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'को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन जात तिहारो’

चुनावी माहौल में हनुमान जी जाति सार्वजनिक हो चुकी है. बजरंगबली बेखबर हैं लेकिन नेताओं को पता है कि पवनपुत्र किस जात में पैदा हुए थे

Rakesh Kayasth

अगर हनुमान जी की जाति का विवाद त्रेता युग में उठता तो नतीजा क्या होता? संजीवनी लाने के लिए हनुमान जी जैसे ही उड़ान भरते, दलित, क्षत्रिय, ब्राह्मण और पिछड़ा जैसे शब्द पीछा करते हुए उन तक पहुंच जाते. फिर हनुमान जी क्या करते, पहले पर्वत उठाते या अपनी असली जाति का पता करके प्रमाण पत्र उठाते? मान लीजिए अगर हनुमान जी को पता चलता कि वे दलित हैं तो उनकी प्रतिक्रिया क्या होती? क्या वे शंबूक की गति प्राप्त होने के डर से पहले ही नौकरी छोड़कर भाग जाते? ऐसा नहीं होता क्योंकि हनुमान जी निर्भय और कर्तव्य परायण थे. संभावना इस बात की है कि उनकी कृपा से दलित साधक शंबूक के प्राण भी बच जाते.

हिंदू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हनुमान ऐसे भगवान हैं, जो स्थायी रूप से पृथ्वी पर निवास करते हैं. कहते हैं कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने पहले हनुमान जी के दर्शन किए थे और फिर हनुमान जी की कृपा से उन्हें अपने आराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के दर्शन हुए हुए थे. राम चरितमानस की कई चौपाइयों में आप जाति विमर्श ढूंढ सकते हैं. लेकिन गोस्वामी जी ने हनुमान की जाति के बारे में कहीं कुछ कुछ नहीं लिखा है.


हनुमान चालीसा की यह पंक्ति बहुत मशहूर है 'को नहीं जानता है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो'

गोस्वामी तुलसीदास अगर आज के जमाने में होते तो वे `नाम’ के बदले `जात’ लिखते. 'को नहीं जानत है, जग में कपि संकट मोचन जात तिहारो’.

संकट मोचन हनुमान की जात सबको अपने-अपने ढंग से पता है. दलित से लेकर ब्राह्मण तक बन चुके हैं बजरंगबली. इतना ही नहीं, योगी आदित्यनाथ के 'संकटमोचक’ बनने को बेचैन बीजेपी के विलुप्तप्राय मुसलमान नेताओं में एक बुक्कल नवाब बजरंगबली को पांच वक्त का नमाजी भी बना चुके हैं. बड़ी विचित्र स्थिति है. राजनीति के अखाड़े में लाल लंगोटे वाले पर वही पार्टी अपनी ज़रूरत के हिसाब से अलग-अलग रंग थोपने में जुटी है, जो खुद को उनका सबसे बड़ा भक्त बताती है. चुनाव जो ना करवाए.

योगी आदित्यनाथ

योगी के जाति प्रमाण पत्र से भक्त पार्टी की लतीफेबाजी तक

आखिर हनुमान जी जाति का सवाल आया कहां से? इसकी शुरुआत हुई यूपी के ठांय-ठांय सीएम और हिंदुत्व के पोस्टर बॉय योगी आदित्यनाथ के एक भाषण से. राजस्थान में चुनाव प्रचार के दौरान योगी आदित्यनाथ ने हनुमान को दलित बताया. योगी आदित्यनाथ धार्मिक ध्रुवीकरण के चैंपियन हैं. उन्हें इस बात का अच्छी तरह अंदाज़ा है कि उनकी किस बात का क्या मतलब निकाला जाएगा.

लोकसभा चुनाव के पहले योगी आदित्यनाथ के जिम्मे कट्टर हिंदू वोटरों को लामबंद करने का काम है. हिंदू वोटर लामबंद होंगे तो क्या होगा? तात्कालिक फायदा 2019 में केंद्र में बीजेपी की वापसी के रूप में हो सकता है.

दीर्घकालिक लक्ष्य हिंदू राष्ट्र की स्थापना है. हिंदू राष्ट्र क्या है? हिंदू राष्ट्र वह राजनीतिक विचार है, जिसकी कल्पना विनायक दामोदर सावरकर ने की थी और गुरु गोलवलकर जैसे संघ के चिंतकों ने इसे आगे बढ़ाया.

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हिंदू राष्ट्र के पैरोकार यह मानते हैं कि प्राचीन भारतीय समाज महान था, जिसे फिर से बहाल करके ही रामराज आ सकता है. विशाल आबादी वाली दलित और पिछड़ी जातियों के सहयोग के बिना ऐसी परिकल्पना को वास्तविकता में बदल पाना असंभव है. योगी आदित्यनाथ के बयान का उद्देश्य यही था कि दलित जातियां खुद को हनुमान का वंशज मानकर गौरवान्वित महसूस करें और उसी तरह संघ और बीजेपी के नेतृत्व की आज्ञा का पालन करें, जिस तरह हनुमान जी ने भगवान श्रीराम का किया था.

लेकिन हनुमान जी को शायद योगी आदित्यनाथ के हाथ से जाति प्रमाण पत्र लेना मंजूर नहीं था. राजस्थान की जिस विधानसभा सभा सीट पर प्रचार के दौरान योगी ने हनुमान जी की जाति बताई थी, वहां बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा. राजस्थान का चुनाव खत्म हो गया. लेकिन हनुमान जी की जाति को लेकर चर्चा लगातार आगे बढ़ती गई.

बीजेपी के कई नेताओं ने हनुमान को किसी खास जाति का बताने के लिए एक पुराना लतीफा चेपना शुरू कर दिया. चुटकुला कुछ यूं है कि तीन अलग-अलग समुदाय के लोग हनुमान जी पर दावा जताने लगे. हिंदू ने पौराणिक कथाओं के आधार पर हनुमान को अपने समुदाय का सिद्ध किया. मुसलमान ने कहा- जैसे सुलेमान, रहमान वैसे ही हनुमान. तीसरे ने कहा कि हरण किसी की पत्नी का हुआ, हरण किसी और ने किया और बजरंगबली ने पूंछ अपनी जला ली. ऐसे काम हमारी बिरादरी वाले ही करते हैं.

यह एक पिटा हुआ चुटकुला है, जिससे ना सिर्फ धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंच सकती है बल्कि इसमें एक खास बिरादरी के लोगों की समझदारी पर भी कटाक्ष है. हैरानी हो रही है कि बजरंगबली के नाम पर बीजेपी नेता धड़ाधड़ इसी चुटकुले की पैरोडी बनाए जा रहे हैं. बुक्कल नवाब ने रहमान, सुलेमान की तरह हनुमान को अपनाया बताया. बीजेपी के एक जाट मंत्री ने भी बजरंगबली पर दावा पेश करने के लिए इसी चुटकुले का सहारा लिया.

बीजेपी के कुछ नेताओं ने पिछले साढ़े चार साल में लगातार हिंदू भावनाओं को हवा देने की कोशिश की है. पार्टी के ज्यादातर नेता अलग-अलग मंचों से कहते सुने गए हैं कि बाकी समुदायों के लोगों की भावनाओं का सम्मान होता है, लेकिन हिंदू की भावना को कोई भावना नहीं मानता. ताज्जुब है कि संघ यह सवाल बीजेपी के नेताओं से क्यों नहीं पूछ रहा है कि बजरंगबली को लेकर वे इतनी हल्की और छिछली बातें क्यों कर रहे हैं.

व्हिस्की में विष्णु बसें रम में श्रीराम

समाजवादी पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए नरेश अग्रवाल ने सांसद रहते हुए राज्यसभा में अजीबो-गरीब दो लाइनें पढ़ीं थीं. चूंकि मामला पब्लिक डोमेन में हैं, इसलिए संदर्भ के नाते इसका उल्लेख किया जा सकता है। आशु कवि श्री अग्रवाल ने कहा था-

व्हिस्की में विष्णु बसें, रम में श्रीराम

जिन में माता जानकी, ठर्रे में हनुमान

रामभक्त बीजेपी ने गाजे-बाजे के साथ नरेश अग्रवाल को पार्टी में शामिल किया. किसी ने यह सवाल नहीं पूछा कि भावना आहत करने वाले ऐसे नेता को बीजेपी का हिस्सा क्यों बनाया जा रहा है. बात बहुत स्पष्ट है. किसकी भावना, कब, कहां और कितनी आहत होगी, यह राजनीतिक स्थितियों और ज़रूरतों पर निर्भर करता है. फर्ज कीजिए कि अगर किसी और पार्टी के मुसलमान नेता ने हनुमान जी को अपने मजहब का बताया होता तो क्या होता? लेकिन बुक्कल नवाब बीजेपी के मुसलमान हैं, इसलिए उनका कुछ भी कहना माफ है.

यह सच है कि हिंदू समाज शुरू से उदार रहा है. देवताओं के नाम पर हंसी-ठिठोली कोई नई नहीं है. हरिद्वार से लेकर दिल्ली तक होनेवाली किसी भी छोटी-मोटी रामलीला में चले जाइए. फिल्मों से प्रभावित कई ऐसे दृश्य होते हैं, जिनका उल्लेख रामायण में कहीं है नहीं. भगवती जागरणों में जाकर देखिए तो पता चलेगा कि आस्था के नाम पर क्या-क्या होता है. लेकिन कोई इन बातों का बुरा नहीं मानता.

कुछ लोग इसे कमज़ोरी मानते हैं. लेकिन उदारता सदियों से हिंदू समाज की सबसे बड़ी ताकत रही है. हम देवी-देवताओं को मानव रूप में देखते हैं. इसलिए पौराणिक कथाओं के कई पात्र और आख्यान मानवीय दुर्बलताओं से भरे हैं. यह एक बहुत सहज और स्वभाविक बात है. शायर और पटकथा लेखक जावेद अख्तर ने एक बार कहा था- उदारता हिंदू समाज की सबसे बेशकीमती चीज़ है. इसे बचाया जाना चाहिए. कोशिश इस बात करनी चाहिए कि दूसरे आपकी तरह हों, आप दूसरों की तरह ना हों.

इस तरह देखें तो हनुमान जी की जाति को लेकर जो कुछ चल रहा है, उसमें नया कुछ नहीं है. यह कोई पहली बार नहीं हो रहा है और ना ही इसके बाद बंद हो जाएगा. बात सिर्फ इतनी है कि अपनी राजनीतिक ज़रूरतों के हिसाब से ऐसी बातों की व्याख्या करके धार्मिक उन्माद नहीं भड़काया जाना चाहिए.

नरेश अग्रवाल

अजित डोभाल पता लगाएंगे हनुमान जी की असली जाति?

चलिए लौटते हैं, एक बार फिर पुराने सवाल पर, हनुमान जी की असली जाति आखिर क्या है? दलित, क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य और मुसलमान, बीजेपी के नेताओं ने कुछ भी नहीं छोड़ा. इतने सारे ऑप्शन देखकर भक्त तो भक्त बजरंगबली तक चकरा जाएंगे. अब ये मामला `नेशन वांट्स टू नो’ जैसा हो गया. जब राहुल गांधी के गोत्र का पोस्टमार्टम हो सकता है तो फिर बजरंगबली के बारे में भी देश को जिज्ञासा होगी ही. यह जिज्ञासा कौन शांत करेगा?

कायदे से जांच सीबीआई को सौंपी जानी चाहिए थी. लेकिन अदालत के चक्कर काट रही सीबीआई खुद अपनी जात धर्म भूल चुकी है. असली डायरेक्टर कौन है, यह पता नहीं फिर असली जाति का पता कहां से लगा पाएगी? एक ही आदमी इस गुत्थी को सुलझा सकता है, वे हैं इंडियन जेम्स बॉन्ड अजित डोभा.। सरकार के संकटमोचक डोभाल साहब ने पहले भी ऐसे कारनामे करके काफी शोहरत बटोरी है.

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भला कौन भूल सकता है जब हैदराबाद यूनिवर्सिटी के छात्र रोहित वेमुला के आत्महत्या के मामले में जांच का जिम्मा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोभाल को सौंपा गया था. आत्महत्या के कारणों की जांच नहीं, वेमुला की असली जाति का पता लगाने का काम. डोभाल साहब ने त्वरित छानबीन के बाद बता दिया था कि वेमुला दलित नहीं बल्कि ओबीसी था.

कम ऑन डोभाल साहब, एक बार फिर अपना हुनर दिखाइए और बजरंगबली की असली जाति ढूंढ लाइए... बीकॉज़ नेशन वांट्स टू नो.

(लेखक जाने-माने व्यंग्यकार हैं)