लोनी-बागपत की धूल भरी सड़क पर एक वीआईपी नंबर वाली चमचमाती हुई सफेद पोर्श एसयूवी सुस्ती से चल रही है. हालांकि यह देखने में रोबदार लगती है. कुछ ही दूरी पर कुछ एसयूवी और एमयूवी को बड़े ही करीने से पार्क किया गया है. कुछ लोग सफेद पोर्श और उसके मालिक को थोड़े डर और थोड़े सम्मान से देख रहे हैं.
यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि समर्थकों और तमाशबीनों का ध्यान किस पर है. आकर्षण का केंद्र बने हुए मन्नू भड़ाना अपने दो मोबाइल पर बात करते हुए अपने से बड़े लोगों के पैर छूते हैं और युवाओं को कभी गले लगाते हैं और कभी उनकी पीठ थपथपाते हैं. उनके लिए रोजमर्रा के काम आने वाली चीजों की दुकानों के बाहर कुछ कुर्सियां रखी हुई हैं.
मन्नू जो कर रहे थे उससे लग रहा था कि वो वोट मांगने निकले कोई नेता हैं लेकिन वो नेता जैसे दिखते नहीं. किसी भी महानगर के ऊंचे तबके में मन्नू एक आत्मविश्वास से लबरेज युवा की तरह दिखेंगे.
हिंदी, अंग्रेजी और हरियाणवी या पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बोली बोलने वाले मन्नू ने स्कूली पढ़ाई दिल्ली के बाराखंभा रोड के मॉर्डन स्कूल से की है. इसके बाद वो ग्रेजुएशन करने के लिए अमेरिका के डलास चले गए थे. वहां से बीबीए करने के बाद वो अपना कारोबार संभालने के लिए भारत लौट आए.
उनका माइनिंग और बोतलबंद पानी का कारोबार है. हो सकता है कि आपने कभी उनकी माउंट कैलाश कंपनी के पानी से गला तर किया हो.
करतार सिंह भड़ाना के इकलौते बेटे
लेकिन मन्नू कोई सामान्य कारोबारी नहीं हैं. वो करतार सिंह भड़ाना के इकलौते बेटे हैं. करतार सिंह भड़ाना गुर्जर समुदाय के बड़े नेता हैं और उनका प्रभाव हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हैं. करतार सिंह हरियाणा में मंत्री रहे हैं और अभी उत्तर प्रदेश के खतौली से विधायक हैं.
करतार सिंह भड़ाना ऐसे नेता हैं जिन्होंने कई राजनीतिक दलों के अखाड़ों में दंगल खेला है. उनके पास पैसा भी है और बाहुबल भी. इस बार उन्होंने सीट भी बदली है और पार्टी भी. वो इस बार चौधरी अजित सिंह के राष्ट्रीय लोकल दल से उम्मीदवार हैं. यह इलाका जाटों के दबदबे वाले इलाके का दिल समझा जाता है.
पिता का चुनाव प्रचार संभाले हुए हैं मन्नू
मन्नू अपने पिता का चुनाव प्रचार संभाले हुए हैं. वो फर्स्टपोस्ट से कहते हैं, 'मुझे राजनीति में दिलचस्पी नहीं है.' यह पूछने पर कि वो किसी खांटी नेता की तरह काम क्यों कर रहे हैं वो मुस्कुराते हुए कहते हैं कि यह उनके लिए एक तरह का कर्तव्य है.
किसी स्मार्ट कारोबारी से लोगों को संबोधित करने वाले नेता बनना और फिर उनके रास्ते में दिखने वाले बुजुर्गों के पैर छूकर उनसे वोट मांगना, ये सब काम वो बड़ी आसानी से कर लेते हैं.
वो कहते हैं, 'थोड़ा वक्त लगता है फिर आदत पड़ जाती है. मैं 2007 में अमेरिका से पढ़ाई पूरी कर वापस आया और अपने पिता का 2012 का विधानसभा चुनाव प्रचार संभाला. फिर आप घर पर भी चीजें देखते हैं. मैं दिल्ली में रहता हूं. चुनाव के वक्त पूरा रूटीन बदल जाता है, हर रोज नए नाम, नई पहचान वाले हजारों लोगों से मिलना होता है और सब याद रखना और उनकी उम्मीदों पर खरा उतरना बड़ी चुनौती है.'
वो कहते हैं, 'कुल मिलाकर आपका पूरा दिमाग पूरी ताकत से काम करता है, ये लोग कौन हैं, किस गांव के हैं और पूरे समय आगे की योजना बनती रहती है. एक बार चुनाव खत्म हुआ तो मैं अपने कारोबार में फिर लग जाउंगा.'
लेकिन कोई कारोबार चुनाव संभालने से ज्यादा बड़ी चुनौती नहीं है.
हमारे बात करते-करते और लोग जुट गए. सारी कारें भर गईं और मन्नू का अपनी पोर्श में बैठकर रवाना होने का समय हो गया.
उनकी और पोर्श की शान में चार चांद लगाता एक कमांडो भी था. दूर से देखने में वो एनएसजी का ब्लैक कैट कमांडो लग रहा था लेकिन पास से देखने पर साफ समझ में आ गया कि वो और किसी एजेंसी से है. जो खास बात थी वो ये कि वो भी अपने नए मालिक के रंग में रंगा हुआ था.
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