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उन्नाव रेप केस: सेंगर पर हाथ डालने से क्यों बचती रही योगी सरकार

विधानसभा में बीजेपी का भारी बहुमत देखते हुए पार्टी विधान परिषद में अपनी सीटें बढ़ाने की उम्मीद कर रही है, इसलिए हर विधायक का वोट बहुत कीमती है

Sanjay Singh

मार्च, 2013 में उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार ने एक अप्रत्याशित फैसला लेते हुए कुंडा के डीएसपी जिया-उल-हक मर्डर केस को, जिसमें मृतक की पत्नी परवीन आजाद ने दबंग निर्दलीय विधायक और मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया को आरोपी बताया था, ‘स्वतंत्र और पक्षपात रहित जांच’ के लिए सीबीआई को सौंपने का फैसला लिया. यह मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की अपनी सरकार की तरफ से ध्यान हटाने की चतुराई भरी चाल थी, और इससे यह नैतिक दावा भी मजबूत हुआ कि वह इस केस की निष्पक्ष जांच कराना चाहते हैं.

उसी साल पांच महीने बाद अगस्त, 2013 में सीबीआई ने गहराई से जांच करने के बाद राजा भैया को क्लीन चिट दे दी. ‘क्लोजर’ रिपोर्ट ना सिर्फ कुंडा के विधायक के लिए बल्कि अखिलेश सरकार के लिए भी बड़ी राहत लेकर आई.


पांच साल बाद उन्नाव में एक लड़की से दुष्कर्म और उसके पिता की पुलिस कस्टडी में मौत के मामले में, जिसमें सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी का विधायक कुलदीप सिंह सेंगर आरोपी है, चौतरफा आलोचनाओं से घिरी योगी आदित्यनाथ सरकार ने भी मामले की जांच अपनी पुलिस के हाथों से लेकर केस सीबीआई को सौंपने की सिफारिश कर दी.

इसका यह मतलब नहीं है कि राजा भैया के केस की तरह सेंगर भी बरी हो जाएंगे. इसका यह भी मतलब नहीं है कि योगी सरकार को आखिरकार राहत मिल जाएगी. हर मामला दूसरे से अलग होता है और यह उम्मीद की जाती है कि देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी हर मामले में गुण-दोष के आधार पर जांच करेगी. सेंगर राजा भैया नहीं हैं और यह मामला भी अलग है, लेकिन वह भी कमजोर नहीं है.

दबंग ठाकुर नेता हैं सेंगर

चार बार के विधायक 12वीं पास कुलदीप सिंह सेंगर उन्नाव के एक दबंग ठाकुर नेता हैं. वह बीजेपी में 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले ही शामिल हुए हैं. इससे पहले वह दो बार समाजवादी पार्टी से और एक बार बहुजन समाज पार्टी से विधायक रहे हैं. वह पहली बार बीएसपी प्रत्याशी के तौर पर 2002 में उन्नाव सदर सीट से यूपी विधानसभा में आए. अगले विधानसभा चुनाव में 2007 में उन्होंने उन्नाव जिले में बांगरमऊ सीट से चुनाव लड़ने के लिए पाला बदल कर एसपी का दामन थाम लिया. वह आसानी से चुनाव जीत गए. 2012 में उन्होंने बांगरमऊ सीट बदल कर उन्नाव में ही भगवंत नगर सीट से चुनाव लड़ा. वह फिर जीत गए. तीसरी बार तीसरी नई सीट से.

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बीते एक दशक में उन्होंने खुद को अपने ही अंदाज में एक मजबूत नेता के रूप में स्थापित कर लिया है. उन्होंने अपनी पत्नी संगीता को उन्नाव जिला परिषद की चेयरपर्सन बनवा दिया. 2017 में उन्होंने एक बार फिर पाला बदला और बीजेपी का दामन थाम लिया. पिछले चुनाव में बीजेपी ने ह्रदय नारायण दीक्षित (जो कि अब यूपी विधानसभा के स्पीकर हैं) को भगवंत नगर से उतारा था, जो कि सेंगर की सीट थी. सेंगर को फिर से बांगरमऊ की सीट पर भेज दिया गया.

सेंगर ने बीजेपी की तरफ से ना सिर्फ अपनी सीट जीती, बल्कि दीक्षित को भी भगवंत नगर से जीतने में मदद की. उन्होंने हालिया राज्यसभा चुनाव में एक बार फिर बीजेपी नेतृत्व के सामने अपनी ताकत दिखाई और राजा भैया के साथ मिलकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए उन्नाव क्षेत्र से बीएसपी विधायक अनिल सिंह को बीजेपी के नौवें प्रत्याशी के पक्ष में क्रॉस वोटिंग के लिए राजी कर लिया तथा बीएसपी के राज्यसभा प्रत्याशी की हार सुनिश्चित की.

चार्जशीट में नहीं था नाम

दिलचस्प बात यह है कि सेंगर की पत्नी संगीता भी अपने पति के बचाव में सामने आईं और मामले में ‘सच' सामने लाने के लिए सेंगर तथा दुष्कर्म पीड़िता का नार्को टेस्ट कराने की मांग रखी.

पीड़िता के परिवार द्वारा जून 2017 में दर्ज कराए गए मूल मुकदमे में सेंगर का नाम नहीं था. तीन लड़कों का नाम लिया गया था और उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई. उचित धाराओं के तहत चीफ ज्यूडीशियल मजिस्ट्रेट के सामने लड़की का बयान दर्ज किया गया.

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पीड़िता की मां द्वारा पहली बार फरवरी 2018 में अदालत के सामने विधायक सेंगर का नाम लिया गया. पीड़िता और विधायक का परिवार एक ही इलाके के रहने वाले हैं और काफी समय से एक दूसरे को जानते हैं.

पिता की मौत के बाद उछला मामला

न्यायिक हिरासत में पीड़िता के पिता की मौत के बाद मामला और गंभीर हो गया. आरोप लगाया गया कि विधायक के भाई ने उन्हें बुरी तरह पीटा और पुलिस ने भी उनकी मदद नहीं की. इन बातों ने सेंगर के खिलाफ आरोपों को और गंभीर बना दिया. यूपी के होम सेक्रेटरी और डीजीपी ने कुछ पुलिस वालों और अस्पताल के स्टाफ द्वारा अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाने की बात मानी. इनमें से कुछ को निलंबित कर दिया गया है और विभागीय जांच शुरू कर दी गई है.

मामले में ढीली कार्रवाई को लेकर हालांकि योगी सरकार की आलोचना हो रही है और वह सेंगर को भरसक बचाती हुई दिख रही है, लेकिन राज्य में बीजेपी समर्थकों का एक धड़ा बीजेपी नेतृत्व के विस्तृत जांच से पहले कोई नतीजा नहीं निकालने के लिए 'धैर्य और सावधानी' की वकालत से संतुष्ट है.

विधान परिषद चुनाव की वजह से हो रहा है बचाव?

मामले का एक और पहलू है, जैसा कि लखनऊ में एक पार्टी कार्यकर्ता ने बताया, विधान परिषद की 13 सीटों के लिए 26 अप्रैल को चुनाव होने वाले हैं. विधानसभा में बीजेपी का भारी बहुमत देखते हुए पार्टी विधान परिषद में अपनी सीटें बढ़ाने की उम्मीद कर रही है, इसलिए हर विधायक का वोट बहुत कीमती है. खासकर इसलिए भी कि बीजेपी के खिलाफ एसपी-बीएसपी साझा उम्मीदवार उतार रहे हैं. विधान परिषद में अखिलेश यादव का कार्यकाल भी खत्म होने वाला है.

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याद कीजिए कि हाल के राज्यसभा चुनाव में बीजेपी के पुरजोर विरोध के चलते जेल में बंद दो विधायकों मुख्तार अंसारी (बीएसपी) और हरिओम यादव (एसपी) जेल से बाहर आकर वोट करने की इजाजत नहीं मिली थी. सेंगर के जेल जाने के बाद इस बात की संभावना बहुत कम है कि उन्हें विधान परिषद चुनाव से पहले जमानत मिल सके.