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कैराना उपचुनाव: बदलाव चाहती है जनता, मजबूत विपक्ष से होगा मुमकिन

कैराना उपचुनाव में तबस्सुम हसन की जीत को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट, दलित और मुसलमान वोटों की गोलबंदी के तौर पर देखा जा रहा है

Updated On: Jun 01, 2018 01:26 PM IST

Kamal Bhargava, Saurabh Sharma

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कैराना उपचुनाव: बदलाव चाहती है जनता, मजबूत विपक्ष से होगा मुमकिन

जैसा कि अनुमान जताया जा रहा था, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा सीट पर तबस्सुम हसन की ही जीत हुई. काफी अहम मानी जाने वाली इस सीट पर 'महागठबंधन' की उम्मीदवार हसन ने 30,000 से भी ज्यादा के वोटों से जीत हासिल की. इसके साथ ही, इस उपचुनाव ने 16वीं यानी मौजूदा लोकसभा में उत्तर प्रदेश से लोकसभा में एकमात्र मुस्लिम सांसद का प्रतिनिधित्व भी सुनिश्चित किया. बेशक उनकी मौजूदा लोकसभा सदस्यता 12 महीनों की ही होगी.

कैराना संसदीय सीट से राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) की उम्मीदवार तबस्सुम हसन (47 साल) को समाजवादी पार्टी (एसपी), कांग्रेस और यहां तक कि मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की तरफ से भी समर्थन मिला. हालांकि, बीएसपी पार्टी खुलकर या आधिकारिक तौर पर तबस्सुम हसन के समर्थन में आगे नहीं आई.

2014 के लोकसभा चुनावों कुछ ऐसी थी स्थिति

2014 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की आंधी देखने को मिली और उत्तर प्रदेश में इस पार्टी ने राज्य की 80 में से 71 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी, जो रिकॉर्ड आंकड़ा है. हालांकि, पिछले ससंदीय चुनाव में उत्तर प्रदेश से एक भी मुस्लिम उम्मीदवार लोकसभा में नहीं पहुंच पाया था.

2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उत्तर प्रदेश में सिमटकर महज 2 सीटों तक रह गई थी. समाजवादी पार्टी ने 5 सीटों पर जीत हासिल की थी और अपना दल के 2 उम्मीदवार संसद पहुंचने में सफल रहे थे. पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल और बहुजन समाज पार्टी का खाता भी नहीं खुल सका यानी दोनों पार्टियों को एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई थी. तीसरी सबसे बड़ी पार्टी होने के दावे के बावजूद बहुजन समाज पार्टी को 2014 के संसदीय चुनाव में एक भी लोकसभा सीट पर जीत नहीं मिली थी.

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बीजेपी उम्मीदवार और कैराना के पूर्व सांसद स्वर्गीय हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह (57 साल) को हराने के बाद मीडिया से मुखातिब होते हुए तबस्सुम ने कहा, 'यह सच और 'महागठबंधन' की जीत है और राज्य और केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की हार. हर किसी ने आगे बढ़कर हमारा समर्थन किया. मैं उनका शुक्रिया अदा करती हूं. बाकी पार्टियों ने भी हमारा समर्थन किया है. सबसे अच्छी बात यह रही कि लोगों से यह कहने की जरूरत नहीं थी कि वे हमारे लिए वोट करें. इस बड़ी जीत के साथ 'महागठबंधन' काफी मजबूती के साथ उभकर सामने आया. आज से यह गठबंधन काफी मजबूत साबित होगा'. गौरतलब है कि हुकुम सिंह की मौत के बाद इस सीट पर उपचुनाव हुए थे.

'प्यार और भाव के लिए याचना कर रही है राजनीति'

तबस्सुम कहती हैं, 'राजनीति न सिर्फ वोटों के लिए याचना कर रही है, बल्कि प्यार और भाव की भीख भी मांग रही है. यह तमाम लोगों से दुआएं और शुभकामनाए मांग रही है. मुझे याद है कि चुनाव प्रचार के दौरान राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने टिप्पणी की थी कि मेरी पार्टी के सुप्रीमो चौधरी अजीत सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी वोटों के लिए भीख मांग रहे हैं. मैं मुख्यमंत्री के इस बयान की कड़ी निंदा करती हूं. साथ ही, यह भी कहना चाहूंगी कि योगी को राजनीति की 'एबीसीडी 'के बारे में भी पता नहीं है. 2019 के लोकसभा चुनाव में संयुक्त विपक्ष का रास्ता साफ है. 2019 के संसदीय चुनावों में किसी भी कीमत पर भारतीय जनता पार्टी को धूल चटानी है.'

उन्होंने कहा, 'हम 'खुद जियो और दूसरों को भी जीने दो' में यकीन रखते हैं. हम सभी से मिलते हैं, सबके साथ बैठते हैं और सबको साथ लेकर चलते हैं, हम शांति और सौहार्द के साथ जीते हैं.'

भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधते हुए तबस्सुम हसन ने कहा कि पार्टी और उसकी उम्मीदवार ने कभी भी वास्तविक मुद्दों के बारे में बात नहीं की. उनका कहना था, 'जहां तक वास्तविक मुद्दों की बात है, तो उनके पास कहने के लिए कुछ भी नहीं है. वे जिन्ना की फोटा जैसे मुद्दे उठाते हैं. आखिरकार जिन्ना यहीं से थे, लेकिन विभाजन के बाद मामला बदल गया. वे किसानों का वास्तविक मुद्दा नहीं उठाते हैं.'

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उत्तर प्रदेश में नया अध्याय

कैराना उपचुनाव में तबस्सुम हसन की जीत को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट, दलित और मुसलमान वोटों की गोलबंदी के तौर पर देखा जा रहा है. इस संसदीय उपचुनाव को 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले अहम प्रयोग के तौर पर भी देखा जा रहा है और विपक्ष एक बार फिर से भारतीय जनता पार्टी को पछाड़ने की तरफ देख रहा है.

राष्ट्रीय लोक दल समेत तमाम विपक्षी पार्टियों पर बीजेपी के खिलाफ राजनीतिक प्लेटफॉर्म साझा करने का आरोप लगाया गया है. कहा जा रहा है कि उन्होंने किसानों को अपने पक्ष में करने के लिए कहा कि यह चुनाव 'जिन्ना बनाम गन्ना' को लेकर है. लिहाजा, गुरुवार को घोषित उपचुनाव के नतीजे न सिर्फ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक नए राजनीतिक ढांचे को जन्म देने में सफल हुए हैं, बल्कि इससे भविष्य में गठबंधन के लिए भी रास्ता साफ हुआ है.

राजनीति की चतुर खिलाड़ी के तौर पर मशहूर तबस्सुम की औपचारिक शिक्षा सिर्फ हाई स्कूल तक हुई है, लेकिन उनका परिवार राजनीति काफी लंबे समय से जुड़ा रहा है. उन्हें ससुराल परिवार से विरासत के तौर पर राजनीति मिली है. साल 2009 में तबस्सुम बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर कैराना से सांसद चुनी गई थीं. उसके बाद वह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गईं. आखिरकार उन्होंने राष्ट्रीय लोक दल का दामन थामा. उनके ऑफिस में उनके पति मुनव्वर हसन की तस्वीर लगी है, जिन्होंने लोकसभा और विधानसभा में कैराना सीट का प्रतिनिधित्व किया था. कैराना से विधायक और सासंद रह चुके हसन की 2008 में सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी.

तबस्सुम के परिवार ने मुजफ्फरनगर दंगों के बाद राहत काम में की थी मदद

तबस्सुम के ससुर अख्तर हसन 1984 में कैराना संसदीय सीट से सांसद थे. उनका बेटा नाहिद हसन कैराना विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी का विधायक है. उनके परिवार की मौजूदगी और असर को न सिर्फ कैराना बल्कि मुजफ्फरनगर लोकसभा क्षेत्र में भी देखा जा सकता है. उनकी तीन पीढ़ियां राजनीति में रही हैं और उनके परिवार ने इस क्षेत्र की 3 अहम पार्टियों की नुमाइंदगी की है-कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी. और अब हाल में राष्ट्रीय लोक दल से भी तबस्सुम का रिश्ता जुड़ गया है.

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2014 के लोकसभा चुनावों में कैराना लोकसभा सीट पर जीतने के बाद हुकुम सिंह ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया था. इस घटनाक्रम के कुछ वक्त के बाद यह सीट हसन परिवार के पास लौट आई. नाहिद ने 2017 में राज्य में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर इस विधानसभा सीट पर जीत हासिल की. नाहिद ने इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की उम्मीदवार मृगांका सिंह को ही हराया था.

मुजफ्फरनगर और शामली जिले के कुछ हिस्सों में 2013 में हुए मुस्लिम-जाट दंगों के बाद हसन परिवार (खास तौर पर नाहिद हसन) ने राहत कार्यों में अहम भूमिका अदा की थी. इस परिवार ने इस दंगे के पीड़ितों को ठिकाना मुहैया कराने की खातिर अपनी जमीन मुहैया कराई थी.

'बदलाव के लिए है यह जनादेश'

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) के प्रोफेसर और राजनीतिक टिप्पणीकार आर आर झा का कहना है कि इस चुनाव को बीजेपी के खिलाफ जनादेश के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. इसकी बजाय इसे 'बदलाव के लिए जनता के निर्णय' के तौर पर समझा जाना चाहिए. उन्होंने कहा, 'इसमें कुछ नया नहीं है, बल्कि 1993 में जो हुआ था, यह उसी की पुनरावृत्ति है. उस वक्त मायावती और मुलायम सिंह यादव एक साथ आ गए थे और लोगों ने उनके लिए वोट किया, जबकि उस दौर में हिंदुत्व (बाबरी विध्वंस) सबसे बड़ा एजेंडा बन चुका था. लोगों को मोदी सरकार से बड़ी उम्मीदें थीं, लेकिन ऐसा लगता है कि वे (जनता) अब बदलाव चाहते हैं. गोरखपुर, फूलपुर में ऐसा देखने को मिला और अब कैराना और नूरपुर में ऐसा हुआ है.' उनका यह भी कहना था कि लोग विकास चाहते हैं और वे मौजूदा सरकार से खुश नहीं हैं.

प्रोफेसर झा ने कहा कि गठबंधन के भविष्य के बारे में बात करना अभी काफी जल्दबाजी होगी, क्योंकि राजनीतिक दावों को आजमाने के लिए समय अभी नहीं आया है.

प्रोफेसर झा का कहना था, 'काफी कुछ आगामी लोकसभा चुनाव के दौरान और उसके बाद की राजनीतिक परिस्थितियों और हालात पर निर्भर करेगा. हालांकि, भारतीय जनता पार्टी अगर केंद्र में एक और कार्यकाल के लिए सत्ता में बने रहना चाहती है, तो उसे अपनी रणनीति में संशोधन की शुरुआत कर देनी चाहिए. राजनीति संभावनाओं का खेल है और इसमें विचित्र जोड़ियों और गठबंधन के लिए भी गुंजाइश बनती है.'

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