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AAP से इस्तीफा देने वाले एच एस फुल्का को अन्ना हजारे की राह पर क्यों चलना पड़ा?

फुल्का ने पंजाब सहित देश के कई हिस्सों में एक नया संगठन बनाने की बात कही है

Ravishankar Singh

वरिष्ठ वकील एच एस फुल्का अन्ना आंदोलन की तर्ज पर ही अब पंजाब में भी एक बड़ा आंदोलन खड़ा करना चाहते हैं. एक दिन पहले ही आम आदमी पार्टी से इस्तीफा देने वाले फुल्का का कहना है कि पार्टी से इस्तीफा देने का बहुत बड़ा कारण है देश में एक बार फिर से अन्ना हजारे जैसा मूवमेंट खड़ा करना.

फुल्का ने कहा कि हमारे जैसे लोगों को राजनीति से दूर ही रहना चाहिए था. 1984 सिख दंगे के पीड़ितों के लिए हम आखिर दम तक लड़ते रहेंगे. शुक्रवार को दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में आयोजित एक पत्रकार वार्ता में फुल्का ने पंजाब सहित देश के कई हिस्सों में एक नया संगठन बनाने की बात कही है.


फुल्का ने साफ कहा कि 2012 में जिस अन्ना मूवमेंट को एक पार्टी की शक्ल दी गई थी, वह फैसला अब गलत साबित हो रहा है. आज देश में एक बार फिर से अन्ना हजारे जैसे मूवमेंट की जरूरत है, जो सही को सही और गलत को गलत कहने की हिम्मत रखे.

हमारे जैसे सैकड़ों ऐसे लोग हैं जिनको उस समय का फैसला अब गलत लगता है. आम आदमी पार्टी से इस्तीफे देने के हर सवाल पर फुल्का मीडिया से बचते दिखे.

इशारों में बहुत कुछ कह गए फुल्का, केजरीवाल के खिलाफ नहीं बोला एक शब्द

एच एस फुल्का का आम आदमी पार्टी से दिल टूटने की वजह साफ दिखाई पड़ रही थी, हालांकि वह इशारों में बहुत कुछ कह गए लेकिन आम आदमी पार्टी से इस्तीफे के सवाल पर पार्टी नेताओं खासकर अरविंद केजरीवाल के बारे में एक शब्द भी नहीं बोले.

फुल्का ने साफ कहा कि अगले छह महीने के अंदर पंजाब में ड्रग्स और सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के खिलाफ एक आंदोलन शुरू करेंगे. पंजाब में ड्रग्स का एक बड़ा रैकेट चल रहा है. अब हम बिना किसी राजनीतिक दल के साथ हुए इस रैकेट को खत्म करने का काम करेंगे.

फुल्का ने गुरुवार को ट्वीट करके यह जानकारी दी थी, 'मैंने आम आदमी पार्टी से इस्तीफा दे दिया है और इसे सीएम केजरीवाल को सौंप दिया है. हालांकि उन्होंने मुझे इस्तीफा देने से मना किया, लेकिन मैंने जोर दिया.'

एच एस फुल्का का आम आदमी पार्टी से इस्तीफा देना खासकर पंजाब में उभरती आम आदमी पार्टी के लिए बड़ा झटका है. फुल्का के इस कदम को दिल्ली विधानसभा में राजीव गांधी से भारत रत्न वापस लेने संबंधित विवाद से जोड़ कर देखा जा रहा है. ऐसा कहा जा रहा है कि फुल्का आगामी लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन के खिलाफ थे. लेकिन, आम आदमी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने कहीं न कहीं कांग्रेस के साथ गठबंधन का मन बना लिया है.

लोकसभा चुनाव कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ने की चर्चाओं पर AAP से था मतभेद

फुल्का कई मौकों पर बोल चुके थे कि अगर लोकसभा चुनाव आम आदमी पार्टी और कांग्रेस साथ लड़ेंगे तो वह पार्टी से इस्तीफा दे देंगे. उन्होंने कांग्रेस को 1984 दंगों का आरोपी करार दिया था.

आम आदमी पार्टी से फुल्का के इस्तीफे के बाद पार्टी से जुड़े कई पूर्व सहयोगियों ने दिल्ली के सीएम और आप संयोजक अरविंद केजरीवाल को निशाने पर लिया है.

कुमार विश्वास ने पूर्व की तरह इस बार भी अपने ट्वीट में अरविंद केजरीवाल पर तंज कसते हुए लिखा, 'आत्ममुग्ध असुरक्षित बौने की निजी अहंकार मंडित नीचता के नाम एक और खुद्दार शानदार योद्धा की खामोश कुर्बानी मुबारक हो! अपनी स्वराज वाली बची खुची एक आंख फोड़कर सत्ता के रीढ़विहीन 'अंधों का सरदार' बनना वीभत्स और कायराना है.'

इसके अलावा आम आदमी पार्टी के एक और बागी और दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा ने भी ट्वीट करते हुए लिखा है, 'कारवां पूरा चला था जानिबे मंजिल मगर केजरीवाल के झूठ और धोखे से सब हटते गए.'

पहले भी पार्टी से इस्तीफा दे चुके हैं फुल्का, केजरीवाल के मनाने पर गए थे मान

योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, प्रो. आनंद कुमार, कुमार विश्वास और न जाने ऐसे कितने नाम हैं, जो कभी आप के संस्थापक सदस्यों में हुआ करते थे, वे सारे

एक-एक कर पार्टी से नाता तोड़ते चले गए.

पार्टी की स्थापना जिस सिद्धांत और उसूल के नाम पर की गई थी वह सिद्धांत और मूल्य एक-एक करके बिखरते चले गए. राजनीति की फितरत देखिए जिस पार्टी की स्थापना दूसरी पार्टियों के वंशवाद और भ्रष्टाचार के विरोध के नाम पर हुई थी, उसी पार्टी के नेता इसलिए पार्टी से नाता तोड़ रहे हैं क्योंकि वह पार्टी भी वैसी ही साबित हुई.

बता दें कि एच एस फुल्का ने पहले भी एक बार पार्टी से इस्तीफा दे दिया था लेकिन अरविंद केजरीवाल के मनाने से वह मान गए थे. फुल्का साल 2017

में पंजाब विधानसभा में नेता विपक्ष बने थे. लेकिन कुछ ही समय बाद नेता प्रतिपक्ष के पद से फुल्का ने इस्तीफा दे दिया था. फुल्का ने इस्तीफे का कारण

बताते हुए उस समय कहा था कि वह 1984 सिख दंगा केस पर फोकस करना चाहते हैं.

फुल्का 1984 सिख दंगा पीड़ितों का केस लड़ने के लिए कोई फीस नहीं लेते हैं. पिछले दिनों सज्जन कुमार को आजीवन कारावास की सजा दिलाने में भी फुल्का का अहम रोल माना जा रहा है. ऐसे में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में गठबंधन की चर्चाओं पर फुल्का सहज महसूस नहीं कर रहे थे. इसलिए उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया.

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