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'नौसिखिया' अल्हड़ पुलिस अफसर जिसने इंदिरा के बाद दूसरी सबसे बड़ी 'पॉलिटिकल-अरेस्ट' कर देश में कोहराम मचा दिया

इस अल्हड़ आईपीएस ऑफिसर ने कांग्रेस के दबंग नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री को 24 जून 1996 को सिख दंगों के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था, इस 'पॉलिटिकल अरेस्ट' से देश में सनसनी मच गई थी

Sanjeev Kumar Singh Chauhan

जिस सरकारी मशीनरी की तनख्वाह से आपके घर का चूल्हा जल रहा हो. उसी सरकार के पूर्व आला नेता या दबंग मंत्री को गिरफ्तार करने के मायने हर कोई समझ सकता है. मतलब खुद के हाथों से ही अपने घर के चूल्हे की आग बुझाना. देश की सरहद के भीतर ऐसे जिंदादिल कल भी थे. जरूरत है तो इसकी कि, जमाने की भीड़ से अलग ऐसी नजीरें पेश करने के जुनूनी जिंदादिलों को खोजकर सामने लाया जाए. एक अदद उनकी हौसला अफजाई की खातिर. ताकि आने वाली पीढ़ियां अपने सामने मौजूद पीढ़ी के नौजवानों को खूबसूरत इतिहास पढ़वा सकें. इस बार पेश ‘संडे क्राइम स्पेशल’ में हम आपको सुनवा रहे हैं एक ऐसे ही सिंपल मगर सूझबूझ वाले मौजूदा आईपीएस अफसर की मुंहजुबानी.

सन् 1962 में छपरा-सीवान (बिहार) का बसंतपुर गांव


बसंतपुर गाँव पहले बिहार राज्य के छपरा जिले में था. बाद में बसंतपुर गांव सीवान जिले का हिस्सा हो गया. इसी गांव के निवासी दंपत्ति बृजेंद्र नाथ सिन्हा-नीलिमा सिन्हा के यहां चार संतानों में सबसे बड़ी संतान के रूप में 1 फरवरी 1962 को बेटे ने जन्म लिया. कालांतर में नीलिमा और बृजेंद्र के यहां दो बेटों और एक बेटी ने भी जन्म लिया. इन्हीं चार संतानों में सबसे बड़ा बेटा अब बहैसियत एक दबंग आईपीएस देश की राजधानी दिल्ली में एडिशनल पुलिस कमिश्नर है. जिनका हम इस ‘संडे क्राइम स्पेशल’ में चर्चा कर रहे हैं.

गांव की प्राइमरी पाठशाला में क,ख,ग सिखाकर सिन्हा दंपत्ति बड़े बेटे को 4-5 साल की उम्र में ही लेकर शहर (छपरा) आ गए. बृजेंद्र सिन्हा बिहार सरकार के वित्त विभाग में सर्विस करते थे. जबकि पत्नी निलिमा सिन्हा स्कूल प्रिंसिपल थीं. छपरा के बृजकिशोर किंडर गार्डन स्कूल में 7वीं की पढ़ाई के बाद बहुउद्देशीय जिला हाईस्कूल छपरा से सन् 1977 में 11वीं की परीक्षा पास करते ही सिन्हा दंपत्ति ने बेटे का एडमीशन छपरा के राजेंद्र कॉलेज में इंटरमीडिएट में करा दिया.

बिहार से दिल्ली पहुंचते ही विवि का टॉपरबन गया

1979 में उच्च शिक्षा के लिए कालांतर में यही बालक दिल्ली आ गया. ग्रेजुएशन के लिए किरोड़ीमल कॉलेज में एडमिशन ले लिया. एक साल बतौर डे-स्कॉलर रहा. उसके बाद तिमारपुर इलाके में साझीदारी में कमरा लेकर रहने लगा. सन् 1983 में हिंदी ऑनर्स से दिल्ली विश्वविद्यालय में ‘टॉप’ कर गया. 1985 में किरोड़ीमल कॉलेज से ही हिंदी से एमए किया.

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पढ़ाई के साथ ही सिविल सर्विसेज की तैयारी

सन् 1986 में जूनियर रिसर्च फेलोशिप परीक्षा पास की. साथ ही सिविल सर्विसेज की तैयारी भी शुरू कर दी. सिविल सर्विसेज में डायरेक्ट आईएएस/आईपीएस में नंबर नहीं आया. उसमें क्लास-1 मिला. लिहाजा दिल्ली अंडमान एंड निकोबार आइलैंड पुलिस सर्विस (दानिप्स) ज्वाइन कर ली. सिविल सर्विसेज का 1987 में दोबारा एग्जाम दिया. तो इंडियन रेलवे ट्रैफिक सर्विस मिली.

अपने माता-पिता के साथ आईपीएस अधिकारी राजीव रंजन

जब दिल्ली पुलिस से इस्तीफा देना पड़ा था

इंडियन रेलवे ट्रैफिक सर्विस ज्वाइन करने के लिए सन् 1989 में दिल्ली पुलिस से इस्तीफा दे दिया. रेलवे सर्विस में बात नहीं जमी. सो 6 महीने में ही वहां से इस्तीफा देकर दिल्ली पुलिस में वापस आ गए. दिल्ली पुलिस में पहली पोस्टिंग मिली सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी) पी एंड एल (प्रोवीजन एंड लाइंस). यह बात है सन् 1990 की. अगले ही साल यानी सन् 1991 में ट्रांसफर होने पर उत्तर-पूर्वी जिले में एसीपी सीमापुरी सब-डिवीजन तैनात हुए. वहां से क्राइम ब्रांच में ट्रांसफर हो गया.

1984 दंगों की पेचीदा पड़ताल ने बदल दी जिंदगी

उन्हीं दिनों दिल्ली पुलिस में विशेष दंगा निरोधक जांच प्रकोष्ठ का गठन किया गया था. सन् 1996 तक यानी चार साल वहां तैनात रहे. 24 जनवरी सन् 1996 को देश के दबंग कांग्रेसी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री हरि किशन लाल भगत (एचकेएल भगत) को 1984 सिख दंगों के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. भगत की गिरफ्तारी के वारंट जारी किए थे देश के चर्चित और अब दिल्ली हाईकोर्ट से रिटायर हो चुके जस्टिस एसएन ढींगरा ने. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बाद भगत की गिरफ्तारी देश में कोई दूसरी सनसनीखेज ‘पॉलिटिकल-अरेस्ट’ थी. गिरफ्तारी हाई-प्रोफाइल एचकेएल भगत की हुई. छपरा से दिल्ली पहुंचा अदना सा मगर दबंग नौसिखिया पुलिस अफसर शोहरत की बुलंदियां छू बैठा था.

इकलौती फाँसी सजा कराने वाली टीम का बॉस

1984 के सिख दंगों में से चार मामलों की जांच कर रही पड़ताली टीमों की सुपरवाइजरी/इंचार्जी दिल्ली पुलिस के इसी अल्हड़ और नौसिखिये आला-अफसर के कंधों पर थी. इतिहास और दस्तावेज इस बात के गवाह हैं कि, करीब 34 साल से चली आ रही 1984 सिख दंगों की सैकड़ों ‘पड़ताल’ में, एक अदद जो फांसी और उम्रकैद की सजाएं हुईं, वह इसी दबंग पुलिस अफसर के सुपरवीजन वाली टीम द्वारा अदालत में पेश की गई ‘पड़तालों’ के आधार पर हुईं.

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उन चार मामलों की तफ्तीश में से दो में उम्रकैद और दो में किशोरी लाल नाम के आरोपी को देश के चर्चित जज एसएन ढींगरा (अब रिटायर्ड जस्टिस शिव नारायन ढींगरा, दिल्ली हाईकोर्ट) द्वारा ही सजा-ए-मौत (फांसी) सुनाई गई. यह अलग पहलू है कि, कोर्ट-कचहरी में अपीलों के दौरान और सजा भुगतने से पहले ही मुजरिम की मौत हो गई.

ढहीं आलीशान अवैध इमारतें, दिल मगर उनके सहमे

सन् 1996 में यही हरफनमौला पुलिस महकमे का नया-नया अफसर दिल्ली पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) में भेज दिया गया. एसटीएफ में गया तो देखा कि, आधी से ज्यादा दिल्ली में आलीशान बहुमंजिला इमारतें ‘जुगाड़’ सिस्टम की वैसाखियों के सहारे खड़ी ‘हिल और कांप’ रहीं थीं. जो कभी भी ढहकर बेकसूरों की मौत का कारण बन सकती थीं. सो उन कमजोर इमारतों पर मजबूत बुलडोजर चलवाकर उन्हें जमींदोज करवा दिया.

प्रधानमंत्री मोदी के साथ आईपीएस अधिकारी राजीव रंजन

तबाह, अवैध इमारतें हो रही थीं. दिल मगर उन तमाम सरकारी भ्रष्ट अफसरों/ एजेंसियों/ बिल्डरों/ भू-माफिया/ ठेकेदारों के सहम गए, जिन्होंने इन कमजोर इमारतों में सोते अनजान इंसानों को मौत के कुंएं में धकेलने के ‘पुख्ता’ इंतजाम कर दिए थे. इसी नौसिखिए आला-पुलिस अफसर के मुताबिक, ‘उस वक्त एसटीएफ के डीसीपी थे रिटायर्ड आईपीएस कर्नल सिंह. कर्नल सिंह इस वक्त भारत के निदेशक प्रवर्तन (डायरेक्टर इन्फोर्समेंट) हैं.’

महामहिम की सुरक्षा करने जैसी नौकरी और कहां

एचके एल भगत जैसे दबंग नेता की गिरफ्तारी हो. सन् 1984 के दंगों की पड़ताल में किसी आरोपी को सजा के रूप में पहली फांसी और उम्रकैद या फिर दिल्ली में गैर-कानूनी रूप से खड़ी इमारतों को नेस्नाबूद करने का कदम. या फिर अपराध की दुनिया में खुद को दिल्ली का ‘डॉन’ साबित करने की जुगत में जुटा, पूर्व सांसद एमके सुब्बा का दक्षिणी दिल्ली स्थित फार्म हाउस हड़पने वाला और प्रेमिका कुंजुम बुद्धिराजा की हत्या के आरोपी रोमेश शर्मा के खिलाफ मामला दर्ज करने की कुव्वत.

पुलिस नौकरी में हासिल यह सब कामयाबियां उस वक्त फीकी साबित हो गईं, जब इसी हरफनमौला नए-नए पुलिस अफसर को तत्कालीन महामहिम (भारत के राष्ट्रपति) श्री केआर नारायणन (कोचेर रमन नारायणन) का निजी सुरक्षा अफसर (पीएसओ) बना दिया गया. यह बात है सन् 1997 के आसपास की.

राष्ट्रपति के साथ की न भूलने वाली तमाम यादें

राष्ट्रपति केआर नारायणन के साथ तीन साल (सन् 1999) रहा. नॉर्थ-साउथ अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, पुर्तगाल, ऑस्ट्रेलिया, स्पेन जाने का मौका मिला. मगर इन तमाम यात्राओं और अब तक की दिल्ली पुलिस की नौकरी में किए गए तमाम कामों पर एक खुशी सबसे भारी साबित हुई. ‘वो खुशी थी जब मैं (यह आईपीएस अधिकारी जिसका नाम आपको नीचे पढ़ने को मिलेगा) महामहिम के साथ अमेरिका की यात्रा से भारत लौटा.

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भारत के राष्ट्रपति के काफिले वाले विशेष प्लेन ने जैसे ही दिल्ली में जमीं को छुआ, वैसे ही 'पोखरण-दो' (न्यूक्लियर विस्फोट का सफल परीक्षण) को अंजाम दे दिया गया. उस खबर को सुनते ही महामहिम और उनके काफिले में शामिल तमाम आला-अफसरान चंद लम्हों के लिए खुशी में खोकर ‘प्रोटोकॉल’ से तकरीबन दूर से ही हो गए थे. हर कोई एक दूसरे को सिर्फ बधाई और सिर्फ बधाई देने में व्यस्त था.

तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन के पीएसओ थे आईपीएस अधिकारी राजीव रंजन

उन लम्हों में मुझे भारत की सोंधी मिट्टी के भावनात्मक लगाव और पुलिस की खाकी वर्दी की ‘बेइंतहा-ताकत’ का अहसास हुआ था. अगर बदन पर दिल्ली पुलिस की वर्दी न पहनी होती तो, महामहिम के साथ अटैच न हुआ होता. अगर महामहिम के उतने करीब न होता तो, शायद इस मनुष्य जन्म में सबसे पहले पोखरण-2 के सफल परीक्षण की वो खबर दुनिया में मुझे सुनने को नहीं मिली होती. जिसकी टोह लेने के लिए अमेरिका जैसा ‘सुपर-पॉवर’ कई साल से गिद्ध दृष्टि गड़ाए बैठा था. मगर अमेरिका को भी पोखरण-2 की कानों-कान हवा नहीं लग सकी थी.’

अंजू इलियासी कांड: पड़ताल ने बेनकाब किया झूठ!

दिल्ली और देश के चर्चित अंजू इलियासी कांड में इसी आला-अफसर की ‘पड़ताल’ ने पूरे मामले की दिशा-दशा दोनो बदल दीं. अंजू इलियासी की संदिग्ध मौत आत्महत्या नहीं हो सकती है. यह आशंका शुरू से ही इस आला पुलिस अफसर को कचोट रही थी. सो पांच डॉक्टरों का जांच के लिए विशेष पैनल कोर्ट से गुजारिश करके बनवाया और पड़ताल का पूरा पासा ही पलट गया. इसी आला-पुलिस अफसर की जांच के बाद अंजू इलियासी कांड, आत्म-हत्या से पलट कर हत्या की ओर जा पहुंचा. परिणाम सामने है. अंजू की मौत के आरोप में उसका पति सुहेब इलियासी तिहाड़ जेल की सलाखों में कैद है.

बे-दाग अफसर का वो बेरहम फैसला!

1984 दंगों की पड़ताल. देश के चर्चित पत्रकार शिवानी भटनागर हत्याकांड में हाईप्रोफाइल मुजरिम की गर्दन तक कानून के पैने-पंजे पहुंचाने की जिम्मेदारी. या फिर पूर्वी दिल्ली में एसीपी ऑपरेशन सेल रहते हुए पांडव नगर इलाके से क्राइम ब्रांच के दबंग इंस्पेक्टर (तब सब-इंस्पेक्टर) विनय त्यागी की टीम से हाईप्रोफाइल कॉलगर्ल से भरी बस पकड़वाने का मामला या फिर पूर्वी दिल्ली में ‘मंकी-कांड’ को बेनकाब करने का प्रकरण रहा हो. करोलबाग के एक क्लब में चल रहे सट्टे के अड्डे से 35 लाख की नकद बरामदगी. या फिर करोड़ों की हेराफेरी-धोखाधड़ी में हाईप्रोफाइल चिट फंड कंपनी (कंपनी ने हिंदी अखबार भी खोला था) के ठग मालिक की गिरफ्तारी. यह सब तो एक बानगी भर हैं.

पत्नी और बच्चों के साथ आईपीएस अधिकारी राजीव रंजन

बात है सन् 2000 के आसपास की. देश के सबसे बड़े ऑटो लिफ्टर गैंग को दबोच लिया. अहमदाबाद और मुंबई से 103 कारें जब्त/बरामद कीं. उस वक्त पूर्वी दिल्ली के डीसीपी (जिला पुलिस उपायुक्त) थे एस नित्थ्यानंदम. दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच (होमीसाइड सेल आदर्श नगर) एसीपी रहते हुए जबरन धन वसूली में जुटे दो पुलिस कर्मियों को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया. जबकि सब-इंस्पेक्टर को सस्पेंड कराया. यह अलग बात है कि अब, वही सब-इंस्पेक्टर दिल्ली में एक थाने का एसएचओ लगा हुआ है.

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क्राइम ब्रांच आदर्श नगर में एसीपी रहते हुए नई दिल्ली स्थित (अशोका रोड के पास) एक मशहूर होटल में छापा मारकर सट्टे के हाईप्रोफाइल अड्डे को नेस्तनाबूद करने वाला भी यही पुलिस अफसर था. उस रेड में 53 नामी-गिरामी सट्टेबाज गिरफ्तार किए थे. चंबल की पूर्व दस्यु सुंदरी से सांसद बनी फूलन देवी हत्याकांड का खुलासा 3-4 घंटे के अंदर करने के पीछे भी इसी पुलिस अफसर का दिमाग बताया जाता रहा है.

पूर्व मजिस्ट्रेट मिठाई के डिब्बे में दे गया जब लाखों’!

बकौल इसी आला पुलिस अफसर के, ‘एक दिन मेरे घर पर दिल्ली के एक रिटायर्ड स्पेशल मजिस्ट्रेट आया. उसका पूर्वी दिल्ली के लक्ष्मीनगर-बैंक इन्क्लेव के पास मशहूर प्राइवेट स्कूल है. कुछ देर बैठकर वो चला गया. मैं भी थोड़ी देर बाद घर से चला गया. कुछ समय बाद घर से फोन आया. पता चला वो शातिर दिमाग मजिस्ट्रेट मिठाई के डिब्बे के अंदर करीब डेढ़ लाख रुपए रख गया था. मैंने उसी वक्त एंटी करप्शन टीम मौके पर बुलाई. रुपए और डिब्बा जब्त कराया. केस पड़ताल के लिए भ्रष्टाचार निरोधक शाखा में दर्ज करा दिया. अब उस आरोपी स्पेशल मजिस्ट्रेट की मौत हो चुकी है.’

चार्ज लेते ही इलाके में गोली चल गयी चार मर गए

सन् 2003 में प्रमोट होने पर एडिशनल डीसीपी नई दिल्ली जिले में लगा. 2006 में उत्तर पूर्वी जिले में जैसे ही चार्ज संभाला. वहां दंगा भड़क गया. सीलमपुर इलाके में शाम के वक्त बेकाबू भीड़ को तितर-बितर कराने के लिए गोली चलवानी पड़ी. जिसमें 4 लोगों की मौत हो गई. 2008 में डीसीपी प्रधानमंत्री सुरक्षा में लगा. वहां से 2014 में स्पेशल सेल पहुंचा. जहां आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन यासीन भटकल ग्रुप का खूंखार आतंकवादी पकड़वाया.

पत्नी अनुपमा रंजन के साथ आईपीएस अधिकारी राजीव रंजन

नागालैंड के खपलान ग्रुप का बड़ा आतंकवादी भी इसी आला-अफसर के हाथों पकड़ा गया. राजेश बाबरिया जैसा खूंखार अपराधी दबोचने के कुछ समय बाद सन् 2016 में एसएसपी पुड्डूचेरी में तैनाती मिली. जहां 2016-17 का बेस्ट लॉ एंड आर्डर स्टेट का अवार्ड हासिल किया. पुड्डूचेरी पोस्टिंग के दौरान ही राष्ट्रपति पुलिस पदक मिला.

प्यार-प्रेमिका, पत्नी-परिवार और पुलिस एक छत तले

शायद ही किसी को आसानी से विश्वास हो कि प्यार, पत्नी, परिवार और पुलिस एक साथ एक छत के नीचे सुख-चैन-शांति से पाले-पोसे जा सकते हैं! हो सकता नहीं, बल्कि हो रहा है. पता कहां, किसके साथ और किसके घर-परिवार-जिंदगी में? दूर जाने की जरूरत नहीं है. देश की राजधानी दिल्ली के दबंग मस्तमौला हंसमुख स्वभाव वाले 2002 बैच (AGMU कॉडर) के आईपीएस राजीव रंजन के ही घर में है यह सब.

पुलिस ट्रेनिंग के दौरान सन् 1988 में फिल्लौर (पंजाब) में सिक्किम निवासी अनुपमा रंजन से प्यार हुआ. इंटरकास्ट मैरिज में प्रेमिका की स्टेट पुलिस की नौकरी बाधा थी. सो प्रेमिका (अब पत्नी अनुपमा) ने नौकरी को छोड़कर प्यार का हाथ थामने के लिए वर्दी का मोह छोड़ दिया. फिलहाल कुछ महीने पहले ही पुड्डूचेरी से लौटने के बाद राजीव रंजन दिल्ली पुलिस स्पेशल ब्रांच में एडिशनल पुलिस कमिश्नर हैं. बेटी शालिनी सिन्हा दिल्ली के दौलतराम कॉलेज से हिस्ट्री ऑनर्स और दिल्ली विश्वविद्यालय कैंपस लॉ सेंटर से वकालत करने के बाद सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रही हैं. जबकि बेटा अरण्य सिन्हा बेंगलुरु में रहकर वकालत की पढ़ाई कर रहा है.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)