कहते हैं कि किसी देश को अगर विकास के पथ पर आगे करना है तो उस देश का शासन मजबूत होना चाहिए. देश की सरकार जितनी मजबूत होगी, देश का विकास भी उतनी ही तेजी से हो सकेगा. भारत में भी साल 2014 से एक ऐसी सरकार है जो विकास को प्राथमिकता पर रखने की बात करती है. इस सरकार का मानना है कि विकास जितना तेज गति से होता है, देश भी उतनी तेजी से ही आगे बढ़ता है और उतनी तेजी से ही अच्छे दिन आते हैं.
अब नया साल 2019 शुरू हो चुका है और 2014 में बनी सरकार का भी अंत होने वाला है, साफ लहजे में कहें तो 'विकास' और 'अच्छे दिन' को प्राथमिकता देने की बात कहने वाली साल 2014 में बनी सरकार के पांच साल के कार्यकाल का अंत 2019 में होने वाला है. वहीं अब 2019 में फिर लोकसभा चुनाव होने हैं और सरकार का नया कार्यकाल देश में चुनाव के बाद शुरू हो जाएगा.
हालांकि चुनाव में जनता की भागीदारी अहम होती है और जनता का एक वोट भी पासा पलटने का दमखम रखता है. 5 साल पीछे जाएं तो कई मुद्दे थे जिसके कारण देश की जनता ने कांग्रेस को नकार दिया, वहीं नई 'उम्मीदें' थी जिसके कारण बीजेपी पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई. अब पांच साल में बीजेपी सरकार उम्मीदों पर कितना खड़ा उतर पाई है और अच्छे दिन आए हैं या नहीं आएं है, इसको लेकर जनता की अलग-अलग राय हो सकती है. लेकिन अब एक सवाल सामने आ जाता है कि देश के मिडिल क्लास लोग बीजेपी को सत्ता में अगले 5 साल के लिए बनाए रखने के लिए वोट दें या नहीं?
क्योंकि मिडिल क्लास बीजेपी का कोर वोटर माना जाता है और पिछले काफी वक्त से ये वर्ग बीजेपी से नाराज होता दिखाई दे रहा है. विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जहां 15 सालों से बीजेपी सरकार थी, वहां साल 2018 के आखिर में बीजेपी को शिकस्त का सामना करना पड़ा है. वहीं राजस्थान में 5 साल में ही जनता ने बीजेपी को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया.
ऐसे में 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का ये वोट बैंक इधर-उधर होता है तो फायदा तो भले ही किसी का हो, लेकिन नुकसान भारतीय जनता पार्टी को ही उठाना पड़ सकता है. ऐसे में मिडिल क्लास के लोगों की बीजेपी सरकार से नाराजगी की वजह कई हो सकती है. हो सकता है कि उनको रोजगार न मिला हो, रोजगार मिला भी हो तो अच्छी आमदनी वाला रोजगार न मिला हो, हो सकता है कि महंगाई की समस्या भी जनता को खली हो, नोटबंदी और जीएसटी के कारण भी लोग नाराज हो सकते हैं, काले धन के मुद्दे पर भी लोग मुंह फुलाए हो सकते हैं, वजह ये भी हो सकती है कि कुछ लोग नीरव मोदी और विजय माल्या के कारण सरकार से गुस्सा हों.
मिडिल क्लास सबसे ज्यादा प्रभावित
मिडिल क्लास के लोगों में ज्यादातर ऐसे लोग शामिल होते हैं जो नौकरी के जरिए या छोटे-मोटे कारोबार के जरिए अपनी दाल रोटी चलाते हैं. लेकिन कई बार ऐसा भी देखा गया है कि सरकार ने पांच सालों के दौरान मिडिल क्लास के लोगों की जेब पर ही डाका डालने की कोशिश की है. टैक्स को लेकर इस वर्ग के लोगों के माथे पर शिकन देखी गई है.
मिडिल क्लास का एक बड़ा वर्ग शेयर मार्केट मे कमाई के लिहाज से निवेश करता है लेकिन बीजेपी सरकार ने लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगाकर मिडिल क्लास के लोगों को झटका दिया. इसका असर छोटे निवेशकों पर ज्यादा देखा गया. पेट्रोल-डीजल के दाम, एलपीजी गैस सिलेंडर की कीमत से लेकर टमाटर-प्याज की कीमतें बढ़ जाने से मिडिल क्लास के लोग ही सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं.
कई योजनाएं भी सरकार लाई
हालांकि ऐसा भी नहीं है कि बीजेपी सरकार ने मिडिल क्लास के लिए कुछ काम ही न किया हो. नाराजगी की कई वजहों के अलावा सरकार के कामों के जरिए मिडिल क्लास के लोग मौजूदा सरकार से आने वाले 5 सालों के लिए भी उम्मीदें कर सकते हैं. इन सबके बावजूद उन संभावनाएं पर भी गौर किया जाना चाहिए कि मिडिल क्लास को साल 2019 में बीजेपी को ही वोट क्यों दिया जाना चाहिए.
दरअसल, मिडिल क्लास के लिए मोदी सरकार मुद्रा योजना लेकर आई थी. कारोबार शुरू करने के लिए पूंजी की समस्या झेलने वाले लोगों के लिए सरकार यह योजना लेकर आई. इससे केंद्र सरकार ने कारोबार शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया. प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत लोगों को अपना कारोबार शुरू करने के लिए छोटी रकम का लोन दिया जाता है. अप्रैल 2015 से यह योजना चल रही है. वहीं इस योजना का सबसे ज्यादा फायदा मिडिल क्लास के लोगों को ही मिला है.
वहीं मौजूदा सरकार ने आर्थिक स्तर पर भी काम किया है. जिसके कारण कई अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों ने भारत की रेटिंग्स में सुधार भी किया है. आर्थिक स्तर पर सुधार होने का सीधा मतलब है कि इसका असर देश की ग्रोथ पर सकारात्मक पड़ेगा. इससे मिडिल क्साल के लोगों को ही आने वाले दिनों में फायदा मिल सकता है.
साथ ही मेक इन इंडिया और डिजिटल इंडिया में ज्यादातर भागीदारी मिडिल क्लास की रही है. इनमें मिडिल क्लास के लोगों को जॉब भी काफी मिली. आने वाले वक्त में भी मेक इन इंडिया और डिजिटल इंडिया में ग्रोथ की संभावना बनी हुई है. वहीं स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट का लाभ भी सबसे ज्यादा मिडिल क्लास के लोगों को मिलने जा रहा है.
लेकिन नाराजगी और उम्मीदों के बीच असमंजस की एक छोटी-सी लकीर अभी भी मिडिल क्लास के लोगों के जहन में बनी हुई है. इसके पीछे की वजह है कि महंगाई की मार मिडिल क्लास को ही सबसे ज्यादा पड़ती है और जब तक महंगाई में कमी का असर ठोस तरीके से नहीं देखने को मिलेगा, तब तक मिडिल क्लास अपने वोट को लेकर भी कन्फ्यूजन की स्थिति में रह सकता है. ऐसे में उम्मीदों पर नाराजगी ज्यादा हावी हो सकती है. इन सबके बीच साल 2019 के लोकसभा चुनाव में मिडिल क्लास किस करवट बैठता है, इस पर नजर आने वालों महीनों में बनी रहेगी.
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