ट्रिपल तलाक के मसले पर कांग्रेस की मजबूरी है कि उसे राजनीतिक नफे नुकसान का भी कैलकुलेशन करना है. पार्टी को उन प्रदेशों में मुस्लिम समर्थन खोने का डर है कि जहां क्षेत्रीय पार्टियां भी मजबूत है. खासकर यूपी, बिहार और बंगाल में जहां कांग्रेस हाशिए पर है. असम और केरल में भी कांग्रेस के वोट में सेंध लग सकती है. लेकिन टीम राहुल की है. गुजरात के नतीजों से कांग्रेस उत्साहित है. कांग्रेस भी साफ्ट हिंदुत्व का कार्ड खेल रही है...
लोकसभा में विवादित बिल पास हो गया है. कांग्रेस ने इस बिल का समर्थन किया है. हालांकि कांग्रेस ने इस बिल को संसद की सेलेक्ट कमेटी मे भेजने की मांग की थी. जिसको नहीं माना गया लेकिन कांग्रेस इस बिल का समर्थन करने के बाद फंस गई है. कांग्रेस के कई नेता इस बात से हैरान है कि आखिर पार्टी ने अचानक स्टैंड क्यों बदल दिया. सूत्र बता रहे हैं कि पहले ये तय हुआ था कि कांग्रेस क्लॉज 5 पर संशोधन लाएगी. जिसका जिक्र सुष्मिता देव ने अपने भाषण में भी किया कि अगर इस क्लॉज के हिसाब से पति जेल चला जाता है तो गुजारा भत्ता कौन देगा. लेकिन ऐन मौके पर कांग्रेस ने इससे भी गुरेज किया.
कांग्रेस को लग रहा था कि इस बिल का तनिक विरोध भी राजनीतिक तौर पर नुकसानदेह हो सकता है. कांग्रेस के ऊपर महिला विरोधी होने का आरोप भी लगता इसके अलावा मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप से भी कांग्रेस बचना चाहती है. लेकिन कांग्रेस के लिए ये बहुत आसान नहीं रहने वाला है. कांग्रेस के कई नेताओं का कहना है कि पार्टी को बीच का रास्ता अख्तियार करना चाहिए था. इस तरह से बीजेपी के पाले में जाकर खेलने से कांग्रेस को बहुत ज्यादा फायदा होने वाला नहीं है.
हालांकि पार्टी की तरफ से कहा जा रहा है कि वो इंस्टेंट तीन तलाक के खिलाफ है. कांग्रेस को मुस्लिम तंज़ीमें भी रियायत देने के लिए फिलहाल तैयार है. मुस्लिम नेता और पेशे से वकील ज़फरयाब जिलानी कहते है कि ‘लोकसभा में विपक्ष कमजोर है इसलिए अगर विरोध भी करते तो भी ये बिल सरकार के हिसाब से ही पास होता लेकिन राज्यसभा में विपक्ष मजबूत है और इस बिल को पहले संसदीय कमिटी में जाना चाहिए जिसके बाद ही इस बिल पर आगे कोई कार्यवाही होनी चाहिए.'
राज्यसभा में क्या होगी कांग्रेस की रणनीति
राज्यसभा में सरकार के सामने सवाल जरूर है कि कांग्रेस का वहां पर रुख क्या होगा.क्योंकि कांग्रेस ये नहीं चाहेगी कि अचानक मुस्लिम उनसे दूर हो जाए. कांग्रेस की तरफ से कहा गया है कि सरकार को मुस्लिम महिलाओं और बच्चों के अधिकारों का खयाल रखना चाहिए. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा कि ‘परिवार के भीतर क्रिमिनल लॉ को लेकर आना काफी संगीन मसला है इसमें काफी ध्यान देना चाहिए और दुनिया में कहीं भी तलाक के मामलों को अपराधिक तौर पर नहीं देखा जाता है.’
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कांग्रेस को लग रहा है कि वह एक तीर से कई शिकार इस मामले पर कर सकती है. एक मुस्लिम तुष्टिकरण का जो ठप्पा कांग्रेस पर बीजेपी लगा रही है उससे पार्टी को राहत मिलेगी. दूसरे बीजेपी को मुस्लिम महिला का अहितकर साबित करने की भी कोशिश करेगी क्योंकि जो सवाल कांग्रेस खड़ा कर रही है उसमें लगातार मुस्लिम महिलाओं के अधिकार की बात की जा रही है. कांग्रेस राज्यसभा में इस बिल को सेलेक्ट कमेटी में भेजने की मांग पुरजोर तरीके से करेगी. पार्टी के लोगों को उम्मीद है कि विपक्षी दल इस मामले में कांग्रेस के साथ रहेंगे.
कांग्रेस के गले की हड्डी है तीन तलाक का मसला
कांग्रेस की कमान राहुल गांधी के पास है. राहुल गांधी अपने पिता वाली गलती नहीं दोहराना चाहते. 1986 में तत्कालीन राजीव गांधी की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बरअक्श जाकर मुस्लिम महिला प्रोटेक्शन और तलाक कानून बनाया था. जिसमें मुस्लिम महिलाओं के गुजारा भत्ता देने के लिए सरकार ने पति की जगह वक्फ बोर्ड को जिम्मेदार बनाया था. कानून में कहा गया कि इद्दत के दौरान ही महिला भरण पोषण की अधिकारी है. जिसके बाद ये मामला कोर्ट में गया जिस पर कोर्ट ने इस कानून को तो माना लेकिन कहा कि गुजारा भत्ता सिर्फ इद्दत के वक्त तक ही नहीं होना चाहिए.
राहुल गांधी को लग रहा है कि वक्त का तकाजा है कि शाहबानो वाले आरोप से कांग्रेस अपने आपको बेदाग निकाल ले. लेकिन कांग्रेस की मजबूरी है कि कांग्रेस को राजनीतिक नफे नुकसान का भी कैलकुलेशन करना है.
गुजरात के नतीजों से कांग्रेस उत्साहित है. साफ्ट हिंदुत्व का फायदा कांग्रेस को मिला है लेकिन उतना नहीं कि बीजेपी को कोई ज्यादा नुकसान हुआ हो. बीजेपी के नेताओं ने कांग्रेस को आगाह किया है कि जब किसी की नकल करेंगे तो जनता नकलची को समर्थन देगी या ओरिजिनल को. जाहिर है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पार्टी के अचानक बदले रुख से आशंकित हैं. वहीं पार्टी के मुस्लिम नेता अभी खामोश हैं कुछ का कहना है कि राज्यसभा में पार्टी के रुख को देखने के बाद ही सार्वजनिक तौर पर कुछ कहेंगे.
क्या कहते हैं मुस्लिम संगठन
इस बिल को कानूनी जामा तभी मिलेगा जब ये राज्यसभा से पास हो जाए. मुस्लिम संगठन भी ये आस लगाए है कि विपक्ष सरकार के बिल का विरोध करेगा खासकर ऐसे क्लॉज का जो उनकी नजर में कानून के खिलाफ है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य ज़फरयाब जिलानी ने कहा कि विपक्ष को ये दबाव बनाना चाहिए कि यह संसदीय कमेटी में जाए जहां मुस्लिम महिलाओं के अलावा धर्मगुरुओं और बुद्धिजीवी वर्ग से भी राय-मशविरा किया जाए. मुस्लिम संगठनों की नजर में ये कानून जो सरकार ला रही है ये सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है.
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इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के इटी बशीर ने कहा कि कानून में क्लियरिटी नहीं है क्योंकि क्लॉज तीन में ये स्पष्ट नहीं है कि अगर कोई औरत खुला का दावा करती है यानी खुद तलाक की पहल करती है उसमें कानून का रुख क्या होगा. मुस्लिम संगठन कह रहे है कि अगर पति जेल चला गया तो गुजारा भत्ता कौन देगा. इसमें जुर्माने की बात है लेकिन कितना होगा ये तय नहीं है. सरकार के पास इसके गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए क्या प्रावधान है. ये उदाहरण भी दिया गया कि सायरा बानो जो तीन तलाक की पीड़िता भी है बच्चों को अपने साथ नहीं रखना चाहती है ऐसे में बच्चों की कस्टडी किसको दी जाएगी. ये भी कानून में साफ नहीं है. ज़फरयाब जिलानी ने कहा कि अगर इस तरह का कानून बन भी जाता है तो वे फिर से कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे.
कांग्रेस की मजबूरी
जो आपत्ति मुस्लिम संगठन उठा रहे हैं कांग्रेस भी वही आपत्ति उठा रही है. कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि संसद को ये देखना चाहिए कि किसी के अधिकार का हनन ना हो. पार्टी की मजबूरी है कि बीजेपी की तरह इस बिल का समर्थन नहीं कर सकती है. ना ही इसका विरोध करके बीजेपी के निशाने पर आना चाहती है. इसलिए कांग्रेस की रणनीति इस बिल को संसदीय समिति को हवाले करके अपने आप को बचाने की रहेगी. ताकि संसदीय समिति की सिफारिश पर अगर कोई संशोधन होता है तो उसे उसका क्रेडिट मिल जाए और अगर नहीं होता है तो कांग्रेस ये कह सकती है कि वो मजबूर है क्योंकि राज्यसभा में बीजेपी को जेडीयू और एआईएडीएमके का साथ तो मिलेगा ही. इसके अलावा हो सकता है कि बीजेडी और डीएमके सरकार का सीधे विरोध करने के बजाय वोटिंग करने से ही परहेज करे लेकिन तीन तलाक का पेंच कांग्रेस के लिए आसानी से हल होने वाला नहीं है.
अगर कांग्रेस इस बिल का बीजेपी की तरह ही समर्थन करती है तो उसे मुस्लिम तंजीमों की नाराजगी मोल लेनी पड़ सकती है. वहीं अगर विरोध करती है तो बीजेपी कांग्रेस के ऊपर फिर से मुस्लिम परस्त होने का आरोप लगाएगी. जिसका उसे राजनीतिक नुकसान सहना पड़ सकता है.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)