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अनजाने में एसपी-कांग्रेस गठबंधन को फायदा पहुंचा रहे हैं अजित सिंह

जाटलैंड में बीजेपी का वोट छिटका सकते हैं अजित सिंह

Sanjay Singh

यूपी चुनाव में अखिलेश यादव ने भले ही अजित सिंह के साथ चुनावी गठबंधन न किया हो, लेकिन सच्चाई यही है कि आरएलडी जमीन पर समाजवादी पार्टी के नए सुल्तान के लिए ज्यादा प्रभावी सहयोगी साबित हो रही है. समाजवादी पार्टी ने 'महागठबंधन' करने के बजाए कांग्रेस के साथ 'मिनिगठबंधन' का ही जोखिम उठाया है.

इसका ये कतई मतलब नहीं है कि अजित सिंह अपने वोट को समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन को ट्रांसफर कर रहे हैं, क्योंकि न ही उनमें इतनी राजनीतिक हैसियत बची है कि वो चुनाव में ज्यादा सीटें जीत पाएंगे. न ही चुनाव नतीजों के बाद वो समाजवादी पार्टी को समर्थन देने की स्थिति में रहेंगे.


बीजेपी के लिए अहम है जाट लैंड

अपने बेटे जयंत चौधरी के साथ अजित सिंह

ये जरूर है कि अजित सिंह बीजेपी के लिए सबसे अहम 'जाटलैंड' में बीजेपी का सियासी खेल जरूर चौपट कर देंगे. खास कर बागपत, मेरठ, शामली और मुज़फ़्फ़रनगर जैसे इलाकों में. गाजियाबाद, हापुड़, बुलंदशहर, मथुरा और ऐसे ही कई इलाकों में जाट समुदाय का खासा दबदबा है. 11 फरवरी को होने वाले यूपी के पहले चरण के मतदान में इन सीटों पर  वोट डाले जाने हैं.

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अजित सिंह जैसे नेता की सियासी अहमियत इन्हीं इलाकों में है. हालांकि इस बात को सभी स्वीकार करते हैं कि अजित सिंह न तो यूपी की सियासत और न ही भारतीय राजनीति में कोई खास दखल रखते हैं. बावजूद यूपी के इस चुनाव में उनकी मौजूदगी को दरकिनार नहीं किया जा सकता है.

सवाल सिर्फ ये नहीं है कि वो खेल बिगाड़ने वाले हैं. बड़ा सवाल ये है कि आखिर यूपी की सत्ता के खेल में वो बीजेपी को किस हद तक नुकसान पहुंचा सकते हैं ? और तो और वो अखिलेश और राहुल गांधी को किस हद तक सियासी फायदा पहुंचा सकते हैं ? क्या वो बीजेपी के रास्ते में छोटे-छोटे रोड़े अटका कर समाजवादी-कांग्रेस गठबंधन के लिए सत्ता का सफर आसान बना देंगे ?

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट बाहुल्य जिलों का दौरा करने के बाद ये कहा जा सकता है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में जिस जाट समुदाय ने दिल खोलकर बीजेपी का समर्थन किया था. जिन लोगों ने तब अजीत सिंह को उनकी ही विधानसभा सीट पर तीसरे स्थान पर रहने को मजबूर कर दिया था. वो जाट समुदाय इस बार के चुनाव में उस पार्टी का खुल कर साथ नहीं दे रहा है जो केंद्र की सत्ता में है. यूपी जैसे प्रदेश में सरकार बनाने की चुनौती पेश कर रहा है.

हालांकि ये भी पूरी तरह से कहना ठीक नहीं होगा कि जाट समुदाय पूरी तरह से बीजेपी के अलावा किसी दूसरे सियासी दल को अपना विकल्प बना चुके हैं. क्योंकि किसी भी दूसरी पार्टी के मुकाबले बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर यहां खूब चर्चा होती है.

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लोगों के बीच बहस चाहे हुक्का खाट पर बैठ कर हो या फिर चाय की दुकान, गांव के आस पास के इलाके में या फिर ड्राइंग रूम या दुकान में. इन जगहों पर होने वाली चर्चा में बीजेपी और मोदी ही विषय हैं. क्योंकि बीजेपी समर्थक तो वैसे भी मोदी और पार्टी की बात करेंगे.

जबकि बीजेपी के विरोधी जो समाजवादी पार्टी या फिर कांग्रेस, आरएलडी या फिर बीएसपी समर्थक होंगे उनके बीच भी बीजेपी और मोदी को सबक सिखाने को लेकर चर्चा जारी रहती है.

सभी लड़ रहे हैं बीजेपी के खिलाफ

अलग-अलग सियासी पार्टियों के राजनीतिक कार्यकर्ताओं और लोगों से बात करने पर ये पता चलता है कि इस बार के चुनाव में सभी पार्टियां एक सियासी दुश्मन यानी बीजेपी के खिलाफ संघर्ष कर रही हैं. जबकि सूबे के चुनावी संग्राम में बीजेपी अकेले सभी पार्टियों के खिलाफ ताल ठोंक रही है.

हुक्का खाट पर जाट समुदाय के लोगों के बीच होने वाली बहस भी इससे अछूती नहीं हैं. यहां भी बहस का मुद्दा वही है. कुछ एक विधानसभा सीट जैसे कि शामली पर चाहे बीजेपी हो या आरएलडी या कांग्रेस – इन दलों ने जाट समुदाय के ही नेता को अपना उम्मीदवार बनाया है.

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पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आज जाट समुदाय बंटा हुआ दिखता है. जबकि मुजफ्फरनगर, शामली और बागपत जैसे जिलों में जाट समुदाय का राजनीतिक झुकाव स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह के 77 साल के बेटे अजित सिंह की तरफ नजर आता है. लेकिन ये विडंबना ही है कि अजित सिंह की पहचान सिर्फ चौधरी चरण सिंह के बेटे तक सीमित है. न तो इससे ज्यादा और न ही इससे कुछ कम.

अजित सिंह की पार्टी आरएलडी ने भी इस चुनाव में सबके लिए दरवाजा खोल कर रखा है. चाहे वो दूसरी पार्टियों को छोड़कर आने वाले नेता हों या फिर स्थानीय दबंग, या फिर धन, बल और पद से थोड़ी भी हैसियत रखने वाले उम्मीदवार हों, इन सभी का आरएलडी में स्वागत है.

कुछ पार्टी कार्यकर्ता कहते हैं 'चौधरी साहब ने 270 उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा है. उन्हें नजरअंदाज नहीं करें क्योंकि वो किंग मेकर हो सकते हैं. जबकि उनके कई उम्मीदवार अपनी हैसियत की वजह से चुनाव जीत जाएं.'

अगर चुनाव में आरएलडी की कम सीटें आती हैं तो ऐसी स्थिति में दूसरी पार्टियों से छोड़ कर आने वाले उम्मीदवार और विरोधी नेता अपना रास्ता खुद ही तय करेंगे. ऐसी स्थिति में फिर अजित सिंह भी हमेशा की तरह ही अपनी राजनीतिक मंजिल खुद ही तय करेंगे.

शामली में बाबली गांव के हुक्का खाट पर जमा हुए जाट समुदाय के वरिष्ठों के बीच बातचीत पर नजर डालें तो स्थिति कुछ और साफ होती दिखती है. सुखपाल सिंह ज्यादातर समय चौधरी साहब के समर्थक रहे हैं. क्योंकि दोनों ही जाट समुदाय से हैं.

बहस के आखिर में वो कहते हैं कि वो ‘नोटा’ के विकल्प का चुनाव करेंगे. सुखपाल सिंह का तर्क है कि इन चुनावों में जाट समुदाय की इज्जत ही अकेला चुनावी मुद्दा होगा. जाट वोटर चौधरी चरण सिंह का सम्मान का ख्याल जरूर रखेंगे.

सूबे का भविष्य कैसा होगा इसकी फिक्र न कर 85 की उम्र में एक ऐसे नेता के सम्मान में वोट देना जिनकी मृत्यु 30 साल पहले हो चुकी है, काफी अटपटा लग सकता है. लेकिन फिर ये जाटलैंड के वोटरों का इलाका है. जहां भावनाएं सभी मुद्दों से ऊपर दिखती हैं. खास कर बुजुर्गों के बीच.

हालांकि सुखपाल सिंह के तर्क का जवाब प्रेम सिंह और विरेशपाल सिंह देते हैं. प्रेम सिंह एक्स सर्विस मैन हैं जबकि विरेशपाल सिंह स्कूल शिक्षक. इनका तर्क है कि जाट समुदाय अगर पूरी तरह भी अजित सिंह के समर्थन में वोट कर देगा फिर भी वो जीत नहीं सकते.

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इसकी वजह बहुत साधारण है. क्योंकि जाट वोटरों को छोड़कर कोई भी दूसरी जाति और वोटर आरएलडी के पक्ष में वोट नहीं करेंगे. इनके मुताबिक नरेंद्र मोदी बेहतरीन काम कर रहे हैं और उन्हें राज्य में भी सरकार बनाने का मौका मिलना चाहिए. ये लोग खास तौर पर सर्जिकल स्ट्राइक, नोटबंदी और दुनिया भर में भारत के प्रति सम्मान बढ़ने की बात का हवाला देते हैं.

सच नहीं साबित हुए वादे

जबकि यशपाल जो अब तक पूरी चर्चा को बड़े ध्यान से सुन रहे थे वो कहते हैं कि 'देखिए भाई साहब. लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान मोदी जी एक रैली करने बढ़ौत आए हुए थे. (जो चौधरी चरण सिंह की कर्मभूमि कही जाती है). तब मोदी जी ने गन्ना उत्पादक किसानों को उनकी मेहनत की अच्छी कीमत दिलवाने का वादा किया था.'

यशपाल आगे कहते हैं , 'उन्होंने इस इलाके में बेहतर सड़क बनाने की भी बात कही थी. लेकिन ये दोनों वादे सिर्फ चुनावी वादे ही साबित हुए. ये हकीकत में कभी तब्दील नहीं हुए.'

इस सवाल पर भी क्या ये जानते हुए भी कि एक उम्मीदवार चुनाव में हार जाएगा, जाट समुदाय के वोटर फिर भी समाज की इज्जत बचाने के नाम पर उसे ही अपना वोट देंगे ? क्या जाट वोटर अपना वोट इसी तरह बेकार जाने देंगे ?

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बागपत के दिकोली गांव के रहने वाले ओम वीर सिंह इसका जवाब क्या देते हैं वो जानना बेहद दिलचस्प है. 'हम सभी जानते हैं कि अजित सिंह काफी स्वार्थी किस्म के नेता हैं. वो जहां भी अपने लिए मौका देखते हैं उसी ओर चले जाते हैं. बावजूद इसके हमारे पास क्या विकल्प है? वो हमारे समुदाय के अकेले नेता हैं.'

जाट समुदाय के लोगों के बीच एक अच्छी बात देखने को ये भी मिलती है कि भले वो तमाम ऐसे मुद्दों पर एक दूसरे से बहस कर लें. लेकिन फिर अपने बगल में बैठे शख्स के लिए वो हुक्का बढ़ाना नहीं भूलते. शायद उन्हें भी ये बात का एहसास है कि यही वक्त है जब वोट मांगने वाले नेताओं से अपनी बात मनवाई जा सकती है.