्यों का कबाड़ा हो गया. उद्योगपतियों ने आसानी से माल बाहर भेजने के लिए सारे उद्योग कोस्टल एरिया में लगाए. अगर फ्रेट इक्वलाइजेशन पॉलिसी नहीं होती तो खनिज और रॉ मैटेरियल की ढुलाई का खर्च बचाने के लिए मजबूरन उद्योगपतियों को सारे उद्योग खनिज संपन्न झारखंड जैसे इलाकों में और एमपी-छत्तीसगढ़ के इलाकों में लगते. इससे रोजगार भी बढ़ता और राज्य का रेवेन्यू भी. तब ये राज्य बीमारू नहीं बनते और गरीबी नहीं होती तो लोगों में जागरूकता भी आती.
बिहार के इलाकों में जो उद्योग पहले से लगे थे, उनका भी मुख्यालय कोलकाता और मुम्बई में है. जैसे टाटा, आईटीसी आदि. लिहाजा वे काम तो इन इलाकों में करते हैं और टैक्स दूसरे राज्यों को चुकाते हैं. टाटा को इंदिरा गांधी ने टैक्स के मामले में इतनी छूट दे दी कि बिहार के एक कांग्रेसी मुख्यमंत्री को सार्वजनिक नाराजगी व्यक्त करनी पड़ी. लिहाजा उन्हें कुर्सी से हटा दिया गया.
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी मानी थी फ्रेट इक्वलाइजेशन पॉलिसी के कारण बिहार के पिछड़ने की बात
फ्रेट इक्वलाइजेशन पॉलिसी से बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों को हुए नुकसान की बात को पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भी स्वीकार कर चुके हैं. 2017 मार्च में एक कार्यक्रम में बोलते हुए प्रणब मुखर्जी ने कहा था कि बिहार समेत अन्य पूर्वी राज्य इस पॉलिसी के कारण आर्थिक विकास की प्रतिस्पर्धा में पिछड़ गए.
मुखर्जी ने कहा था कि खनिज संसाधन और उपजाऊ जमीन होने के बाद भी फ्रेट इक्वलाइजेशन पॉलिसी के कारण बिहार जैसे राज्य वांछित प्रगति नहीं कर सके. प्रणब मुखर्जी वित्त मंत्री रहने के साथ-साथ 1991 से लेकर 1996 तक प्लानिंग कमिशन के उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं.
नीति आयोग और अमिताभ कांत
केरल कैडर के प्रशासनिक अधिकारी अमिताभ कांत नीति आयोग से पहले दिल्ली मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर प्रोजेक्ट को हेड कर रहे थे. उन्होंने इस प्रोजेक्ट के लिए वर्ल्ड बैंक से मदद मांगी थी जो नहीं मिली. उसके बाद जापान की मदद से इस प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है. इस प्रोजेक्ट का क्या हुआ यह तो अमिताभ कांत और भारत सरकार के आंकड़े ही बता पाएंगे.
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नीति आयोग सीईओ का पद अमिताभ कांत को प्रधानमंत्री ने बड़ी उम्मीदों के साथ पद सौंपा था लेकिन आज नीति आयोग की स्थिति एक सरकारी कंसलटेंसी जैसी हो कर रह गई है. काम और विकास सिर्फ एक्सल, पीपीटी पर हो रहा है.
उम्मीद करते हैं कि आने वाले समय में अमिताभ कांत जैसे जिम्मेदार लोग इन राज्यों के पिछड़ेपन का रोना छोड़ कुछ कारगर कदम उठाएंगे. अगर ऐसा हुआ तो ये राज्य खुद ट्रांसफॉर्म होने के साथ-साथ इंडिया को भी ट्रांसफॉर्म करने का माद्दा रखने वाले हैं. फिर प्रधानमंत्री ने जिस सपने के साथ इसका गठन किया था वह भी साकार होगा.
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