आम फलों का राजा है. आम के किस्से, स्वाद और आम के बारे में दुनिया भर की बातें हम सब ने सुनी होंगी. आम से जुड़े मुहावरे बहुत चर्चित हैं. आम के आम गुठलियों के दाम, आम खाओ और पेड़ न गिनो, हम कहें आम तो ये कहेंगे इमली और भी न जाने क्या-क्या. वैसे अंग्रेजी वालों के पास अगर बनाना रिपब्लिक हैं तो हमारे यहां आम आदमी है. आम मंगल कलश में पत्तियों की तरह इस्तेमाल होता है. इसकी लकड़ी से हवन शादी ब्याह और दुनिया भर के काम होते हैं. ग़ालिब ने आम की तारीफ में कहा कि गधे ही आम नहीं खाते हैं तो, कालिदास ने इसकी तारीफ रघुवंश ने की.
वैशाली की सबसे सुंदर स्त्री (नगरवधु) आम्रपाली भी आम के बाग में पली-बढ़ी थी तो हिंदी सिनेमा की एक नायिका आमसूत्र की बात करती हैं तो कई श्रंगार रस के कवि आम के बहाने स्त्रियों की तारीफ कर चुके हैं. वैसे सपना चौधरी का भी एक डांस है 'आम दशहरी' कर के. डांस का वीडियो बाद में देखिएगा पहले आम की कुछ आम और खास बातें करते हैं.
आम का दशहरी, लंगड़ा और चौसा कैसे बन गया?
आम का भारत में इतिहास बहुत पुराना है. आम की उत्पत्ति करीब 5000 साल पहले की मानी जाती है. पूर्वी भारत और म्यांमार में आम की शुरुआत हुई और, उस दौर के पिया जो रंगून गए तो वापसी में आम देश भर में लेकर आए. चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इस नायाब फल को पहली बार भारत से बाहर पहुंचाया. हालांकि अमेरिका को आम 1880 के बाद ही मिल पाए. अकबर के समय तक आम बहुत लोकप्रिय हो चुके थे. तमाम बादशाह और सुल्तान 'दीवाने आम' हुए. लेकिन आम की असल कद्र तो नवाबों ने की. वैसे इस कद्र के चलते कई झगड़े भी हुए.
दरअसल आम खाने के दो तरीके हैं. आम या तो काट कर खाया जाता है या चूसकर खाया जाता है. अब अवध के नवाब ठहरे तहजीब पसंद उनकी फितरत कि सलीके से बिना गिराए, रस फैलाए काट कर आम का लिया जाए. ऐसे में उनकी पसंद बना मलीहाबादी दशहरी. दूसरी तरफ बनारसी औघड़ लोग जिनके नाम में ही रस है तो उन्हें अच्छा लगा बनारसी लंगड़ा. कहने वालों ने तो यहां तक कहा कि काशी कबहुं न छोड़िए विश्वनाथ को धाम, मरते गंगाजल मिले और जियते लंगड़ों आम. आम के मुरीदों के बीच इस बात को लेकर अभी भी बहस हो जाती है कि रस से भरा रेशेदार मीठा आम बेहतर या सख्त, मीठा और ठंडक से भरा काट के खाने वाला आम अच्छा.
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बात करते हैं दशहरी और नवाबों की. आम सदियों से खाए जा रहे थे मगर दशहरी के नामकरण की कहानी 300-400 साल पहले की है. मलीहाबाद के व्यापारी अवध आम बेचने जाते थे. कहा जाता है कि एक बार आम पर मालगुजारी को लेकर कुछ झगड़ा हुआ तो लोगों ने अपने आम सड़क किनारे फेंक दिए और चले गए. इनमें से कुछ एक आमों में पौधे निकले. इन पौधों में से एक को सड़क किनारे लगा दिया गया. ये पौधा बड़ा हुआ तो इसके आम का स्वाद नवाब साहब को भा गया. दशहरी गांव के बाहर लगे इस पेड़ के आम पहले 'दशहरी के आम' कहे जाते होंगे धीरे-धीरे ये दशहरी आम बन गया.
नवाबों के आम खाने के बहुत किस्से हैं. लखनवी तहजीबदार एक हाथ में आम और दूसरे में चम्मच लेकर आम खा लेते हैं. एक भी बूंद जमीन पर नहीं गिरेगी. इसी तरह आम में कुछ खास तरह से चीरा लगाकर गुठली सफेद बेदाग बाहर निकाल लेते हैं. फिर उस बीच में मेवे-रबड़ी भर कर जमा दिया जाता है. इसका स्वाद कैसा होगा उसकी कल्पना कर सकते हैं. लेकिन पहले बात करते हैं दशहरी के नामकरण के बाद की.
मलीहाबाद का दशहरी नवाब को भा गया. लेकिन जैसा कि आम के साथ गुठलियों के भी दाम होते हैं, खतरा था कि लोग आम खाकर उनकी गुठलियों के जरिए और पेड़ लगा लेंगे. ऐसे में जब किसी बाहर वाले को दशहरी दिया जाता था तो, उसकी गुठली में छेद कर देते थे. ताकि नया पेड़ न उग सके. मगर किसी न किसी तरह से लोगों ने दशहरी के उस पेड़ से दूसरे पेड़ उगा ही लिए. वैसे दशहरी की तरह दूसरे आमों के नाम पड़े, फजली के यहां का आम फजली, लंगड़े फकीर के यहां का आम लंगड़ा. चौसा गांवा का आम चौसा. एक पेड़ पर 300 तरह के आम उगाने वाले कलीम मियां ने नमो आम, अखिलेश आम, कलाम, अटल, माधुरी और योगी तक के नाम पर आम उगाए हैं. लेकिन दशहरी जियो टैग वाला आम है. मतलब मलीहाबादी दशहरी अलग से एक ब्रांड है.
जब हिंदुस्तान-पाकिस्तान आम को लेकर भिड़ गए
आम की एक किस्म चौसा होती है. चौसा का युद्ध भी इतिहास में प्रसिद्ध है. इस युद्ध से आम का संबंध तो पता नहीं भारत पाकिस्तान में आम को लेकर तनातनी हो चुकी है. जनरल जिया उल हक़ ने इंदिरा गांधी को आम की दो पेटियां भिजवाईं. आम भिजवाना दोस्ती का प्रतीक माना जाता है. लेकिन जिया साहब ने कहा कि ये अनवरी रटौल आम है. सिर्फ पाकिस्तान में होता है. इंदिरा गांधी को वो आम बेहद पसंद आया. इंदिरा ने इन 'पाकिस्तानी' आमों की दिल खोल कर तारीफ की. अब यहां के लोगों ने बताया कि ये रटौल आम तो मेरठ में रोटैला गांव में होता है. लोग मिसेज़ गांधी से नाराज़ भी हुए. आम की इस किस्म को लेकर भारत पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भिड़ चुके हैं.
आगे बढ़ने से पहले ये जान लीजिए कि जिन जनरल जिया उल हक़ के आम प्रेम ने दोनों देशों के बीच एक नया आम विवाद खड़ा किया, उनकी जान का दुश्मन उनका आम प्रेम बन गया. जनरल साहब एक रोज़ फ्लाइट में बैठकर टेक ऑफ किए. हवा में फ्लाइट लड़खड़ाई विस्फोट हुआ और प्लेन क्रैश हो गया. बाद में पाकिस्तान की जांच एजेंसियों ने बताया कि आम की पेटी में विस्फोटक भरकर जहाज पर रखवाए गए थे. इस घटना पर पाकिस्तान के पत्रकार की बहुचर्चित हनीफ मोहम्मद ने किताब भी लिखी. केस ऑफ एक्सप्लोडिंग मैंगो (फटने वाले आमों का किस्सा) फिक्शननुमा बेहतरीन किताब है, कभी मौका मिले तो पढ़िएगा.
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खैर हिंदुस्तान की सियासत में या कहें कि उत्तरप्रदेश में आम बहुत खास तरीके से मौजूद रहा है. पहली बात भारत पाकिस्तान के बीच फैले हुए रटौल आम की. असल में रटौल आम मेरठ के एक पेड़ से निकला. इसकी कलम को ले जाकर पाकिस्तान के मुल्तान में लगा दिया गया. अब बंटवारे के बाद अनवर मियां के लगाए रटौल को पाकिस्तान में अनवरी रोटैला नाम से प्रसिद्धि मिल गई. वैसे आम का उत्तर प्रदेश की सियासत से गहरा संबंध है. यूपी जब यूनाइटेड प्रोविंस हुआ करता था तो यहां के पहले मुख्यमंत्री बने नवाब छतारी. (गोविंदवल्लभ पंत तकनीकी रूप से यूपी के दूसरे मुख्यमंत्री हैं). इन नवाब छतारी की बड़ी उपलब्धि थी कि इनके आम दुनिया भर में कई प्रतियोगिता जीत चुके थे.
अखिलेश यादव ने दशहरी गांव को टूरिस्ट डेस्टिनेशन के तौर पर विकसित करने की योजना बनाई थी. इसपर कुछ काम हुआ लेकिन पूरा होने से पहले ही सत्ता बदल गई. वैसे इस दशहरी गांव में एक समय पर 'मदर दशहरी ट्री' के नीचे सरकारी कूड़ाघर बनाने की योजना बनाई गई थी. इसको लेकर काफी धरना-प्रदर्शन हुआ जिसके बाद ये फैसला वापस लिया गया. आम के मुरीदों के लिए एक बुरी खबर भी है. मलीहाबाद इस समय विकास और प्लॉटिंग माफिया से ग्रस्त है. सदियों पुराने बाग और पेड़ साफ कर सोसायटी बनाई जा रही हैं. ऐसे में अगर अगले दशक में मलीहाबादी दशहरी विलुप्त हो जाए तो चौंकिएगा मत.
दुनिया और आम
उत्तर भारत में पैदा होने का एक बड़ा फायदा है कि आपको दशहरी, चौसा और लंगड़ा आम भरपूर खाने को मिलता है. सवाल ये भी है कि देश के ग्लोबल स्तर पर आमों का क्या हाल है. दुनिया भर में जिस आम की धूम मची हुई है वो अलफांसो है. लेकिन दशहरी और चौसा जैसे आमों के मुरीदों को ये ओवर रेटेड लग सकता है. महाराष्ट्र के अलफांसो के अलावा आंध्र और कर्नाटक का तोतापरी सबसे ज्यादा बिकने वाले आमों में से एक है. तोते की चोंच जैसे तोतापरी का स्वाद अच्छा नहीं होता लेकिन, पल्प, जूस, शेक और तमाम तरह के प्रोडक्ट बनाने के लिए ये सबसे अच्छा आम है. इसके अलावा बिहार का मालदा, तमिलनाडु का मालगोवा आम (एक आम 500 ग्राम से 1 किलो तक का हो सकता है.) बैगनपल्ली और केसर जैसे आम भी है. हैती का गोल्डन आम भी है जो पूरी तरह से बेदाग सुनहरा होता है.
इन सबके बीच आमों की कुछ बेहतरीन किसमें भी हैं जो खत्म होती जा रही हैं. एक जमाने में अवध के पूरे इलाके में फ्लेवर वाले आमों के कई पेड़ होते थे. सोया आम खाते समय लगता कि आम की मिठास वाला सोयाबीन है. बेलहा आम में बेल की महक, शरीफाई आम में शरीफे की खुशबू. लेकिन ये सारे आम आकार में छोटे होते थे. बड़ी गुठलियों के चलते गूदा भी कम होता था. धीरे-धीरे इसकी जगह तमाम 'फायदा' पहुंचाने वाली किस्मों ने ले ली.
जाते-जाते फिर से पाकिस्तान
भारत पाकिस्तान में संबंध जो हैं सो हैं, पाकिस्तानियों की सबसे बड़ी बेवकूफी जानते हैं क्या है? वो कहते हैं कि उनके आम भारतीय आमों से बेहतर हैं. इसमें भी वो ले-देकर एक अनवर रटौल का नाम गिनाते हैं फिर दशहरी, चौसा और लंगड़ा पर आ जाते हैं. अब क्या कहें ऐसे लोगों से, बस एक ही बात है कि जब ज्यादा बहस हो तो आखिरी बात ये है कि हिंदुस्तान के आम बम की तरह फटते नहीं हैं.