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'इतना न बोल...कहां लब आजाद हैं तेरे....?'

आरक्षण पर मनमोहन वैद्य का बयान यूपी चुनाव में बीजेपी के किए-कराए पर पानी फेरने के लिये काफी है.

Sanjay Singh

उत्तर प्रदेश चुनाव में माहौल अभी गर्माना शुरू हुआ ही है कि आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य ने एक बयान ऐसा दे डाला है जो कि बीजेपी के सारे किए कराए पर पानी फेरने के लिए काफी है.

वैद्य का बयान तो आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भगवत के बिहार चुनाव के पहले दिए बयान से भी आला दर्जे का है. वैद्य ने शुक्रवार को जयपुर साहित्य सम्मलेन में देश के सामने सीधे प्रसारण में माइक से आरक्षण के खिलाफ बयान दे डाला.


वह बोले, ‘आरक्षण का विषय भारत में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिहाज से अलग संदर्भ में आया है. इन्हें लंबे समय तक सुविधाओं से वंचित रखा गया है. भीमराव अंबेडकर ने भी कहा है कि किसी भी राष्ट्र में ऐसे आरक्षण का प्रावधान हमेशा नहीं रह सकता. इसे जल्द से जल्द से खत्म करके अवसर देना चाहिए. इसके बजाय शिक्षा और समान अवसर का मौका देना चाहिए. इससे समाज में भेद निर्माण हो रहा है.’

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जैसा कि होना था हुआ. इधर वैद्य ने बयान दिया उधर राजनीतिक माहौल गर्मा गया. उत्तर प्रदेश में चुनावों की दहलीज पर खड़ीं पार्टियां कहां इस बयान को छोड़ने वालीं थीं. बिहार से लालू प्रसाद यादव टूट पड़े और बोले आरक्षण पर ‘अंट शंट बक रही है आरएसएस’.

बिहार चुनाव में भी आरक्षण पर बयान बीजेपी को महंगा पड़ा है

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी मौके से कहां चूकने वाले थे. उत्तर प्रदेश से कांग्रेस के दलित नेता पीएल पूनिया और समाजवादी पार्टी के असीम वकार भी आरएसएस पर टूट पड़े.

सीधे सपाट लफ्जों में बोलें तो भाजपा के हर विरोधी का कहना था कि बीजेपी आरएसएस दलितों आदिवासियों और पिछड़ों को आरक्षण देने के खिलाफ है.

जब आरएसएस के मनमोहन वैद्य और दत्तात्रेय होसबोले जयपुर लिट फेस्ट में बुलाया गया था तभी कुछ त्योरियां चढ़ीं थीं. लेकिन तर्क दिया गया कि इसके पहले भी कई किस्म के राजनीतिक और सामाजिक संगठनों के लोगों ने सम्मलेन में शिरकत की है.

बीजेपी के लिए चुनाव में मुश्किल खड़ी कर सकता है मनमोहन वैद्य का बयान (फोटो: पीटीआई)

वैसे इत्तेफकान जिस दिन आरएसएस नेताओं के जयपुर जाने का विवाद उठा था उसी दिन कांग्रेस ने चुनाव आयोग में गुहार लगाई थी कि आरएसएस के लोग बीजेपी का प्रचार कर रहे हैं.

कांग्रेस ने ये भी मांग की थी कि इस तर्क से आरएसएस के लोगों का खर्च भी बीजेपी के चुनाव खर्च के खाते में जोड़ा जाए.

ये बात भी सही है कि भाजपा के नेता इस बयान से बेहद परेशान होंगे. ये नेता उस दिन को कोस रहे होंगे जिस दिन आरएसएस के लोगों को जयपुर में निमंत्रण दिया गया था.

बीजेपी के दुश्मनों का तो कहना ही क्या! उनके लिए इससे ज्यादा आनंद देने वाली बात क्या हो सकती है. दूसरी तरफ बीजेपी नेताओं के लिए वैद्य के बयान पर सफाई देना जमीन पर बिखरी राई समेटने जैसा हो गया.

सितम्बर 2015 में बिहार चुनाव के पहले आरक्षण पर बयान से भी खूब हंगामा हुआ था. हुकुमदेव नारायण यादव जैसे नेता तो खुल कर भागवत को कोस रहे थे. उनका कहना था कि सरसंघचालक का बयान बिहार चुनाव में बीजेपी को ले डूबा.

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वैद्य ने उत्तर प्रदेश और पंजाब में बीजेपी के विरोधियों की मदद कर ही डाली है. गोवा, उत्तराखंड और मणिपुर में भी बीजेपी नेताओं को सावधान हो जाना चाहिए.

मोदी के आग्रह पर वैद्य को गुजरात से हटाया गया था.

वैद्य का बयान एक ऐसे समय पर आया है जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह जी जान से दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों को पार्टी के साथ जोड़ने में लगे हैं.

सरकार बनने के बाद से ये नेता घूम-घूम कर कार्यक्रम पर कार्यक्रम किए जा रहे हैं, नीतियों पर नीतियां बनाए जा रहे हैं सिर्फ इसलिए कि दलितों आदिवासियों और पिछड़ों को पार्टी से जोड़ा जा सके.

और तो और प्रधानमंत्री ने डिजिटल पेमेंट का जो नया एप लांच किया उसका नाम रखा गया ‘भीम’. जन सभाओं में मोदी ने खूब विस्तार से समझाया कि ये एप भीम राव आंबेडकर को उनकी श्रद्धांजलि है.

अपने इस बयान से वैद्य ने एक झटके में बीजेपी का इतना नुकसान कर दिया जितना सपा, बसपा और कांग्रेस मिल कर नहीं कर पा रहे थे.

ये याद रखने वाली बात है कि वैद्य गुजरात में आरएसएस के प्रान्त प्रमुख थे और उनका तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ लंबा झगड़ा चला था.

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साल 2012 के चुनावों के पहले मोदी के आग्रह पर वैद्य को गुजरात से हटाया गया था. उन्हें वहां से हटा कर दिल्ली में आरएसएस के प्रचार विभाग का काम सौंपा गया था.

बिलकुल अचरज नहीं होगा. जब बीजेपी में लोगों को मोदी और वैद्य के इस चर्चित झगड़े की याद आ जाए. ऐसा होना लाजिमी है. खास तौर पर तब जब उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में चुनाव का नगाड़ा पिट चुका है.