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कुमारस्वामी शपथ ग्रहण: मंच पर विपक्षी एकता का नजारा क्या टिकाऊ है!

बीजेपी को मात देने के नाम पर बेंगलुरु में विपक्षी एकता का प्रदर्शन करने की जो कोशिश की गई, उसमें उस तरह का अपनापन और एकजुटता का नजारा नहीं दिखा

Amitesh

कर्नाटक के मुख्यमंत्री के तौर पर एच डी कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में विपक्षी नेताओं का जमावड़ा दिखा. मंच पर धुर-विरोधी नेता भी एक-दूसरे के साथ हाथ मिलाते और गलबहियां करते दिखे. कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में मायावती, अखिलेश और अजित सिंह के अलावा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू भी शामिल होने के लिए बेंगलुरु में थे.

इसके अलावा लोकतांत्रिक जनता दल के नेता शरद यादव, जेवीएम के नेता बाबूलाल मरांडी, एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार और आरजेडी नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भी मौजूद थे. लेकिन, इस समारोह में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी का पहुंचना भी काफी महत्वपूर्ण रहा.


कांग्रेस की कोशिश कर्नाटक फॉर्मूले को देश भर में आजमाने की

कांग्रेस चुनाव से पहले कर्नाटक में सत्ता में थी. लेकिन, चुनाव में हाथ से सत्ता फिसलने के बावजूद जिस तरह उसने जेडीएस को समर्थन देकर सत्ता में पिछले दरवाजे से इंट्री मारी है, वो काफी महत्वपूर्ण है. कांग्रेस की पूरी कोशिश यही है कि इस फॉर्मूले को देश भर में आजमाया जाएगा. कोशिश उन राज्यों में क्षेत्रीय दलों से गठबंधन करने की है जिन राज्यों में कांग्रेस का वजूद काफी कम हो गया है.

कांग्रेस को भी पता है कि जिन राज्यों में उसका जनाधार नहीं है, वहां क्षेत्रीय क्षत्रपों की पिछलग्गू बनकर ही मोदी विरोधी मुहिम को ताकत दी जा सकती है. गोरखपुर और फूलपुर की गलती से सबक लेकर (कांग्रेस ने यहां अकेले चुनाव लड़ा था) कांग्रेस ने अपनी रणनीति बदल दी है. इसकी शुरुआत सबसे पहले कर्नाटक से ही हुई है. उसे अब लग रहा है कि क्षेत्रीय दलों की बादशाहत को स्वीकार कर मोदी विरोधी गठबंधन को बड़ा किया जा सकता है.

यूपी में एसपी-बीएसपी की साझेदार बन सकती है कांग्रेस

कर्नाटक का फॉर्मूला अब यूपी में भी लागू करने की तैयारी हो रही है. कांग्रेस की पूरी कोशिश भी यही है कि एसपी और बीएसपी को साथ लाकर उस गठबंधन में वो छोटी साझेदार बन जाए. इस गठबंधन में आरएलडी भी शामिल हो सकती है. बेंगलुरु में शपथ ग्रहण समारोह में चौधरी अजित सिंह की मौजूदगी कुछ इसी तरह की कहानी बयां कर रही थी.

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एसपी और बीएसपी के नेताओं को देखकर आने वाले दिनों में यूपी की राजनीति में हो रहे बदलाव का एक संकेत भी मिला. बुआ और बबुआ की जोड़ी एक साथ मंच पर बैठी थी. दोनों की मुलाकात में गर्मजोशी भी थी और भविष्य की राजनीति का संकेत भी था.

अखिलेश यादव और मायावती को पता है कि यूपी में बीजेपी को रोकना है तो मिलकर ही रणनीति बनानी होगी. गोरखपुर और फूलपुर के लोकसभा के उपचुनाव में ऐसा हो चुका है, अब इसी रणनीति को लोकसभा चुनाव तक बरकरार रखने की हो रही है.

फोटो पीटीआई से

कांग्रेस फिलहाल बिहार में आरजेडी के साथ गठबंधन में है. इस कुनबे में जीतनराम मांझी और शरद यादव भी अब साथ आ गए हैं. कोशिश उपेंद्र कुशवाहा और रामविलास पासवान को भी साधने की है. लेकिन, बिहार में कांग्रेस का जनाधार कम है. ऐसे में कांग्रेस आरजेडी की जूनियर पार्टनर बनकर वहां बीजेपी गठबंधन को चुनौती देना चाह रही है.

कई क्षेत्रीय दलों से गठबंधन में हो सकती है कांग्रेस को मुश्किल

यूपी में भी अखिलेश-मायावती के साथ आने के बाद कांग्रेस को इनकी बी टीम बनकर लड़ने में कोई परहेज नहीं है. लेकिन, बाकी कई राज्यों में कांग्रेस की लड़ाई इन क्षेत्रीय पार्टियों से भी रही है. लिहाजा वहां गठबंधन में परेशानी हो सकती है.

बात अगर आंध्र प्रदेश की करें तो टीडीपी के साथ कांग्रेस सीधी लड़ाई लड़ती है. चंद्रबाबू नायडू भी गैर-कांग्रेसी राजनीति करते रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस के साथ किसी भी गठबंधन में उनके साथ आने को लेकर अभी से दावा करना जल्दबाजी होगी. नायडू भले ही कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में एक मंच पर आए थे.

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लेकिन, मोदी विरोध के नाम पर उनके कांग्रेस से सीधे-सीधे हाथ मिलाना थोड़ा मुश्किल लग रहा है. हालाकि आंध्र से सटे हुए कर्नाटक के कुछ इलाकों में नायडू ने बीजेपी का विरोध भी किया था. सूत्रों के मुताबिक, कर्नाटक विधानसभा चुनाव के वक्त उनका यह दांव कारगर भी हुआ था और बीजेपी को पांच से 6 सीटों पर नुकसान भी उठाना पड़ा था.

Bengaluru: Congress leader Sonia Gandhi greets West Bengal Chief Minister Mamta Banerjee, as Bahujan Samaj Party (BSP) leader Mayawati walks past during the swearing-in ceremony, in Bengaluru, on Wednesday. (PTI Photo/Shailendra Bhojak)(PTI5_23_2018_000143B)

इसके अलावा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी अपने राज्य में कांग्रेस और सीपीएम दोनों के खिलाफ चुनाव लड़ती रही हैं. यहां तक कि कांग्रेस के नेता ममता के साथ गठबंधन की संभावना से इनकार भी करते रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस के साथ चुनाव से पहले किसी तरह के गठबंधन की बात करना इतना आसान नहीं दिख रहा है.

ममता के साथ गठबंधन को लेकर स्थिति साफ नहीं

हो सकता है चुनाव बाद कोई समझौता हो जाए. क्योंकि ममता बनर्जी मोदी विरोध की बात तो करती हैं लेकिन, सीपीएम और कांग्रेस के साथ जाने को लेकर बहुत उत्साहित नजर नहीं आ रही. अभी कुछ वक्त पहले ही तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के साथ उनकी मुलाकात में भी कुछ इसी तरह के गठबंधन की बात का संकेत दिख रहा था, जिसमें बीजेपी के खिलाफ एक होने की बात तो थी, लेकिन, कांग्रेस के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन को लेकर कोई उत्साह नहीं था.

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कुछ ऐसा ही माहौल दिल्ली में भी है. बीजेपी विरोध के नाम पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल बेंगलुरु तो पहुंच गए लेकिन, सोनिया-राहुल के साथ आने से कतराते रहे. दिल्ली में भी कांग्रेस के साथ आप की चुनाव से पहले किसी भी तरह की गठबंधन की संभावना नहीं दिख रही है.

बीजेपी को मात देने के नाम पर बेंगलुरु में विपक्षी एकता का प्रदर्शन करने की जो कोशिश की गई, उसमें उस तरह का अपनापन और एकजुटता का नजारा नहीं दिखा. शक्ति प्रदर्शन की यह कोशिश महज दिखावा बनकर ही रह गई. अभी विपक्षी कुनबे को एक करना इतना आसान नहीं है, जितना दिख रहा है.