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यूपी चुनाव नतीजे: बीएसपी ने अभी अंगड़ाई ली है...पूरी पिक्चर तो अभी बाकी है

निकाय चुनाव के नतीजों ने यूपी की राजनीति में बीएसपी के लिए एक नए अध्याय के संकेत दिए हैं

Ravishankar Singh

2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनावों के बाद यूपी में बीएसपी के जनाधार को समाप्त मान चुकी विपक्षी पार्टियों को निकाय चुनाव के नतीजों ने तगड़ा झटका दिया है. निकाय चुनाव में उम्मीद से कहीं ज्यादा मिली कामयाबी से बीएसपी काफी उत्साहित है. प्रदेश के निकाय चुनाव में बीजेपी के बाद दूसरे नंबर की पार्टी बनने पर बीएसपी एक बार फिर से सुर्खियों में वापस आ गई है.

प्रदेश के अधिकांश मेयर पदों पर बीजेपी की जीत ने बेशक पार्टी के जनाधार को मजबूती प्रदान की हो लेकिन बीएसपी का दूसरे नंबर पर आना अपने आप में चौंकाने वाली घटना से कम नहीं है. सभी चुनावी विश्लेषकों का विश्लेषण को बीएसपी ने झूठा साबित कर दिया है. बीएसपी पहली बार निकाय चुनाव में पार्टी सिंबल के साथ चुनाव लड़ रही है. लेकिन, प्रदेश में पार्टी की लगातार हार और गिरते जनाधार को देखते हुए इस बार पार्टी ने निकाय चुनाव में भी प्रत्याशियों को सिंबल के साथ लड़वाने का फैसला किया था.


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गौरतलब है कि मेयर का चुनाव शहरी क्षेत्रों में होता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह क्षेत्र बीजेपी का परंपरागत वोट बैंक है. सालों से बीजेपी की पकड़ शहरी क्षेत्रों में मजबूत रही है. अलीगढ़ में बीसपी के मेयर प्रत्याशी मो. फुरकान ने लगभग 12 हजार वोटों से जीत दर्ज की है. अलीगढ़ में मेयर का पद बीजेपी 1995 से ही जीतती आ रही थी. लेकिन, इस बार पहली बार बीएसपी ने यहां पर जीत दर्ज कर बीजेपी की बादशाहत को चुनौती दी है.

प्रतीकात्मक तस्वीर

अलीगढ़ जैसे मुस्लिम बहुल और शहरी इलाके से बीएसपी की जीत से कई मायने निकले जा रहे हैं. जाने-माने दलित चिंतक बद्री नारायण फर्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए कहते हैं, ‘देखिए कोई सत्ता से निराश होगा तो कहां जाएगा? जनता को सबसे नजदीक जो दिखेगा उसके पास जाएगा. मेरी समझ से इस चुनाव में इसी का फायदा बीएसपी को मिला है. नंबर वन की पार्टी नंबर 3 पर आ गई थी. अब अगर नंबर 3 से नंबर 2 पर आ रही है तो अच्छी बात है. बीएसपी को अभी भी काफी रिकवर करना है. निकाय चुनाव माइक्रो लेवल पर लड़ा जाता है. धनबल और बाहुबल के साथ छोटे-छोटे मुद्दे भी काफी प्रभाव छोड़ते हैं. मेरी समझ से इसको 2019 के लोकसभा चुनाव से जोड़ कर नहीं देखा सकता. अभी भी काफी गैप है, जिसे बीएसपी को भरना पड़ेगा.’

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बद्री नारायण आगे कहते हैं, निकाय चुनाव में स्थानीय मुद्दे काफी मायने रखते हैं. मायावती की रणनीति में भी ग्रासरूट लेवल पर कुछ परिवर्तन देखने को नहीं मिलता. अगर जनता का रुझान अगर बीएसपी के तरफ आया है तो इसके और भी दूसरे कारण हो सकते हैं.’

प्रदेश की समाजवादी पार्टी भी अलीगढ़ या आस-पास के इलाकों में काफी मजबूत हुआ करती थी. खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एसपी को ठीक-ठाक जनाधार वाली पार्टी माना जाता है. लेकिन, मेयर के चुनाव में एसपी की करारी हार ने पार्टी को एक बार फिर से नए सिरे से सोचने को मजबूर कर दिया है.

निकाय चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद यूपी के सीएम योगी आदित्यानाथ का जहां रुतबा बढ़ा है. वहीं, अखिलेश यादव को एक बार फिर से पार्टी में अपने रुतबे को बरकरार रखने चुनौती मिलेगी. अखिलेश यादव पर पार्टी के भीतर असंतुष्ट नेताओ का हमला एक बार फिर से तेज हो सकता है.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अपने गृहनगर गोरखपुर के वार्ड नंबर 68 से बीजेपी की प्रत्याशी माया त्रिपाठी की हार से निराश जरूर हुए होंगे. इसी वार्ड के अंदर गोरखनाथ मंदिर आता है. इस वार्ड से निर्दलीय प्रत्याशी नादिरा ने जीत दर्ज की है.

कुल मिलाकर आने वाले समय में यूपी के निकाय चुनाव में बीएसपी का उभरना एक दिलचस्प रूप ले सकता है. बीएसपी साल 2012 से ही प्रदेश के चुनावों में हार झेलती आ रही है. 2014 के लोकसभा चुनाव में जहां पार्टी को एक भी सीट नसीब नहीं हुई थी, वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को महज 19 सीट ही मिल पाई. ऐसे में शहरी क्षेत्रों में बीएसपी की मजबूत होती पकड़ को कम कर नहीं आंका जा सकता है.