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आप राजनीति में भाषा के गिरते स्तर पर रोने वालों के झांसे में न आएं

भाषा के ‘गिरते स्तर’ पर अपने आप को पढ़ा लिखा समझने वाले बकवास कर रहे हैं.

Updated On: Feb 27, 2017 12:41 PM IST

Avinash Dutt

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आप राजनीति में भाषा के गिरते स्तर पर रोने वालों के झांसे में न आएं

भाई चुनाव हैं और वो सब कुछ हो रहा है, जो होता आ रहा है. हां, एक चीज नई है वो है भाषा के ‘गिरते स्तर’ पर अपने आप को भद्र दिखाने और पढ़ा लिखा समझने वालों की बकवास. तमाम टीकाकारों ने शालीनता की मौत की घोषणा कर दी है और जार जार रो रहे हैं. ऊपर से तुर्रा ये कि वो चाहते हैं कि आप भी रोएं.

आप इनके झांसे में ना आएं. क्योंकि न तो ये अपने कमरे से निकल कर सड़क पर जाना चाहते हैं ना ही ये आजाद भारत के इतिहास को पढ़ना चाहते हैं.

राजनीति के गिरते स्तर पर रोने वाले ऐसा आभास देते हैं जैसे पहले के नेताओं के बीच का संवाद मंडन मिश्र और आदि शंकराचार्य के बीच का होने वाले शास्त्रार्थ सा होता हो.

ऐसा कभी नहीं था

भाषा का ये सच नेता जानते हैं. जनता जानती है. पर मेरे बहुत से हमपेशा लोग नहीं जानते. तो उनको सलाह है कि जरा बाहर घूम आएं. चिंता करनी है तो कॉलेजों स्कूलों में भाषा के गिरते स्तर पर करें.

टीवी देखिए अखबार पढ़िए हर तरफ गमजदा चेहरों के साथ लोग सिसकते हुए कहेंगे किसी प्रधानमंत्री ने ऐसी भाषा का इस्तेमाल नहीं किया. उधर से कोई दूसरे कराहते हुए बोलेंगे बताइए जरा कोई मुख्यमंत्री किसी प्रधानमंत्री के लिए आज तक ऐसा घटिया बोला है भला.

बदजुबान कैसे-कैसे

राजनारायण जिन्होंने इंदिरा गांधी को इमरजेंसी के बाद चुनाव में हराया था, उनकी बदजुबानी ऐतिहासिक है. जो भी उनके निशाने पर आता था उस पर सबसे साधारण आरोप वो सीधे-सीधे मंच से ‘घूसखोर’ होने का लगाते थे.

उनकी बात और भाषण वहां से शुरू होते थे. खत्म जहां होते थे वहां तो इस कहानी को लेकर जाया ही नहीं जा सकता. मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी और उनकी ‘बहू जी’ के बारे में ‘घूसखोर’ के आरोप उन्होंने खूब लगाए.

राजनारायण अपनी अभद्र भाषा के चलते कई बार स्पीकर द्वारा विधानसभा से बाहर किए गए.

Sunder Lal Patwa

सुन्दर लाल पटवा (फोटो: गणेश मालवीय की फेसबुक वॉल से)

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ने सुन्दर लाल पटवा एक बहस के दौरान सरकार द्वारा पेश की गई किसी जांच रिपोर्ट से उखड़ गए. पटवा ने सबके सामने रिपोर्ट का रोल बनाया और हाथों से एक बेहद खराब माना जा सकने वाला इशारा कर के दिग्विजय सिंह से बोले ‘माननीय मुख्यमंत्री इस रिपोर्ट को आप यथोचित स्थान पर रख लें.’

हंगामा हुआ लेकिन आज भी लोग इसे हंस कर याद करते हैं.

पूर्व सांसद और देश के गृह मंत्री रहे उमाशंकर दीक्षित पर कौन सा ऐसा आरोप था जो कि नहीं लगा.

ये बात सही है कि राष्ट्रीय राजनीति का स्तर थोड़ा बेहतर था लेकिन वहां भी कोई किसी से अद्वैत के सिद्धांत पर बहस नहीं करता था.

Jawahar-Lal-Nehru

जवाहरलाल नेहरु प्रधानमंत्री थे और अपनी नफीस जबान के लिए जाने जाते थे लेकिन उनको कोई छोड़ दे, होता नहीं था. साल 1962 में चीन से लड़ाई हारने के बाद संसद में बहस हो रही थी नेहरु ने अक्सई चिन पर बहस के दौरान बेहद हिकारत से बोला कि ‘वहां पर घास का एक तिनका तक नहीं उगता.’

मेरठ से लोकसभा सदस्य महावीर त्यागी उठे और अपनी टोपी उठा कर बोले ‘एक तिनका तो यहां भी नहीं उगता क्या इसे भी दूसरे को दे दें’. त्यागी गंजे थे पर उनका साफ इशारा नेहरु की तरफ था जो की खुद भी गंजे थे. इसे हंसी हंसी में याद किया जाता है लेकिन ये आज हो रही ‘गधे बाजी’ से कम नहीं था.

नेता वोटर से वोटर की जबान में बात करते हैं. संस्कृत में एक सूत्र खूब सुनाई देता है ‘यत् पिंडे तत् ब्रम्हांडे, यत् ब्रम्हांडे तत् पिंडे.’ इसका देसी भाषा में मतलब है जैसा कड़ाही में होगा वैसा करछुल में आयेगा’.

हिंदी साहित्य के दिग्गजों को बोलो अशालीन

चलिए राजनीति की भाषा छोड़िए आम बोलचाल की भाषा देखिए. काशीनाथ सिंह की किताब ‘काशी के अस्सी’ हिंदी साहित्य में क्लासिक के दर्जे में हैं. इसमें इतनी गालियां लिखी हुई हैं कि संसद में या शाम के समाचार के प्रोग्राम में कोई इसके दो पन्ने पढ़ के नहीं सुना सकता.अगर ऐसा कर दिया तो सांसद की सांसदी चली जाएगी और टीवी चैनल का लाइसेंस.

फिराक़ गोरखपुरी महिला-पुरुष छोटे-बड़े बिना किसी का लिहाज किए ऐसी गालियां देते थे कि कान के कीड़े झड़ जाएं. अगर होते तो रघुपति सहाय उर्फ फिराक़ गोरखपुरी अब तक बेचारे दो चार बार बदतमीजी के आरोप में जेल जा चुके होते. उनके ऊपर देश की अलग अलग अदालतों में  कम से कम 500 मुकदमे चल रहे होते.

बात इतनी सी है कि ये जो नेता एक दूसरे को मंच से दुत्कार रहे हैं वो निजी जीवन में भाषा और जनता के सच को समझते हैं. ये लोग आपस में अच्छा संबंध रखते हैं. लालू और मुलायम दोनों मोदी को अपने यहां शादियों में बुलाते हैं.

कुल मिला कर आनंद से रहें और खुशी मनाएं की आपकी भाषा पर इन दुखी आत्माओं का कब्जा नहीं है.

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