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निखिल बनर्जी: महान कलाकार जिनके जीवन में सबकुछ बहुत जल्दी-जल्दी हुआ, मौत भी...

आज जिस कलाकार के जन्मदिन पर हम उसे याद करने जा रहे हैं उनका नाम भी निखिल ही था. महान सितार वादक निखिल बनर्जी

Shivendra Kumar Singh

आपके जानने वालों में किसी ना किसी का नाम निखिल जरूर होगा. क्या आपने उनसे कभी पूछा है कि निखिल नाम का मतलब क्या होता है? ये सवाल आज मैं इसलिए पूछ रहा हूं क्योंकि आज जिस कलाकार के जन्मदिन पर हम उसे याद करने जा रहे हैं उनका नाम भी निखिल ही था. महान सितार वादक निखिल बनर्जी.

आज से कोई 87 साल पहले आज ही के दिन जब कलकत्ता में उनका जन्म हुआ तब उनके माता-पिता ने क्या सोचकर उनका नाम निखिल रखा था, ये नहीं कह सकते हैं. लेकिन ये जरूर कह सकते हैं निखिल बनर्जी ने अपने नाम के मायने को सौ फीसदी सच साबित किया. निखिल का मतलब होता है संपूर्ण यानी ‘कंपलीट’. संगीत की दुनिया में निखिल दा एक सच्चे और संपूर्ण कलाकार थे. आप बीते कल के किसी भी कलाकार से निखिल बनर्जी के बारे में बात करिए वो यही कहेगा कि निखिल दा जैसा सहज और शांत कलाकार मिलना मुश्किल है. वो शास्त्रीय संगीत की साधना करने वाले एक ऐसे कलाकार के तौर पर पूरी दुनिया में मशहूर हुए जिन्हें हमेशा उनकी शास्त्रीयता और दृढता के लिए याद रखा जाएगा. उनके लिए संगीत एक आध्यात्म जैसा था.


जाने-माने सितारवादक पिता बने पहले गुरू

पंडित निखिल बनर्जी में संगीत के संस्कार घर से ही आए. पिता जीतेंद्रनाथ चटर्जी भी जाने-माने सितार वादक थे. बचपन से ही निखिल के कानों में अपने पिता के रियाज की आवाज लगातार पड़ती थी. धीरे-धीरे निखिल को भी वो आवाज अपनी तरफ खींचने लगी. वो सितार के प्रति आकर्षित होते गए. जाहिर है पिता ने शुरुआती तालीम देना शुरू कर दिया. पिता की तालीम और बच्चे की लगन का असर हुआ कि 10 साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते निखिल बनर्जी का नाम होना शुरू हो गया. 9 साल की उम्र में उन्होंने बंगाल में बड़ी प्रतियोगिता जीती. अभी बहुत छोटे ही थे जब ऑल इंडिया रेडियो ने उन्हें अपने यहां नौकरी दी.

ये बात अब तक हर किसी को समझ आ गई थी कि निखिल बनर्जी का जीवन सितार ही है. पिता ने कोशिश की कि उन्हें मशहूर सितार वादक मुश्ताक अली खान से सीखने का मौका मिले. ये मौका निखिल बनर्जी को मिला भी लेकिन स्थितियां कुछ ऐसी बनीं कि वो ज्यादा दिन तक उस्ताद मुश्ताक अली खान से नहीं सीख पाए. असल मायने में पंडित निखिल बनर्जी की खोज करीब 16 साल की उम्र में पूरी हुई. तब तक वो ऑल इंडिया रेडियो की नौकरी भी छोड़ चुके थे. 1947 में निखिल बनर्जी को गुरू के तौर पर बाबा मिल गए. बाबा यानी मैहर घराने के संस्थापक उस्ताद अलाउद्दीन खान. जिन्हें संगीत की दुनिया में प्यार और सम्मान से बाबा बुलाया जाता है.

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निखिल से प्रभावित होकर तैयार हुए थे बाबा

बाबा बड़े कड़क गुरू थे. अव्वल तो वो जल्दी किसी को शागिर्द बनाने के लिए तैयार नहीं होते थे. उसके बाद अगर राजी हो गए और शागिर्द से जरा सी भी चूक हुई तो कड़क डांट पड़ती थी. कभी कभी मार भी. कहते हैं कि निखिल बनर्जी को भी सिखाने के लिए वो तुरंत तैयार नहीं हुए थे. वो तो बाद में तब माने जब उन्होंने निखिल बनर्जी की बजाई कोई रिकॉर्डिंग सुनी. बाबा की बात चल रही है तो ये जानना दिलचस्प है कि वो खुद सरोद बजाते थे लेकिन उन्होंने सरोद से अलग वाद्ययंत्र बजाने वाले भी कई विश्वविख्यात कलाकार तैयार किए. जिसमें पंडित निखिल बनर्जी के अलावा सितार सम्राट पंडित रविशंकर, बांसुरी का पर्याय बन चुके पंडित हरिप्रसाद चौरसिया, बांसुरी के ही एक और दिग्गज कलाकार पंडित पन्ना लाल घोष और सुरबहार की महान कलाकार अन्नपूर्णा देवी शामिल हैं. उस्ताद अलाउद्दीन खान के बेटे उस्ताद अली अकबर खान को एक महान सरोद वादक के तौर पर तो दुनिया जानती ही है. बाद के दिनों में उस्ताद अलाउद्दीन खान ने भी पंडित निखिल बनर्जी को सितार की बारीकियां सीखाई थीं.

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खुद की लगन और उस्ताद अलाउद्दीन खान के आशीर्वाद से जल्दी ही पंडित निखिल बनर्जी का नाम बड़े सितार वादकों में गिना जाने लगा. वो देश दुनिया के बड़े-बड़े कार्यक्रमों में शिरकत करने लगे. ये भी एक संयोग ही था कि उन्हें विदेशों में खूब पसंद किया गया. पचास के दशक के शुरूआती सालों में ही उन्हें विदेशों से कार्यक्रम के लगातार न्यौते आने लगे थे. इसके अलावा उनके कार्यक्रमों की जिस तरह तारीफें छपती थीं वो कम ही कलाकार को नसीब होता है. भारत में उन्हें मिलने वाला प्यार तो बेशुमार था ही. पंडित निखिल बनर्जी सिर्फ 37 साल के थे जब उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया.

सबकुछ बहुत जल्दी मिला, बहुत जल्दी चला भी गया

जिंदगी में सब कुछ बहुत जल्दी-जल्दी हो रहा था. कम उम्र में सितार थामा, कम उम्र में प्रतियोगिताएं जीतीं, कम उम्र में नौकरी की, कम उम्र में बड़े कलाकारों का प्यार और आशीर्वाद मिला, कम उम्र में ही देश ने ‘रिकग्नाइज’ किया. इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं जब उनकी सरकार ने पंडित निखिल बनर्जी को पद्मश्री देने का फैसला किया था. इसी साल उन्हें संगीत नाटक अकादेमी ने भी सम्मानित किया था.

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सम्मान, ढेर सारे प्यार और तमाम व्यस्तताओं के बीच पंडित निखिल बनर्जी की सेहत कब बिगड़ती गई, इसका अंदाजा नहीं लगा. 80 के दशक में वो तमाम विदेश यात्राएं कर रहे थे. उनका ज्यादातर समय यूरोप और अमेरिका में बीत रहा था. 80 के दशक में ही उन्हें पिता बनने का सुख भी मिला था. वो बहुत खुश थे. संतुष्ट थे. सब कुछ बहुत खूबसूरती से चल रहा था. लेकिन ऊपरवाले ने निखिल दा को जैसे सबकुछ जल्दी जल्दी दिया था वैसे ही उसे उनको अपने पास बुलाने की भी जल्दी थी.

80 के दशक में ही उन्हें एक के बाद एक तीन बार हार्ट अटैक हो चुका था. ये भी चौंकाने वाली बात ही है कि वो तीन हार्ट अटैक झेलकर भी ना सिर्फ जीवित थे बल्कि सितार बजा रहे थे. अफसोस, 27 जनवरी 1986 को जब उनकी छोटी बेटी का जन्मदिन था तब उन्हें चौथी बार हार्ट अटैक हुआ. इस बार नियति को कुछ और ही मंजूर था. सिर्फ 54 साल की उम्र में पंडित निखिल बनर्जी को ऊपरवाले ने अपने पास बुला लिया. उनके निधन के बाद भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया. एक बड़ा सच ये भी है कि उनकी तमाम रिकॉर्डिंग्स आम लोगों तक उनके दुनिया को अलविदा कहने के बाद पहुंची.