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एक महिला के कत्ल का घिनौना तरीका जिसे देखकर फॉरेंसिक साइंस के महारथी भी चकरा गए!

क्यों, किसने, कहां, कैसे और कब? किस महिला की मौत के लिए ‘ईजाद’ किया था, इंसानी दुनिया में किसी की भी रूह कंपा देने वाले ‘कत्ल’ का यह फार्मूला?

Sanjeev Kumar Singh Chauhan

कोई आपसे किसी विकलांग महिला की हत्या का अब तक का वो सबसे खतरनाक या अविश्वसनीय 'फॉर्मूला' खोज निकालने की दावेदारी करने लगे जिस तक, अभी 'गूगल' भी न पहुंच सका हो. तो ऐसे ‘दावेदार’ और उसके अजीब-ओ-गरीब 'दावे' को आप क्या कहेंगे? दावेदार को ‘कम-अक्ल’ और उसकी ‘दावेदारी’ को ‘कोरी-बकवास’, 'चुटकला' या फिर महज एक ‘मजाक’.

नहीं, मत करिए ऐसा समझने की गलती. संभव है कि दावेदार, आपसे और गूगल से ज्यादा तेज हो! कोई अगर दावेदारी कर रहा है तो इसमें, आपके बुरा मानने या तुरंत आक्रोशित होने की कोई वजह नहीं है? एक बार सब कुछ अपनी आंखों से देख-पढ़ लें. वो सब-कुछ जिसे, देखकर एक बार को तो ‘फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट्स’ भी चकरा गए थे. पेश है 16 साल पुरानी पुलिस की एक पड़ताल अधूरी सी!


अपनी ही ‘तलाश’ पर जब उन्हें शक होने लगा

फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट्स के मुताबिक उन्हें, ‘खुद की आंखों और अपनी ही उस अजीब-ओ-गरीब मगर फॉरेंसिक साइंस की दुनिया में बेहद जटिल लेकिन कामयाब ‘तलाश’ पर ही विश्वास करना मुश्किल हो रहा था.’ दिल-ओ-दिमाग को हिला देने वाले किसी महिला के कत्ल के उस ‘फॉर्मूले’ पर (फार्मूले को अमल में लाने वाले के बाद), दुनिया में सबसे पहले किसी महिला की हत्या के इस पेचीदा मामले पर ‘नजर’ भी इन्हीं फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट्स की ही पड़ी थी. क्यों, किसने, कहां, कैसे और कब? किस महिला की मौत के लिए ‘ईजाद’ किया था, इंसानी दुनिया में किसी की भी रूह कंपा देने वाले ‘कत्ल’ का यह फार्मूला?

16 साल पहले पूर्वी दिल्ली का थाना गांधीनगर

रूह कंपा देने वाली इस सच्ची कहानी की शुरुआत होती है 29 जनवरी 2002 को गांधी नगर इलाके में स्थित मशहूर चैरिटेबिल हॉस्पिटल से. जिसमें सुबह के वक्त गंभीर हालत में करीब 36 साल की एक विकलांग महिला को मरणासन्न हाल में दाखिल कराया गया. महिला को दाखिल कराने पहुंचे और बातचीत से संदिग्ध मालूम पड़ रहे शख्स ने खुद को महिला का पति बताया. यह बात थी सुबह करीब साढ़े आठ बजे के आसपास की. महिला के साथ आए उसके पति के अविश्वसनीय (संदेहास्पद) बयान के मुताबिक वह विकलांग महिला रात को सोते समय गहरी नींद में बिस्तर से नीचे गिर कर मर गई थी.

पुलिस की फाइलों से पोस्टमॉर्टम हाउस तक

मामला संदिग्ध लगने पर अस्पताल ने गांधीनगर थाने को खबर कर दी. थाने से सब-इंस्पेक्टर राजेश कुमार झा (इस समय पूर्वी दिल्ली जिले के न्यू अशोक नगर थाने में A.T.O इंस्पेक्टर) अस्पताल पहुंच गए. तब तक अस्पताल में मौजूद डिप्टी मेडिकल सुपरिंटेंडेंट महिला को मृत घोषित कर चुके थे. पुलिस ने लाश को कब्जे में लेकर सब्जीमंडी मार्च्यूरी भेज दिया. चूंकि महिला की शादी को सात साल से कम हुए थे इसलिए, पड़ताल मय एम.एल.सी. (मेडिको लीगल सर्टिफिकेट या रिपोर्ट) इलाका एस.डी.एम. (गांधी नगर) के हवाले कर दी गई.

महिला की लाचारी देखकर एक्सपर्ट्स भी हिल गए

30 जनवरी 2002 यानी अगले दिन शाम करीब साढ़े तीन बजे एस.डी.एम. की इंक्वेस्ट (पोस्टमॉर्टम करने की गुजारिश वाले दस्तावेज) पर सब्जी मंडी मोर्च्यूरी के वरिष्ठ फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट डॉ. कुलभूषण गोयल (के. गोयल) ने पोस्टमॉर्टम शुरू किया. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट नंबर 160 दिनांक 30 जनवरी 2002 (सब्जी मंडी मोर्च्यूरी) में दर्ज तथ्यों के मुताबिक, उस भीषण ठंड में भी लाश के ऊपर (महिला के बदन पर) कपड़ों के नाम पर मात्र गाउन और निचले हिस्से में एक अदद अंत:वस्त्र मात्र था. महिला दोनो पैरों से विकलांग थी. चलने-फिरने में खासी परेशान रहती थी. उसके दोनो पांव में फर्क (विकलांगता) था.

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बाएं हाथ में भी विकलांगता थी. ले-देकर महिला का एक हाथ (सीधा) ही जिंदगी ढोने में साथ दे पा रहा था. बाएं घुटने और बाएं पैर पर भी जलने के ताजे निशान मौजूद थे. जिनके बारे में महिला के आरोपी पति ने अस्पताल में पत्नी को दाखिल कराने के समय बताया था कि वो सोते वक्त हीटर पर गिर गई थी. इस सबके बावजूद दौरान-ए-पोस्टमॉर्टम पहली नजर में ऐसा कुछ भी नजर नहीं आ रहा था, जिससे मौत का कारण उजागर हो सके.

पोस्टमॉर्टम के दौरान एक्सपर्ट्स जब चकरा गए

दो घंटे लंबी और उबाऊ पोस्टमॉर्टम प्रक्रिया के दौरान भी फारेंसिक साइंस के अनुभवी डॉ. कुलभूषण गोयल महिला की मौत का सही कारण पता कर पाने में नाकाम रहे. ऐसी मुसीबत में उन्हें याद आई उस वक्त, सब्जी मंडी मोर्च्यूरी के प्रमुख और करीब 25 हजार से ज्यादा शवों का पोस्टमॉर्टम कर चुके दिल्ली के पहले फॉरेंसिक मेडिसिन के उच्च-स्नातक ( 1st Post Graduate) फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट डॉ. के.एल. शर्मा की.

मुसीबत ने डॉ. कुलभूषण गोयल का अब भी साथ नहीं छोड़ा. पता चला कि उन दिनों, डॉ. के.एल. शर्मा फॉरेंसिक साइंस पर लेक्चर देने (हिमाचल और उत्तर प्रदेश) के सरकारी दौरे पर हैं. हां बजरिये टेलीफोन पर डॉ. गोयल ने डॉ. के.एल. शर्मा से सलाह-मश्विरा जरूर कर लिया था. फिर भी मरता क्या न करता वाली कहावत में फंसे डॉ. कुलभूषण ने खुद ही लाश के साथ दुबारा माथा-पच्ची (पुर्न-पोस्टमॉर्टम) शुरू की. इस उम्मीद में कि शायद महिला की मौत की सही वजह समझ आ जाए.

महिला के अंत:वस्त्र पर मौजूद मटमैला पावडर

डॉ. के. एल. शर्मा से टेलीफोन पर हुए विचार-विमर्श के बाद डॉ. गोयल ने उसी दिन दुबारा से महिला के शव का एक बार फिर पुर्न-निरीक्षण किया. करीब एक डेढ़ घंटे की और मेनहत रंग लाई, तो उम्मीद की किरण जाग उठी. महिला के निचले हिस्से में मौजूद अंत:वस्त्र पर सुरमई (ग्रे या मटमैले) रंग का पाउडर सा कोई पदार्थ डॉ. गोयल को फैला दिखाई दे गया. जांचने पर पता लगा कि महिला के गुप्तांग के पास से सड़े हुए लहसुन या फिर गेहूं में डाली जाने वाली सल्फॉस (एल्यूमिनियम फॉस्फाइट) की गोली से मिलती-जुलती असहनीय बदबू है.

सल्फास की गोलियां कैसे-किसने भरीं?

डॉ. कुलभूषण गोयल ज्यों-ज्यों राजफाश के करीब पहुंच रहे थे, त्यों-त्यों उनकी जिज्ञासा और बढ़ती जा रही थी. जिस निर्ममता से ठूंस-ठूंस कर और अत्यधिक मात्रा में महिला की योनि के और फिर गर्भाश्य की नलिका के भी अंदर तक सल्फॉस की गोलियां भरी गई थीं, वो खुद किसी महिला के वश की बात नहीं थी. वो भी एक ऐसी बेबस महिला के काबू की जो, हाथ-पांव से भी विकलांग हो.

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पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में साफ-साफ लिखा है कि उसकी योनि में इतनी ज्यादा संख्या में और इतने ज्यादा प्रेशर से सल्फॉस की गोलियां भरी गई थीं जिससे, उसकी योनि की दीवारों में खून जमकर लाल-सुर्ख दिखाई देने लगा था. योनि की दीवारें जहर से फट चुकी थीं.

मुंह के रास्ते जहर पिलाना मुश्किल था!

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसा तभी संभव है जब, गोलियां किसी अन्य द्वारा दिये गए बेइंतिहाई बाहरी दबाव से भरी गई हों. यही वजह थी कि, बढ़े हुए अत्यधिक दबाव के कारण गोलियों का जहर ब-रास्ता सर्वाइकल (गर्भाश्य की नली या मुहाना) के होता हुआ योनि में जा पुहंचा. बकौल डॉ. के.एल. शर्मा, ‘यह हिस्सा गर्भाशय का होता है, जोकि सिर्फ खुलता भर योनि में है. यही वजह रही होगी कि धीरे-धीरे सल्फास जैसा घातक जहर खून में मिलकर बदन में दौड़ने लगा, जिससे महिला की एक से दो घंटे के अंदर ही मौत हो गई होगी.

महिला की लाश का पोस्टमॉर्टम करने वाले फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट डॉ. कुलभूषण गोयल के मुताबिक, ‘महिला को पानी में मिलाकर मुंह के रास्ते जहर दे पाना, वो भी सल्फास सा बेहद बदबूदार, बहुत मुश्किल है. विकलांगता के चलते चूंकि महिला विरोध की स्थिति में नहीं थी, इसलिए उसे पहले किसी गरम चीज से बदन पर एक दो जगह जलाकर डराया गया होगा! फिर डरी हुई महिला के गुप्तांग में सल्फास की अनगिनत गोलियां जबरदस्ती भर दी गई होंगी!

77 की उम्र में कभी ऐसा न देखा न सुना

डॉ. केएल शर्मा

इस मामले पर देश के मशहूर फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट और करीब 40 साल की नौकरी में 25 हजार से ज्यादा पोस्टमॉर्टम के अनुभवी डॉ. के.एल. शर्मा भी हैरत में हैं. बकौल डॉ. के.एल. शर्मा, ‘डॉ. गोयल ने जब पूरा माजरा बताया तो मुझे, पहली नजर में लगा कि हो-न-हो, कहीं-न-कहीं किसी स्टेज पर डॉ. गोयल ही कुछ गलती कर रहे होंगे या कुछ गलत समझ पा रहे हैं. जब मैंने खुद पूरा माजरा समझा-देखा तो, मैं हिल गया. जिंदगी में हर किस्म के पेचीदा पोस्टमॉर्टम कर लिये मैंने. योनि में सल्फास की गोलियां भरकर, किसी स्त्री की हत्या का मामला 76-77 साल की अपनी उम्र में मैने तो फॉरेंसिक साइंस की दुनिया (भारत और भारत के बाहर अन्य किसी देश में भी) में न कभी सुना न कहीं पढ़ा.’

फॉरेंसिक साइंस का दफन खूबसूरत इतिहास!

किसी भारतीय फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट द्वारा दुनिया में पहली बार खोजे गए इस तरह के उदाहरण को, डॉ. के. एल. शर्मा चाहते थे कि आने वाली फॉरेंसिक साइंस की पीढ़ियों को दुनिया भर में पढ़ाया जाए. फॉरेंसिक साइंस द्वारा पकड़े/खोजे गए कत्ल के इस अभूतपूर्व उदाहरण को किसी जर्नल में प्रकाशित कराके अंतरराष्ट्रीय पटल तक पहुंचाया जाए. ताकि कत्ल के इस हैरतंगेज तरीके पर दुनिया भर में खुली बहस और रिसर्च शुरू हो सके.

डॉ. के. एल. शर्मा के मुताबिक, ‘अगर यही मामला अमेरिका, चीन, जापान, स्विट्जरलैंड या सिंगापुर में किसी फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट द्वारा सामने लाया गया होता तो, दुनिया भर में कब का छा चुका होता. आप भी वो पहले शख्स हो  जिसने 16 साल से फाइलों में बंद पड़े इस हैरतंगेज मामले को ‘आम’ किया.’

जब तक डॉक्टर शर्मा का सोचा हुआ अमल में आ पाता तब तक वह, सर्विस से रिटायर हो गए. रिटायर होते ही उनका ‘सपना’ सरकारी फाइलों में कफन-दफन कर दिया गया.

पोस्टमॉर्टम से ज्यादा सनसनीखेज थी ‘पड़ताल’

पड़ताली दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर ( 2002 में गांधी नगर थाने में सब-इंस्पेक्टर) राजेश कुमार झा के मुताबिक, ‘मामले में 14 फरवरी 2002 को गांधी नगर थाने में एफआईआर नंबर 29 पर धारा 498-ए/304बी, के तहत आपराधिक केस दर्ज किया था. महिला का पति ही आरोपी बनाया गया था. चूंकि शादी को 2-3 साल ही हुए थे, लिहाजा ऐसे में एसडीएम जांच भी हुई. पड़ताल के दौरान बाद में आईपीसी की धारा 302 (हत्या) भी जोड़ दी गई. ‘पड़ताल’ के दौरान आरोपी ने बताया कि घटना वाली रात दंपत्ति के दोनों बच्चे बुआ (आरोपी की विवाहित बहन) के साथ मकान के भू-तल पर सो रहे थे.

जबकि पति-पत्नी प्रथम-तल पर. सुबह जब पति सोकर उठा तो उसने, पत्नी को बिस्तर पर गंभीर हालत में देखा. दो-तीन साल कड़कड़डूमा कोर्ट में ट्रायल चला. अंत में 30 अप्रैल सन् 2005 को अदालत ने ट्रायल अवधि के दौरान जेल में बंद रहने को ही आरोपी की सजा मानते हुए, उसे अर्थदंड का भागी बनाकर UNDERGONE कर दिया.

भाई ने लगाया था दहेज हत्या का आरोप

इंस्पेक्टर राजेश कुमार झा के मुताबिक, ‘मरने वाली महिला के भाई ने आरोप लगाया था कि उसकी बहन की हत्या दहेज की मांग पूरी न हो पाने के कारण की गयी है. आरोपी मूलत: बड़ौत, पश्चिमी यूपी का रहने वाला था. पेशे से वह दिल्ली में ही इलेक्ट्रिक-कॉन्ट्रेक्टर था. पहली पत्नी की मौत के बाद मेट्रोमोनियल विज्ञापन के जरिए आरोपी की यह दूसरी ‘अरेंज’ मैरिज थी. जबकि विकलांग महिला की पहली शादी थी. आरोपी की पहली पत्नी से दो बच्चे (एक लड़का और एक लड़की) थे.

एक मौत के 16 साल और 100 सवाल!

राजेश कुुमार झा

इलाका एस.डी.एम (गांधीनगर, दिल्ली) और पुलिस ने महीनों पड़ताल करके रिपोर्ट दाखिल-कोर्ट कर दी. भगीरथ प्रयासों के बाद पोस्टमॉर्टम करने वाले डाक्टर ने मौत की वजह भी खोज निकाली. वारदात को घटित हुए 16 साल से ऊपर हो चुके हैं. इस तमाम कसरत के बाद भी अभी तक यह साबित नहीं हो सका कि अगर पति (मुख्य आरोपी) ने महिला के गुप्तांग में सल्फास की गोलियां बहुतायत में भरकर उसकी हत्या नहीं की! तो फिर बेबस विकलांग औरत के साथ आखिर इतना घिनौना कृत्य किया किसने? और अगर पति ने इतना क्रूर कदम उठाया था, तो फिर क्या उसका गुनाह मात्र 2-3 साल की ही सजा भरा का था!

इस बारे में पूछने पर इंस्पेक्टर राजेश कुमार झा बताते हैं, ‘ऐसे तमाम सवालों के बाबत आरोपी निरुत्तर ही रहा!’ कुल जमा पुलिस और कानून की फाइलों में भले ही इन तमाम सवालों के जवाब हमेशा के लिए कफन-दफन हो गए हों या कर दिये गए हों! हमारी पड़ताल तो लेकिन अधूरी ही रहेगी, बिना इन तमाम चीखते-चिल्लाते सवालों के जवाब हासिल किए. साथ ही वो दिल्ली पुलिस दौरान-ए-पड़ताल इन तमाम सवालों का जवाब क्यों और किन कथित ‘मजबूरियों’ के चलते, तलाशने में हांफ गयी? जिस पुलिस के नाम से भूत भी बोलने लगते हैं?

(इस संडे क्राइम स्पेशल में पढ़िये, ‘हत्यारों की एलान-ए-गिरफ्तारी को पुलिस जिप्सी के बोनट पर जब चढ़ गया दबंग आईपीएस डिप्टी पुलिस कमिश्नर!’)

(लेखक स्वतंत्र एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं. पड़ताल सीरीज की अन्य कहानियां  यहां क्लिक करके पढ़ी जा सकती हैं )