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Telangana Election Result: कांग्रेस-टीडीपी के गठबंधन का असल फायदा TRS को मिला

कांग्रेस के कुछ सीनियर नेता जिनमें स्टार कैंपेनर विजया शांति शामिल हैं, वे टीडीपी के साथ गठबंधन को राज़ी नहीं थे, लेकिन पार्टी की राज्य इकाई ने उनकी राय को अनदेखा कर ये गठबंधन किया था

Maheswara Reddy

तेलंगाना की 119 में से 88 सीटों पर जीत दर्ज कर तेलंगाना राष्ट्रसमिति यानि टीआरएस ने मंगलवार को, राज्य के विधानसभा चुनावों में शानदार जीत दर्ज की है. टीआरएस को ये जीत राज्य के कार्यप्रभारी मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव के नेतृत्व में मिली है, जिन्होंने 6 सितंबर को समय से पहले विधानसभा भंग कर दी थी.

चुनाव नतीजे आने के बाद केसीआर ने तेलंगाना भवन में पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि, ‘आज सिर्फ टीआरएस पार्टी की जीत नहीं हुई है, बल्कि ये तेलंगाना के लोगों की जीत है. खासकर किसान, औरतें, गरीब वर्ग, पिछड़ी जाति के लोग, दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदाय ने हमें ये जीत दिलवाई है. इन लोगों ने जाति, दल, धर्म और वर्ग से ऊपर उठकर हमें वोट देकर ये जीत दिलाई है. इस समय मैं हृदय से उन सभी लोगों के प्रति आभार व्यक्त करना चाहता हूं, जिनकी वजह से हम इन चुनावों में जीत हासिल कर पाए हैं.’


किन कारणों से पक्की हुई तेलंगाना में TRS की जीत

मंगलवार सुबह वोट की गिनती शुरू होने के साथ ही, टीआरएस लगातार आगे चल रही थी. केसीआर ने मुख्यमंत्री रहते हुए राज्य में एक के बाद एक कई लोकलुभावन और कल्याणकारी योजनाएं शुरू की थीं, इसके अलावा अपने भाषणों में वे लगातार तेलंगाना के आत्मसम्मान और गुरूर जैसे मुद्दों को उठाते रहे, जिससे उनकी पार्टी की जीत कहीं न कहीं आसान हो गई थी. हालांकि, विपक्ष और राजनीतिक विश्लेषकों का अनुमान था कि ‘महाकुटमी’ की वजह से, टीआरएस ने जो विधानसभा भंग करने की चाल चली थी, उसका उन्हें नुकसान उठाना पड़ेगा. लेकिन, मंगलवार को सामने आए नतीजों ने एक दूसरी ही कहानी लिख दी है.

वहीं दूसरी तरफ, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिज़ोरम, मध्यप्रदेश और तेंलगाना के पांच राज्यों में संपन्न हुए चुनाव भले ही पूरी तरह से कांग्रेस के पक्ष में नहीं गए, लेकिन पार्टी बीजेपी को ये संदेश देने में कामयाब रही कि उसके लिए आगे का

रास्ता आसान नहीं है और उसके सामने एक मजबूत विपक्ष खड़ा हो रहा है.

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चुनाव नतीजों के बाद टीडीपी नेता चंद्रबाबु नायडू ने मंगलवार को पत्रकारों को

संबोधित करते हुए कहा, 'लोगों को इस का बात का अंदाज़ा हो गया है कि बीजेपी ने पिछले पांच सालों में कुछ भी नहीं किया है और यही वजह है कि लोग अब विकल्प तलाशने लगे हैं. लोग अब बीजेपी के खिलाफ हमारे साथ खड़े हैं. पांचों राज्य के लोग अब बीजेपी के खिलाफ एक मजबूत विकल्प तैयार करने में हमारी काफी मदद करेंगे.'

किस पार्टी को मिली कितनी सीटें?

बात करें टीआरएस की तो पार्टी के प्रत्याशी के.हरीश राव, जो केसीआर के भांजे भी हैं, उन्होंने सिड्डीपेट विधानसभा सीट पर वोटों के विशाल अंतर से चुनाव जीत कर एक रिकॉर्ड बनाया है. ऐसा करते हुए उन्होंने 2014 के अपने ही 90, हज़ार वोटों के रिकॉर्ड को तोड़ दिया है. उन्होंने कहा - 'लोगों को ये अच्छी तरह से पता है कि केसीआर ने उनके लिए क्या-क्या किया है, और वे इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि केसीआर के नेतृत्व में उनका भविष्य सुरक्षित है.

उन्होंन कहा, 'लोगों ने हम पर भरोसा किया है, और हम उनके भरोसे बरकरार रखने के लिए कड़ी मेहनत करेंगे. मैं प्रचार के दौरान राज्य के सभी गांवों में नहीं आ सका, लेकिन फिर भी यहां के लोगों ने मुझ अपना आशीर्वाद दिया है. अब मैं सभी गांवों में जाउंगा और लोगों और पार्टी कार्यकर्ताओं से मुलाकात करूंगा. ऐसा करते हुए मैं उनके विकास के लिए काम करूंगा.'

तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव

लेकिन, इन चुनावों में टीआरएस को सबसे बड़ा धक्का तब लगा जब उनके तीन

पूर्व मंत्रियों को चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा. इनमें, तुम्मला नागेश्वर राव

(पलेरू विधानसभा सीट), अज़मीरा चंदुलाल (मुलूगु विधानसभा सीट) और जुपाली कृष्णा राव (कोल्हापुर विधानसभा सीट) शामिल हैं. कांग्रेस की प्रत्याशी सीथक्का जो डी.अनुसूया के नाम से भी जानी जाती हैं, और जो पहले नक्सल कार्यकर्ता थीं. उन्होंने टीआरएस के प्रत्याशी को मुलूगु सीट पर हराया है.

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बीजेपी को इस राज्य में सिर्फ एक सीटों पर जीत मिली है. जिन पांच राज्यों में

विधानसभा चुनाव हुए हैं, भारतीय जनता पार्टी को कहीं भी कोई खास सफलता

नहीं मिल पाई है, तेलंगाना में तो बिल्कुल भी नहीं. ये तब हुआ जब राज्य में

बीजेपी की तरफ से कई बड़ी रैलियों और चुनावी सभाओं का आयोजन किया गया, जिसे खुद प्रधानमंत्री मोदी, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख़्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने संबोधित किया था. लेकिन, पार्टी उन सीटों को भी बचाने में नाकाम रही जो उसने 2014 में जीते थे.

बुरी तरह फेल हुई बीजेपी

बीजेपी का लक्ष्य इन चुनावों में राज्य में कम से कम 60 सीटों पर जीत हासिल करना था, इसके लिए उसने कई कदम भी उठाए थे जिसमें, स्वामी परीपूर्णानंद

को बीजेपी मंत्रीमंडल में शामिल करना, और उनके तेलंगाना में योगी आदित्यनाथ को जनता के सामने पेश करना शामिल थे, मगर ये सभी कदम पूरी तरह से फेल हो गए. इसके अलावा बड़े ही ज़ोर-शोर से कांग्रेस पार्टी, तेलुगूदेशम पार्टी और सीपीआई के बीच जिस महाकुटमी यानि महागठबंधन का गठन किया गया था, और वो भी कहीं न कहीं असफल रही. कांग्रेस पार्टी को निराश करते हुए ये गठबंधन मंगलवार शाम साढ़े पांच बजे तक सिर्फ 21 सीटें ही जीत पाई थी.

कांग्रेस पार्टी की रेवती रेड्डी ने कहा, 'अगर हम चुनाव जीतते हैं तो हम ये समझेंगे

कि राज्य की जनता ने हम पर एक जिम्मेदारी डाली है और अगर टीआरएस जीतती है तो हम ये मानेंगे कि लोगों ने हमें विपक्ष में बैठने को कहा है और

उनके हकों के लिए संघर्ष करने को कहा है.'

एक तरफ जहां कांग्रेस और टीडीपी को 19 और 02 सीटें मिली हैं, वहीं टीजेएस

यानि तेलंगाना जन समिति और सीपीआई के उम्मीदवारों को एक भी सीट पर

जीत हासिल नहीं हुई है. तेलंगाना जनसमिति पार्टी की स्थापना, तेलंगाना आंदोलन के एक बड़े नेता प्रो.कोडानदरम ने किया है, और उन्होंने चार सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन इसके बावजूद पार्टी को चुनावी सफलता नहीं मिली है. टीजेएस की हार को कहीं न कहीं उम्मीदवारों के नामों की घोषणा में हुई देरी से जोड़कर देखा जा रहा है, या फिर टीडीपी, टीजेएस और सीपीआई के बीच सीटों का जो बंटवारा किया गया था उसे जिम्मेदार माना जा रहा है. जबकि, इसके विपरीत टीआरएस ने 107 निर्वाचन क्षेत्रों के लिए अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा विधानसभा चुनाव की तारीख़ तय होने से भी महीनों पहले कर दी थी.

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इसके अलावा भी जो बातें इस महागठबंधन के खिलाफ चली गई वो जनता या

मतदाताओं के बीच  उम्मीदवारों को लेकर उपजा भ्रम था, क्योंकि ये सभी

उम्मीदवार एक से ज़्यादा पार्टियों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. जबकि, टीआरएस ने शुरू से ही बहुत ही समझदारी और सुघड़ता से टिकट का आवंटन किया था.

यही वजह है कि उसके प्रत्याशियों ने कांग्रेस के बड़े नेताओं का चुनाव में हरा

दिया. इनमें कांग्रेस के जना रेड्डी, रेवंत रेड्डी, डीके अरूणा, जीवन रेड्डी,

मोहम्मद अली शब्बीर, कोंडा सुरेखा, पोन्नला लक्ष्मीनारायणा, कोमाती रेड्डी, वेंकट रेड्डी, नगम जनार्धन रेड्डी (जो अप्रैल में बीजेपी छोड़कर कांग्रेस के साथ आए थे)शामिल हैं.

कुछ कांग्रेसी नेताओं ने नतीजे सामने आने के बाद इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीनों

(ईवीएम) को दोष देना शुरू कर दिया है. वरिष्ठ कांग्रेस नेता वी हनुमंत राव ने

आरोप लगाते हुए कहा, 'ईवीएम का रंग गुलाबी है, जिससे मतदाताओं को भ्रम

हुआ. केसीआर चालबाज़ियों के लिए मशहूर हैं, कांग्रेस की जनसभाओं में बड़ी संख्या में जनता पहुंची थी.' हनुमंत राव के इस आरोप से ये साफ साबित हो रहा

है कि उनके मुताबिक कांग्रेस को जनता का समर्थन हासिल था और वे ज़्यादा

सीटें जीत सकते थे. कुछेक कांग्रेस नेताओं ने ये डर भी ज़ाहिर किया कि चुनाव के बाद उनके खिलाफ राजनीतिक द्वेष निकाला जाएगा.

'मुझे इस बात का पूरा यकीन है कि टीआरएस की सरकार हमारे खिलाफ बदले

की भावना से काम करेगी. उनके निशाने पर रेवंत रेड्डी और मेरे जैसे कुछ नेता

होंगे. मैं टीआरएस के नेताओं को ये मशविरा देना चाहता हूँ कि चुनाव प्रचार के

दौरान हमारे बीच जो गर्मागर्म बहस और आरोप-प्रत्यारोप हुए हैं उसे भूल जाएं

और तेलंगाना के लोगों की विकास पर ध्यान केंद्रित करें.' ये कहना था कांग्रेस की

उम्मीदवार कोंडा सुरेखा का, जिन्होंने पराकला निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ी थी और टीआरएस प्रत्याशी से हार गईं थीं. सुरेखा कांग्रेस में आने से पहले टीआरएस में थीं, लेकिन टिकट न मिलने के कारण वे टीआरएस छोड़ कांग्रेस चली आईं थीं.

कांग्रेस-टीडीपी गठबंधन का फायदा केसीआर को हुआ

हालांकि, कांग्रेस के कुछ सीनियर नेता जिनमें स्टार कैंपेनर विजया शांति शामिल

हैं, वे टीडीपी के साथ गठबंधन को राज़ी नहीं थे, लेकिन पार्टी की राज्य इकाई ने

उनकी राय को अनदेखा कर ये गठबंधन किया था. ऐसा करने के पीछे कांग्रेस

हाईकमान का दबाव बताया जा रहा है. अब चुनाव के जो नतीजे सामने आए हैं,

उससे ये साबित हो रहा है कि कांग्रेस और टीडीपी के गठबंधन का असल फायदा टीआरएस के नेताओं को हुआ न कि कांग्रेस को. ये वो टीआरएस नेता थे, जिन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान लगातार इस ‘महागठबंधन’ पर तीख़ा हमला किया.

राज्य के ज्यादातर टीआरएस नेता जिनमें केसीआर भी शामिल हैं, उन्होंने इस

गठबंधन को एक नापाक गठबंधन करारा दिया था, उन्होंने चंद्रबाबु नायडू को

तेलंगाना के पिछड़ेपन के लिए दोषी ठहराया. तेलंगाना के लोगों के मन में दबे गुस्से और भावुकता को टीआरएस ने गठबंधन के विरोध में इस्तेमाल किया. टीआरएस के नेता जनता के सामने आंध्रप्रदेश के मुख़्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को एक खलनायक के तौर पर पेश करने में सफल रहे, एक ऐसा खलनायक जिसने राज्य की कई कृषि से जुड़ी सिंचाई योजनाओं को रोकने का काम किया था.

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चुनाव के नतीजों पर टिप्पणी करते हुए, वाई.एस.आर कांग्रेस के नेता वी.विजयसाई रेड्डी ने आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबु नायडू को राज्य में कांग्रेस की हार के लिए ज़िम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा, 'अटलबिहारी वाजपेयी और एच.डी.देवेगौड़ा जैसे नेताओं ने चंद्रबाबु नायडू से हाथ मिलाकर सत्ता खो दी थी, अब कांग्रेस के साथ भी वही हुआ है. टीडीपी के साथ गठबंधन करने की वजह से ही कांग्रेस को इस चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा है.'

हैदराबाद के वोटरों ने टीडीपी के बदले टीआरएस को चुना

इसके विपरीत 2014 में जब हैदराबाद के वोटरों ने, जो तब आंध्रा से आए बांशिंदे माने जाते थे, उन्होंने टीडीपी के प्रतिनिधियों को चुना था, वो समूह इस बार टीआरएस के साथ चला गया. ये जो बदलाव हुआ इसके कई कारण हो सकते हैं जिसमें टीडीपी को लेकर विश्वास की कमी का होना भी शामिल है. इस समूह के कई लोगों का मानना था, टीडीपी ने जबसे आंध्रप्रदेश की राजधानी हैदराबाद से अमरावती में स्थानांतरित किया है, उन्होंने तब से उन लोगों को त्याग दिया है.

ये बात कुकटपल्ली में भी साफतौर पर देखा जा सकती है, जहां के ज्यादातर

मतदाता आंध्रप्रदेश के निवासी हैं. टीडीपी ने यहां से स्वर्गीय नंदामुरी हरिकृष्णा की बेटी सुहासिनी को चुनाव मैदान में उतारा था और टॉलीवुड अभिनेत्री नंदामुरी

बालाकृष्णा उनके साथ नामांकन पत्र दाखिल करने तक आईं थीं, लेकिन फिर भी

यहां की जनता ने टीआरएस के प्रत्याशी माधवारम कृष्णाराव को उनकी जगह

अपने प्रतिनिधि के तौर पर चुनकर विधानसभा भेजने का फैसला किया.