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ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग कैसे मापी जाती है, नंबर 1 बनने के लिए क्या है जरूरी

हाल ही में वर्ल्ड बैंक ने ईज ऑफ डूईंग बिजनेस रैंकिंग जारी की, जिसमें भारत ने पिछले साल के मुकाबले 23 पायदान की ऊंची छलांग लगाई

Updated On: Nov 01, 2018 10:37 AM IST

FP Staff

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ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग कैसे मापी जाती है, नंबर 1 बनने के लिए क्या है जरूरी

वर्ल्ड बैंक ने ईज ऑफ डूईंग बिजनेस रैंकिंग जारी की, जिसमें भारत ने पिछले साल के मुकाबले 23 पायदान की ऊंची छलांग लगाई. इस रैंकिंग में भारत अब 77वें स्थान पर पहुंच गया है. माना जा रहा है कि इससे भारत को अधिक विदेशी निवेश आकर्षित करने में मदद मिलेगी. बैंकों के फंसे कर्ज की समस्या से निजात दिलाने के लिए शुरू की गई दिवाला निपटान प्रक्रिया, जीएसटी जैसे कर क्षेत्र के सुधार और अर्थव्यवस्था के कुछ अन्य क्षेत्रों में सुधार से भारत ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग में अपनी स्थिति में उल्लेखनीय सुधार कर पाया है.

इस रैंकिंग को मापने का पैमाना क्या है

पर क्या आप ये जानते हैं कि आखिर ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग मापने का पैमाना क्या है और इस रैंकिंग में पहले स्थान पर पहुंचने के लिए करना क्या होगा. दरअसल किसी भी देश को इस रैंकिंग में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए 10 मानदंडों पर आगे होना जरूरी है. जिसमें कारोबार शुरू करना, निर्माण परमिट, बिजली की सुविधा प्राप्त करना, कर्ज प्राप्त करना, करों का भुगतान, सीमापार व्यापार, अनुबंधों को लागू करना, टैक्स चुकाना, छोटे निवेशकों का संरक्षण और दिवाला प्रक्रिया जैसे उपाय शामिल है.

भारत की स्थिति कहां-कहां सुधरी

विश्व बैंक की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की 2019 की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में कारोबार शुरू करने और उसमें सुगमता से संबंधित 10 मानदंडों में से छह में भारत की स्थिति सुधरी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में कारोबार शुरू करने के लिए कई तरह के आवेदन पत्रों को एकीकृत किया गया है. भारत ने मूल्य वर्धित कर (वैट) को माल एवं सेवा कर (जीएसटी) से बदला है जिससे पंजीकरण की प्रक्रिया तेज हुई है.

जीएसटी हुआ मददगार साबित

विश्व बैंक ने कहा कि इसके साथ ही भारत ने कई अप्रत्यक्ष करो (इनडायरेक्ट टैक्स) को एक अप्रत्यक्ष कर जीएसटी में समाहित कर दिया है. पूरे देश में यही टैक्स लागू है. इसके अलावा भारत ने टैक्स के भुगतान की लागत को भी कम किया है. कंपनी आयकर की दर को कम किया गया है. नियोक्ता द्वारा भुगतान किए जाने वाले कर्मचारी भविष्य निधि कोष योजना की दर भी कम की गई है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में दिवाला प्रक्रिया के लिए एक बेहतर तरीके से ढांचा बनाया गया है. ऋण वसूली न्यायाधिकरणों से एनपीए 28 प्रतिशत कम हुई हैं. बड़े कर्जों पर ब्याज दर कम की गई है. इससे पता चलता है कि ऋण वसूली के मामलों के तेजी से निपटान से कर्ज की लागत घटती है. इसके अलावा भारत ने विभिन्न तरह के कदमों के जरिए निर्यात और आयात की लागत और इसमें लगने वाले समय को भी कम किया है. विश्व बैंक ने कहा कि भारत ने भवन के लिए परमिट की प्रक्रिया को तर्कसंगत किया है और इसे तेज और कम खर्चीला बनाया है.

(एजेंसी इनपुट)

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