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क्या डोनाल्ड ट्रंप दुनिया की सबसे मनोरजंक शख्सियत हैं?

अमेरिकी राष्ट्रपति जिस तरह बयानों के गोले दाग रहे हैं, उसके आगे कादर खान के डायलॉग तक फेल हैं

Rakesh Kayasth

वे भारत से हजारों मील दूर बैठे हैं, फिर भी बॉलीवुड राइटर चाहें तो उनसे प्रेरणा ले सकते हैं. उनमें सुपरमैन, स्पाइडरमैन और बैटमैन की ताकत एक साथ समाई हुई है. वे धरम पाजी की तरह गरम हैं और सनी पाजी की तरह दुश्मन देश में घुसकर हैंडपंप उखाड़ने का जज्बा रखते हैं. उनका नाम डोनाल्ड ट्रंप है. वे दुनिया की सबसे पुराने लोकतंत्र के रखवाले और सबसे बड़ी महाशक्ति के मालिक हैं.

आत्मविश्वास से सिर से पांव तक नहाए, बेलाग और बड़बोले डोनाल्ड ट्रंप अपने बयानों की वजह से 2017 में वर्ल्ड मीडिया में छाए रहे. नया साल शुरू हुआ तो ट्रंप ने बता दिया कि सार्वजनिक संवाद को इस स्तर तक ले जाएंगे जिसकी कल्पना तक अब से पहले तक नहीं की गई थी.


'मेरा न्यूक्लियर बटन ज्यादा बड़ा है'

उत्तर कोरिया के सनकी तानाशाह किंम-जोंग-उन के साथ बयानों के अखाड़े में उतरकर दो-दो हाथ करने का ऐलान ट्रंप ने एक बार फिर किया है. मंजर किसी पुरानी हिंदी फिल्म के सीन की तरह है, जिसमें कोई बड़ा हीरो किसी गली के गुंडे को ललकारता है और उसका पीछा करता है. ट्रंप एकदम उसी अंदाज में जोंग को धमका रहे हैं. किम-जोंग-उन ने दावा किया था कि न्यूक्लियर बटन उसके डेस्क पर लगा हुआ है. हालांकि, उसने अपने बयान में कभी राष्ट्रपति ट्रंप का नाम नहीं लिया. लेकिन ट्रंप सीधे मैदान में कूद पड़े. ट्रंप ने कहा है कि मेरे पास ज्यादा बड़ा और शक्तिशाली न्यूक्लियर बटन है और वह काम भी करता है.

ट्रंप के इस बयान के बाद दुनिया भर में चुटकुलों का नया दौर शुरू हो गया. भारत में भी इस बयान को लेकर सोशल मीडिया पर तरह-तरह के लतीफे चल रहे हैं. इनमें एक लतीफा यह भी है कि राहुल गांधी ने कहा- न्यूक्लियर बटन मत दबाइएगा, वोट बीजेपी को पड़ जाएगा.

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हंसी-मजाक अपनी जगह. लेकिन क्या आपने इससे पहले किसी अमेरिकी राष्ट्रपति को इस तरह बयानों पर रिएक्ट करते देखा है? राष्ट्रपति बनने के बाद से ट्रंप कोरियाई तानाशाह जोंग को कई बार धमका चुके हैं और बदले में उससे गालियां सुन चुके हैं. अब पिछले अमेरिकी राष्ट्रपतियों के कड़े बयान याद करने की कोशिश कीजिए. कोल्ड वार के खात्मे के बाद से वाइट हाउस से सबसे ज्यादा गर्मा-गर्मी 9-11 के आंतकवादी हमले के बाद दिखी थी. रिपब्लिकन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्लू बुश ने पूरी दुनिया से कहा था- या तो आप हमारे साथ हैं या फिर हमारे दुश्मन हैं. लेकिन खुद बुश या किसी और अमेरिकी राष्ट्रपति ने उसके बाद ऐसे बयानों से यथासंभव परहेज किया. विरोधियों को धमकाने का जिम्मा विदेश मंत्रालय या रक्षामंत्री संभालते आए हैं. लेकिन नए निजाम में राष्ट्रपति ट्रंप ने खुद यह जिम्मेदारी उठा ली है.

सड़क छाप होती अंतरराष्ट्रीय कूटनीति

अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की अपनी एक अलग भाषा होती है. कड़वी बातें कहते वक्त भी शब्दों के चयन में खासी सावधानी बरती जाती है. लेकिन ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से पूरा मंजर बदला हुआ है. ईरान को लेकर वो दर्जनों ट्वीट कर चुके हैं. हर ट्वीट की भाषा ऐसी होती है, जैसे कोई अमेरिकी राष्ट्रपति नहीं बल्कि एक आम रिपब्लिकन कार्यकर्ता बोल रहा हो.

ईरान में चल रहे सरकार विरोधी आंदोलन का उन्होंने खुला समर्थन किया है. वे बार-बार ईरान के लोगों से मौजूदा सरकार को उखाड़ फेंकने की अपील कर रहे हैं. अगर अमेरिकी विदेश मंत्रालय का कोई प्रवक्ता ऐसी बात करे तो फिर भी समझ में आता है. लेकिन विश्व नेता की हैसियत रखने वाले राष्ट्रपति का दिन में तीन बार ट्वीट करके किसी विरोधी देश की सत्ता को ललकारना बहुत अजीब है.

राष्ट्रपति ट्रंप ने चीन पर उत्तर कोरिया को चोरी छिपे ईंधन सप्लाई करने का इल्जाम लगाते हुए एक ट्वीट दागा. इस ट्वीट में ट्रंप ने कहा- चीन रंगे हाथों पकड़ा गया. दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्क का मुखिया इतने चलताऊ ढंग से बयान कैसे दाग सकता है? जाहिर है, चीन ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया जताई और असर रिश्तों पर पड़ा.

ट्रंप की कार्यशैली की छाप अब पूरे अमेरिकी प्रशासन के संवाद में नजर आने लगी है. ग्लोबल वॉर्मिंग से लेकर मध्य-पूर्व के संकट तक जिन मुद्दों पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय अमेरिका से सहमत नहीं है, उन्हे लेकर ट्रंप प्रशासन धमकी दे रहा है. खुद ट्रंप नाटो को आर्थिक मदद रोकने की धमकी दे चुके हैं. येरुशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में औपचारिक रूप से मान्यता देने के अमेरिकी फैसले का दुनिया भर में विरोध हुआ तो ट्रंप प्रशासन आंखे दिखाने पर उतारू हो गया.

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संयुक्त राष्ट्र में इस मुद्दे पर वोटिंग हुई और अमेरिका के विरोध में 128 वोट पड़े और पक्ष में सिर्फ नौ. जाहिर है, यह अमेरिकी विदेश नीति की बड़ी नाकामी थी. लेकिन विश्व समुदाय की भावनाओं को नजरअंदाज करते हुए अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र की फंडिंग में कटौती करने तक की धमकी दी. यूएन में अमेरिकी प्रतिनिधि निकी हेली ने कहा- `अमेरिका आज का दिन हमेशा याद रखेगा’. कूटनीतिक संवाद में इतनी ज्यादा गिरावट ट्रंप से पहले देखने को नहीं मिली.

अब भी `इलेक्शन मोड’ में ट्रंप

डोनाल्ड ट्रंप की संवाद शैली की एक और विचित्रता यह है कि ईरान, चीन या उत्तर कोरिया जैसे अपने दुश्मनों को संदेश भेजते हुए वे अपने घरेलू राजनीतिक विरोधियों को भी लपेट लेते हैं. ईरान और पाकिस्तान की स्थिति पर टिप्पणी करते हुए ट्रंप ने एक नहीं बल्कि कई बार पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के फैसलों को मूर्खतापूर्ण बताया. दुनिया के किसी भी कोने में बरता जानेवाला यह एक सामान्य शिष्टाचार है कि विदेश नीति की बात करते हुए उसमें कभी घरेलू राजनीति को नहीं घसीटा जाता है. लेकिन ट्रंप लगातार यह सीमा लांघ रहे हैं.

ट्रंप को राष्ट्रपति बने साल भर हो चुका है. लेकिन ऐसा लगता है कि वे अब भी चुनावी कैंपेन कर रहे हैं. हर छोटी-बड़ी बात में वे ओबामा या क्लिंटन को ले आते हैं. मध्य-पूर्व और मैक्सिको जैसे वे तमाम मुद्दे लगातार उनकी जुबान पर होते हैं, जिन्हे लेकर रिपब्लिकन वोटर जज्बाती हैं. पिछले महीने अमेरिका के डुपोंट में एक रेल हादसा हुआ. प्रतिक्रिया जताते हुए ट्रंप फौरन अमेरिकी विदेश नीति और मध्य-पूर्व को ले आए, ट्रंप ने ट्वीट किया- मिडिल ईस्ट पर खरबों खर्च कर दिए गए लेकिन हमारे अपने देश के रोड, पुल, टनल और रेलवे इंफ्रास्ट्रक्चर की हालत खराब है. अब यह ज्यादा दिन नहीं चलने वाला.

मीडिया से घोषित दुश्मनी

जब सबकुछ ट्रंप को खुद अपने मुंह से बोलना है तो फिर वाइट हाउस को प्रवक्ताओं की क्या जरूरत? कूटनीतिक मामलों पर ताबड़तोड़ बयान दागने हैं तो फिर अमेरिकी विदेश मंत्रालय किसलिए है? यह भी अक्सर पूछा जाता है कि क्या डोनाल्ड ट्रंप को ट्विटर का एडिक्शन है? इसका जवाब खुद राष्ट्रपति ट्रंप ने ट्वीट करके दिया है. उनका कहना है कि मैं सोशल मीडिया पर इतना सक्रिय इसलिए हूं क्योंकि यह बेईमान और अन्यायी प्रेस से लड़ने का सबसे कारगर हथियार है.

मीडिया से राजनेताओं की नाराजगी कोई नई नहीं है. लेकिन डोनाल्ड ट्रंप ने इसे स्थाई दुश्मनी में बदल दिया है. ऐसा लगता है कि वे पूरे अमेरिकी प्रेस से मुंह चिढ़ाई का खेल खेल रहे हैं. राष्ट्रपति होते हुए उन्होने मीडिया संस्थानों के नाम लेकर उनपर हमले बोले हैं और एक कदम आगे बढ़ते हुए कुछ खास पत्रकार और एंकरों तक पर निशाना साधा है. साल के आखिर में ट्रंप ने एक ट्वीट करके कहा कि मैं बेईमान पत्रकारों को सम्मानित करने जा रहा हूं. यह मजाक था या ट्रंप सचमुच ऐसा करने जा रहे थे, इस पर अटकलें लगातार चलती रहीं. उनकी शख्सियत को देखते हुए नामुमकिन कुछ भी नहीं माना जा सकता.

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क्या बड़बोलेपन से ट्रंप को नुकसान हो रहा है?

मशहूर ब्रिटिश अखबार द टेलीग्राफ के सर्वे पर यकीन करें तो पिछले पांच राष्ट्रपतियों के मुकाबले डोनाल्ड ट्रंप का डिसअप्रूवल रेट सबसे ज्यादा हाई है. अमेरिका के 56 फीसदी लोग मानते हैं कि ट्रंप राष्ट्रपति पद की जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभा रहे हैं. लेकिन सारे सर्वे इस बात पर मुहर नहीं लगा रहे हैं. कुछ सर्वे का कहना है कि राष्ट्रपति बनने के फौरन बाद ट्रंप की लोकप्रियता जितने निचले स्तर थी, उसके मुकाबले अभी बेहतर है.

ट्रंप की लोकप्रियता में आई कमी वजह उनके बयानों से ज्यादा उनके काम को बताया जा रहा है. एफबीआई के चीफ को निकाल बाहर करना, रूस के साथ संदेहास्पद सांठ-गांठ के इल्जाम, हेल्थकेयर रिफॉर्म को आगे बढ़ाने में नाकामी, सेना में ट्रांस जेंडर्स की भर्ती पर रोक और नॉर्थ कोरिया जैसे मामले को संवेदनशील ढंग से हैंडल करने के बदले उस पर ओवररिएक्ट करना. कई ऐसी बातें हैं, जिन्हे लेकर आम अमेरिकी ट्रंप से नाराज हैं.

लेकिन कोई सर्वे यह दावे के साथ नहीं कह रहा है कि बड़बोलापन ट्रंप पर भारी पड़ा है. उल्टे ट्रंप का कोर वोटर उनकी इस शैली पर फिदा है. यानी ट्वि्टर पर ट्रंप जो तीर चला रहे हैं, उसका थोड़ा-बहुत क्रेडिट अमेरिकी वोटर को भी मिलना चाहिए. आखिर पुरानी कहावत है- किसी भी लोकतांत्रिक समाज को वैसा ही नेता मिलता है, जिसका वह हकदार होता है.