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ट्रोल्स पर पोल करके अलग-थलग पड़ीं सुषमा स्वराज, ये लड़ाई उन्हें खुद लड़नी होगी

इस मामले की सबसे बड़ी विडंबना है कि सुषमा को तथाकथित 'वाम उदारवादियों' और 'धर्मनिरपेक्षतावादियों' से समर्थन मिल रहा है

Sanjay Singh

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कुछ दिन पहले एक अंतर्धामिक जोड़े के लिए तेजी से पासपोर्ट जारी करने का निर्देश दिया था. इस फैसले के खिलाफ विदेश मंत्री को ट्विटर पर ट्रोल किया गया. ट्रोल होने के बाद विदेश मंत्री की ओर से ट्विटर पर कराए गए एक पोल में 124305 लोगों ने हिस्सा लिया और करीब 43 फीसदी ने आक्रामक ट्वीटस को सही बताया. इस पोल के नतीजों ने निश्चित रूप से विदेश मंत्री को परेशान किया होगा. सुषमा स्वराज को इसका श्रेय जाता है कि उन्होंने अपनी ओर से कराए गए इस पोल के नतीजे को ईमानदारी से सार्वजनिक किया. सुषमा का भावनात्मक सवाल था, 'क्या आप इन ट्वीट्स का समर्थन करते हैं?' इसमें हिस्सा लेने वाले केवल 57 फीसदी लोगों ने 'ना' में जवाब दिया.

बीजेपी और संघ से नहीं मिला समर्थन


ट्वीटबाजों के बीच इस मसले पर गर्मागर्म बहस से अलग सुषमा और उनके समर्थकों के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात दूसरी है. सुषमा जिस पार्टी बीजेपी से आती हैं, वो इस मुद्दे पर लगभग मौन रही. केंद्र सरकार में सुषमा के साथी, राज्यों के मुख्यमंत्री और मंत्री, पार्टी पदाधिकारी और यहां तक कि संघ परिवार में भी सब खामोश रहे. इस मामले में उनकी चुप्पी समर्थन में कहे गए शब्दों की तुलना में अधिक स्पष्ट है.

फ़र्स्टपोस्ट ने इस मुद्दे पर बीजेपी के कुछ नेताओं से बात की. नेताओं ने नाम नहीं बताने और ऑफ द रिकॉर्ड की शर्त पर, 'प्रतिक्रिया नहीं देना ही हमारी प्रतिक्रिया है....कहने के लिए कुछ नहीं है....इसमें प्रतिक्रिया जैसा कुछ नहीं है....अगर कुछ कहना होगा तो हम आपको बता देंगे....हम बाद में आपसे बात करेंगे' जैसे बयान दिए, जो विडंबनापूर्ण हैं. सुषमा के लिए संदेश साफ और स्पष्ट है. इस मामले में पार्टी और सरकार उनके समर्थन में नहीं है, न तो खुले रूप में और नही खामोशी में. उन्होंने इसे निजी लड़ाई बना दिया और अब उन्हें ही इससे निपटना होगा.

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सुषमा के ट्रोल से परेशान आरएसएस

इससे भी बुरा यह है कि बीजेपी और संघ परिवार के एक वर्ग में यह भावना है कि वर्तमान मामले में सुषमा स्वराज के आचरण ने पिछले चार सालों के उनके सभी अच्छे कामों पर पानी फेर दिया है. उनके जैसी अनुभवी नेता को इसका आभास हो जाना चाहिए. आरएसएस के दिल्ली प्रांत प्रचार प्रमुख राजीव तुली ने 21 जून को ट्वीट कर अधिकारी विकास मिश्रा के लिए न्याय की मांग की थी और आगाह किया था कि सुषमा स्वराज भी कानून से ऊपर नहीं हैं. उन्होंने ट्रोलिंग पर सुषमा के ट्विटर पोल से जुड़े मसले पर फ़र्स्टपोस्ट से कहा कि विदेश मंत्री को मूल मुद्दों पर बने रहकर मामले को खत्म कर देना चाहिए था: 'उनको ये खत्म करना चाहिए था. इतना लंबा (ट्विटर पोल वगैरह) क्यों खींच रही हैं? यूपी पुलिस की रिपोर्ट आ गई है, उस पर कानून के मुताबिक काम करना चाहिए था.'

बीजेपी और आरएसएस के नेता तर्क दे रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत वो ही पार्टी और सरकार की अकेली बड़ी नेता नहीं है, जिन्हें ट्रोल किया गया है. लेकिन सुषमा की तरह इसे किसी ने मुद्दा नहीं बनाया. उन्हें पासपोर्ट मैनुअल के नियमों के मुताबिक कार्रवाई करनी चाहिए थी लेकिन कुछ कारणों से विदेश मंत्रालय के अधिकारी घबरा गए और नियमों को धता बताते हुए अधिकारी का तबादला कर कुछ ही घंटों में पासपोर्ट जारी कर दिया गया.

यह समझाने की बजाए कि उन्होंने मुद्दे को किसी और चीज में बदल दिया है, वो खुद को 'पीड़ित' की तरह पेश कर रही हैं. पार्टी नेताओं का कहना है कि विदेश मंत्रालय में कुछ शीर्ष अधिकारियों के कहने पर लखनऊ में पासपोर्ट अफसरों ने जो जल्दबादी दिखाई, वो पार्टी के मुख्य सामाजिक आधार को रास नहीं आई. वो बहुत ज्यादा सवाल पूछ रहे हैं, पार्टी कार्यकर्ता भी प्रश्न पूछ रहे हैं लेकिन कोई जवाब नहीं है.

लेफ्ट और सेक्युलरों से मिल रहा समर्थन

इस मामले की सबसे बड़ी विडंबना है कि सुषमा को तथाकथित 'वाम उदारवादियों' और 'धर्मनिरपेक्षतावादियों' से समर्थन मिल रहा है. लेकिन इस समर्थन ने उनके मामले को पार्टी और विचारधारा वाले परिवार में बहुत कमजोर कर दिया है.

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आरएसएस के एक पदाधिकारी ने कहा, 'वाम उदारवादी और धर्मनिरपेक्षतावादी एक उद्देश्य के साथ ऐसा कर रहे हैं. उनका समर्थन करने वाले अधिकतर लोग मोदी-विरोधी के रूप में जाने जाते हैं. वो इस मामले में सुषमा का समर्थन करने और मोदी व बीजेपी पर निशाना साधने को सुविधाजनक मान रहे हैं. हालांकि कुछ ट्वीटस में प्रयोग किए गए अपमानजनक शब्दों का कोई समर्थन नहीं कर रहा है लेकिन इन ट्वीट्स में जो कुछ मुद्दे उठाए गए हैं वो बहुत हद तक सही हैं. उनका उत्तर दिया जाना चाहिए. इसके विपरीत वो विषय से हट रही हैं और किसी और चीज को मुद्दा बना रही हैं. क्या सुषमाजी को ये पता है कि 2019 में उन्हें पार्टी के मुख्य वोटरों का समर्थन, उनकी कड़ी मेहनत और शुभकामनाओं की जरूरत होगी? तब वाम उदारवादी उनसे किनारा कर लेंगे.'

सुषमा ने मोदी सरकार के कामों पर पानी फेरा?

बीजेपी के एक नेता ने कहा कि सुषमा यह समझ पाने में विफल रही कि मोदी सरकार के अंतर्गत आधिकारिक और राजनीतिक विमर्श समेत चीजें किस तरह बदली हैं. 'राजनीतिक भाषणबाजी और बहस की जगह अब तथ्यों, आंकड़ों और जवाबदेही की राजनीति ने ले ली है. इसलिए आप देखेंगे कि मोदीजी और उनके नीचे के नेता आंकड़ों के साथ काम की जानकारी देते हैं, जैसे कि शौचालय, सौभाग्य, मुद्रा इत्यादि. सुषमाजी विदेशों में भारतीयों को मदद पहुंचा रही हैं, वो तुरंत राहत पहुंचा रही हैं और हर किसी ने इसकी तारीफ की है. लेकिन इस बार वो एक मुद्दे पर गलती कर बैठीं, जिसमें उन्हें साफगोई से बात करनी चाहिए थी.' सबसे ज्यादा उन्हें यह बात उत्तेजित कर रही है कि अल्पसंख्यकों की पैरवी करने वाले कुछ वास्तविक या बनावटी ट्वीट मोदी सरकार को परेशान कर तुरंत प्रतिक्रिया देने के लिए बाध्य कर सकते हैं.

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जिस समय नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने और उससे पहले भी मोदी और सुषमा के बीच कुछ हद तक विश्वास की कमी थी. सुषमा विदेश मंत्रालय चाहती थीं और उन्हें ये मंत्रालय मिला भी. समय बीतने के साथ और मंत्रालय में अच्छे कामों की बदौलत उन्होंने विश्वास की ये कमी खत्म कर दी. विदेशी नीति पर पीएमओ का नियंत्रण रहा लेकिन मोदी ने संसद समेत विभिन्न मंचों पर सुषमा के काम की तारीफ की.

अब तक इसका संकेत नहीं मिला है कि मौजूदा विवाद ने उस विश्वास पर असर डाला है लेकिन आईपीएल-ललित मोदी विवाद के दौरान जिस तरह पार्टी सुषमा के साथ खड़ी थी वो निश्चित रूप से इस समय नहीं दिख रहा है.