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नेपाल और श्रीलंका के लोग दक्षिण एशिया के अन्य देशों के नागरिकों से अलग क्यों हैं?

नेपाल की पुलिस रिश्वत नहीं लेती. ये बात काबिले यकीन नहीं लगी.

Aakar Patel

कुछ दिनों पहले मैं नेपाल गया था. वहां की राजधानी काठमांडू में मैंने एक दिलचस्प चीज देखी. काठमांडू भी दक्षिण एशिया के बाकी शहरों जैसा ही है. यहां भी ज्यादातर लोग अमीर नहीं हैं.

शहर के घर सामान्य से हैं और सड़क पर जगह से ज्यादा ट्रैफिक दिखाई देता है. शहर के ज्यादातर चौराहों पर ट्रैफिक सिग्नल काम नहीं कर रहे थे. इसीलिए चौराहों पर पुलिसवाले को ट्रैफिक की निगरानी करनी पड़ रही थी.


ये मंजर हम अपने देश के ज्यादातर शहरों में देखते हैं. मगर वहां की सबसे दिलचस्प बात ये थी ट्रैफिक होने के बावजूद कोई हॉर्न नहीं बजा रहा था. मैं बीस साल बाद काठमांडू गया था. इसलिए ये याद नहीं कर पाया कि बीस साल पहले भी काठमांडू में ऐसा ही था या नहीं.

मैंने जब एक स्थानीय आदमी से पूछा तो उसने कहा कि पिछले हफ्ते ही लोगों को हॉर्न बजाने से रोकने के लिए एक कानून बना है या आदेश पारित किया गया है. मुझे यकीन नहीं हुआ. मैंने पूछा कि क्या सिर्फ कानून बनाने या आदेश देने से लोगों ने हॉर्न बजाना बंद कर दिया? मेरे इस सवाल का जवाब हां में मिला.

वहां की पुलिस रिश्वत नहीं लेती. ये बात काबिले यकीन नहीं लगी. एक और बात जो गौर करने लायक थी वो ये कि संकरी होने के बावजूद जहां भी सड़क दो हिस्सों में बंटी थी वहां ट्रैफिक पूरी तरह से नियमबद्ध तरीके से चल रहा था. सभी लोग अपनी लेन में चल रहे थे भले ही उनकी लेन में भीड़ हो और बगल की लेन खाली हो.

दक्षिण एशिया के किसी और देश में ऐसा मंजर देख पाना कमोबेश नामुमकिन है. सिर्फ एक देश और है जहां ऐसा देखने को मिल सकता हैं. मैं उस देश का जिक्र बाद में करूंगा. अभी नेपाल की बात करते हैं.

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काठमांडू का बौद्धनाथ मंदिर (तस्वीर- विकीमीडिया)

मंदिरों का शहर काठमांडू

नेपाल में कई खूबसूरत और बड़े मंदिर हैं. इनमें सबसे बड़ा मंदिर काठमांडू का पशुपतिनाथ मंदिर है. इसके आंगन में नंदी की विशालकाय मूर्ति है. इसकी खूबसूरती समझने के लिए पढ़ने वाले इंटरनेट पर इसकी तस्वीरें तलाश सकते हैं. तस्वीर देखकर इस नंदी की खूबसूरती का एहसास होगा.

पशुपतिनाथ के पुजारी केरल के नंबूदरी ब्राह्मण होते हैं. ये परंपरा सदियों से चली आ रही है. नेपाल के माओवादी चाहते हैं कि स्थानीय ब्राह्मण ही पशुपतिनाथ मंदिर के पुजारी बनें मगर अब तक ऐसा नहीं हो पाया है.

इस मंदिर मे नियमित रूप से जानवरों की बलि दी जाती है. मंदिर में हर महीने भैंसे की बलि भी दी जाती है. भारत के मंदिरों में भैंसे की बलि की परंपरा नहीं हैं. हालांकि पहले ऐसा नहीं था.

मशहूर लेखकर नीरद सी. चौधरी ने अपनी आत्मकथा में इसका जिक्र किया है. चौधरी ने लिखा है कि उनके बचपन में यानी करीब एक सदी पहले बंगाल में भैंसे की बलि दी जाती थी. लेकिन भारत के एक या दो मंदिरों को छोड़ दें तो अब हमारे देश के किसी मंदिर मे भैसे की बलि नहीं दी जाती है.

आज अगर भारत के किसी मंदिर में भैंसे की बलि देने की कोशिश की जाए तो उसकी हत्या तक हो सकती है. लेकिन नेपाल में ऐसा नहीं है.

नेपाल के बारे में एक और खास बात है कि यहां बौद्ध धर्म भी जिंदा है. यहां पर बौद्ध धर्म के वज्रयान संप्रदाय के अनुयायी रहते हैं. बौद्धों का ये संप्रदाय बेहद संवेदनशील है और भारत में इसकी मिसाल नहीं मिलती. भारत में बौद्ध धर्म अब पुराने अवशेषों में ही मिलता है.

हां..कई दलित बौद्ध धर्म के नवयान संप्रदाय के अनुयायी हैं. भारत में बौद्ध धर्म के अनुयायी बहुत कम ही हैं. ऐसे में सवाल ये है कि नेपाल में बौद्ध धर्म का इतना असर कैसे दिखता है? मुझे इस सवाल का जवाब नहीं मालूम.

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काठमांडू का बौद्ध स्वयंभूनाथ मंदिर (तस्वीर- विकीमीडिया)

बुद्ध का जन्मस्थान

नेपाल में लुंबिनी नाम की जगह को बुद्ध का जन्म स्थान कहा जाता है. कुछ साल पहले उत्तर-प्रदेश के पर्यटन विभाग ने दावा किया था कि बुद्ध उत्तर-प्रदेश में जन्मे थे. लेकिन इस दावे को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया.

नेपाल में तिब्बत के बौद्ध धर्म का असर ज्यादा दिखता है. काठमांडू मे बौद्ध धर्म का एक शानदार मंदिर है जिसका नाम स्वयंभूनाथ है. यहां पर आने वालों को हिंदू या बौद्ध की अलग-अलग कतारों में नहीं खड़ा किया जाता. सभी कोई मंदिर में एक साथ जा सकते हैं.

इस मंदिर को देखकर हमें भारत की अजमेर और निजामुद्दीन दरगाह की याद आती है.

मैंने शुरुआत में एक और देश का जिक्र किया था जो दक्षिण एशिया के बाकी देशों से अलग है. वो देश श्रीलंका है. श्रींलंका भी बौद्ध धर्म का अनुयायी देश है. श्रीलंका में बौद्ध धर्म की थेरावाडा या हिंदयान शाखा के अनुयायी रहते हैं.

मुझे बौद्ध धर्म की इस शाखा के बारे में कुछ-कुछ पता है. मुझे ये जानकारी जर्मन विद्वान मैक्स-म्यूलर की वजह से मिली. उन्होंने थेरावाडा संप्रदाय के धर्मग्रंथों का पाली भाषा से अनुवाद किया था.

भारत से श्रीलंका जाने वालों को फौरन ये एहसास होगा कि श्रीलंका हमारे देश की तरह गंदा और अराजक नहीं दिखता. सड़कें और रिहाइशी इलाके साफ-सुथरे और करीने वाले दिखते हैं. श्रीलंका के लोग भी हमसे थोड़े अलग ही दिखते हैं. हालांकि..मुझे नहीं मालूम कि इसकी वजह क्या है.

क्या इस फर्क की वजह धर्म है? मैं ये सवाल इसलिए कर रहा हूं क्योंकि दुनिया के इस कोने में एक सदी पहले इतनी बड़ी तादाद में लोग साक्षर नहीं थे. ऐसे मे लोगों की जानकारी और समझ बढ़ाने का सबसे बड़ा जरिया धर्म ही था.

मैं इस मुद्दे पर और ज्यादा अटकलें नहीं लगाना चाहता. हां, ये बात एकदम साफ है कि नेपाल और श्रीलंका के लोग दक्षिण एशिया के बाकी लोगों से अलग हैं.

अगर हम इस फर्क की वजह समझ सकें तो हम अपनी कमियों को बेहतर ढंग से समझ सकेंगे और हम अपने पड़ोसियों से कुछ अच्छी बातें सीख सकेंगे.