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#DoesItFart: मजाक नहीं, जीवन से लेकर क्लाइमेट चेंज तक से जुड़ी हुई है फार्टिंग

मजाक को छोड़कर अगर इस पर ध्यान देंगे तो समझेंगे कि किस तरह से जानवरों के भोजन और पाचन की व्यवस्था उनके जीवन जीने और यहां तक कि जलवायु परिवर्तन से भी संबंधित हैं

Maneka Gandhi

पिछले साल वैज्ञानिकों ने एक रोचक वैज्ञानिक शोध को अंजाम दिया. इस शोध के रोचक होने की मुख्य दो वजहें थीं. पहला, इसलिए क्योंकि ये सजीवों के गुदा से निकलने वाली वायु या गैस से संबंधित थी और दूसरा, शोधकर्ता वैज्ञानिकों ने आम लोगों से इस संबंध में जानकारी मांगी थी और उन्होंने ये जानकारी ट्विटर पर #doesitfart के जरिए मांगी थी.

पेट में उत्पन्न गैस जिसे कि गुदा द्वार से उत्सर्जित किया जाता है उसे फार्ट यानी अधोवायु कहते हैं. फार्ट से जुड़ी हुई वैज्ञानिक शिक्षा को फ्लैटोलॉजी कहते हैं. वैसे तो ये बच्चों के मजाक में इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि अपनी मर्जी के हिसाब से अधोवायु उत्सर्जित करना भी एक कला है और इस कला में पारंगत लोगों को फ्लैटुलिस्ट्स कहते हैं.


जीवन और जलवायु परिवर्तन तक से जुड़ा

अक्सर मजाक का विषय बनते रहे फार्टिंग पर कुछ लोग या कुछ वैज्ञानिक ही इससे जुड़ी बातों को लेकर गंभीर होते रहे हैं. लेकिन मजाक को छोड़कर अगर हम इस पर गंभीरता से ध्यान देंगे तो समझेंगे कि किस तरह से जानवरों के भोजन और पाचन की व्यवस्था उनके जीवन जीने और यहां तक कि जलवायु परिवर्तन से भी संबंधित हैं.

इस विषय से संबंधित आंकड़े इक्ट्ठा करने की जिम्मेदारी मुख्य रूप से डेनियला राबिएयोट्टी के पास थी. डेनिएला लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन से पीएचडी की छात्रा हैं और इसके साथ ही वो लंदन के जूलॉजिकल सोसायटी की सदस्या और पर्यावरण शोधार्थी हैं. उनसे ये पूछा गया कि क्या सांप अधोवायु उत्सर्जित करते हैं. उन्होंने इसके लिए औबर्न विश्वविद्यालय के अपने एक सहयोगी बायोलॉजिस्ट डेविड स्टीन से इस बारे में जानकारी प्राप्त की. उन्हें बताया गया कि सांप कभी-कभी अपनी रक्षा रणनीति के तहत एक खास आवाज के साथ मल उत्सर्जित करता है उनके इसी खास आवाज को सांपों का फार्ट कहा जाता है. इसी के बाद डेनिएला ने विभिन्न जानवरों के गुदा द्वार से निकलने वाली गैस और उत्सर्जन के दौरान निकलने वाली विशेष आवाज के अध्ययन की ठानी.

इसके बाद #doesitfart ट्विटर हैंडल पर हजारों लोगों ने इससे संबंधित अपनी जानकारियां साझा की. कई शोधार्थियों, वन्य जीव विशेषज्ञों और आमजनों ने इस संबंध में अपनी बात रखी. यूनिवर्सिटी ऑफ अलाबामा के एक पीएचडी के छात्र निक कारुसो ने तो इस विषय से जुड़ी जानकारियों की एक स्प्रेडशीट तक तैयार कर ली. हरेक दावों को रिसर्चरों से प्रमाणित करने का अनुरोध करने को कहा गया.

जानवरों के द्वारा उत्सर्जित की जाने वाली गैस्ट्रिक गैसों से संबंधित कुछ रोचक जानकारियां ये हैं:

गिनी पिग्स अधोवायु उत्सर्जित करते वक्त भूरे बादलों के धुंध जैसा गैस उत्सर्जित करते हैं जो कि बहुत बदबूदार होता है. शेर और औरंगउटान भी फार्टिंग करते हैं. बॉबकैट्स भी सबसे बदबूदार गैस उत्सर्जित करते हैं. जबकि वुडलाइस अमोनिया उत्सर्जित करते हैं. कुत्ते और बिल्लियां भीं गैसों का उत्सर्जन करते हैं.

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ट्विटर हैंडल पर आई कुछ जानकारियां इस प्रकार थीं- क्या चिंपाजी फार्ट करता है? जवाब मिला हां, जबकि फिग्स खाता है तो सबसे बुरे तरीके से फार्टिंग करता है. कई बार तो उसके गैस उत्सर्जन की आवाज से ही जंगल में उसका पता चल जाता है. ये लिखा था यूनिवर्सिटी ऑफ कैंट की पीएचडी की शोधार्थी एड्रियाना लोव ने. वहीं क्वीन मेरी यूनिवर्सिटी लंदन से पीएचडी कर रहे डेविड बैनेट का कहना है कि चमगादड़ भी गैस निकालते हैं और वो जितने बड़े होते हैं उनकी आवाज भी उतनी ही ज्यादा होती है.

अधिकतर स्तनपायी गैसों का उत्सर्जन करते हैं उनके साथ कुछ कीट भी ऐसा करने में सक्षम होते हैं. पक्षी गैसों का उत्सर्जन नहीं करते. दरअसल उनके पास स्तनपाई जानवरों में पाया जाना वाला बैक्टीरिया नहीं होता और पक्षियों का खाना उनके पाचन तंत्र से आसानी से निकल जाता है ऐसे में उनके पेट में गैसों का निर्माण ही नहीं हो पाता. उसी तरह से पानी में रहने वाले रीढ़विहीन केकड़े जैसे जीव भी गैस उत्सर्जन नहीं करते. जेलीफिश जैसे जीव इसलिए गैस उत्सर्जन नहीं करते क्योंकि उनमें गुदा ही नहीं होता है. अगर नली से गैस उत्सर्जन को फार्टिंग माना जाए तो ऑक्टोपस और कैटलफिश भी इसे करते हैं. मेंढक भी गैस उत्सर्जित करते हैं और कई बार करते हैं. चूहे फार्ट करते हैं लेकिन वो डकार लेने में अक्षम होते हैं. कछुए भी फार्ट करते हैं और उनकी फार्टिंग बदबूदार होती है.

रोचक है जानवरों के गैस उत्सर्जन की जानकारी

ये जानकारी रोचक है कि कौन से जानवर गुदा के माध्यम से गैस उत्सर्जन करते हैं और वो कैसे करते हैं. स्प्रेडशीट में इसकी जानकारी दी हुई है.

ओरंगउटान फार्ट करते हैं और अक्सर करते हैं. मिलीपीड का उत्सर्जन शांत तरीके से होता है लेकिन उत्सर्जन से निकलने वाली गैसें खतरनाक होती हैं. ये गैसें होती हैं- मीथेन और हाइड्रोजन सल्फाइड. दरअसल ऐसा इसलिए होता है कि क्योंकि जहां अधिकतर जानवरों के कूल्हे मांसल और मुलायम होते हैं वहीं मिलीपीड के पास कड़े वाल्व होते हैं जो शायद गैसों के उत्सर्जन के दौरान होनेवाली आवाज को कम करने में सहायक होते हैं. सील का फार्ट नार्डिक डिश न्यूटफिस्क की तरह महकता है. बर्मा में पाया जानेवाला अजगर भी गैस उत्सर्जित करता है. लकड़बग्घे का भी उत्सर्जन बदबूदार होता है खास करके उसके ऊंटों की आंतें खाने के बाद का उत्सर्जन अत्यधिक खराब होता है. हिलसा मछली तो अपने उत्सर्जन के माध्यम से ही एक दूसरे से संपर्क करती है. हनी बैजर्स बदबूदार गैस दमघोंटू स्राव के साथ निकालते हैं. इसका इस्तेमाल वो बम की तरह करते हैं. हनी बैजर्स के उत्सर्जन से मधुमक्खियां अपना मधु भरा छत्ता हनी बैजर्स के लिए छोड़कर भाग जाती हैं. कुछ और जानवर भी अपने फार्ट का इस्तेमाल अपनी रक्षा के लिए करते हैं. जैसे सोनोरान कोरल स्नेक अपने फार्ट को अपने शस्त्र की तरह से इस्तेमाल करता है.

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अलग अलग प्रजातियों में अलग अलग गैसों का उत्सर्जन होता है. अधिकतर फार्ट में हाइड्रोजन,कार्बन डाईऑक्साईड. नाइट्रोजन और सल्फ्यूरियस गैसों का उत्सर्जन होता है. लेकिन वैज्ञानिकों के लिए चिंता का विषय एक और गैस है जो कि समान रुप से सबमें पाया जाता है, वो है- मीथेन गैस. मीथेन एक ताकतवर ग्रीनहाउस गैस है. जर्नल ऑफ एक्सपेरिमेंटल बायोलॉजी के नवीनतम अंक में छपे एक पेपर के मुताबिक, पूरे विश्व के मीथेन उत्पादन का 30 फीसदी उत्पादन केवल घास-फूस खाने वाले उन जानवरों से हो रहा है जिन्हें हम मीट उत्पादन के लिए तैयार करके रखते हैं. ईपीए के मुताबिक, गाय सबसे ज्यादा मीथेन का उत्पादन करने वाले जानवरों में से एक है. एक अनुमान के मुताबिक गायें प्रतिदिन 551 से 1100 पाउंड मीथेन गैस प्रतिदिन उत्सर्जित करती हैं. उसी तरह से बकरी भी अपने मल और गैस उत्सर्जन से मीथेन का खूब उत्पादन करती है.

बढ़ रही है मीथेन की मात्रा

2015 में घटे एक रोचक वाकये के मुताबिक सिंगापुर में एक प्लेन को इमरजेंसी लैंडिग का सहारा लेना पड़ गया था. उस समय बकरी के एक फार्ट से कार्गो में धुएं जैसा एहसास होने के बाद प्लेन को आपातकालीन स्थिति में लैंड कराना पड़ा. डेली मेल के मुताबिक, प्लेन की घंटों जांच पड़ताल के बाद ये पता चला कि ये सारी गलतफहमी बकरी के गैस उत्सर्जन की वजह से हुई है. नासा के गोडार्ड इंस्टीच्यूट फार स्पेस साइंस के मुताबिक एक सुअर प्रति वर्ष 3.3 पाउंड मीथेन उत्सर्जित करता है. जबकि एक भेड़ 18 पाउंड उत्सर्जित करता है. उसी तरह से एक घोड़ा 45.5 पाउंड मीथेन प्रति वर्ष निकालता है लेकिन कई बार इनमें मात्रा घटती-बढ़ती रहती है. जैसे दूध देने वाली घोड़ी दूध देने वाली गाय के मुकाबले केवल 34 फीसदी मीथेन उत्सर्जन करती है. हालांकि हाथी जुगाली करने वाले जानवर नहीं हैं इसके बावजूद वो काफी मात्रा में गैस उत्सर्जित करते रहते हैं.

गोडार्ड स्टडी के मुताबिक, एक वयस्क मनुष्य एक तिहाई पाउंड गैस का उत्सर्जन प्रति वर्ष करता है. लेकिन गायों की तुलना में ये बहुत कम है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक इस पृश्वी पर कम से कम 7 बिलियन लोग रह रहे हैं ऐसे में मीथेन का भंडार धीरे धीरे जमा हो रहा है.

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दीमक वैसे तो काफी छोटे होते हैं लेकिन ये मीथेन उत्सर्जन में काफी बड़े होते हैं. हालांकि अकेला एक दीमक बहुत ज्यादा गैस उत्सर्जित नहीं कर सकता लेकिन तमिलनाडु एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के द्वारा की गई एक स्टडी के मुताबिक पूरे विश्व के मीथेन उत्सर्जन में 5 फीसदी योगदान दीमकों का ही है. कई शोधार्थियों का तो मानना है कि ये आंकड़ें और ज्यादा भी हो सकते हैं. पेस्टीसाइड कंपनी रेंटोकिल के मुताबिक काक्रोच भी अपने शरीर के आकार से ज्यादा मीथेन उत्पादन करते हैं.

अमेरिका के टेक्सास के ड्यूपोंट प्लांट में मीथाइल मर्केप्टेन गैस रिसाव से लोगों की जान चली गई थी. फार्ट में न केवल मीथाइल मर्केप्टेन गैस होती है बल्कि उसमें मीथेन, नाइट्रोजन और डाइमिथाइल सल्फाइडस जैसे हानिकारक गैस भी मौजूद होते हैं लेकिन उसकी मात्रा आपके खाने पर निर्भर करती है. वैसे आपके एक फार्ट में केवल 110 मिलीमीटर गैस होती है यानी कि आप घर में इस गैस से कोई घरेलू हथियार बनाने की कोशिश करेंगे तो आप सफल नहीं हो सकेंगे.