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उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव नतीजेः कांग्रेस के लिए पैदा हुईं गुजरात में मुश्किलें

निश्चित ही अमेठी की सीट पर हार कांग्रेस को बिलकुल भी हजम नहीं होगी, या यूं कहा जाए कि रायबरेली का परिणाम कांग्रेस के लिए किसी शॉक से कम नहीं होगा

Aparna Dwivedi

उत्तर प्रदेश में निकाय चुनावों के परिणाम ने कांग्रेस को बैकफुट पर लाकर रख दिया. निकाय चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस को उसी के गढ़ में धूल चटा दी है. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी में कमल खिला है. बीजेपी उम्मीदवार चंद्रमा देवी ने 1035 वोटों से कांग्रेस प्रत्याशी को हराया. इस जीत के कई मायने हैं क्यों कि रायबरेली और अमेठी कांग्रेस की परंपरागत सीट मानी जाती है. यहां से कांग्रेस को हिला पाना लगभग नामुमकिन माना जाता है लेकिन यूपी निकाय चुनाव का परिणाम देखकर लगता है जैसे इन दिनों उत्तर प्रदेश में बीजेपी की आंधी चल रही है और इस आंधी में कांग्रेस का किला भी ध्वस्त हो गया है.

अमेठी राहुल गांधी का संसदीय क्षेत्र है लेकिन लगता है कि इस बार बयार कुछ और ही बह रही है. कांग्रेस ना सिर्फ अमेठी बल्कि तिलोई, जगदीशपुर, गौरीगंज और सालौन में भी हार गई है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कांग्रेस की हार पर कहा कि राहुल गुजरात आ गए और पीछे से अमेठी और रायबरेली निकल गई.


निश्चित ही अमेठी की सीट पर हार कांग्रेस को बिलकुल भी हजम नहीं होगी, या यूं कहा जाए कि रायबरेली का परिणाम कांग्रेस के लिए किसी शॉक से कम नहीं होगा. यहां तक की गौरीगंज नगर निकाय परिषद सीट पर पार्टी चौथे नंबर पर रही है, ऐसे में कांग्रेस के लिए यह चिंता की बात है.

साथ ही कांग्रेस का कोई भी मेयर पद का उम्मीदवार जनता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया है. इस चुनाव में ना तो समाजवादी पार्टी ही और ना ही कांग्रेस खाता खोल पाई है. उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनावों में बीजेपी शानदार जीत की दहलीज पर खड़ी है. मेयर पद की सभी 16 सीटों पर बीजेपी की 14 सीटों पर जीत हुई है जबकि दो बहुजन समाज पार्टी के खाते में गई. इन चुनावों के नतीजों के बाद गुजरात में बीजेपी को सीधी टक्कर दे रही कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के साथ मिल कर चुनाव लड़ा था.

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कांग्रेस को उम्मीद थी कि उत्तर प्रदेश निकाय में उनका काम और राहुल गांधी का नाम कुछ असर दिखाएगा लेकिन निकाय चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन साल 2014 के लोकसभा चुनाव और इस साल उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव जैसा ही रहा. हालांकि इस बार भी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का प्रदर्शन बेहतर रहा. दोनों पार्टियों ने बीजेपी को खासी टक्कर दी है.

गुजरात में दिखेगा इन नतीजों का असर 

उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव में देखा गया है कि दलित और मुस्लिम वोट कांग्रेस के पक्ष में ना जाकर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के पक्ष में पड़े हैं. गुजरात में कांग्रेस इस बार मजबूत दिख रही है, लेकिन इस हार की वजह से कांग्रेस को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह को टक्कर देने में मुश्किल होगी. खास तौर से जब कांग्रेस गुजरात में दलित आदिवासी और ओबीसी वोटरों को बड़ी उम्मीद से देख रही है.

पाटीदार वोटर भी होंगे प्रभावित

उत्तर प्रदेश में पाटीदार वोटर नहीं है लेकिन इतिहास बताता है कि गुजरात में पाटिदार वोटर पिछले 20 साल से बीजेपी के पक्ष में वोट दे रहे थे. लेकिन हार्दिक पटेल के आंदोलन का बीजेपी के पाटीदार वोटबैंक पर खासा असर पड़ा है. हालांकि यह साफ नहीं है कि यह असर कितना बड़ा होगा. पाटीदार आंदोलन के कई नेता हार्दिक से अलग होकर बीजेपी में शामिल हो गए हैं.

पाटीदार समाज के दो मुख्य धड़े हैं - पहला लेउवा पटेल, दूसरा कडवा पटेल. वोटर के तौर पर लेउवा पटेल ज्यादा प्रभावशाली हैं, उनकी आबादी ज्यादा है. सौराष्ट्र की ज्यादातर सीटों पर लेउवा पटेलों का प्रभुत्व है और कडवा पाटीदारों का प्रभाव उत्तर गुजरात की कुछ सीटों तक सीमित है. हार्दिक पटेल कडवा पटेल हैं इसलिए लेउवा वोटरों पर उनका प्रभाव ज्यादा नहीं है.

सूत्रों के मुताबिक पाटीदार वोटर अभी भी बीजेपी और हार्दिक पटेल को लेकर असमंजस की स्थिति में हैं. ऐसे में उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव के नतीजे बीजेपी के लिए अच्छी खबर लेकर आए हैं और गुजरात में इसका असर दिखना तय है.

कांग्रेस के लिए मुश्किलें बढ़ी

गुजरात में कांग्रेस नए समीकरण पर काम कर रही है. PODA यानी पाटीदार, ओबीसी, दलित और आदिवासी वोटरों पर नजर लगाए हैं. निकाय चुनाव में दलित और मुस्लिम वोटर कांग्रेस से दूर छिटके हैं. गुजरात की 51 प्रतिशत जनसंख्या ओबीसी है. कोली गुजरात का सबसे बड़ा जाति समूह है, उनकी जनसंख्या करीब 20 प्रतिशत है. पाटीदार गुजरात की जनसंख्या के 15 प्रतिशत हैं. गुजरात की 182 सीटों में यदि पाटीदारों का वोट बंटता है तो नतीजे ओबीसी वोटों पर निर्भर करेंगे.

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ओबीसी समुदाय में कई जातीय समूह हैं जिनमें कोली और ठाकोर भी शामिल हैं. अल्पेश ठाकोर के कांग्रेस में शामिल होने को शुरुआत में कांग्रेस की जीत के रूप में देखा जा रहा था. लेकिन ठकोर समुदाय पारंपरिक रूप से कांग्रेस को ही वोट करता रहा है ऐसे में चुनावी गणित में बहुत ज्यादा बदलाव की उम्मीद नहीं है.

राहुल गांधी के साथ ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर

गुजरात में दलित वोटर गुजरात में 7 फीसदी दलित मतदाता हैं, तो वहीं 11 फीसदी आदिवासी. गुजरात में दलित और आदिवासी समाज के लिए 182 विधानसभा सीटों में से 40 सीटें सुरक्षित है. इनमें से 13 दलित और 27 आदिवासी समाज के लिए हैं. पिछले चुनाव में देखा जाए तो दलित सीटों पर बीजेपी का दबदबा था. लेकिन दलितों पर अत्याचार की खबर लगातार आती रही.

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की साल 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक, अनुसूचित जाति के लोगों पर होने वाले अत्याचार, जिसमें गंभीर चोटें आई हों, ऐसे मामलों में गुजरात देश में दूसरे नंबर पर है. दलित के लिए जिग्नेश मेवाणी आवाज बन कर उभरे और गुजरात मे दलितों के सबसे बड़े चेहरा बनकर उभरे हैं.

जिग्नेश का कांग्रेस के समर्थन करने से गुजरात का सियासी समीकरण बदला है. ऐसे में कांग्रेस को दलित समुदाय के बीच अपनी जगह बनाने का मौका मिल गया है. अब कांग्रेस नेताओं को डर है कि उत्तरप्रदेश निकाय चुनाव में दलितों का रुख गुजरात पर भी असर ना डाले

कांग्रेस अध्यक्ष बनने से पहले अमेठी में राहुल की बड़ी हार

अभी जब राहुल गांधी की अध्यक्ष पद पर ताजपोशी होने वाली है और गुजरात में विधानसभा के चुनाव है, उसी समय में अमेठी की गौरीगंज नगर निकाय परिषद सीट पर कांग्रेस की हार होना बड़ी बात है क्योंकि यह इलाका गांधी परिवार का गढ़ माना जाता रहा है. इस हार की उम्मीद खुद कांग्रेस ने भी नहीं की होगी.

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विश्लेषकों का मानना है कि साल 2019 में अगर समाजवादी पार्टी ने अमेठी की सीट पर अपना उम्मीदवार उतार दिया तो कांग्रेस के लिए बड़ी मुश्किल हो जाएगी, क्योंकि अभी तक समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव अमेठी और रायबरेली में अपना उम्मीदवार नहीं उतारते थे. अमेठी राहुल गांधी का संसदीय क्षेत्र है, ऐसे में उनके अध्यक्ष बनने से पहले इस हार का जवाब देना राहुल गांधी के लिए बहुत मुश्किल होगा.

हालांकि इस हार का कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की ताजपोशी पर कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि साल 2012 के यूपी विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस की बड़ी हार हुई थी बावजूद इसके राहुल गांधी को कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनाया गया था. लेकिन कांग्रेस में राहुल गांधी के विरोध में स्वर उठने लगे हैं. और ये आवाज राहुल गांधी के अपने रिश्तेदार शहजाद पूनावाला ने उठाई.

वंशवाद पर चोट करते हुए शहजाद ने राहुल गांधी को एक पत्र लिखकर पूछा है कि, 'क्या कांग्रेस में अध्यक्ष पद प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सिर्फ 'गांधी' नाम वालों के लिए ही रिजर्व है?' कांग्रेस को डर है कि ऐसी आवाजों को इस तरह के नतीजे शह देंगे.

क्यों महत्वपूर्ण थे उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव

ये चुनाव उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अभी तक के नेतृत्व की परीक्षा थी. साथ ही मोदी सरकार के तीन साल भी कसौटी पर थे. तीन साल के बाद विपक्ष गले मिलने की नीति पर सवाल उठा रहा था. खास तौर से जीएसटी लागू करने के फैसले की ये पहली परीक्षा थी. एक बड़ा सवाल ये भी है कि क्या यूपी के निकाय चुनाव परिणामों का असर गुजरात के चुनावों पर पड़ेगा?

राजनीति के जानकार मानते हैं कि एक चुनाव के परिणाम, दूसरे चुनाव को प्रभावित करते ही हैं. अब ऐसे में कांग्रेस का प्रदर्शन गुजरात चुनावों के नतीजों पर भी असर डाल सकता है.

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं)