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मदन मोहन मालवीय: BHU को स्थापित करने के लिए जिसने निजाम को सिखाया सबक

मालवीय वैसे तो बहुत विनम्र थे लेकिन निजाम के व्यवहार पर उन्होंने सबक सिखाने की ठान ली थी

Rituraj Tripathi

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी का नाम जब भी किसी की जुबां पर आता है तो पंडित मदन मोहन मालवीय की तस्वीर खुद ही सामने आ जाती है. वह इस यूनिवर्सिटी के संस्थापक थे. उन्होंने अपना पूरा जीवन पत्रकारिता, वकालत, समाज सुधार और भारतमाता की सेवा में लगा दिया. 25 दिसंबर का दिन इसलिए भी खास है क्योंकि पंडित मालवीय का आज जन्मदिन है.

पंडित जी भारत के पहले और अन्तिम व्यक्ति थे जिन्हें महामना की उपाधि से नवाजा गया था. इसके अलावा भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से भी विभूषित किया. मदन अपने नाम के आखिर में मालवीय लगाते थे.


इसके पीछे की वजह भी बड़ी दिलचस्प है. उनका जन्म इलाहाबाद(प्रयागराज) में हुआ था. लेकिन उनके पूर्वज मालवा से आकर इलाहाबाद में बसे थे इसलिए उन्हें मालवीय कहा जाता था. मदन ने भी आगे चलकर अपने पूर्वजों के इस नाम को अपने नाम के आखिर में जोड़ लिया.

उनकी खास बात यह थी कि वह संस्कृत को खूब पसंद करते थे. पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने 'मकरंद' के नाम से कविताएं लिखनी शुरू कर दी थीं. जो उस दौरान पत्रिकाओं में खूब छपा करती थीं. 1884 में जब लोग शिक्षा के महत्व से बहुत परिचित नहीं थे, तब मदन मोहन मालवीय ने कलकत्ता यूनिवर्सिटी से बीए किया था.

भारत की स्वतंत्रता के प्रति मालवीय बहुत आशान्वित थे. एक बार उन्होंने कहा था, 'मैं पचास सालों से कांग्रेस के साथ हूं, हो सकता है कि मैं ज्यादा दिन तक न जियूं और ये कसक रहे कि भारत अब भी स्वतंत्र नहीं है लेकिन फिर भी मैं आशा रखूंगा कि मैं स्वतंत्र भारत को देख सकूं.'

मालवीय अपने पिता की तरह कथावाचक ही बनना चाहते थे लेकिन वह अपनी गरीबी को देखते हुए सरकारी स्कूल में टीचर बन गए. बाद में बीएचयू की स्थापना मालवीय की जिंदगी का सबसे बड़ा लक्ष्य बन गई.

निजाम ने नहीं दिया चंदा तो सिखा दिया था उसको सबक

बीएचयू को बनाने के लिए यह किस्सा बहुत मशहूर हुआ था. दरअसल यूनिवर्सिटी के लिए मालवीय हैदराबाद के निजाम के पास आर्थिक मदद के लिए गए थे. मालवीय ने उनसे विनती करते हुए कहा कि वह यूनिवर्सिटी को बनाने में अपना सहयोग दें.

लेकिन निजाम ने आर्थिक सहयोग देने से साफ इंकार कर दिया और कहा कि दान में देने के लिए उनके पास केवल जूती है. मालवीय वैसे तो बहुत विनम्र थे लेकिन निजाम के इस व्यवहार पर उन्होंने सबक सिखाने की ठान ली और उनकी जूती उठाकर ले गए.

मालवीय ने निजाम की जूती को बाजार में नीलाम करने की कोशिश की. जब यह बात निजाम को पता लगी तो उन्हें लगा कि उनकी इज्जत नीलाम हो रही है. फिर उन्होंने शर्मिंदा होकर यूनिवर्सिटी को बड़ा दान दिया.

मीडिया रिपोर्ट में कई जगह इस बात का जिक्र होता है कि महामना ने यूनिवर्सिटी के लिए पेशावर से लेकर कन्‍याकुमारी तक करीब एक करोड़ 64 लाख रुपए का चंदा इकट्‌ठा किया था.

सत्यमेव जयते के नारे को प्रसिद्ध बनाने का श्रेय भी महामना को ही जाता है. सत्यमेव जयते हजारों साल पहले लिखे गए उपनिषदों का एक मंत्र है.

मालवीय कांग्रेस के चार बार राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे और उन्होंने देशहित में वकालत भी की. चौरी चौरा कांड में 170 भारतीयों को फांसी की सजा हुई थी जिसमें 151 लोगों को मालवीय ने फांसी से बचा लिया था. 12 नवम्बर 1946 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.

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