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यूपी चुनाव 2017: इलाहाबाद में इतनी जोर आजमाइश से किस पार्टी को बढ़त मिलेगी?

2012 में पूरी तरह से साफ हो गई भाजपा के पक्ष में 2017 में कम से कम 5 सीटें आती दिख रही हैं

Harshvardhan Tripathi

चौथे चरण का मतदान कई तरह से खास है. चौथे चरण में इलाहाबाद जिले में भी मतदान होना है, जो पूर्वांचल का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है.

इलाहाबाद कांग्रेस की पैदाइश वाली जमीन है और यही वो जमीन है जहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक प्रोफेसर राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भइया का घर है.


इतना ही नहीं इसी शहर में विश्व हिंदू परिषद के संस्थापक अशोक सिंघल का घर है और यही वो शहर है, जहां से बीजेपी के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी अकेले ऐसा नेता रहे जो लगातार 3 बार सांसद चुने गए.

कांग्रेस की पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी भले ही लखनऊ की कैंट विधानसभा से चुनाव लड़ रही हों लेकिन उनका घर भी इलाहाबाद में ही है.

फूलपूर से सांसद और उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य का भी घर यहीं है. पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी भी इसी शहर में रहते हैं.

कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रमोद तिवारी भी इसी शहर में रहते हैं. देश के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में शामिल इलाहाबाद विश्वविद्यालय भी यहीं है.

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इस जिले का महत्व इसी से समझा जा सकता है कि चौथे चरण के प्रचार का समय खत्म होते समय भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह अपना रोड-शो यहीं खत्म कर रहे थे और उसी समय यूपी के दोनों लड़के (अखिलेश यादव और राहुल गांधी) भी इलाहाबाद में ही थे.

चौथे चरण का प्रचार 21 तारीख को शाम 5 बजे बंद हुआ, उसके एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इलाहाबाद में रैली करके जा चुके थे. इलाहाबाद में सभी दलों की इतनी जोर-आजमाइश की वजह बड़ी साफ है.

15 सीटों पर फैसला

इस जिले में प्रदेश की सबसे ज्यादा विधानसभा सीटें हैं. अभी भी इलाहाबाद में 12 विधानसभा सीटें हैं और अगर इस जिले का हिस्सा रहे कौशांबी को जोड़ लिया जाए, तो कुल 15 सीटों का फैसला यहां से होना है.

चौथे चरण में 23 फरवरी को कुल 53 सीटों पर मतदान हुआ है. इस वजह से इलाहाबाद की 12 सीटें अति महत्वपूर्ण हो जाती हैं और सबसे बड़ी बात कि इन सीटों से निकला संदेश पूरब की ओर प्रभावी भी होता है.

चौथे चरण की 53 सीटों की 2012 के परिणाम के लिहाज से बात करें, तो 24 सीटें समाजवादी पार्टी के खाते में, 15 सीटें बहुजन समाज पार्टी के खाते में, 6 सीटें कांग्रेस के खाते में, 5 सीटें भाजपा के खाते में और 3 सीटें पीस पार्टी के खाते में गई थीं.

इस लिहाज से सीधे तौर पर एसपी-बीएसपी ही 2012 के विधानसभा चुनाव में यहां मुख्य खिलाड़ी रहीं. यहां तक कि सीट के लिहाज से कांग्रेस बीजेपी से आगे रही और पीस पार्टी भी एकदम नजदीक खड़ी दिखी.

इलाहाबाद जिले की बात करें तो 12 में से 8 सीटें एसपी ने जीत लीं. 1 सीट कांग्रेस के पास है और 3 सीटें बीएसपी के पास. बीजेपी का 2012 में यहां से खाता भी नहीं खुला.

यहां तक बीजेपी की परम्परागत मानी जाने वाली शहर उत्तरी और दक्षिणी की सीट पर भी उसे हार का स्वाद चखना पड़ा. लेकिन 2017 में स्थिति बदली दिख रही है.

पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केसरीनाथ की परम्परागत सीट इलाहाबाद दक्षिणी से बीजेपी ने बीएसपी से कांग्रेस के रास्ते बीजेपी में आए नंद गोपाल गुप्ता नंदी को टिकट दिया है.

नंदी ने ही 2007 में केसरीनाथ त्रिपाठी को हराया था. नंदी का मुकाबला एसपी विधायक हाजी परवेज अहमद से है. यहां बीएसपी से माशूक खान और सीपीआई से आमिर हबीब के होने से बीजेपी की राह आसान दिख रही है.

शहर उत्तरी में दंगल

शहर उत्तरी भी 1991 के बाद बीजेपी की पक्की सीट हो गई थी. लेकिन, 2007 और 12 में कांग्रेस के अनुग्रह नारायण सिंह ने ये सीट जीत ली. 2012 में बीएसपी के टिकट पर दूसरे स्थान पर रहे हर्षवर्धन बाजपेयी को बीजेपी ने इस बार प्रत्याशी बनाया है.

हर्षवर्धन वाजपेयी का पारिवारिक वोट और बीजेपी का मत मिलाकर लड़ाई रोचक बन रहा है. हालांकि, कांग्रेस विधायक अनुग्रह नारायण सिंह की स्थिति यहां काफी मजबूत रहती है. मुकाबला इन्ही दोनों के बीच रहने वाला है.

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इलाहाबाद विश्वविद्यालय की छात्रसंघ अध्यक्ष रही ऋचा सिंह को एसपी ने शहर की तीसरी पश्चिमी विधानसभा सीट से प्रत्याशी बनाया है. विश्वविद्यालय की पहली महिला अध्यक्ष होने के नाते ऋचा को छात्रों का जबर्दस्त समर्थन है.

ऋचा के पक्ष में माहौल भी अच्छा है. लेकिन, मुश्किल ये कि ऋचा को शहर उत्तरी के बजाय पश्चिमी से टिकट दे दिया गया. क्योंकि ज्यादातर छात्र शहर उत्तरी में ही हैं.

पश्चिमी क्षेत्र एसपी के बाहुबली अतीक अहमद की सीट है. हालांकि, समाजवादी पार्टी ने अतीक को टिकट नहीं दिया है. लेकिन, चुनाव में सीधे नहीं होने के बावजूद इस सीट पर अतीक का असर देखा जा सकता है.

बीएसपी ने विधायक पूजा पाल पर फिर से भरोसा जताया है. पूजा पाल के पति राजू पाल का हत्या के मामले में अतीक और उसके भाई अशरफ पर मुकदमा चल रहा है. भारतीय जनता पार्टी ने यहां से राष्ट्रीय प्रवक्ता सिद्धार्थनाथ सिंह को टिकट दिया है. सिद्धार्थनाथ अपने नाना लालबहादुर शास्त्री और राष्ट्रीय नेतृत्व के खास होने के नाम पर मैदान में हैं. यहां मामला त्रिकोणीय है.

इलाहाबाद में यमुनापार की मेजा विधानसभा में भी मुकाबला रोचक हो गया है. बीजेपी के पूर्व विधायक उदयभान करवरिया की पत्नी नीलम करवरिया यहां से चुनाव लड़ रही हैं. एसपी विधायक विजमा यादव के पति जवाहर यादव की हत्या के आरोप में करवरिया बंधु जेल में हैं.

20 साल पुराने मामले के फिर से खुलने और करीब 2 साल से जेल में होने को सत्ता की प्रताड़ना बताने में नीलम करवरिया कामयाब दिख रही हैं.

महिला होने से उन्हें सहानुभूति भी मिल रही है. मेजा से एसपी से रामसेवक सिंह मैदान में हैं और बीएसपी ने भूमिहार ब्राह्मण एस के मिश्रा को मैदान में उतारा है. 1967 से 2007 तक मेजा विधानसभा सुरक्षित थी. 2012 में सामान्य हुई तो एसपी से गामा पांडेय विधायक बने लेकिन, रेवती रमण सिंह ने अपने नजदीकी गामा पांडेय का टिकट कटवा दिया.

2012 में दूसरे स्थान पर रहे बीएसपी के आनंद पांडेय बीजेपी में आ गए हैं. इसकी वजह से ब्राह्मण बहुल मेजा विधानसभा में ब्राह्मण बीजेपी के साथ गोलबंद होते दिख रहे हैं.

राहुल, अखिलेश का साथ

शहर उत्तरी में संघर्ष

शहर उत्तरी की ही तरह यमुनापार की बारा सुरक्षित सीट भी एसपी-कांग्रेस गठजोड़ में कांग्रेस के पास गई है. कांग्रेस से यहां से सुरेश कुमार मैदान में हैं. ये सीट भी समाजवादी पार्टी के पास थी. लेकिन, एसपी विधायक डॉक्टर अजय कुमार बीजेपी के टिकट पर मैदान में हैं.

बीएसपी से अशोक गौतम मैदान में हैं. यमुनापार की करछना विधानसभा से दिग्गज एसपी नेता रेवती रमण सिंह के बेटे उज्ज्वल रमण मैदान में है. पिछले चुनाव में उज्ज्वल रमण बीएसपी के दीपक पटेल से हार गए थे. इस बार फिर से ये दोनों आमने-सामने हैं.

भाजपा से पीयूष रंजन इस मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश में लगे हैं. यमुनापार की कोरांव सुरक्षित 2012 में बीएसपी के कब्जे में थी और इस बार बीएसपा विधायक राजबली जैसल को सीपीएम से कांग्रेस में गए रामकृपाल कड़ी चुनौती दे रहे हैं. यहां से बीजेपी ने राजमणि और एसपी ने रामदेव को टिकट दिया है.

इलाहाबाद के गंगापार में 5 विधानसभा सीटें हैं. गंगापार की फूलपुर विधानसभा से बीजेपी ने प्रवीण सिंह पटेल को टिकट दिया है. प्रवीण पटेल पिछले चुनाव में बीएसपी से लड़े थे और दूसरे स्थान पर थे.

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य के विरोध के बावजूद प्रवीण पटेल ने अमित शाह की अपने विधानसभा में सभा कराई और उसी में बीजेपी में शामिल हुए. यहां से एसपी के सईद अहमद विधायक थे. लेकिन, एसपी से मन्सूर आलम और बीएसपी से मोहम्मद मसरूर शेख को टिकट मिला है.

फूलपूर सीट पर मुसलमान मतदाता काफी संख्या में है लेकिन, एसपी-बीएसपी दोनों से मुस्लिम प्रत्याशी होने से बीजेपी को फायदा मिल सकता है. फाफामऊ सीट पर सबसे ज्यादा मौर्य मतदाता हैं और उसके बाद ब्राह्मण और मुसलमान हैं.

ब्राह्मण और सवर्ण मतदाता

समाजवादी पार्टी ने यहां से विधायक अंसार अहमद को फिर से उतार दिया है. बीएसपी के परम्परागत मतों के साथ मनोज पांडेय ने ब्राह्मण मतों में सेंधमारी की अच्छी कोशिश की है.

हालांकि, इलाहाबाद की हर सीट पर ब्राह्मण और सवर्ण मतदाताओं के बीजेपी के साथ जाने को मनोज यहां कितना रोक पाएंगे ये बड़ा सवाल है.

बीजेपी ने यहां से विक्रमजीत मौर्य को टिकट दिया है. विक्रमाजीत को मौर्य के साथ सवर्ण मतों के सहारे जीत का भरोसा है. प्रतापपुर सीट से समाजवादी पार्टी ने विधायक विजमा यादव को फिर से मैदान में उतारा है. यहां से बीएसपी ने मुज्तबा सिद्दीकी को टिकट दिया है.

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बीजेपी ने ये सीट अपना दल को दी है. अपना दल से करन सिंह प्रत्याशी हैं. यहां सभी प्रत्याशी एसपी की विजमा यादव से ही लड़ेंगे. हंडिया सीट भी अपना दल के खाते में गई है. यहां से पूर्व मंत्री राकेशधर त्रिपाठी की पत्नी प्रमिलाधर त्रिपाठी चुनाव लड़ रही हैं.

राकेशधर पर लोकायुक्त ने भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया है. राकेशधर के परम्परागत मत, सवर्ण और अपना दल के मतों से प्रमिलाधर की स्थिति मजबूत है. एसपी से निधि यादव और बीएसपी से हकीम लाल यहां मुकाबले में हैं.

सोरांव सीट पर अंतिम समय तक बीजेपी और अपना दल में सहमति नहीं बन सकी थी. हालांकि, बाद में ये सीट अपना दल के खाते में चली गई है. अपना दल से जमुना प्रसाद सरोज लड़ रहे हैं. लेकिन, बीजेपी से सुरेंद्र चौधरी को भी चुनाव चिन्ह मिल गया है. इसी तरह समाजवादी और कांग्रेस दोनों के ही प्रत्याशी मैदान में हैं.

ऐसे में सोरांव सीट पर बीसपी की गीता देवी की संभावना बेहतर दिखती है. हर पार्टी इलाहाबाद में अच्छे माहौल के भरोसे उत्तर प्रदेश का पूर्वी दुर्ग जीत लेने की मंशा रखती है.

2012 में पूरी तरह से साफ हो गई भाजपा के पक्ष में 2017 में कम से कम 5 सीटें आती दिख रही हैं. समाजवादी पार्टी 3 सीटों पर पहले स्थान की लड़ाई में है और कांग्रेस के लिए अपनी एक सीट बचाना बड़ी चुनाती साबित हो रहा है. 2 सीटों पर बीएसपी का हाथी सबसे मजबूत दिख रहा है.