संयुक्त आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद को हाईटेक सिटी बनाने के बाद तेलुगुदेशम पार्टी (टीडीपी) के अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू को यह भरोसा हो गया था कि अब उनकी पार्टी की सरकार आंध्र प्रदेश में कई वर्षों तक काबिज रहेगी. लेकिन चुनावी साल 2004 में टीडीपी को बड़ी हार का सामना करना पड़ा. हाईटेक सिटी के सहारे सियासी अमरत्व की चाह रखने वाले नायडू को एक-दो साल नहीं बल्कि पूरे एक दशक सूबे की सत्ता से बाहर रहना पड़ा.
साल 2014 में आंध्र प्रदेश में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव साथ हुए. लेकिन तब तक राज्य के बंटवारे की तस्वीर साफ हो चुकी थी. साल 2014 के चुनाव में टीडीपी सत्ता में आई और नायडू फिर मुख्यमंत्री बने. मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने हाईटेक सिटी से दो कदम आगे जाकर अमरावती को आंध्र प्रदेश की राजधानी बनाने का ऐलान कर दिया. उनका यह फैसला न सिर्फ चौंकाने वाला था,बल्कि इसे लेकर उनकी मंशा पर कई गंभीर सवाल भी उठने लगे.
एक स्मार्ट राजधानी बनाने की उनकी घोषणा किसी तुगलकी फरमान से कम नहीं था. क्योंकि 1800 वर्ष पूर्व सातवाहन साम्राज्य की राजधानी रही अमरावती को उन्होंने पुनर्स्थापित करने का इरादा किया. यह सोचे बगैर कि उसकी कितनी बड़ी कीमत राज्य के लोगों को चुकानी पड़ेगी. आंध्र प्रदेश की अनदेखी और विशेष राज्य का दर्जा न मिलने की वजह से उन्होंने एनडीए से अपना नाता तोड़ लिया.
हालांकि इसके पीछे कई राजनीतिक तर्क दिए जा रहे हैं. उस सच्चाई से भी इनकार नहीं किया जा सकता. लेकिन आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिला. इस वजह से टीडीपी के मंत्री केंद्र सरकार से बाहर हो गए और आंध्र प्रदेश में भी टीडीपी सरकार में शामिल भाजपा के मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया. हालांकि मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू फिलहाल एनडीए से अलग होने का ऐलान नहीं किया है. लेकिन माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में टीडीपी एनडीए से रिश्ते खत्म कर सकती है.
विशेष राज्य के दर्जे को लेकर टीडीपी का केंद्र सरकार से अलग होना लोगों के गले नहीं उतर रहा. सवाल यह है कि अगर इसके प्रति मुख्यमंत्री नायडू इतने ही गंभीर होते तो यह मुद्दा प्रमुखता से उनके चुनावी घोषणा पत्र में शामिल होता.
विपक्षियों के निशाने पर हैं सीएम नायडू, राजधानी बन चुका है मुद्दा
दरअसल अमरावती को सूबे की नई राजधानी बनाने को लेकर मुख्यमंत्री नायडू आंध्र प्रदेश में विपक्षी दलों के निशाने पर हैं. करीब चार साल बीतने को है लेकिन अमरावती में लैंड पूलिंग को छोड़ आधारभूत संरचनाओं का बड़े पैमाने पर निर्माण शुरू नहीं हुआ है. विश्व स्तरीय नई राजधानी के लिए नायडू सरकार को करीब 75 हजार करोड़ रुपये शुरूआती चरण में चाहिए. सरकार के पास इतना पैसा नहीं है. इसलिए मुख्यमंत्री नायडू केंद्र सरकार से विशेष राज्य के दर्जे की मांग कर रहे है.
अगले साल आंध्र प्रदेश में विधानसभा और लोकसभा चुनाव होने हैं. जाहिर है अमरावती के सवाल पर टीडीपी विपक्षी दलों के निशाने पर होगी. क्योंकि इस प्रोजेक्ट में वैसे भी मुख्यमंत्री नायडू के परिजनों और उनकी पार्टी से जुड़े नेताओं पर कई तरह के घोटाले के आरोप लग रहे हैं.
आगामी चुनाव में जनता के आक्रोश और विपक्ष के हमले से बचने के लिए टीडीपी एनडीए से बाहर होना चाहती है. इसके लिए उसने विशेष राज्य का दर्जा जैसा बहाना भी ढूंढ लिया है ताकि जनता के बीच यह संदेश जाए कि आंध्र प्रदेश का विभाजन राज्य हित में नहीं था और केंद्र सरकार आंध्र प्रदेश के विकास के प्रति गंभीर नहीं है.
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बिहार विभाजन के बाद दलील दी गई कि झारखंड बनने से बिहार के राजस्व में काफी कमी आई है. इसलिए कि समस्त खनिज संपदा झारखंड के हिस्से में चली गई है. लिहाजा उसे विशेष राज्य का दर्जा मिले,लेकिन संयुक्त आंध्र प्रदेश पूरी तरह कृषि प्रधान राज्य है. लाइम स्टोन और कुछ मामूली खनिजों को छोड़ यहां कोई महत्वपूर्ण खनिज संपदा नहीं है. दोनों राज्य कृषि प्रधान हैं. ऐसे में आंध्र प्रदेश को तेलंगाना बनने से कितना नुकसान हो गया? इसमें कोई शक नहीं कि अमरावती मुख्यमंत्री एन.चंद्रबाबू के लिए गले की हड्डी बन गई है.
नई राजधानी को लेकर जिस प्रकार अनियमितता बरती गई है. इसमें कोई संदेह नहीं कि जल्द ही इस मामले में एक बड़ा घोटाला सामने आएगा. हैदराबाद को हाईटेक सिटी बनाने के बाद जिस तरह टीडीपी को एक दशक सत्ता से बाहर रहना पड़ा. कहीं ऐसा न हो कि अमरावती की फांस टीडीपी को सत्ता से वनवास की अवधि को बढ़ा दे.
अमरावती में कृषि अब इतिहास बन चुका है
अमरावती समेत 29 गांवों में साल 2015 से अब खेती नहीं होती है. राज्य सरकार ने इस बाबत तीन साल पहले अधिसूचना भी जारी कर दी थी. जिन खेतों में कभी हरियाली हुआ करती थी उनकी जगह अब जेसीबी, फ्रंट लोडर मशीन, सीमेंट और लोहे से लदे ट्रक दिखाई दे रहे हैं.
मुख्यमंत्री एन.चंद्रबाबू नायडू को इस बात का गर्व है कि उन्होंने अमरावती को पुनर्स्थापित किया लेकिन किसानों की कीमत पर ? सातवाहन साम्राज्य के समय अमरावती एक क़षि प्रधान राजधानी थी, लेकिन चंद्रबाबू के शासन में यह राजधानी विशुद्ध व्यवसायिक होगी. यहां चिकनी-चौड़ी सड़कों पर फर्राटा भरती कारें, क्लब और मल्टीप्लेक्स बिल्डिंग्स दिखाई पड़ेगें. मुख्यमंत्री नायडू की कथित जनता की राजधानी कैसी होगी, इसका मॉडल भी उन्होंने जारी कर दिया है.
संयुक्त आंध्र प्रदेश में पूर्व जिला जज ठाकुर गोपाल सिंह बताते हैं, 'अमरावती में तमाम आधुनिक सुख-सुविधाएं होंगी, लेकिन मुख्यमंत्री को यहां एक खास म्यूजियम भी बनाना चाहिए, जिसमें किसानों की मूर्तियां और खेती से जुड़े उनके औजार रखे जाने चाहिए ताकि देश और दुनिया से आने वाले लोग यह जान सकें कि अमरावती में कभी खेती और किसानी भी होती थी.
अमरावती कृष्णा नदी के डेल्टा पर बसा है. इस वजह से यहां भूजल स्तर काफी उपर है. लिहाजा स्मार्ट राजधानी के लिए यह स्थान उचित नहीं है क्योंकि अगर यहां ऊंची इमारतें बन भी जाती हैं तो उसकी बुनियाद मजबूत नहीं होगी। बड़े भूकंप आने पर जान-माल को काफी नुकसान पहुंच सकता है.”
विजयवाड़ा को राजधानी बनाने पर एतराज क्यों ?
जून 2014 में तेलंगाना बनने के बाद आंध्र प्रदेश को नई राजधानी की जरूरत थी. पहले से विकसित विजयवाड़ा को नई राजधानी बनाई जा सकती थी। यहां अधिक जमीनों की जरूरत भी नहीं पड़ती. अगर अमरावती की बजाय पहले से विकसित विजयवाड़ा को राजधानी बनाने की घोषणा होती तो महज 5,000 एकड़ अतिरिक्त भूमि की जरूरत पड़ती और नई राजधानी बनने पर खर्च भी घटकर एक चौथाई रह जाती.
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नई राजधानी बनाने को लेकर कई विपक्षी पार्टियों एवं पर्यावरणविदों ने टीडीपी सरकार को विजयवाड़ा में नई राजधानी बनाने की सलाह दी थी. लेकिन मुख्यमंत्री नायडू ने इसकी अनदेखी कर भारत के सबसे उपजाऊ भूमि में शुमार अमरावती को नई राजधानी बनाने की अदूरदर्शी पहल की. यह जानते हुए कि विजयवाड़ा को राजधानी बनाना सरकार के लिए ही फायदेमंद होता क्योंकि यह शहर काफी पहले से विकसित रहा है. साथ ही आंध्र प्रदेश एक महत्वपूर्ण क्षेत्र रायलसीमा से भी निकट है.
जमीन घोटाले की बू ?
उनके इस फैसले पर तो अब गंभीर सवाल भी उठने लगे हैं. लैंड पूलिंग का विरोध कर रहे राजनीतिक दलों का कहना है कि अमरावती में कम्मा जाति की संख्या अधिक है. मुख्यमंत्री नायडू का संबंध भी इसी जाति से है. विपक्षी दलों का आरोप है कि अमरावती सूबे की नई राजधानी होगी इसकी भनक तेलुगूदेशम पार्टी सरकार के कई मंत्रियों एवं विधायको को लग चुकी थी. नतीजतन टीडीपी से जुड़े नेताओं, प्रशासनिक अधिकारियों और प्रॉपर्टी डीलरों ने यहां की जमीनें खरीदनी शुरू कर दी.
बाजार भाव से अधिक कीमत मिलने की वजह से अधिकांश किसानों ने अपनी जमीनें बेच दीं. उस वक्त उन्हें पता नहीं था कि अमरावती नई राजधानी बनेगी. मुख्यमंत्री नायडू ने जब इसकी घोषणा की तो स्थानीय किसान खुद को ठगा महसूस करने लगे. वाईएसआर कांग्रेस का आरोप है कि नई राजधानी के नाम पर यहां किसानों की जमीनें लूटी जा रही हैं. टीडीपी के ज्यादातर मंत्री व विधायक राजधानी की आड़ में रीयल इस्टेट का धंधा चला रहे हैं.
प्रधानमंत्री ने नई राजधानी की रखी थी नींव
साल 2014 में विजयादशमी के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नई राजधानी अमरावती की नींव रखी थी. भूमि पूजन में आंध्र प्रदेश के सभी गांवों की मिट्टियां, देश की सभी पवित्र नदियों का जल यहां लाया गया था. वास्तु आधारित बनने वाली इस नई राजधानी से मुख्यमंत्री नायडू को खास उम्मीद है. उन्हें विश्वास है कि इससे राज्य में सुख-शांति और सम़द्धि बढ़ेगी. नई राजधानी के लिए उदानदरायुनिपेलम समेत कुल 29 गांवों की 33,692 हजार एकड़ जमीन लैंड पूलिंग के जरिए अधिग्रहीत की गई. इनमें क़ष्णापेलम, रायापुडी, वीरालिंगम,लिंगायापेलम, मलकापुरम, तुल्लुरू, वैंकेटापेलम, नेलापेडू, अनंतवरम ऐसे प्रमुख गांव हैं, जहां भूजल स्तर महज दस फीट नीचे है.
राज्य के प्रत्येक गांव से मिट्टी और देश के पवित्र नदियों का जल उस जगह पर रखा गया है, जहां नई राजधानी की आधारशिला रखी गई. मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू अमरावती को वैश्विक शहर बनाने के लिए सिंगापुर के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर कर चुके हैं. अमरावती में करीब 17 वर्ग किलोमीटर का एक मुख्य केंद्रीय राजधानी क्षेत्र होगा, जहां सरकारी दफ्तर, कर्मचारियों के घर और तीन लाख लोगों के रहने की जगह होगी. अमरावती को आधुनिकतम और विश्वस्तरीय शहर बनाने में 75 हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे.
बटाईदार किसानों के लिए मुसीबत बनी अमरावती
अमरावती में जिन लोगों के पास अधिक जमीनें हैं, उनमें ज्यादातर हैदराबाद और विजयवाड़ा आदि शहरों में रहते हैं. बड़े किसान स्वयं खेती नहीं करते और अपनी जमीनें कॉन्ट्रेक्ट पर दे देते हैं. गुंटूर के जिलाधिकारी कार्यालय के मुताबिक, अमरावती में भूमिहीन किसानों की संख्या 28 हजार है, जो दूसरों की जमीन पर खेती करते हैं. नई राजधानी के शिलान्यास होने के बाद उनके समक्ष बेरोजगारी का संकट पैदा हो गया है.
भूमि अधिग्रहण के बदले लैंड पूलिंग
टीडीपी सरकार ने अमरावती में भूमि अधिग्रहण से इतर लैंड पूलिंग स्कीम का सहारा लिया. इसके तहत कोई किसान अगर अपनी एक एकड़ सिंचित जमीन देता है, तो बदले में राज्य सरकार उक्त भू-स्वामी को नई राजधानी में 1400 गज रेसीडेंसियल और 450 गज डेवलप कॉमर्शियल प्लॉट देगी. इसके अलावा नई राजधानी बनने यानी दस वर्षों तक सरकार 50 हजार रुपये प्रति एकड़ मुआवजा देगी. यही वजह है कि लैंड पूलिंग स्कीम यहां के किसानों को पसंद आया और उन्होंने अपनी जमीनें दीं.
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शहरों में रहने वाले बड़े किसानों को जहां एक एकड़ पर सालाना 10 से 15 हजार रुपये मिलते थे, वहीं लैंड पूलिंग से उन्हें 35 से 40 हजार रुपये का फायदा दिखा. साथ में उन्हें अमरावती में डेवलप रेसिडेंसियल और कॉमर्शियल प्लॉट का सपना दिखाया गया. यही वजह थी कि किसानों द्वारा लैंड पूलिंग का कोई बड़ा विरोध नहीं हुआ. हालांकि वाईएसआर कांग्रेस अमरावती में जारी लैंड पूलिंग का विरोध कर रही है.
जगनमोहन रेड्डी इसके खिलाफ अनशन भी कर चुके हैं. उनका कहना है कि ज्यादातर किसान डर की वजह से जमीनें दे रहे हैं. उन्हें लगता है कि जमीन नहीं देने पर सरकार उसे छीन लेगी.
नक्सलवादी संघर्ष के प्रवक्ता और मशहूर तेलुगू जनकवि वरवर राव अमरावती को राजधानी बनाने जाने को दुर्भाग्यपूर्ण मानते हैं. इनके मुताबिक, “अमरावती किसानों के दुख एवं आंसुओं से बनी राजधानी होगी. नई राजधानी के लिए राज्य सरकार ने 34,000 एकड़ भूमि अर्जित करने का लक्ष्य रखा है. नई राजधानी की जद में वन विभाग की 10,200 एकड़ जमीन भी है.
अमरावती के इतिहास पर एक नजर
अमरावती इतिहास, भूगोल, धर्म और संस्कृति का बेजोड़ मेल है. यह कृष्णा नदी के किनारे बसा है और देश की चुनिंदा बसाहटों में से है जहां कोई नदी पूर्व या दक्षिण के बजाय उत्तर की तरफ बहती है. सातवाहन शासन के दौरान अमरावती में हिंदू धर्म को खूब बढ़ावा मिला. उनके शासन काल में ही यहां अमरलिंगेश्वर मंदिर बना. अमरावती में सातवाहन वंश, इक्ष्वाकू, चालुक्य, चोल, पल्लव, काकतीय और रेड्डी राजाओं के शासन में रहा. सोलहवीं शताब्दी के मध्य तक यह कर्नाटक के विजयनगर साम्राज्य का भी हिस्सा था. सातवाहन वंश के शासन के पहले अमरावती बौद्ध धर्म का केंद्र था. यहां सम्राट अशोक के समय निर्मित स्तूप और बौद्ध मठ के अवशेष भी पाए गए हैं.
अमरावती को कैपिटल पनिसमेंट
हरियाली और उर्वर भूमि से मशहूर अमरावती का यह गौरव जल्द ही खत्म हो जाएगा. नई राजधानी सिंगापुर और मलेशिया की तर्ज पर बनेगा, लेकिन उसमें वह अमरावती कहीं नजर नहीं आएगा, जिसकी अप्रतिम सुंदरता का जिक्र कभी चीनी यात्री ह्वेनसांग ने किया था. नई राजधानी बनाने से पर्यावरणविद् भी खुश नहीं है. उनकी चिंता है कि इससे न सिर्फ संरक्षित वनों को नुकसान पहुंचेगा, बल्कि क़ष्णा नदी के प्रवाह मार्ग में भी बाधाएं उत्पन्न होगी. इस तरह भारत की एकमात्र नदी जो दक्षिण से उत्तर दिशा में बहती है, उसके वजूद पर संकट पैदा हो जाएगा.
नई राजधानी अमरावती का सफर
2 जून, 2014 को आंध्र प्रदेश के 13 जिलों के साथ अलग होकर नया राज्य तेलंगाना बना.
8 जून, 2014 एन. चंद्रबाबू नायडू तीसरी बार आंध्र के मुख्यमंत्री बने। उसके बाद उन्होंने नई राजधानी बनाने की घोषणा की.
1 सितंबर, 2014 को आंध्र प्रदेश कैबिनेट ने फैसला लिया कि अमरावती नई राजधानी होगी.
दिसंबर, 2014 को मुख्यमंत्री नायडू ने सिंगापुर के योजनाकारों को नई राजधानी की डिजाइन करने को कहा.
1 जून, 2015 को स्मार्ट आंध्र गोल अचीव करने के लिए नायडू ने स्मार्ट-विलेज वॉर्ड मैनुअल रिलीज किया.
3 जून, 2015 को राजधानी अमरावती के लिए लैंड पार्सल बनाने के लिए गुंटूर में नेलापाडु विलेज में लैंड-पूलिंग को लॉन्च किया गया.
6 जून, 2015 को कृष्णा नदी के किनारे भूमि पूजन किया गया. जुलाई, 2015 को कैपिटल रीजन के लिए सिंगापुर के प्लानर्स ने मास्टर प्लान पेश किया. इसके बाद राजधानी की नींव रखने की शुरुआत हुई.
(फोटो साभारः अभिषेक रंजन सिंह)