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खाड़ी के खुराफाती पार्ट-1: चूल्हे के नीचे ‘दफन’ मिला गोला-बारूद और AK-56 जैसे घातक हथियारों का गोदाम!

नीरज कुमार जब सीबीआई में थे तो दाउद ने रहम की भीख मांगते हुए नीरज से कहा भी था, ‘अब तो मुआफ कर दीजिए. बहुत वक्त गुजर चुका है तबाही के तालाब में मुझे डूबते-उतराते हुए साहिब.’

Sanjeev Kumar Singh Chauhan

अमूमन यही देखा सुना जाता रहा है कि पुलिस के पंजे और कानून के हाथ बेइंतेहा लंबे होते हैं. पुलिस, कानून और अपराधी हमेशा ‘तुम डाल-डाल, हम पात-पात’ वाली कहावत के इर्द-गिर्द की भटकते देखे-सुने जाते हैं. जब जिसका दांव लगा सामने मौजूद शिकार को वही पंजे में जकड़ लेता. इसी तरह की हैरतंगेज लुका-छिपी से जुड़ी सच्ची घटना को मैं पेश कर रहा हूं ब-जरिये ‘पड़ताल’.

वही पड़ताल जो, अब से करीब 18 साल पहले अंजाम तक पहुंचाई गई थी. वह पूरी पड़ताल थी तो मादक पदार्थ, गोला-बारूद और घातक हथियारों की तस्करी से जुड़ी. इस सबके बावजूद मगर उस पड़ताल में चाक-चौबंद ‘पड़तालियों’ को कभी भी कहीं ‘हथियार’ का इस्तेमाल नहीं करना पड़ा. मतलब दौरान-ए-पड़ताल कभी भी, पड़तालियों को खुद के हाथ ‘खून’ से नहीं रंगने पड़े. ऐतिहासिक पड़ताल की बुनियाद खड़ी की थी हिंदुस्तान की दो नामी-गिरामी एजेंसियों (एक जांच और दूसरी सुरक्षा एजेंसी) की साझा ‘उम्दा-रणनीति’ ने. एक तेज-दिमाग ‘उस्ताद’ और उसके काबिल कारिदों की ‘नेक-मंशा’ के बलबूते. पड़ताल को नाम दिया गया था ‘खाड़ी-के-खुराफाती’.


आने वाले वक्त में मैं आपको ब-जरिये ‘खाड़ी के खुराफाती’ की बाकी कड़ियों के उन तमाम हैरतंगेज तफ्तीशों से रू-ब-रू कराता रहूंगा जो, 2000 के दशक में मील का पत्थर साबित हुई थीं.

सन 2000 में सीबीआई की EOU-5

सीबीआई (सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इंवेस्टीगेशन) यानी भारत की इकलौती केंद्रीय जांच एजेंसी. इसी की सब-यूनिट है आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ के अधीन कार्यरत EOU-5 (Economic Offences Unit). अब से 18 साल पहले सीबीआई में प्रति-नियुक्ति पर कार्यरत वरिष्ठ आईपीएस नीरज कुमार सीबीआई की रीढ़ की हड्डी समझी जाने वाली इसी आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (शाखा) के सर्वे-सर्वा यानि संयुक्त-निदेशक (JOINT DIRECTOR) हुआ करते थे.

नीरज कुमार

नीरज कुमार देश के चंद गिने-चुने काबिल ‘पड़तालियों’ में तब भी शुमार थे. आज रिटायरमेंट (दिल्ली पुलिस कमिश्नर पद से सन 2013 में सेवा-निवृत्त) के बाद भी. 2000 और 2001 में आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ ने, देश की सीमाओं पर हो रही मादक-पदार्थ और घातक हथियारों की तस्करी में सेंध लगाने का ‘ब्लू-प्रिंट’ बनाना शुरू किया. यह जानते हुए भी कि हथियार और मादक पदार्थ से जुड़े ‘इंटरनेशनल-सिंडीकेट’ को छूना, ‘तेजाब के कुएं’ में कूदने जैसा है.

‘ऑपरेशन’ की रेंज चूंकि दिल्ली से लेकर देश की अंतरराष्ट्रीय-सीमाओं के आर-पार थी. इसलिए नीरज कुमार ने बीएसएफ यानि सीमा सुरक्षा बल (बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स) को पहले ही शामिल कर लिया. इसी नायाब और संयुक्त ऑपरेशन को खुफिया नाम दिया गया था ‘खाड़ी के खुराफाती’.

हाजी गुलखान से अफगानी अब्दुल्लाह तक

तारीख थी 24 फरवरी 2000. एक टीम ने बीएसएफ की मदद से हाजी गुलखान और अब्दुल्लाह को धर दबोचा. हाजी गुलखान पाकिस्तानी और अब्दुल्लाह अफगानिस्तानी था. दोनों के पास से 23 करोड़ की हेरोइन (मादक पदार्थ) मिली. जब्त माल अल्यूमीनियम की डेगचियों (डिब्बों) में बंद था. माल बरामदगी और धरपकड़ हुई पुरानी दिल्ली के फिल्मिस्तान सिनेमा इलाके से. ऑपरेशन के कर्ताधर्ता नीरज कुमार के मुताबिक, ‘उस जमाने में वो उतनी प्योर-हेरोइन की बरामदगी देश की सबसे बड़ी मादक पदार्थ-खेप की बरामदगी थी.’

अंडरवर्ल्ड के 4 गुर्गों का चौंकाने वाला काम

इस सफलता के कुछ दिन बाद इसी टीम ने 24 जुलाई 2000 को फिर कहर बरपा दिया. बीएसएफ और सीबीआई की टीम ने ‘खाड़ी के खुराफातियों’ के खिलाफ छेड़े अभियान की दूसरी कड़ी में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई को ही नंगा कर दिया. मय सबूत और गवाहों के. उन्हीं चार गुर्गों की गिरफ्तारी करके जो आईएसआई और अंडरवर्ल्ड-डॉन दाउद इब्राहिम (पूर्व आईपीएस का मुंहबोला दोस्त, जो आज तक नीरज से मांग रहा है पनाह) के पाले हुए थे. यह सब मुंबई के थे. इनके पास से पिस्तौल, मैगजीन, कई कुंतल कारतूस जब्त किए गए. साथ ही करीब साढ़े छह करोड़ की प्योर-हेरोइन जैसा जानलेवा मादक पदार्थ बरामद हुआ. हैरत की बात यह है कि यह सब माल खाड़ी के खुराफाती तस्करों द्वारा ट्रक के टायर में छिपाकर लाया जा रहा था. इस सब का दुरुपयोग हिंदुस्तान के व्यापारिक शहर मुंबई की तबाही में किया जाना था.

बब्बर खालसा की खेप दिल्ली में जब्त

बात है 14 जुलाई 2002 की. खाड़ी के खुराफातियों को नेस्तनाबूद करने की कड़ी में ही बीएसएफ और सीबीआई की संयुक्त टीम ने उत्तर पश्चिम दिल्ली के लिबासपुर इलाके में एक ट्रक पकड़ लिया. ट्रक दिल्ली से पंजाब की ओर जा रहा था. तलाशी के दौरान ट्रक से एक संदूक में बंद बरामद हुई एके-56 राइफलें. विदेशी पिस्तौलें. गोला-बारूद, बम बनाने में इस्तेमाल होने वाली टाइमर, कोर्डेक्स फ्यूज-मैच फ्यूज आदी. तबाही मचाने वाली यह खेप पंजाब में बब्बर खालसा के ‘बुजदिल’ आतंकवादियों तक पहुंचनी थी. ट्रक से दो लोग गिरफ्तार हुए. पकड़ा गया गुर्गा गुरबचन सिंह अजनाला (पंजाब) और बलदेव सिंह गुरदासपुर का रहने वाला था.

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दिल्ली से वाया पाकिस्तान सीधे दुबई

दिल्ली के लिबासपुर में बब्बर खालसा की कीमती खेप पकड़ ली गई. उस वक्त सीबीआई और बीएसएफ को अंदाजा नहीं था कि आखिर ‘खाड़ी के खुराफातियों’ के पास इस हद का काबिल-ए-गौर दिमाग भी होगा. दरअसल कड़ी से कड़ी जुड़ने पर ही खुलासा हुआ कि बब्बर खालसा की खाल में घुसे मादक पदार्थ और हथियारों के तस्करों के हाथ हिंदुस्तान तक ही नहीं. वरन हिंदुस्तान के जानी-दुश्मन पाकिस्तान और दोस्त समझे जाने वाले दुबई तक फैले हुए थे. नीरज कुमार द्वारा सीबीआई में रहते हुए मादक पदार्थ और हथियार तस्करों के खिलाफ छेड़ी गई जंग को शायद इसीलिए ‘खाड़ी के खुराफाती’ जैसा बदनाम ‘नाम’ बख्शा गया था. इनमें कई ऐसे खतरनाक मेम्बर थे जो हिंदुस्तानी होकर भी काम दुबई, पाकिस्तान में बैठे अंडरवर्ल्ड-आकाओं के इशारे पर करते थे.

‘शेरों’ के झुंड के सामने से ‘शिकार’ सरक गए

बकौल नीरज कुमार, ‘जहां तक मुझे याद आ रहा है वो अक्टूबर 2001 की कोई रात थी. वक्त रहा होगा यही करीब आधी रात के बाद डेढ़ बजे का. सीबीआई टीम का नेतृत्व कर रहे एम.सी. साहनी के ग्रुप ने राष्ट्रीय राजमार्ग (नेशनल हाइवे 15) पर राजस्थान नंबर के एक ट्रक की घेराबंदी कर ली. ट्रक सन्तालपुर में एक होटल के करीब खड़ा था. संदिग्ध ट्रक के बाबत खबर मिली थी बीएसएफ के खुफिया तंत्र से. ट्रक की रखवाली करने वाले संदिग्धों और सीबीआई के इंस्पेक्टर वी.के. शुक्ला की टीम के बीच आधी-रात को अंधाधुंध गोलियां भी चलीं. यह अलग बात है कि इस सबके बावजूद ट्रक सीबीआई के 'शेरों' की नजरों से ओझल हो गया. कुछ दूर जाकर तस्कर ट्रक छोड़कर भाग गए.’

ट्रक था या सड़क पर दौड़ती बारूद-फैक्टरी

दबंग रिटायर्ड एसीपी मौजी खान, जिन्होंने 1978 में ही ताड़ लिया था कि उनके अंडर 'डी-कोर्स' करने वाला आईपीएस जरूर बनेगा दिल्ली का दबंग पुलिस कमिश्नर

ट्रक की तलाशी में मिली एके-56 राइफलें. करीब 300 कारतूसों सहित स्वचालित पिस्तौलों का जखीरा. 6 पिस्तौल मैगजीन. करीब 4 किलोग्राम घातक विस्फोटक. मौत और तबाही का यह सब सामान था ट्रक ड्राइवर और क्लीनर की सीटों के बीचो-बीच. इतना ही नहीं विस्फोट के वक्त इस्तेमाल होने वाले रिमोट. गोला-बारूद और कई अत्याधुनिक वायरलेस सेट भी बरामद हुए.

ट्रक के ‘ग्लोव-कंपार्टमेंट’ के अंदर मोबाइल नंबर लिखे कुछ फटे-पुराने कागजात भी मिले. ट्रक से ही सीबीआई टीम को कुछ ऐसे कागजात भी हाथ लगे जिन्होंने अलवर राजस्थान में रहने वाले ट्रक मालिक युनूस खान तक पहुंचा दिया.

कागजों पर लिखे एक मोबाइल नंबर ने सीबीआई को दिल्ली के जैतपुर निवासी एक प्रॉपर्टी डीलर तक पहुंचा दिया. अब सीबीआई को तलाश थी अशबुद्दीन की. 3 नवंबर को अशबुद्दीन का शिकार सीबीआई ने कर डाला.

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अशबुद्दीन के साथ ही रात में नेशनल हाइवे 15 पर ट्रक छोड़कर भागने वाला उसका ड्राइवर अब्दुल सुभान भी हाथ में आ गया. वे दोनो हरियाणा के बदनाम इलाके मेवात के रहने वाले थे.

चूल्हे के नीचे जमींदोज बारूद का गोदाम

अशबुद्दीन और सुभान सीबीआई के ‘सुग्रीव’ साबित हुए. अपनी खैरियत के फेर में फंसे दोनो ने यूनुस खान और अख्तर नाम के दो अन्य का भी नाम कबूला. सुभान ने कबूला कि नेशनल हाइवे से जब्त किए गए ट्रक की एक महत्वपूर्ण खेप गुड़गांव (गुरुग्राम हरियाणा) में कुछ समय पहले ही डिलीवर हो चुकी है.

खाड़ी के खुराफातियों के लिए तबाही का सबब बन चुकी सीबीआई ने गुरुग्राम के गांव घुम्मत बिहारी में दबिश दे दी. पता चला कि वे खेप खाड़ी के खुराफातियों ने घर के अंदर मौजूद चूल्हे के नीचे ‘दफन’ (दबा-छिपाकर) करके रखी है. सीबीआई ने चूल्हे के नीचे काफी गहरे तक खुदाई की, तो उसे वास्तव में मिट्टी से सोना (मादक पदार्थ, हथियार, बम, विस्फोटक सामग्री) ही उगलता नजर आने लगा. बाद में सीबीआई ने ट्रक मालिक युनूस खान को तो गिरफ्तार कर लिया. उसके दूसरे फरार चल रहे साथी अख्तर ने 2012 में अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया.

‘खाड़ी के खुराफाती’ से मिला डॉन का ‘डुप्लीकेट’

अशबुद्दीन, अब्दुल सुभान और यूनुस खान ने कबूला कि वे मादक-विस्फोटक पदार्थ और हथियारों की तस्करी राजस्थान अलवर निवासी अकीब अली के इशारे पर करते थे. पता चला कि अकीब उन्हीं दिनों दिल्ली नंबर की सेंट्रो कार से मध्य-प्रदेश भाग चुका है.

मध्य-प्रदेश उसके जाने की वजह पता चली वहां रहने वाली उसकी माशूका. अकीब की महबूबा हुमीरा फिरदौस भोपाल के घोड़ा नक्कास जैसे भीड़-भाड़ वाले इलाके में कहीं रहती थी.

क्या सीबीआई के शिकंजे में फंस पाया? मादक-विस्फोटक पदार्थ और अवैध हथियारों का तस्कर आशिक-मिजाज अय्याश अक़ीब अली. पढ़िए ‘पड़ताल’ के अंतर्गत शुरू की गई तफ्तीशी-कहानी ‘खाड़ी के खुराफाती’ पार्ट-2 में 27 अक्टूबर 2018 (शनिवार) को.

‘खाड़ी के खुराफातियों’ पर खाक डालने वाला

हिंदुस्तान में जन्म लेने के बावजूद इसी की सर ज़मीं पर तबाही के मंसूबे बनाने वाले ‘खाड़ी के खुराफातियों’ की तबाही का सबब बने इंसान का ही नाम है नीरज कुमार. नीरज कुमार 1976 बैच (अग्मू कॉडर) के पूर्व आईपीएस हैं.

तिहाड़ जेल महानिदेशक रहते हुए अन्ना हजारे प्रकरण में तत्कालीन केंद्र सरकार को फजीहत से बचाने का काफी कुछ श्रेय इसी सूझ-बूझ वाली शख्सियत को जाता है. दुनिया को झकझोर देने वाले ‘निर्भया गैंग रेप हत्याकांड’ में सुर्खियों में आये नीरज कुमार 2013 में दिल्ली पुलिस कमिश्नर के पद से रिटायर हो चुके हैं.

आईपीएस की नौकरी के दौरान अपराध की दुनिया में तमाम को पानी भरवा देने वाले, अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम को ‘पनाह’ मंगवाने की कुव्तव भी नीरज कुमार की ही थी. देश के तमाम आईपीएस की भीड़ में नीरज कुमार ही वो इकलौते दबंग-बेबाक आईपीएस निकले जिन्होंने, बेखौफ सार्वजनिक रूप से माना कि दाउद और उनके बीच, तमाम मर्तबा टेलीफोन पर ‘गुफ्तगू’ हुई.

नीरज कुमार जब सीबीआई में थे तो दाऊद ने रहम की भीख मांगते हुए नीरज से कहा भी था, ‘अब तो मुआफ कर दीजिए. बहुत वक्त गुजर चुका है तबाही के तालाब में मुझे डूबते-उतराते हुए साहिब.’ जमाने की नजर में रहम-दिल नीरज कुमार मगर, दाउद के लिए ‘बेरहम’ और ‘संग-दिल’ से ज्यादा कुछ साबित नहीं हुए.

( इस ‘संडे क्राइम स्पेशल’ में पढ़ना न भूलें: ‘पूर्व आईपीएस की मुंहजुबानी जिसे, शौक था फिल्म डायरेक्टर बनने का. वक्त और वर्दी ने मगर बना डाला अंडरवर्ल्ड-डॉन दाउद इब्राहिम का दुश्मन ! बचपन में इसी बेटे को मां बेहद शर्मिला समझती थी. उसी बेटे की रुह कंपा देने वाली गुफ्तगू अक्सर होने लगी. दुनिया के सबसे खतरनाक खूनी-शैतान से. अक्सर बेबाकी से और बेखौफ.’)